मुझे गन्दा गन्दा लगता है !-2
(Mujhe Ganda Ganda Lagta Hai-Part 2)
उस दिन घर आकर मैंने दसियों बार ब्रश किया होगा…
अब मेरा भाभी से और दानिश से कोई लेना देना नहीं था… महीनों बीत गए दोनों से बात किये हुए।
बस घर पर पढ़ाई.. टीवी.. कंप्यूटर.. एक दोपहर मुझे एक ईमेल आया संजय का !
मैंने मैसेज किया- संजय, कहाँ हो यार…चल मिलते हैं !संजय का मैसेज आया- आज शाम…?
मैं संजय से शाम को मिली… और फिर अगले दिन फिल्म देखने का प्लान बना… मम्मी पापा भी शहर से बाहर थे।
मैं- संजय हम इतने आगे से फिल्म देखेंगे…?
संजय- हाँ यार टिकट ही नहीं मिला…
मैं- लेकिन यहाँ बहुत से लड़के हैं… आगे के पंक्ति में सिर्फ लड़के ही लड़के हैं।
संजय : अरे उनसे क्या ! तू बस फिल्म देख…
फिल्म हॉल पुराना था… मॉल की तरह नया ऑडी नहीं था… बहुत बेकार लोग आजू बाजू बैठे थे…
संजय ने मेरा हाथ पकड़ा… और फिल्म के बीच में प्रोपोज कर दिया।
प्यार तो मैं करती ही थी… सो मैंने हामी भर दी।
मैंने स्लीवलेस टी शर्ट काले रंग का पहना हुआ था… और जीन्स…
संजय देखने में बहुत अच्छा था.. बस कद में छोटा था… और पतला दुबला था… उम्र में भी कम था और देखने में उससे भी कम था… लेकिन उसके साथ रहना मुझे अच्छा लगता था…
उसने मुझे अपने पास किया और मुझे चुम्बन करने लगा… मैं भी उसे किस करने लगी… और न जाने कब इंटरवल हो गया.. तभी हम अलग हुए…
पीछे बहुत गुंडे टाइप स्टूडेंट बैठे थे जिन्होंने यह करते हमें देख लिया… वो तीन ही थे शायद साथ में उन्होंने कमेंट करना शुरू कर दिया
एक लड़का- फिल्म तो आगे चालू है बॉस !
दूसरा लड़का- हीरोइन तो टंच है बीडू… हमें भी एक चांस दे…
तीसरे ने एक पॉपकॉर्न मेरे ऊपर फेंक दिया जो टीशर्ट के अन्दर चला गया। मैं निकालने लगी तो-
तीसरा लड़का- कहो तो हम निकाल दें मैडम?
फिल्म शुरू हुई तो तीनों थोड़ा शांत हो गए… मेरे लाख मन करने पर भी संजय ने मेरे जीन्स के अन्दर हाथ डाल दिया, उसने बटन और ज़िप खोल कर हाथ डाल दिया और अपनी ऊँगली मेरे फुद्दी में अन्दर बाहर करने लगा। मुझे गन्दा गन्दा लग रहा था।
पीछे बैठे लड़कों को मेरी सिसकारियाँ सुनाई देने लगी शायद इसीलिए एक ने अपने जूते संजय के सीट पर रख दिए।
संजय- ओये मिस्टर, यह क्या बदतमीजी है?
तीनो में से एक लड़का- बदतमीज़ी..? अभी की नहीं ! कर के दिखाऊँ?
मैंने संजय से कहा- चलो चलते हैं यहाँ से ! लोग सुन रहे हैं।
सो हम दोनों कॉरिडोर से निकलने लगे फिल्म चल रही था सो सब अन्दर ही बैठे थे, तभी अचानक से तीनों हमारे पीछे आ गए।
उनमें से एक ने मुझे गोदी में उठा लिया.. मैं चीखती इससे पहले वो तीनों मुझे जेंट्स टॉयलेट ले गए।
संजय- हमें जाने दो… प्लीज़… उसे छोड़ दो !
एक- चल तू जा… इसे बाद में भेज देंगे…
तभी संजय ने उन्हें रोकना चाहा तो एक ने संजय पर वार कर दिया…
एक ने संजय को पकड़ लिया और दूसरे ने मेरा टीशर्ट और ब्रा ऊपर कर दिया मेरे मम्मो को जोर जोर से दबा कर निप्पल चूसने लगा… मुझे गन्दा गन्दा लग रहा था !
इसी बीच वहाँ के कुछ गार्ड आ गए।
गार्ड- आप भागिए मैडम, नहीं तो पुलिस का चक्कर बनेगा !
मैं जल्द ही भाग निकली ! बाद में पता चला कि संजय भी वहाँ पिट गया।
संजय उस घटना के बाद मुझसे कभी नहीं मिला, जब भी मुझे सड़क पर मिला, हमेशा नज़रें चुरा कर अपनी अलग राह हो लिया…
अब न भाभी थी ना दानिश ना संजय… बहुत बोर लगने लगी थी दुनिया।
एक दिन मैं सब्जी खरीदने जा रही थी, तभी रास्ते में मुझे रौनक मिला।
रौनक- श्रेया तुम इतने दिनों से कहाँ हो?
मैं- बस कुछ नहीं यार…पढ़ाई में व्यस्त थी… मैथ समझ नहीं आता मुझे ना ! इसीलिए !
रौनक- अरे ! तूने मुझसे क्यूँ नहीं कहा, मैं पढ़ा देता !
मैं- ओह सच में? कब और कहाँ?
रौनक- मेरे घर पर… आज शाम को ही आ जा !
मैं- ठीक है आज मिलते है फिर…
शाम को मैं रौनक के घर गई। घर पर कोई नहीं था। रौनक ने मुझसे दानिश और संजय के बारे पूछा।
मैं- पता नहीं आज कल कहाँ है वो… तुम्हें कोई आईडिया है कि कहाँ हैं वो लोग?
रौनक : नहीं, आज कल क्रिकेट खेलने भी नहीं आते !
मैं- खैर छोड़ो… चलो पढ़ाई शुरू करते हैं।
मैं उस शाम घुटनों तक स्कर्ट और एक टी शर्ट पहनी हुई थी। रौनक एक काला और मोटा लड़का था। देखने में एकदम बेकार था। अब तक मैं भाभी के साथ पूरी नंगी होकर नहा चुकी थी, दानिश ने मुझे किस किया था और लगभग अपना लंड मेरे मुँह में डाल दिया था। संजय ने मुझे किस किया था और मेरी चूत में ऊँगली डाली थी।
उन दो लड़कों से चुदवाते हुए लगभग रह गई थी। इन सब घटनाओं ने मेरे अन्दर बहुत आग भर दी थी। अब बस मैं भी चुदवाना चाहती थी। चाहे वो चोदू कोई भी हो !
मैंने पढ़ते पढ़ते अपनी स्कर्ट ऊपर कर दी… अब मेरे गोरी गोरी भरी जांघें रौनक को दिख रही थी।
क्या नसीब था इस कल्लू का जो मेरे जैसी हसीना को इस तरह देखे।
रौनक शरमा गया और उसने अपनी नज़रें हटा ली…
मैं- क्या हुआ… क्या देख रहे थे?
रौनक- कुछ नहीं… सॉरी !
मैं- अरे सॉरी क्यूँ बोल रहे हो… तुम तो मेरे दोस्त हो.. तुम चाहो तो इन्हें छू सकते हो।
रौनक- न न नहीं…
रौनक शरमा रहा था तो मैंने उसका हाथ उठा कर अपनी जांघों पर रख लिया…
रौनक मेरी जांघों को सहलाने लगा।
मैं- कैसा लगा रौनक… मैं तुम्हें पसंद नहीं??
रौनक- तुम… तुम्हें कौन नहीं पसंद करेगा… तुम इतनी सुन्दर जो हो…
मैं- सच में… मैं तुम्हें सुन्दर लगती हूँ…?
मैंने अपना टीशर्ट ऊपर किया और रौनक को अपने मम्मे चूसने को कहा..
रौनक- मेरी इतनी औकात नहीं कि इनको चूसूँ… इनको तो कोई बहुत स्मार्ट लड़का चूसेगा… तुम कहो तो मैं तुम्हारी चूत चूस सकता हूँ।
मैंने अपनी पैंटी नीचे की… अपने टांगों को फैलाया…
रौनक ने अपनू मोटी और खुरदरी जीभ मेरी योनि में घुसा दी…
मैं- ई… अह… बस बस…
रौनक जीभ अन्दर बाहर कर रहा था… मैंने अपनी टाँगें जोड़नी चाही ताकि उसकी जीभ को कुछ देर रोक सकूँ।
मैं- अहह रौनक ! नहीं सहा जा रहा है।
मैंने रौनक के बालों को कस कर पकड़ लिया।
रौनक केवल अपना जीभ अन्दर बाहर ही नहीं, ऊपर नीचे भी कर रहा था.. ऊपर जाते वक़्त वो अपनी जीभ से मेरे
मूंगफली की गिरी जैसी क्लेटोरिस को छू रहा था… तब पता नहीं था पर मेरे सारे शरीर में कर्रेंट दौड़ रहा था…
मेरी आँखें अधखुली थी… मैं कांपने लगी… मेरे पूरा जिस्म अब थरथराने लगा था… रौनक के चूत चूसते पूरे बीस मिनट हो रहे थे… ऐसा लग रहा था कि जैसे कुछ मेरी चूत में से बम जैसा विस्फोट होने वाला था… रौनक मेरे थर्राते चूतड़ों को पकड़ लिया… फिर… वो पहली बार हुआ…
मैं- आह माँ उई माई… मम्मी… आह माई…
रौनक के मुँह में मैं चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई… मेरे बच्चेदानी के अन्दर कुछ बारूद के भांति फट गया..
क्लाइमेक्स… क्लाइमेक्स कहते हैं उसे… वो हुआ था मुझे पहली बार ! रुक रुक कर मेरी चूत से कामरस निकल रहा था और रौनक के मुँह में जा रहा था…
रौनक ने मेरा सारा कामरस निगल लिया… मुझे समझ में नहीं आया कोई ऐसी चीज़ कैसे निगल सकता है ! मैं निढाल पड़ गई… मुझमें इतनी शक्ति नहीं थी कि मैं खड़ी हो जाऊँ ! अपने पैरों पर मैं अब सिर्फ ब्रा पहनी हुई थी… और रौनक ने सिर्फ अंडरवियर पहना हुआ था…
उसने मुझे अपने गोदी में उठाया और पलंग पर लेटा दिया…
मैं- रौनक मैं तुमसे प्यार नहीं करती.. प्लीज़ मत चोदना मुझे…
रौनक- मुझे पता है… टेंशन मत लो.. मैं तुम्हें फक नहीं करूँगा… लेकिन क्या मैं तुम्हें पकड़ कर थोड़ी देर आराम कर सकता हूँ…??
मैं- हाँ रौनक… आ जाओ…
मैं रौनक की बांहों में आ गई… मैंने रौनक के छाती पर सर रखा… वो मेरे बालों से खेल रहा था…
मैं- रौनक ! आई ऍम सॉरी… मैं सेक्स नहीं दे पाई तुम्हें…
रौनक- कोई बात नहीं… जो मिला, मैं बहुत खुश हूँ…
मैं- तुम्हें मेरी चूत से निकला पदार्थ… गन्दा गन्दा नहीं लगा??
रौनक- नहीं श्रेया… जब तुम किसी से प्यार करो तो उसका बदन को कोई अंग तुम चूस सकती हो… उसके बदन से निकला कोई पदार्थ तुम पी सकती हो… तुम्हें गन्दा गन्दा नहीं लगेगा…
तब मुझे एक बात समझ में आई थी… अगर आप किसी को किस करते है तो उसके उसके जीभ को चूसने में आपको गन्दा गन्दा नहीं लगना चाहिये… अगर आप किसी को सच्चे दिल से मोहब्बत करते हैं तो उसका मुठ भी गन्दा गन्दा नहीं बल्कि अमृत लगेगा…
धन्यवाद दोस्तो मेरी आपबीती पढ़ने के लिए… मुझे यकीन है आपको गन्दा गन्दा नहीं अच्छा अच्छा लगा होगा !
श्रेया
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