लण्ड और चूत दोनों को फायदा
Lund Aur Chut Dono Ko Fayda
ज्योति एक 25 साल की जवान लड़की थी।
एक तो वो बहुत काली-कलूटी थी, इसलिए उसे पेरी गाँव का कोई लड़का लाइन नहीं मारता था।
दूसरी बड़ी मुसीबत की बात थी ज्योति बहुत गरीब थी।
उसका बाप मर चुका था और लड़कियों को सिलाई सिखाकर ज्योति गुजर-बसर करती थी।
इसी काम से वो अपनी माँ को हर महीने 2 हजार रुपए भी भेजती थी।
गोपाल के घर के पास ही ज्योति ने एक कमरा किराये पर लिया था।
गोपाल.. जिसे गाँव में बच्चा-बच्चा जानता था, ने ही ज्योति को कमरा दिलाया था।
गोपाल इससे पहले कुंवारा था और सोचता था कि ज्योति को पटा कर चोद दे।
सुबह से शाम तक ज्योति लड़कियों को सिलाई सिखाती।
गोपाल एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता था और ज्योति को भी कभी-कभी पढ़ा दिया करता था।
धीरे-धीरे गोपाल ने उसे पटा लिया।
कुछ दिनों बाद गोपाल ने अपनी बात कही- ज्योति.. आज दे दे यार..!
‘नहीं..’
‘क्यों..??’ गोपाल ने पूछा।
‘मेरी माँ बीमार है.. उसे 5 हजार भेजने हैं..’ वो बोली।
गोपाल जिस स्कूल में पढ़ाता था, वो गाँव का ही स्कूल था.. इसलिए उसे 2 हजार ही मिलते थे।
गोपाल को आज ही पगार मिली थी।
गोपाल भाग कर गया और पैसे ले लाया और उसे दे दिए- ले ये 2 हजार ले ले.. मेरे पास इतने ही हैं…’ गोपाल बोला।
ज्योति की माँ को मोतियाबिन्द हो गया था, उनकी आँखों में जाला आ गया था।
‘ठीक है मैं तेरे पैसे ले लेती हूँ। मैं अपने पास ने 3 हजार लगा दूँगी.. माँ का ऑपरेशन तो हो जाएगा..’ वो बोली।
‘पर दे तो दे यार… मैंने आज तक किसी की चूत नहीं मारी है…’ गोपाल सिर खुजलाते हुए बोला।
ज्योति मान गई।
उसने शनिवार की रात को आने को कहा।
उस दिन सुबह उसने अपनी माँ को 5 हजार भेज दिए थे, उसकी फिक्र दूर हो गई थी।
शाम के 6 बजे थे… आखिरी लड़की भी चली गई।
गोपाल दाढ़ी-वाड़ी बनाकर और झांटें आदि बनाकर गया था।
उन दिनों जाड़ों के दिन थे.. चारों ओर ठण्ड और कोहरा था।
गोपाल ने बड़ी धीरे से कुण्डी खटकाई।
ज्योति ने दरवाजा खोला और गोपाल अन्दर चला गया।
कोई दोनों को पकड़ न ले, इसलिए ज्योति ने बिना देर किए किवाड़ बन्द कर दिए।
ज्योति एक तो काले रंग की थी, ऊपर से उसने गहरे लाल रंग का सलवार सूट पहल रखा था।
गोपाल को ज्योति को बाँहों में जकड़ लिया। सर्दियाँ शुरू होने के कारण ज्योति ने रजाई निकाल ली थी।
ज्योति बहुत काली थी.. उसे कोई भी चोदने की नजर से नहीं देखता था और यही कारण था कि वो अब तक कुंवारी थी और किसी का लौड़ा नहीं खा पाई थी।
वहीं दूसरी ओर गोपाल भी कुंवारा था और ज्योति को छोड़ कर सारी खूबसूरत लड़कियाँ किसी न किसी से फंसी थीं और चुदवाती थीं।
उसको भी कोई लड़की घास नहीं डालती थी तो उसने ज्योति की चूत को ही अपने लौड़े की खुराक बनाने की ठान ली थी।
वैसे आज गोपाल की किस्मत बड़े दिनों बाद चमकी थी।
ज्योति का भी चुदने का पूरा मन था।
दोनों बिस्तर की ओर गए।
गोपाल लेट गया।
‘ज्योति बता… तुझे कौन सा आसन पसन्द है?’ गोपाल ने पूछा।
‘पता नहीं.. मुझे कुछ नहीं पता…’ वो बोली।
‘कोई बात नहीं.. मैं जानता हूँ.. सर्दियों में कौन सा आसन लगाना चाहिए..’ गोपाल बोला।
गोपाल लेट गया.. ज्योति ने पूरा नंगा होने से इंकार कर दिया था।
उसने सफेद रंग की ब्रा और चड्डी पहन रखी थी।
गोपाल ने ज्योति को अपने ऊपर लिया और पीछे से उसके ब्रा के हुक को खोल दिया।
ज्योति के मम्मे बहुत गोल-गोल, गुलगुले और मजेदार थे।
गोपाल तो जैसे स्वर्ग में विचरण कर रहा था।
वो काली भले थी.. पर पूरी जवान थी।
काले-गोरे से क्या होता है.. लड़की बस जवान होनी चाहिए।
किसी ने सच ही कहा है बिजली का बटन बन्द करो सब एक सी होती हैं।
‘आज देखो कितना जबरदस्त माल मिला है..’ गोपाल ने सोचा।
ऊपर से सिर्फ रजाई का भार था.. इसलिए ज्योति गोपाल पर ही गिर रही थी।
गोपाल ने उसकी जाँघ पर हाथ फेरा- अरे मादरचोद.. कितनी चिकनी जाँघ है.. जैसे संगमरमर..’
गोपाल सातवें आसमान पर था।
खूब जाँघ सहलाने के बाद ज्योति ने इशारा किया कि अब समय बर्बाद नहीं करना चाहिए और जो काम दोनों 5-7 सालों से नहीं कर पाए.. उसे अब करना चाहिए।
गोपाल ने इशारा समझ कर अपने सीधे हाथ को ज्योति की बुर तक ले गया। और उसने उसकी चड्डी उतार दी।
अब ज्योति नंगी थी और बहुत चिकनी थी जैसे बेकरार मछली… उसकी बुर से रस निकल रहा था।
गोपाल ने अपने 6 इंच के लौड़े को हाथ से सीधा किया।
उसने एक हाथ से ज्योति की कमर उठाई और लण्ड बुर में ठेल दिया…
ऊपर ने मात्र 4 किलो की रजाई थी।
उस पर गोपाल ने ज्योति के चूतड़ों को दोनों हाथ से पकड़ लिए और ‘घपाघप’ चुदाई शुरू कर दी।
ये पहली बार जब दोनों चुदाई का सुख ले रहे थे।
दोनों का बड़ा मजा आ रहा था।
चुदाई चीज ही ऐसी है कि दोनों पार्टी को मजा आता है।
दस मिनट की चुदाई तो इसी तरह लेटे-लेटे ही हुई।
दोनों बल्लेबाज आउट हो गए।
फिर दोनों रजाई के अन्दर नंगे ही सो गए।
रात में एक बजे.. फिर 3 बजे दोनों ने दो राउण्ड और बल्लेबाजी की और जी भर के खेला।
सुबह 5 बजे गोपाल चला गया।
फिर हफ्ते में एक- दो बार ज्योति और गोपाल रजाई में रासलीला करते थे।
इसमें दोनों को ही फायदा मिला।
ज्योति ने पैसे जोड़ कर गोपाल को उसके दो हजार वापिस करने चाहे थे, पर गोपाल ने नहीं लिए।
उसने कहा- ज्योति तुम्हारे सामने पैसों का कोई मोल नहीं है।
आपको यह कहानी कैसे लगी.. जरूर बताइएगा।
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