नादान निर्मला की अनचुदी बुर-1
(Nadan Nirmla Ki Anchudi Bur-1)
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मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। मैं अन्तर्वासना को तकरीबन आठ साल से पढ़ रहा हूँ।
अब तक मैं कितनों के साथ सोया हूँ.. मुझे सबके नाम याद हैं.. कुछ के साथ रिश्ते एक दिन के थे और कुछ के साथ महीनों तक चले.. तो कुछ के साथ सालों तक मस्ती की.. और किसी के साथ शायद जन्मों का रिश्ता होगा।
मैं आगे कुछ लिखूँ.. इससे पहले मैं अपने लण्ड के बारे में कुछ लिखना चाहूँगा..
मेरा औजार सात इंच लंबा.. काफ़ी मोटा है और जब ये अंगड़ाई लेता है.. तो सारी नसें तन कर ऊपर आ जाती हैं। लड़कियों को तो छोड़ो.. आज तक मैंने जिस भी रंडी के साथ चुदाई की.. उसने सिर्फ़ यही बोला है कि ऐसा मोटा लण्ड सालों में एकाध बार दिखता है.. और कितनी तो मेरे लवड़े की ठोकर से रो भी पड़ी थीं।
जिसकी कहानी मैं आज लिखने जा रहा हूँ वो मेरे दिल के काफ़ी नज़दीक थी और हमेशा ही रहेगी।
वैसे मैं दिल से बुरा इंसान नहीं हूँ और कभी किसी लड़की को फंसाया भी नहीं है।
यह बात उन दिनों की है.. जब मैं अपनी ग्रेजुएशन के पहले साल में था। हमारे घर के पास ही एक सुंदर लड़की रहती थी.. जिसका नाम निर्मला था।
जब वो चलती थी.. तो ऐसे लगता था कि कोई हिरनी मादक चाल से चल रही हो.. उसका रंग गोरा.. बदन एकदम कसा हुआ.. और कमसिन उम्र.. यही एक परेशानी थी लेकिन मैंने उसके 18 के होने का इंतजार किया।
उसकी एक अदा सब लड़कों की पसंद की थी.. कि जब भी वो चलती थी.. तो उसका दुपट्टा गले पर होता था.. जिससे उसकी दोनों चूचियाँ उभर कर दिखती थीं।
उसको देख कर ऐसे लगता था कि काश ये मिल जाती!
मैं बाकी लड़कों की तरह लफंगा तो था नहीं.. इसलिए मैं कभी उसको परेशान नहीं करता था।
लेकिन मेरा एक दोस्त था.. वो साला हमेशा उसके बारे में ही बात करता रहता था। हालांकि मैं भी उसको देखने या मिलने का बहाना ढूंढता रहता था।
तभी मुझको पता चला कि हर शाम वो अपने घर के बाहर आती है.. जो कि मेरे एक दोस्त के घर से साफ़ दिखता है।
तो मैं रोज वहाँ जाने लगा। रोज मैं अपने दोस्त के घर से उसको देखता और कुछ इशारे करता।
दो-तीन दिन तक तो उसने कुछ नहीं कहा.. लेकिन चौथे दिन उसने इशारा किया.. मैं बहुत खुश था.. लेकिन मन ही मन मैं ये सोच रहा था कि अब क्या करूँ? कैसे बात की जाए?
फिर दो दिन बाद मेरे दोस्त ने बोला कि उसे भी वो लड़की बहुत पसन्द है.. मैं इसको कैसे भी पाकर ही रहूँगा।
तब मुझे लगा कि इससे पहले ये कुछ करे.. मुझे ही कुछ करना होगा।
उसके दूसरे दिन मैंने अपना मोबाइल नम्बर एक कागज पर लिखा और उसके घर के पास ही सड़क पर खड़ा होकर उसका इंतजार करने लगा।
दो घंटे बाद उससे मुलाकात हुई.. मैंने उसके हाथ में वो कागज का टुकड़ा दे दिया और चला गया। अब मुझे उसके फोन का इंतजार था.. सो मैं फोन की घंटी बजने का बेसब्री से इन्तजार करने लगा।
दो दिन बाद मेरे मोबाइल पर एक फोन आया.. उसने ही फोन किया था।
वो फोन पर कुछ बोल नहीं रही थी.. बस उसने मुझसे इतना ही पूछा- तुम मुझे क्यों देखते हो.. और नम्बर क्यों दिया था?
मैंने भी वही पूछा और कहा- तुमने फोन क्यों किया?
फिर थोड़ी बहुत बात हुई.. एक-दूसरे के बारे में पूछा और उसने फोन कट कर दिया।
यह सिलसिला करीबन 6 महीनों तक चला.. वो अभी भी स्कूल में थी। वो 12 वीं की परीक्षा दे रही थी.. मैं इसी के इन्तजार में था कि कब वो कॉलेज जाना शुरू करे और मैं उससे मिलूँ।
इन 6 महीनों में हमने एक-दूसरे से अपने प्यार का इज़हार कर दिया था। थोड़ी बहुत चुम्मा लेने की बातें भी हो चुकी थीं।
आख़िर वो वक्त आ ही गया.. उसका कॉलेज चालू हो गया और मैं उससे मिलने जाने लगा।
हम हफ्ते में दो बार मिलते थे.. शनिवार को तो पक्का ही रहता था।
एक महीने तक मिलने के बाद मैंने सोचा अब इसके साथ चुदाई करने का समय आ गया है.. लेकिन बात यह थी कि उसको इस बारे में कुछ भी पता नहीं था।
हमारे घर से कुछ 8 किलोमीटर दूर एक समुद्रतट है.. जहाँ काफ़ी जोड़े जाते हैं.. वहाँ कमरे भी भाड़े पर मिलते हैं एक घंटा.. दो घंटे.. 6 घंटे.. जितना पैसा उतना समय..
अगले हफ्ते जब हम मिले.. तो मैं उसे वहाँ लेकर गया.. रिक्शे में जाते वक़्त मैं यही सोच रहा था कि उसको बिना कपड़ों के देखने का दिन आ ही गया।
मैं उसकी खूबसूरती में सिर्फ़ यही कहना चाहूँगा कि वो बिल्कुल जैक्लिन Jacklin Fernandes जैसी ही दिखती है.. वो बहुत ही गोरी है।
मुझे डर था कि रिक्शे से उतरते वक़्त कोई परेशानी ना हो.. इसलिए मैंने उससे बोला- उतरते वक़्त कुछ मत बोलना.. जो भी बोलना है.. अन्दर चल कर बोलना।
उसने वैसा ही किया.. हम उतरे और मैंने एक कमरा बुक किया और कमरे में अन्दर गए।
जाते ही उसने पूछा- यहाँ क्यों आए हो?
मैंने बोला- बताता हूँ.. पहले मुझे फ्रेश तो होने दो।
इसके बाद मैंने उसके कन्धों पर हाथ रखा और उसे बिस्तर पर बिठाया.. उससे बहुत सारी प्यार भरी बातें की.. उसको बहुत समझाया कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ.. और फिर मैंने उसको अपने इरादे साफ़-साफ़ बता दिए।
वो थोड़ी सहमी हुई लग रही थी..
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मैंने कहा- अगर तुम ‘ना’ कहोगी.. तो मैं कुछ नहीं करूँगा.. और हम अभी घर चले चलते हैं।
तभी उसने अपना हरा सिगनल दे दिया.. वो बोली- बात ऐसी नहीं.. बस कुछ हो गया तो?
मैंने उससे बोला- अरे कुछ नहीं होगा.. ये है न..
मैंने कंडोम का पैकट निकाल कर उसके सामने रख दिया.. उस पर बनी फोटो देख कर वो हंस कर बोली- आप बहुत गंदे हो..
अब लाइन साफ़ थी.. फिर क्या.. मैंने अपनी शर्ट उतारी और बिस्तर पर उसको पकड़ कर लेट गया।
मैं उसके होंठों को चुम्बन करने लगा.. उसके होंठ थोड़े पतले थे.. लेकिन चुम्बन करने में जो मज़ा आ रहा था.. वो मैं शायद यहाँ ना लिख पाऊँ..
उसको चुम्बन करते-करते मैं उसकी दोनों चूचियों को दबा रहा था.. और रह-रह कर उसकी सलवार में हाथ डाल देता था।
मैं जब भी सलवार में हाथ डालता.. तो वो मेरा हाथ निकाल देती थी।
एक-दो बार तो मैं गुस्सा भी हो गया.. मैंने उससे बोला- ऐसे मत करो.. करने दो.. जो भी कर रहा हूँ..
फिर वो कुछ नहीं बोल रही थी.. मैंने उसकी सलवार में हाथ डाल कर उसकी चूत को अपनी उंगली से छुआ और धीरे-धीरे उसकी चूत के छेद में एक उंगली को अन्दर डाल दिया।
वो अपनी आँखें बंद करके.. मेरे चुम्बन और अपनी चूत में मेरी उंगली.. दोनों का बहुत मज़ा ले रही थी।
मैं उसके पूरे कपड़े उतारूँ.. इससे पहले मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए थे.. अब मैं सिर्फ़ अंडरवियर में था।
फिर मैंने उसकी कमीज़ उतारी.. देखा तो उसने एक लाल रंग की ब्रा पहनी हुई थी।
मैंने सोचा थोड़ा धीरे-धीरे करूँ तो अच्छा होगा.. अभी पूरे दो घंटे से भी ज़्यादा बचे थे।
फिर क्या था.. मैंने उसे बहुत चूमा.. करीबन दस मिनट के बाद मैंने उसकी ब्रा को भी निकाल दिया।
उसने बोला- लाइट बंद करो न..
मैंने उसको समझाया- देखो.. पहली बार है.. तो लाइट बंद ना करें.. तो अच्छा होगा..
वो मान गई.. उसको क्या पता था उसका पहली बार है.. मेरा थोड़ी ना है..
उसने अपना चेहरा अपने हाथ से ढका हुआ था और मैं उसकी चूचियों को चूस रहा था..
दोस्तो.. कसम से बोलता हूँ.. आज से पहले मैंने ऐसे निप्पलों और स्तनों का कॉम्बिनेशन अपने जीवन में कभी नहीं देखा था।
एकदम गोरी चूचियाँ और उस पर निप्पल ना बड़े ना छोटे.. ऊपर से गुलाबी रंग.. माशाअल्लाह.. की हूर की परी थी।
करीबन 15 मिनट तक मैं उसके मम्मों के साथ खेलता रहा.. फिर मैंने सोचा ऐसी लड़की को एक बार नहीं.. तीन घंटे में कम से कम 3 बार तो चोदना ही चाहिए।
फिर क्या था.. मैं उसकी सलवार निकालने लगा.. तो पता नहीं क्यों.. मना करने लगी।
तभी मैंने अपनी अंडरवियर उतारी और उसका हाथ पकड़ कर अपना लण्ड उसके हाथ में दे दिया।
उसके ठंडे-ठंडे वो हाथ.. और मेरा गरम लण्ड.. हाय.. अलग ही मज़ा था।
फिर मेरा हलब्बी लौड़ा उसके हाथ में आने के बाद उसने अपनी सलवार उतरवाने के लिए मना नहीं किया।
ऊपर से नीचे मैंने देखा.. तो ऐसे लगा कि क्यों इस लड़की के साथ ये कर रहा हूँ.. कितनी मासूम और हसीन है ये.. लेकिन दिल की चाहत और दिमाग़ की चाहत में फरक होता है।
मैं उम्मीद करता हूँ कि आप सभी को कहानी में मजा आ रहा होगा। मुझे अपने कमेंट्स जरूर लिखिएगा… कहानी जारी है।
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