कवि की अन्तर्वासना

(Hot Lund Sex Poem)

छटके 69 2024-10-15 Comments

हूं मैं लगभग 32 वर्ष का, मध्य भारत में रहता
कर्म मेरा बहुचर्चित सा है, धूप छांव सब सहता!

आंखें नशीली रंग गेहुंआ, सामान्य सा मैं दिखता
अन्तर्वासना के पृष्ठ पर प्रथम कहानी लिखता!

मत पूछो कि हम अब तक, क्या खोऐ क्या पाए थे
कुछ लड़कियों का चुम्बन तो कुछ के स्तन दबाये थे!

मगर अब हमउम्र लड़कियां, बच्ची लगती थी
बड़े दूध और उठी गांड वाली ही अच्छी लगती थी!

इस उम्र में तो अब हर वक्त चूत की खुमारी थी
ऊपर का सब कर चुका था पर चूत नहीं मारी थी!

मैं चूतिया से कैसे बना चुदक्कड़, बताऊं कहानी
बात यह आज की नहीं … है 10-12 साल पुरानी!

यह कहानी है दुबली पतली पर, बड़े दूध वाली की
देखने में सीधी सादी सी पर अंदर से मतवाली की!

जिसे देखकर मेरे अंदर पहली बार हवस भड़की थी
वह हमारे कर्मचारी की मेरी हमउम्र ही लड़की थी!

देखकर मुझको बदले चाल और चूतड़ खूब मटकाती
यह मांगे या मैं खुद दे दूं … सोच सोच के सकुचाती!

स्वाभिमान के चलते चाहे यह पहले शुरुआत करे
मैं तो हां भर ही दूंगी, पहले आकर बात तो करे!

मैंने भी फिर मौका पाकर, बात एक दिन छेड़ी
वह पहले रूठी फिर मुस्काई करके नजरें टेढ़ी!

उसकी इस हरकत पर मैं फूला नहीं समाया
पकड़ के पीछे से मैंने उसको तनिक दबाया!

पतली कमर में हाथ डाल कर जैसे उसे घुमाया
एक झटके में एक दूजे को बाहों में हमने पाया!

मौन स्वीकृति मिली जो उसकी, मेरी हिम्मत बढ़ गई
नजर उसकी आंखों से हट, अब लाल होठों पर पड़ गई!

एक हाथ चूतड़ पर, दूसरा उसकी पीठ पर घूमे
कभी गाल तो कभी होंठ मैंने कस कर चूमे!

आलिंगन से शरीर में एक झुरझुरी सी लगी होने,
मैं उसकी मदहोशी में, और मुझमें लगी वो खोने!

कुछ देर में ही दोनों अगले चरण पर बढ़ने लगे
दोनों हाथ पीछे से हट अब छाती पर चलने लगे!

धीरे-धीरे करके उसकी कुर्ती सीने तक खिसकाई
फिर बारी-बारी उन खरबूजों की की खूब चुसाई!

आनाकानी की थोड़ी सी, फिर जमीं पर उसे लिटाया
मैंने भी देर न की और झट से उसके ऊपर आया!

पता नहीं था मुझको, वह कमाल कर देगी
पहली बार में ही वो चुदने को हाँ भर देगी!

मुझसे पहले भी उसका लफड़ा था किसी और से
मेरा पहला अनुभव था, वो गुजर चुकी थी इस दौर से!

वह बोली करना है जल्दी कर लो, मुझे घर जाना है
या फिर मुझको जाने भी दो, कल भी तो आना है!

चूंकि मेरा प्रथम प्रयास था, लगा मैं थोड़ा डरने
सोचा ना था काम ये इतनी जल्दी मिलेगा करने!

चूड़ीदार सलवार थी उसकी, एक ही पैर निकाला
जल्दी से चड्डी नीचे खिसका लंड जरा सम्भाला!

लंड को मेरे बिल्कुल न छूती, कुर्ती से मुँह ढकती
नौसिखिया कैसे करता है, चोर नजर से वह तकती!

पहली चुदाई की हड़बड़ी में आधा खड़ा ही लंड घुसाया
उसकी बुर खेली खाई थी, लंड झट से उसमें समाया!

लंड ने झट से पानी उगला, बस अठ दस झटके मारे
मैं खुद पर शर्मिंदा था, मेरा मन खुद को ही धिक्कारे!

मैं खिलाड़ी हारी टीम का, बिल्कुल ऐसा दिखता
कवि होकर भी मनोस्थिति, शब्दों में कैसे लिखता!

वह कपड़ों को सम्भालती नीचे से सामने आई
मेरी व्यथा समझ गई और नकली सा मुस्काई!

मैं अब ये लगा सोचने, उसको कैसे बेहतर चोदूँगा
ऐसे में तो आत्मविश्वास, मैं अपना खो दूँगा!

दोबारा मिलन करने की योजना फिर बनाई
वो इठलाकर अगले दिन आती पड़ी दिखाई!

पहले उसको चूमा चाटा, उसके गालों को काटा,
उसकी कुछ बनावटी शर्म पर मैंने उसको डांटा!

अब वह थोड़ी शर्म छोड़ मेरा साथ थी देती
धीरे-धीरे चुम्बन करती, लंड हाथ में लेती!

उसकी प्रतिक्रिया से मुझमें जोश बढ़ा अब
पहले से कुछ बेहतर, मेरा लंड खड़ा अब!

जल्दी से चड्डी उतारकर, चूत को तनिक निहारा
मखमली चूत को देखकर, चढ़ गया मेरा पारा

मैंने फिर हाथ बढ़ाकर चूत को खूब टटोला
दोनों उंगलियां फंसाकर चूतद्वार को खोला!

उसकी खाईनुमा चूत में लंड गोताखोर घुसता
पर इस बार की चुदाई में मैं पहले से खुश था!

30-40 झटके थे मारे, बांध सब्र का टूटा
पता नहीं इस बार भी कैसे जल्दी मैं छूटा!

फिर अगले दिन चोदने को मन लगा घबराने
चूत मार के मुझको होता क्या मेरा मन ना जाने!

कुछ रूठी कुछ चिड़चिड़ी सी वो लगी थी जाने
शायद अब वह चाहती थी मुझको कुछ समझाने!

इस बार गोली खाकर चुदाई करने का सोचा
पर उस दिन वो ना आई, हो गया पूरा लोचा!

अबकी बार वो मिली तो मैंने पूरी व्यथा बताई,
उसने मेरे मन की पीड़ा समझी, मुझे समझाई!

चुदाई को बस सहज समझना, उतावले कभी ना होना
धीरे-धीरे सब सही करूंगी, तुम धैर्य तनिक ना खोना!

जैसे जैसे मैं बोलूंगी, वैसा वैसा ही करना
डर को अपने पीछे छोड़ो, अब कभी न डरना!

खुद को आज गुरु समझती, जाने कैसे है ऐंठी
मुझको लिटा धरती पर आकर मेरे लंड पर बैठी!

मेरा जोश बड़ा जैसे ही, उसने मुझको डांटा
मैं थोड़ा शिथिल हुआ तो उसने होंठ को काटा!

कभी बेरुखी तो कभी उत्तेजना, मैं उस पर झन्नाया
वो बोली बुर में लंड को तुमने कितनी बार घुसाया!

वो चाहे ध्यान को मेरे, बार-बार भटकाना
चरमसुख की दौड़ को बार-बार लटकाना!

मनोबल मेरा बढ़ चुका था, उसके इस प्रयोग से
पर मैं अब तड़प उठा था चरमसुख के वियोग से!

अब उसको नीचे गिराकर, जमकर करी चुदाई
ऐसा मेरा रूप देखकर, वो खुलकर मुस्काई!

मेरी जब जब बढ़ी गति, तब तब उसने रोका
ऐसे करके उसको मैंने 20 मिनट तक ठोका!

इसके बाद वो कई बार चुदी और लब से लब मिले
उसकी ढीली चूत से मुझे कई कड़क अनुभव मिले!

उसकी नित्य चुदाई से मैं, दिनोदिन परिपक्व होने लगा
चूत उसकी बनी भोसड़ा और लंड फक फक होने लगा!

ना तो वह मनोवैज्ञानिक थी, ना ज्यादा पढ़ी लिखी थी
पर उसमें उत्कृष्ट गुरु की, मुझको दिखी छवि थी!

चूतिया से मैं बना चुदक्कड़, उसका ही आभार है
मेरे वीर्य की एक एक बूँद पर उसका ही अधिकार है!

धन्य है यह अन्तर्वासना मंच जहां कविता को स्थान मिला
लिखूंगा नई कहानी … अगर मेरी कविता को सम्मान मिला!
[email protected]

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