दिल्ली की दीपिका-2

दीपिका 2012-12-16 Comments

प्रेषिका : दीपिका

हमारे घर के पास रहने वाला एक लड़का अभि मुझे ठीक लगा। योजना के अनुसार मैंने उसे लाइन देना शुरू किया, अब वह लड़का मेरा चक्कर काटने लगा। एक दिन मुझे रोककर उसने फूल दिया। मैंने फूल ले लिया तथा उसका उत्साह बढ़ाने के लिए थोड़ी बात भी कर ली जैसे- मसलन क्या करते हो, घर में कौन-कौन हैं आदि।

वह भी मेरे ही कालेज में है, वह मुझे अक्सर गिफ्ट भी लाकर देने लगा। इस तरह हम लोगों का प्यार पलता रहा।

एक बार मेरी मॉम व डैड को एक पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कोलकाता जाना पड़ा। जाते हुए उन्होंने मुझसे कहा कि हमें 3-4 दिन लग सकते हैं, तो मैं घर में रहूँ व अपना ख्याल रखूँ। उनके जाने के बाद शाम को अभि मुझसे मिलने आया। तब मैंने उसे अपने घर में ही अंदर बुला लिया। घर पर उस समय ड्राइवर डैड के बताए हुए काम पर लगा था, जबकि रसोइया रसोई में ही काम कर रहा था।

अभि को मैंने घर के हाल में बैठाया और हमने बात शुरू की। मैं उसे अपने घर की बनावट व कमरों के बारे में बता रही थी। अभि ने मेरा कमरा देखने की इच्छा जताई तो मैं उसे लेकर अपने कमरे में आई। मेरा कमरा अस्त-व्यस्त पड़ा हुआ था। वैसे भी मैं अपने कपड़े उतारकर यूं ही पलंग पर फेंक दिया करती थी। अभि को भीतर लाकर मैंने उसे पलंग पर बैठने कहा, और पलंग पर पड़े हुए कपड़ों को सरकाकर उसके बैठने की जगह बनाई।

अभि बैठा और आसपास पड़े कपड़ों को समेटने लगा। तभी उसके हाथ मेरी उतारी हुई ब्रा पर लगा, उसने ब्रा को किनारे रखने के बदले हाथ में ही रखा, पूछा- क्या साइज है आपका?

उसके हाथ में ब्रा लगने से मुझे थोड़ी शर्म आई, पर चूंकि उसने साइज पूछा था इसलिए मैं बोली- 34 !

अभि बोला- यह आ जाती है आपको?

मैं बोली- जब यह मेरे कमरे में है और मेरी है तो नेचुरली आती होगी तभी तो पहनती होऊँगी ना।

अभि बोला- यार यह गुलाबी रंग की है, और किसी दूसरे रंग की नहीं है आपके पास?

मैं बोली- ये मेरे पास दर्जन भर होंगी, और जिस-जिस रंग का लिबास है उस-उस रंग की है।

यह सुनते ही उसकी आँखों में चमक आ गई, वह बोला- अच्छा, दिखाइए तो।

मैंने अलमारी खोली व सभी ब्रा निकालकर उसके सामने डाल दी। वह एक-एककर सभी ब्रा को उठाकर देखने लगा। उसके चेहरे पर उत्तेजना देखकर मुझे भी अच्छा लगा।

वह बोला- हाँ वैसे तो सभी रंग हैं आपके पास, पर पर्पल रंग नहीं है। अबकि गिफ्ट में मैं पर्पल कलर की ब्रा ही लाऊँगा।

मैं हसते हुए बोली- तुम्हें इतना भी पता नहीं है कि आज मेरी ड्रेस पर्पल रंग की है तो मैंने अपना इनरवीयर भी इसी रंग का पहने होऊँगी।

वह बोला- यानि यह रंग भी है, पर इसे तो मैंने देखा ही नहीं, दिखाओ तो।

मैं हंसते हुए बोली- अभी पहने हुई हूँ ना, मैं तुम्हें इसे बाद में दिखा दूंगी।

अभि बोला- क्या यार, अपने घर में मेरा एक काम भी नहीं करोगी।

मैं बोली- ओह्हो समझो न। तुम्हें दिखाने के लिए मुझे इसे उतारना पड़ेगा, फिर पहनना पड़ेगा। इसलिए अभी रहने दो, कल मैं तुम्हें इसे लाकर पक्का दिखा दूँगी।

अभि बोला- मुझे समझो यार, मैं इसे देखूँगा नहीं तो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए प्लीज़, भले ही तुम अपनी ब्रा को उतारो मत। शर्ट को ऊपर कर लो मैं देख लेता हूँ।

वह मुझसे ब्रा दिखाने के लिए और मिन्नतें करने लगा। उसके बार बार यह बोलने के ढ़ंग से मेरी चूत में भी खुजली उठने लगी। लिहाजा मैं बोली- ठीक है, लो दिखा देती हूँ।

यह बोलकर मैंने अपनी शर्ट उतार दी। अभि मेरे पास आया, और मेरी ब्रा के साइड बेल्ट पर उंगली घुमाने लगा। मैं महसूस कर रही थी, कि उसकी हिम्मत नहीं हो रही हैं कि वह मेरी चूची को पकड़ ले तो चिढ़कर मैं बोली- हो गया, देख लिए ना।

अभि बोला- हाँ यह तो देख लिया, पर दीपिकाजी मेरी एक रिक्वेस्ट है, उसे मान लीजिए प्लीज़।

मैं बोली- यह बात तो मान ली है ना, अब क्या है बोलो?

वह बोला- मुझे आप इन ड्रेसेज़ में बहुत अच्छी लगती हैं। आपको ये ड्रेस पहने हुए तो मैं देख चुका हूँ, पर इन ड्रेसेज़ की मैचिंग वाली ब्रा में आप कैसी दिखती हैं मैं यह देखना चाहता हूँ। प्लीज मना मत करना, सिर्फ एक बार।

इस बार उसने मुझे जमकर मस्का पालिश की, और मैं भी अपने चुदने का जुगाड़ बैठाते हुए, उसे अलग-अलग रंग की ब्रा पहनकर दिखाने को तैयार हो गई। इससे पहले मैंने उसे कहा कि मैं सब ब्रा को इकट्ठे कर रही हूँ, तब तक तुम रूम का दरवाजा बंद कर दो। कहीं रसोइया भी यहाँ चाय देने ना पहुँच जाए।

अभि जल्दी से दरवाजे तक गया और उसे बंद कर आया। मैंने सभी ब्रा उठाईं और लेकर वाशरूम की ओर बढ़ी।

तभी उसने कहा- कहाँ जा रही हो आप?

मैं बोली- आपको दूसरी ब्रा पहनकर दिखानी है, तो अंदर से बदलकर आती हूँ ना।

वह बोला- ओह्हो, रूम में केवल मैं और आप हो, फिर अलग जाने की क्या जरूरत है। मुझ पर भरोसा नहीं है क्या आपको?

मैं बोली- भरोसा तो हैं अभिजी। पर मुझे आपके सामने ब्रा उतारते हुए अच्छा नहीं लगेगा।

अभि बोला- जब आप मुझे अपने से अलग समझती हैं, तब कोई बात नहीं।

मैं बोली- मैं तुम्हें पराया बिल्कुल नहीं समझती अभि, पर मैंने अब तक किसी के सामने अपने कपड़े नहीं उतारे हैं इसलिए शर्म आ रही है।

अभि बोला- वाह पराया नहीं समझती, तो बताओ क्या आपने अपने बूब्स नहीं देखे कभी? क्या अंदर जाकर आप खुद के सामने अपने कपड़े नहीं बदलोगी? तो फिर यह मेरे सामने क्यों नहीं?

उसकी बात से प्रभावित होकर मैं बोली- ओके बाबा, लो यहीं बदल लेती हूँ।

यह बोलकर मैंने वहीं पलंग पर सभी ब्रा रखी और पहनी हुई ब्रा को खोलकर बाहर निकाली। मैंने महसूस किया कि अभि अब पलक झपकना भूल गया था, और एकटक मेरे वक्ष को देखे जा रहा था। पहनी हुई ब्रा खोलकर वहीं डालने के बाद मैं दूसरी ब्रा पहनने के लिए उठाई तो अभि मेरे पास आकर बोला- यार, आपके इनरवीयर का रंग तो बहुत ही अच्छा है। पर मुझे बोलने में डर लग रहा हैं कि यदि आप मेरी एक बात और मान जाओ तो यह समय मेरे लिए चांद पर जाने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाएगा।

मैं बोली- अब क्या बात है?

वह बोला- आप नाराज तो नहीं होगी ना?

मैं बोली- नहीं होऊँगी, बोलो?

वह बोला- इतना तो हो ही रहा है, बस थोड़ा सा और करोगी तो मैं तुम्हारा बहुत आभारी रहूँगा।

मैं बोली- साफ-साफ बोलो ना, बात को घुमाओ मत।

अभि बोला- दीपिका खाली ब्रा नहीं, इसका सेट पहनकर दिखाओ ना। मैं जमकर उछली और बोली- यानि तुम मुझे ब्रा-पैन्टी में देखना चाहते हो।

वह बोला- मैं पहले ही इसके लिए आपसे माफी मांग चु्का हूँ, और बार-बार रिक्वेस्ट कर रहा हूँ क्योंकि आपको इस हालत में देख पाने की मेरी हिम्मत नहीं है। वो तो तुम्हारे इनरवीयर का यह जबरदस्त सैट देखकर ही मुझे लालच आया कि आज आपको इनमें देख लूँ। क्योंकि यदि आपको नहीं देख पाया तो फिर मैं अपनी पूरी जिंदगी में किसी को भी ऐसे मंहगे सेट में ऐसी जबरदस्त काया के साथ देख नहीं पाऊँगा। क्या आप अपने इस गरीब दोस्त की इतनी सी मांग को पूरा नहीं करोगी?

यह बोलते हुए उसने अपने हाथ जोड़ दिए, मुझे उस पर दया आ गई और अपने तर्कों की पिटारी बंद करके बोली- तुम भी ना, पहले कहाँ मेरी ब्रा को देखने की जिद की, फिर पहनी हुई ब्रा और अब कहाँ पैन्टी भी पहनकर दिखाने को कह रहे हो।

अभि बोला- आप हो ही इतनी सुंदर, कि बहुत चाहकर भी खुद पर कंट्रोल नहीं कर पा रहा हूँ।

मैं बोली- ठीक है, आप यहाँ बैठ जाइए, मैं सब पहनकर आपको दिखाती हूँ।

अभि तुरत पलंग के उस छोर पर एकदम शरीफ बनकर बैठ गया। अब मैं पलंग पर पड़ी सभी पैन्टियों को समेटने लगी। इन्हें रंग के अनुसार ब्रा के साथ करके रखी। अब पलंग के दूसरे किनारे स्लेटी रंग की पैन्टी को लेकर आई, उसे बोली- वाइलेट का कलर कम्बिनेशन थोड़ा गड़बड़ाएगा, क्यूंकि वाइलेट ब्रा मैं उतार चुकी हूँ।

वह तुरंत बोला- आपको आधा खुला तो मैं देख ही चुका हूँ, बस आधे की ही बात है। इससे अगले सेट की मैचिंग जम जाएगी ना।

मुझे गुस्सा आ रहा था कि यह साला मुझे नंगा किए जा रहा हैं पर अपना लौड़ा नहीं दिखा रहा है। पर यह बात मैं शर्म के कारण उससे कह नहीं पाई और पलंग के दूसरे किनारे पर ही खड़े होकर अपना स्कर्ट उतारने की तैयारी करने लगी। पर सही बोलूँ तो चुदने की इच्छा होने के बावजूद इस तरह अभि के सामने नंगी होने में मुझे बहुत शर्म आ रही थी। बहुत प्रयास करने के बाद भी जब पैन्टी उतारने की हिम्मत नहीं जुटा पाई, तो मैं दोनों हाथों से चेहरा छुपाकर वहीं पलंग पर बैठ गई।

मेरे ऐसे शरमाते ही अभि मेरे पास आया और बोला- अरे कोई बात नहीं। आप पूरे कपड़े मत उतारो। यह बोलकर उसने वहीं पड़ी एक ब्रा उठाया, और कहा- आओ, इस ब्रा को पहले मैं पहना देता हूँ इसके बाद पैन्टी पर आएंगे ना।

यह बोलकर उसने चेहरे को ढके मेरे दोनों हाथों को हटाया और ब्रा की दोनों तरफ की स्ट्रीप पर लगाया। उसका हाथ लगने से मुझे और ज्यादा शर्म आ रही थी, पर अच्छा भी लग रहा था। मैं वैसे ही बैठी रही। अभि मेरी ब्रा को पीछे करने के बाद हुक लगाने पीछे आया। हुक लगाने के बाद वह मेरे उभारों पर ही एक ओर से मुड़ गए ब्रा के कोने को ठीक करने लगा। ऐसा करते समय वह मेरे स्तनों को भी छू रहा था। ब्रा को ठीक करने के बहाने वह चूची पर उंगली अंदर निप्पल तक पहुंचाने की फिराक में था।

मैं उसकी हरकत समझ रही थी पर और मजा पाने के लिए इसे अनदेखा सा करती रही। अब यह सोचकर मुझे बहुत हंसी आती हैं कि उस दिन मुझे एक ब्रा पहनाने के लिए अभि ने कितना अधिक समय लगाया। पर उसके स्पर्श से मुझे चुदने की इच्छा बढ़ गई और उन्माद में मेरी आँखें बंद हो गई। अब ब्रा पर हाथ घुमाते हुए ही वह मेरे कंधे पर झुका और यहाँ अपने होंठ लगाकर उस पर चुम्बन लिया। उसके होंठ जैसे ही मेरे कंधे पर लगे, मुझसे सहन नहीं हुआ, और एक मेरे मुख से एक सिसकारी निकल गई।

अभि भांप गया कि उसे हरी बत्ती मिल गई है तो वह एक कंधे से शुरू अपने चुम्बन का सिलसिला गले, व फिर दूसरे कंधे तक ले आया।

मेरी हालत खराब हो रही थी, पर लाज के कारण अब भी होंठ से यह निकल नहीं रहा था कि ‘अभि, बहुत हो गई नौटंकी, चल निकाल अपना लौड़ा और घुसेड़ दे मेरी चूत में !’

मैं चुप थी क्योंकि वह बढ़ तो उसी ओर रहा था। कंधे से अब उसके होंठ पीठ पर वहाँ पहुँचे, जहाँ ब्रा का हुक था। यहाँ चूमने के बाद यह पीठ पर ही और नीचे तक पहुंचा। मैं महसूस कर रही थी कि अब उसके होंठो का साथ देने जीभ भी आ गई हैं, और यह जीभ को मेरे बदन पर जिस तरीके से हिला रहा था उससे मुझे गुदगुदी सी लगने लगी। तब इसके होंठ और जीभ मेरी कमर तक आ गए। यह पैन्टी के ऊपर चाटने लगा।

कहानी जारी रहेगी।

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