कौमार्य विसर्जन
प्रेषक : प्रांजल प्रातुश
आज तक आपने सम्भोग की अनेक कहानियां पढ़ी होंगी लेकिन यह कहानी नहीं है मेरे सुहागरात का आंखों देखा हाल है।
हमारे यहाँ शादी के बाद लड़का अपनी पत्नी को अपने घर नहीं ले जाता, वो लड़की के घर पर ही रहता है और कई रस्मों को पूरा करने के बाद ले जाता है, इसमें कम से कम सात दिन से सात साल भी हो जाते हैं।
मेरी शादी 9 मई को हुई थी और गर्मी का समय होने के कारण मुझे मालूम था कि रात बहुत छोटी होगी इसलिए मैंने शादी कि किताब खरीद कर अपने लिए शादी के सभी मंत्र याद कर लिए ताकि समय कम से कम लगे। लगभग डेढ़ बजे मेरी शादी संपन्न हुई और मुझे कोहबर घर ले जाया गया जहाँ भगवान के सामने हम दोनों ने पूजा की। फिर मेरे ससुराल वाले मुझे घर में अकेला छोड़ कर निकल गए। मैं सामने भगवान और नीचे चटाई को देखता रहा।
इतने में एक आवाज़ आई तो मेरी बड़ी साली मेरे कमरे में आई और मुझे कुछ खाने को दिया, काजू दूध और मेरे लिए चटाई पर बिछावन डाल दिया और चादर बिछा दी। फिर वो बाहर गई, तब तक मैंने दूध पी लिया। फिर वो आई, उसके हाथ में एक बड़ा तकिया था। मुझे तकिया देकर उन्होंने मुझे आराम करने की सलाह दी और फिर उस घर में लगी एक मात्र खिडकी को वो बंद करके निकल गई।
मैं अब उस बिछावन पर बैठ कर उस नई जगह पर अकेले बोर हो रहा था और अपने नए जीवन को सोच रहा था, तभी कुछ औरतों के हंसने की आवाज़ सुनाई दी। मैंने दरवाजे की ओर देखा, एकाएक दरवाजा खुला और एक लड़की को अंदर धकेला गया फिर दरवाजे को बाहर से बंद कर दिया गया।
वो लड़की दरवाजे को खोलने की जिद कर रही थी और वहीं खड़ी थी मेरी ओर पीठ कर के, वो मेरी पत्नी थी।
मैं अपने विछावन से उठा और उसके पास गया और उसे पकड़ लिया। वो नीचे झुक कर मुझे प्रणाम करने लगी लेकिन मैंने उसे वहीं रोक कर सीने से लगा लिया और फड़फड़ाती आवाज में कहा- आपकी जगह यहाँ है, वहाँ नहीं।
फिर मैंने उसे गले से लगा लिया। दो तीन मिनट के बाद मैंने उसे कहा- चलो अब बैठते हैं।
और उसे लेकर धीरे धीरे से बिस्तर तक गया। मेरी सांस तेज थी किन्तु मन पर नियंत्रण था। वो खामोश अपनी आँखें बंद किये थी, मैं उसे बिस्तर पर बैठाकर उसके सामने बैठ गया।
उसने अपनी आँखें नीची की हुई थी, मैंने उसके चेहरे को उठाकर कहा- जितना सुना था, उससे सुन्दर हो आप ! आज से मैं जीवन की शुरुआत करूँगा इसलिए आपको चूमना चाहता हूँ।
कह कर उसके सर को चूम लिया, फिर मैंने उससे बात बढ़ाना शुरू किया पर वो गठरी बनी बैठी रही तो मैंने कहा- अब मैं आपके साथ सम्भोग करना चाहता हूँ।
वो कुछ नहीं बोली तो मैं बोला- अगर तुम मुझे मना नहीं करोगी तो मैं यह समझूँगा कि आपकी हाँ है।
पर वो खामोश रही, तब मैंने उसके हाथ को पकड़ कर उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके पीछे पीठ पर एक चुम्बन लिया ।वो सिहर गई, फिर मैंने उसके बाएँ कान के नीचे एक चुम्बन लिया और उसके कान को मुँह में ले लिया और उसके कान और नाक के गहने उतार दिए, फिर उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए और चार पांच मिनट तक उसे चूसता रहा।
उसके बाद एकाएक उसके पूरे चेहरे पर 20-25 चुम्बन यहाँ वहाँ जड़ दिए और अपने हाथों से उसकी कमर को पकड़ लिया और उसके गले में चुम्बन लेने लगा। फिर मैंने उसके ब्लाउज में हाथ डाल दिया, अब मैं शराफत छोड़ने लगा था, उसके ब्लाउज से स्तनों को निकलने की कोशिश की पर निकाल नहीं पा रहा था। फिर मैं उसके ब्लाउज के हुक को खोलने लगा तो हुक खुल नहीं रहा था।
उसने मेरी विवशता देखी और हुक खुद खोलने लगी और बोली- आपसे ब्लाउज फट जायेगा।
फिर मैंने उसकी साड़ी को खोल दिया और फ़िर उस ब्लाउज को जो कि हुक से खुला था पर उसके बदन पर था।
उसे केवल पेटीकोट में छोड़ मैं दरवाजे को अंदर से बंद करने गया किन्तु कुन्डी नहीं लगी जिसे उसने देख लिया था।
मैं वापस उसके पास आ गया। इस बीच मेरे लिंग का हाल बेहाल था लेकिन अभी उसको तैयार करना था सेक्स के लिए !
इसलिए मैंने उसके ब्लाउज को उतार कर उसको पीठ के बल लिटा दिया और उसकी पीठ पर चुम्बनों की बौछार कर दी, उसका रोम-रोम खड़ा हो गया।
फिर मैंने उसके पेट पर हाथ फेरना शुरु किया और एक हाथ से उसकी ब्रा खोल दी। उसकी ब्रा में सिमटे उसका कंचुक मेरे सामने थे,
जो थोड़ी देर पहले छोटे दिख रहे थे, वो नर्म नाज़ुक कंचुक मेरे सामने विशाल आकार में खुले थे। मैंने उसे अपने मुँह में लेकर चूसना
शुरू किया और एक हाथ से दबाना भी कि मेरी पत्नी ने मुझे धक्का दिया और दरवाजे के पास जाकर उसे बंद करने लगी।
मैं भी पीछे-पीछे गया और जैसे ही उसने सांकल लगाई, मैंने उसे गोद में लेकर बिस्तर का रास्ता पार किया और उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और अपने हाथ को उसके योनि प्रदेश के जंगलों में लेकर गया, फिर उसकी पेंटी में अपनी हथेली डाल दी और उसके पेटीकोट और पेंटी को नीचे सरका दिया। वो अपने हाथ से उसे फिर से पहनने को चली तो मैंने उसे अपने सीने में दबोच लिया और पलट कर उसके नितंबों को सहलाने लगा।
इस बीच उसे मैंने नंगा कर दिया था और उसने अपनी योनि को अपने दोनों जांघों में कसकर ढक लिया और चेहरे को भी ढांप लिया। मेरा लिंग अपने चरम पर था, मैंने अपने कपड़े खोले और उसके ऊपर सवार होकर उसकी जांघों के बीच अपने लिंग से छेद की तलाश करने लगा। मैंने पूरी तरह से उसके मुँह को चूमते हुए अपना लिंग घुसा दिया और दो धक्के में जड़ कर उसके ऊपर निढाल होकर लेट गया।
पाँच-सात मिनट के बाद जब होश आया तो मैं यह सोचने लगा कि लिंग घुसाने पर न यह रोई, न ही मुझे जलन हुई, मैं ठगा गया हूँ, एक चरित्रहीन से मेरी शादी हो गई है और मैं अपने जीवन की चिंता करने लगा।
मैं कुंठित होता जा रहा था कि तभी मेरी भार्या अपने जांघों पर से कुछ पोंछती दिखी।
मेरी जान में जान आई, दरअसल मैं उसकी जांघों की गिरफ्त को योनि समझ स्खलित हो गया था।
अब मेरे ऊपर दूसरी चिंता कि कहीं मैं नामर्द तो नहीं !
फिर मैंने उसे अपने सीने से लगाकर फिर से स्तन चूसना शुरू किया और उसे तैयार किया। इस बार जब उसकी योनि पर हाथ लगाया तो हाथ में योनि से निकलता तरल मुझे उसमें प्रवेश करने का न्यौता दे रहा था। मैं उसकी टांगों के बीच बैठ गया और उसकी कमर के नीचे तकिया लगा दिया और फिर उसके हाथ में अपना लिंग देकर उसके कान में फुसफुसाया कि अब इसे रास्ता दो !
उसने मेरे लिंग को एक जगह पर रखा और मेरे पीठ पर इस प्रकार हथेलियाँ फेरी कि मैं समझ गया कि वो मुझे डालने कह रही है।
इस बार मैंने उसकी योनि पर जैसे ही दवाब बनाया, मेरा लिंग फिसल गया। उसने उसे फिर से जगह लगाया और मैंने ताकत !
हाय मैं मर गई ! वो अपने हाथ-पैर पटकते हुए बोली।
मैंने भी दर्द से तरपते हुए उसके मुँह को बन्द किया और घुसाने लगा। वो मुझे हटाने की कोशिश कर रही थी और चीख रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि आग में मेरा लिंग घुसा जा रहा है, पर मैं रुका नहीं और पूरा घुसा कर लेट गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
जब मेरी जलन थोड़ी कम हुई तब मैंने झटका देने के लिए कोशिश की लेकिन तीन बार में ही स्खलित हो गया।
फिर दस पन्दरह मिनट के बाद मैं हटा तो मेरा लिंग मुझे भीगा भीगा सा लगा। मैंने बत्ती जला दी, देखा कि मेरा लिंग लाल हो गया था और खून से लथपथ था, धोती और गंजी भी खून से सन गए थे, उसकी योनि से खून लगातार जा रहा था और वो अब तक तड़प रही थी।
इस प्रकार मेरी सुहागरात में उसका और मेरा कौमार्य विसर्जन साथ साथ हुआ।
अब हम एक और सेक्स के लिए तैयार हो रहे थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई।
समय देखा तो सुबह के सात बज रहे थे !
फिर क्या हुआ जानने के लिए इसपर अपनी राय मुझे मेल करें।
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