लड़कपन की यादें-2
(Ladakpan Ki Yaden-2)
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रात हुई, हम तीनों ने खाना खाया, थोड़ी देर ड्राइंग रूम में बैठ कर हंसी-मज़ाक की, टीवी देखी और फिर सब अपने-अपने कमरों में सोने को चले गये पर मेरी आँखों से तो नींद कोसों दूर थी।
आधे घंटे बाद ही में चुपचाप ऊपर से निचली मंजिल पर आया और उनके कमरे की आवाजें सुनने की कोशिश की तो पता चला कि उन्होंने मूवी शुरु कर दी थी।
मैं और अधीर हो उठा और धीरे से बिना आवाज किये गेस्ट-रूम का दरवाज़ा खोल कर उसमें दाखिल हुआ तो उसमें एक सुखद आश्चर्य मेरा इन्तजार कर रहा था।
अब आगे…
जिस खिड़की में मैंने छेद किया आज मम्मी-डैडी ने वो खिड़की शायद गर्मी के कारण खुली रख छोड़ी थी।
मेरी तो लाटरी लग गई क्यूंकि मुझे आशंका थी कि उस छेद से मैं वो मूवी देख भी पाऊँगा या नहीं…
पर अब मैं केवल उसके परदे को थोड़ा सा खिसका कर ही मूवी देख सकता था तो बिना समय गंवाये मैंने धीरे से सही जगह पर बैठकर धीरे से पर्दा खिसका कर कमरे की स्थिति देखी।
बैडरूम में छोटा लैम्प जल रहा था, हल्का प्रकाश फैला था, जिससे सब कुछ साफ-साफ दिख रहा था।
डैडी बैड पर सिल्क की लुंगी और बनियान में थे और मम्मी बाथरूम में नहाने लेने या शायद कपड़े बदलने गई थी।
कुछ ही देर में मम्मी गुलाबी रंग की स्लीवलैस नाईटी पहन कर निकली और बैड पर डैडी के पास बैठ कर मूवी देखने लगी।
तभी डैडी ने मम्मी की कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खींच लिया तो मम्मी थोड़ा ना नुकुर करने लगी पर डैडी अपने होंठों से मम्मी की गर्दन को चूमने लगे थे और थोड़ी ही देर में मम्मी भी उनका साथ देने लगी।
कहने में ठीक तो नहीं लगता पर मुझे भी टीवी पर चल रही मूवी से ज्यादा उनकी लाइव रतिक्रीड़ा देखने में आनन्द मिल रहा था।
मम्मी-डैडी एक दूसरे को होंठों से होंठ मिला कर चूम रहे थे।
कुछ देर बाद मम्मी उठी और डैडी ने उनके मौन इशारे को समझते हुए उनकी नाईटी की डोरियों को कंधे के ऊपर से सरका कर नाईटी को नीचे गिरा दिया।
एक ही पल में मेरी मम्मी मेरे सामने पूर्ण रूप से अनावृत खड़ी थी। अपने जीवन में पहली बार किसी महिला को इस रूप में देखा था और वो भी अपनी ही मम्मी को।
सच कहूँ तो एक तरफ मन में थोड़ा अपराधबोध जरूर था कि मैं यह क्या कर रहा हूँ पर दूसरी ओर मन में जिज्ञासा, हवस व उत्तेजना का भाव था जो कि अपराधबोध पर पूरी तरह से भारी था।
मम्मी मादकता से परिपूर्ण गौरवर्ण तन की स्वामिनी थी, ऊपरी भाग में तने हुए उनके अत्यंत मादक उरोज़ देख कर किसी का भी ईमान डोल सकता था।
उरोजों के ऊपर गुलाबी रंग के दो सुन्दर चुचूक थे जिन्हें डैडी थोड़ी-थोड़ी देर में हाथों में लेकर मम्मी को उत्तेजित कर रहे थे।
कमर के निचले भाग में जांघों के बीच में योनि साफ नहीं दिख रही थी पर पर उसके ऊपरी उभार पर हल्के रोंये उगे हुए थे।
रिश्तों की ज्यादा समझ भी नहीं थी इसलिए बार-बार अपने मन को यह समझा रहा था कि डैडी अगर मम्मी के साथ ये सब… खुद कर सकते हैं तो क्या मैं देख भी नहीं सकता और फिर आज कुछ नया देखने को मिल रहा था।
यही सोच कर मैं उन दोनों की रतिक्रीड़ा में दर्शक के रूप में शामिल हो गया।
तभी डैडी ने रिमोट से वीडियो प्लेयर और टीवी को भी आफ़ कर दिया, वैसे भी अब हम तीनों में किसी को उसमें दिलचस्पी नहीं थी।
मम्मी ने भी डैडी के बनियान को पकड़ कर ऊपर किया जिसमे डैडी ने सहयोग करते हुए हाथ ऊपर उठा कर बनियान को उतार फेंका और बैड पर बैठे-बैठे ही अपनी दोनों टांगों के बीच खड़ी मम्मी के गोरे-गोरे उरोजों के ऊपर गुलाबी चुचूकों को हौले-हौले चूसने लगे।
मम्मी के मुख से मादक सिसकारियाँ निकलने लगीं थी, वो भी उत्तेजक आवाजों के साथ डैडी का उत्साहवर्धन कर रही थी।
कुछ देर उरोज़ चूसने के बाद डैडी ने मम्मी को अपने पास बैड पर लिटा दिया और उठ कर अपनी लुंगी उतार फेंकी।
तब पहली बार मैंने उनका तना हुआ लिंग देखा।
हालांकि उसमें मेरी दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि उस जैसा एक छोटा टूल तो मेरे पास भी था।
मम्मी की टाँगें बैड के नीचे की ओर लटकी थी उसके बाद डैडी घुटनों के बल बैठे और अपने मुँह को मम्मी की जांघों के बीच घुसा कर उनकी योनि को जीभ से चाटने, चूसने लगे।
तब मैं इसे ज्यादा समझ भी नहीं पाया था कि वास्तव में वो लोग क्या कर रहे थे पर यह मुझे अत्यधिक गन्दा और अजीब लगा था कि कोई व्यक्ति जो अपने सार्वजानिक जीवन में जिन अंगों को तुच्छ व गन्दा प्रदर्शित करता है वो गुप्त रूप से कैसे उन अंगों को इतने आनन्द से चूस, चाट सकता है।
परन्तु माता-पिता वैसे भी हर बच्चे के आदर्श (रोल मॉडल) हुआ करते हैं इसलिए उस समय उनकी हर क्रिया मुझे समान रूप से उत्तेजित कर रही थी।
मम्मी भी बायें हाथ से अपने स्तन को मसल रही थी व दूसरे हाथ को डैडी के सिर पर फिरा मादक सिसकारियों के साथ उनका उत्साहवर्धन कर रही थी।
कुछ देर चली इस क्रिया के बाद मम्मी शायद पूर्ण रूप से उत्तेजित हो गई थी इसलिए उन्होंने हाथ से डैडी को उठने का इशारा किया और बैड पर पीछे खिसक कर लेट गई।
डैडी भी इशारे को समझ कर उठे और बैड पर चढ़ कर लेट गये।
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अब चूसने की बारी मम्मी की थी तो उन्होंने डैडी का लिंग अपने मुँह में ले लिया और हाथ से पकड़ कर मुँह में अन्दर-बाहर करने लगी।
लैम्प की रोशनी में उनके मुख पर ख़ुशी और उत्तेजना के भाव साफ दिख रहे थे और वो डैडी के लिंग के साथ ऐसे ख़ुशी से खेल रही थी जैसे कोई बच्चा अपने मनपसंद खिलौने के साथ खेलता है।
अब डैडी भी मादक आवाजें निकालने लगे थे जो थोड़ी तेज थी इसलिए मम्मी ने डैडी को चुप रहने को कहा तो डैडी ने निश्चिन्तता से कहा कि आवाज़ ऊपर तक नहीं जायेगी।
और दोनों अपनी क्रीड़ा में लग गये।
कुछ देर बाद डैडी ने मम्मी को हटाकर लिटा दिया और उनकी टांगों को चौड़ी करके उनके बीच घुटनों के बल बैठ कर अपने लिंग को उनकी योनि के छेद पर सेट किया और धीरे से घुसा दिया।
मम्मी ने डैडी का लिंग हल्के दर्द से कराहते हुए अपने अन्दर ले लिया और डैडी के सीने पे हाथ फिराने लगीं।
डैडी ने भी धीरे-धीरे अपने प्रहार तेज़ कर दिए और अपने लिंग को मम्मी की योनी में अन्दर-बाहर करने लगे।
मेरा लिंग भी उत्तेजना के मारे खड़ा हो गया था जिसे मैं हल्के-हल्के मसल कर हस्तमैथुन कर रहा था।
कुछ ही देर में डैडी थक कर चूर हो गये तो उन्होंने मम्मी को ऊपर आने को कहा तो मम्मी ने अब सैक्स की कमान संभाली और डैडी को लिटा कर उनके ऊपर सवार हो गई।
उन्होंने डैडी का लिंग अपनी योनि में लिया और अपने नितम्ब ऊपर-नीचे करते हुए रतिक्रिया को आगे बढ़ाने लगी।
उनके हाथ अब डैडी के सीने और कन्धों पर थे जो की शायद संतुलन बनाने के लिए रखे गये थे।
कुछ ही मिनटों में वो तेज़ मादक आवाजों के साथ निढाल हो कर डैडी के सीने पर गिर गई।
बाद में मुझे पता चला कि उनका स्खलन हो गया था।
डैडी शायद पहले ही स्खलित हो गये थे इसलिए दोनों थोड़ी देर में अलग हुए और एक-एक कर के टॉयलेट में गये अपने बदन साफ करके बैड पर अपने उतारे हुए कपड़े पहन कर लेट गये और कुछ बातें करने लगे।
मैं भी काफी देर पहले स्खलित हो चुका था इसलिए धीरे से उठा और चुपचाप अपने कमरे में जाकर लेट गया पर आँखों के आगे कुछ देर पहले हुआ वृतांत और मम्मी का अनावृत तन ही घूम रहा था।
मैं कई दिनों तक पूरी तरह से समझ भी नहीं पाया था कि वो सब क्या था पर अब मुझे सैक्स का काफी ज्ञान हो गया था, किताबी साहित्य के साथ प्रेक्टिकल भी देखने को मिल गया था।
मैं डैडी की अलमारी रोज चैक करता था कि कुछ नया साहित्य मिले तो आनन्द आये।
गर्मी की छुट्टियाँ हो गई थी सो और कोई काम भी नहीं था इसलिए यह मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन गया था।
साथ ही लगभग रोज रात को नीचे जा कर गेस्ट रूम की खिड़की से मम्मी-डैडी की काम-लीला देखने का भी प्रयास करता था, हालांकि वे रोज सैक्स नहीं करते थे।
कुछ ही समय में मुझे पता चल गया था कि सप्ताह में उनके सैक्स करने के दो दिन लगभग तय थे… बुधवार और शनिवार।
यदि कोई काम हो, कहीं जाना हो, थकान के कारण दोनों में किसी एक का या फिर दोनों का मन नहीं हो या मम्मी पीरियड में हो तो उन दो दिनों को थोड़ा आगे-पीछे एडजस्ट कर उनकी काम-क्रीड़ा निरंतर चलती थी।
उनके बीच की कैमिस्ट्री (आपसी समझ) मुझे तब भी बहुत पसंद थी और आज भी मैं अपने वैवाहिक जीवन में उन दोनों को अपने आदर्श मान कर उसी कैमिस्ट्री पर चल कर अपना वैवाहिक जीवन सुखी बना रहा हूँ।
खैर… फिर से कहानी पर आता हूँ…
कुछ ही दिनों में मुझे काम-दर्शन का सिलसिला रोकना पड़ा क्योंकि छुट्टियों के कारण मेरी दो बुआ (डैडी की बड़ी बहनें) अपने बच्चों के साथ हमारे यहाँ रहने के लिए आ गई।
दोनों बुआ को एक लड़का और एक लड़की थी। मुंबई वाली बड़ी बुआ का लड़का राहुल 20 वर्ष का और लड़की अनन्या (अनु) राहुल से छोटी थी।
इसी तरह जयपुर वाली छोटी भुआ का लड़का सचिन 18 वर्ष का और लड़की सुनीता (सोनी) सचिन से छोटी थी।
दोनों भैया तो बड़े थे इसलिए वो मुझसे दूर ही रहते थे पर राधिका और सोनी की मेरे से बहुत पटती थी। हम तीनों साथ-साथ बैडमिन्टन खेलते, घूमने जाते, साईकिल चलाते, विडियो गेम्स खेलते और स्केटिंग करते थे।
कुल मिला कर हम हर गर्मी की छुट्टियों में बहुत ज्यादा मजे करते थे पर इस बार जब वो लोग आये तब एक बार तो मुझे अच्छा नहीं लगा क्योंकि वो उसी गेस्ट रूम में रुके थे जिसकी खिड़की से मैं अपने मम्मी-डैडी को सैक्स करते देखा करता था।
कहानी जारी रहेगी।
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