होली आई रे, खुशियाँ लाई रे
(Holi Aayi Re Khushiyan Layi Re)
मेरा नाम नीना है और मैं पटियाला में रहती हूँ। मेरी उम्र इस वक़्त 32 साल है, अभी तक शादी नहीं हुई है। वजह है मेरा बेडोल मोटा शरीर, काला रंग और बेहद साधारण से नैन नक़्श। मतलब यह कि मुझमें ऐसी कोई भी बात नहीं जिससे कोई मेरी तरफ आकर्षित हो। इसी वजह से अब तक जितने भी लड़के मुझे देखने आए, सब मुझे रिजैक्ट करके चले गए।
घर में एक माँ है जो लकवा से पीड़ित है और पिछले कई सालों से बिस्तर पर ही है, उसकी सारी देखभाल मेरे ज़िम्मे है, एक भाई है जो टैक्सी चलाता है, एक भाभी है जो सच कहूँ तो एक परले दर्जे की लुच्ची औरत है, एक भतीजी है जो स्कूल में पढ़ती है।
भाई के अक्सर घर से बाहर रहने का फायदा भाभी अपनी मनमर्ज़ी करके उठाती है। मुझसे ठीक बोलती है पर मैं उसे दिल से पसंद नहीं करती।
बात है कई साल पहले की, पिताजी की मौत के बाद भाई ने टैक्सी संभाल ली। पिताजी की मौत के सदमे से माँ को लकवा मार गया। उस वक़्त भाई और भाभी की शादी को सिर्फ दो साल ही हुये थे। पिताजी के ज़िंदा रहते तो भाभी ठीक रही, पर जब भाई ने टैक्सी चलनी शुरू की और कई बार उसे रात को भी बाहर रहना पड़ता था तो भाभी ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया।
जिस घर में हम रहते थे, वो एक बहुत बड़ी से पुरानी हवेली थी। जिसमें बहुत से कमरे थे और बहुत सारे किरायेदार थे, किसी के पास एक कमरा था तो किसी के पास दो। सब आपस में मिलजुल कर रहते थे, और कभी भी कोई भी किसी के भी घर आ जाता था।
अब भाभी गोरी चिट्टी, पतली लंबी और सुंदर थी, तो हमारे पड़ोस में ही सब उसके हुस्न के दीवाने थे, और ऊपर से भाभी का सब के साथ खूब खुल के हंसना-बोलना। तो भाभी को कोई ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी और बहुत जल्द भाभी ने हर वो शख्स जो उसे अच्छा लगा उसकी मर्दानगी का स्वाद चख लिया।
हमारे पास दो कमरे थे, एक में भाई भाभी का बेडरूम कम ड्राईंग रूम था दूसरे छोटे कमरे में मेरा और माँ का बेडरूम कम स्टोर था। उसके आगे किचन और साथ में बाथरूम था। तो जब भी भाई की गैर मौजूदगी में भाभी रात को अपने किसी यार के साथ रात रंगीन कर रही होती तो उसकी आवाज़ें हमारे कमरे तक आती।
माँ अंदर ही अंदर बहू की बेहयाई पर कुढ़ती और मैं अपनी किस्मत पर, कि सब उसकी मार रहे हैं, मेरी तरफ कोई देखता भी नहीं। इतना ही नहीं मेरी क्लास में भी मेरी फ़्रेंड्स जैसे, किरण, सीमा, पुनीत सबके बॉय फ़्रेंड्स उनके साथ मज़े करते पर मेरी तरफ कोई नहीं देखता था। पुनीत की तो मैं चौकीदार थी, जब रिसेस्स में वो क्लासरूम में अपने यार के साथ हुस्न की बहारें लूटती तो मुझे गेट पर खड़ा करती ताकि किसी के आने पर मैं उन्हें खबर कर दूँ।
इसका इनाम मुझे यह मिलता के कभी कभी मुझे उसके बॉय फ्रेंड का लण्ड हाथ में पकड़ने या चूसने को मिल जाता। वो भी कभी कभी मेरे बूब्स दबा देता था। पर कोई सिर्फ मेरा हो ऐसा ना हो सका। पुनीत मेरे सामने अपनी स्कर्ट उठा कर अपने यार का लण्ड अपनी चूत में ले लेती और मैं उसे देखती और सिर्फ अपनी सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत मसल के रह जाती।
स्कूल में सहेलियाँ और घर में भाभी का नंगापन देख कर मैं भी चाहती थी कि कोई मुझे जी भर के चोदे, पर मेरी शक्ल के कारण कोई मुझे नहीं देखता था।
माँ भी मेरा हाल समझती थी पर कर कुछ नहीं सकती थी। भाभी का तो यह हाल था कि रात को चुदने के बाद वो अक्सर नंगी ही सो जाती थी, सुबह जब मैं उसे उठाती तो अक्सर उसके बदन पर नोच-खसोट और पुरुष वीर्य के निशान देखती। भाभी को भी मेरे सामने नंगी होने से कोई फर्क नहीं पड़ता था। शायद वो यह जताना चाहती थी, कि देख मैं कितनी सुंदर हूँ और कितने लोग मुझ पर मरते हैं। मैंने कई बार भाभी से पूछा- भाई में क्या कमी है जो तुम औरों से भी ये सब करती हो?
तो वो कहती- कोई कमी नहीं, पर मुझे ज़्यादा चाहिए, मैं भरपूर संभोग सुख चाहती हूँ, जो सिर्फ तुम्हारा भाई नहीं दे सकता, वो मैं औरों से ले लेती हूँ। तेरा दिल करता है तो तू भी ले ले !
पर मैं क्या बताऊँ के मुझे तो कोई देखता भी नहीं।
फिर एक बार होली की बात है, जब मेरी किस्मत बदली। होली पर भाई के कुछ दोस्त होली खेलने हमारे घर आये, उनमें वीरू भी था। पतला, गोरा खूबसूरत नौजवान। उसे देखते ही मेरा दिल उस पर आ गया। सबने होली खेली इधर भाग, उधर भाग, घर की और सब मर्द औरतों और लड़के लड़कियों ने जम के होली खेली, पर मुझे सिर्फ लड़कियाँ ही रंग लगाने आई।
भाभी को तो तीन चार लड़कों ने पकड़ कर उसके सारे बदन पर रंग लगाया, उसके कपड़ों के अंदर हाथ डाल-डाल कर, और भाभी हंसती रही।
मैं भी चाहती थी पर कोई नहीं आया। कोई भाभी की छतियाँ दबा रहा कोई गालों पर कोई चूतड़ों पर, बस भाभी को हर तरफ से दबा रखा था। मैं ये सब अपने सामने देख रही थी के तभी वीरू ने पीछे से आकर कहा- अगर बुरा ना मानो तो रंग लगा दूँ?
मैंने उसकी तरफ देखा, एक मुस्कान दी और अंदर को भाग गई, वो भी मेरे पीछे आया, मैं भाग कर माँ के कमरे में चली आई, और वहीं खड़ी हो गई।
वो भाग कर आया और आकर उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया, मैं कोई विरोध नहीं कर रही थी, उसने मेरे सर और चेहरे पर रंग लगाया, मेरे गालों को सहलाया, मैं बिल्कुल सावधान होकर खड़ी थी, मेरे गाल सहलाते हुये वो बोला- अगर बुरा ना मानो तो कहीं और भी रंग लगा दूँ?
मैंने कुछ जवाब नहीं दिया, तो उसने अपने दोनों हाथों से मेरे दोनों स्तन पकड़ लिए, और दबाने लगा, बोला- माइ गॉड, तुम्हारे चूचे कितने सॉलिड हैं।
वो मेरे उरोज दबा रहा था और मैं चुपचाप खड़ी थी। यह देख कर उसकी हिम्मत बढ़ी तो उसने अपने हाथ नीचे से मेरी कमीज़ के अंदर डाल लिए और मेरे दोनों स्तन अपने हाथों में पूरी मजबूती से पकड़ कर दबाये। वाह क्या आनन्द आया, कि इतना सुंदर नौजवान मेरे स्तनो का आनन्द ले रहा है।
फिर उसने मुझे बाहों में भर लिया और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिये, मैंने उसका नीचे वाला होंठ अपने होंठों में ले लिया और उसे अपनी बाहों में कस कर पकड़ लिया। मैं उसका तना हुआ लण्ड अपने पेट पर महसूस कर रही थी। थोड़ी देर चूसने के बाद उसने मुझे बेड पर बैठाया अपना लोअर नीचे किया और अपना ना हुआ लण्ड निकाल कर मेरे मुँह की तरफ बढ़ाया, बिना कुछ बोले मैंने उसका लण्ड मुँह में ले लिया और चूसने लगी।
अभी थोड़ा सा ही चूसा था के तभी भाभी अंदर आ गई। उसने हमें उस हालत में देख लिया और हँस कर चली गई, पर हमारा मोशन टूट गया और वीरू मुझे छोड़ कर बाहर चला गया।
मुझे बहुत बुरा लगा, पर बाद में खयाल आया कि जिस कमरे मैं उसका लण्ड चूस रही थी, उसी कमरे में माँ भी लेटी हुई थी जो सब देख रही थी। वो बोल कुछ नहीं पाती थी पर देख तो सकती थी।
खैर, कुछ हुआ तो नहीं पर उसके बाद वीरू अक्सर हमारे घर आने लगा, हम दोनों खूब हँसते बातें करते, मैं मन ही मन उसे चाहने लगी थी। मुझे लगा कि चलो मेरा भी बॉय फ्रेंड बन गया, पर भाभी ने उस पर भी डोरे डालने शुरू कर दिये, वो जान बूझ कर गुड़िया को दूध पिलाने के बहाने वीरू को अपने स्तन निकाल कर दिखाती, वीरू भी उसके झांसे में आ गया और एक दिन बातों बातों में उसने भाभी का दूध पीने की इच्छा ज़ाहिर कर दी जिसे भाभी ने मना नहीं किया और नतीजा, वो आगे बढ़ता गया और भाभी ने उसको रोका नहीं।
जब मैं उन्हें चाय देने गई तो उस वक़्त वीरू भाभी का एक स्तन चूस रहा था और दूसरा हाथ में पकड़े हुये था।
मैं तो सर से पांव तक जल-भुन गई। चाय रख कर मैं गुस्से में तमतमाती हुई बाथरूम में घुस गई और खूब रोई, फिर जब थोड़ी देर बाद गुस्सा कुछ शांत हुआ तो नहाने लग गई और जब नहा कर वापिस तो देखा कि वो और भाभी दोनों अल्फ नंगे और गुत्थम-गुत्था और मैं बस देखती रह गई।
15-20 मिनट वीरू ने भाभी को जम कर चोदा। मैं उस दिन बहुत रोई, उसके बाद वीरू कई बार हमारे घर आया पर मैं उस से नहीं बोली, शायद वो समझ गया।
फिर एक दिन जब वो हमारे घर आया तो उस वक़्त भाभी घर पर नहीं थी, मैं उसे पानी देने गई तो उसने मुझे अपने पास बैठाया और मुझसे मेरी नाराजगी का कारण पूछा, जब बातें खुलने लगी तो मैंने खुल्लम खुल्ला उससे कह दिया कि मैं उस से प्रेम करती हूँ और वो भाभी के साथ सब करता है तो मुझे अच्छा नहीं लगता।
तो उसने पूछा- मेरे साथ प्यार करेगी?
मैंने हाँ में सर हिलाया।
वो बोला- देख, मैं तेरे से शादी तो नहीं कर सकता पर तुझे शादी का सुख दे सकता हूँ, बोल क्या कहती है?
मेरे लिए तो यही बहुत था, मैंने हाँ कह दी।
करीब दो दिन बाद मौका भी मिल गया, भाभी अपने मायके गई और भाई भी उसके साथ गया था, तो घर में रात को कोई नहीं था, मैंने वीरू को सब बता दिया था। सो उस रात वो करीब 11 बजे मेरे घर आया। मैंने दरवाजा खोल कर उसे अंदर बुला लिया और भाई के कमरे में बैठा दिया। फिर जाकर देखा तो माँ सो चुकी थी। मैं फिर से भाई के कमरे में वापिस आ गई।
वीरू ने आते ही मुझे पकड़ लिया- इधर आ साली मोटी भैंस, इतना बड़ा जिस्म किसके लिए संभाल के रखा है?
मैंने भी कह दिया- सिर्फ तुम्हारे लिए !
बस यह सुनते ही वीरू ने मुझे बेड पर गिराया और मेरे ऊपर लेट गया। मेरी आखों में देखा और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिये। होंठ चूसते चूसते एक दूसरे के जीभें भी चूसने लगे। मैंने वीरू को अपनी बाहों में जकड़ लिया और अपनी टांगों को उसकी कमर के गिर्द जकड़ लिया। वो अभी आराम से लेटा था पर पर मैं नीचे से कमर उठा उठा कर अपनी चूत को उसके लण्ड पर रगड़ रही थी।
शायद मेरी बेकरारी वो समझ गया था- करें?’ उसने पूछा, मैंने एक स्माइल से उसको इजाज़त दे दी।
तो वो मेरे ऊपर से उठा और उसने अपने सारे कपड़े उतार दिये, सिर्फ चड्डी छोड़ कर। उसकी चड्डी में से उसका खड़ा हुआ लण्ड साफ दिख रहा था। उसके बाद उसने मेरे कपड़े उतारे, मुझे उसने पूरी तरह से नंगी कर दिया और फिर आ कर मेरे ऊपर लेट गया, पर इस बार उसने मेरे स्तनो को बहुत दबाया और चूसा, मेरे चुचूकों मुँह से चूसा और दांतों से काटा।
मुझे बहुत मज़ा आ रहा था और साथ में यह भी सुखद अहसास था कि आज कोई मेरा अपना बॉय फ्रेंड मुझे चोदेगा।
खैर छतियों को चूसने के बाद वो अपने हाथों और चेहरे से मेरे पेट और कमर को सहलाता हुआ, नीचे को गया और मेरी चूत के आस पास जांघों को सहलाता चूमता मेरे घुटनों तक गया और फिर वापिस आया और मेरी छाती पर बैठ गया।
उसका तना हुआ लण्ड मेरे सामने था- चूस अपने यार को !’ उसने कहा तो मैंने उसका लण्ड अपने मुँह में ले लिया और चूसना शुरू कर दिया। वो भी अपनी कमर हिला हिला कर मुझसे मुख मैथुन का आनन्द ले रहा था।
मैंने कहा- क्या तुम मेरी चाट सकते हो, मैंने आज तक कभी नहीं चटवाई, उस दिन मैंने देखा था जब तुम भाभी की भी चाट रहे थे।
वो मुस्कुराया और मेरे ऊपर उल्टा घूम गया, उसने मेरी दोनों टांगे चौड़ी की और अपना मुँह मेरी चूत से लगा दिया, मैंने भी उसका लण्ड पकड़ा और अपने मुँह में ले लिया।
उफ़्फ़ ! जब उसने अपनी जीभ मेरी चूत के दाने पर फेरी तो मेरे तो बदन में जैसे बिजलियाँ दौड़ गई। मैंने अपनी दोनों जांघों में उसका सर दबा लिया और अपने दोनों हाथ उसकी पीठ पर फिराने लगी। गर्मी तो पहले ही मेरे दिमाग में चढ़ी पड़ी थी, सो दो मिनट में ही मैं तो झड़ गई।
मेरी चूत का पानी वो चाट गया, मेरा बदन अकड़ गया, मैंने तो उसका लण्ड दातों से काट लिया। जब मैं थोड़ी ढीली पड़ी तो वो उठा और मेरी टांगे चौड़ी करके उनके बीच बैठ गया- मज़ा आया?’ उसने पूछा।
‘हाँ, बहुत !’ मैं बोली।
‘तो लो अब और मज़ा लो, असली मज़ा !’ यह कह कर वो मेरे ऊपर लेट गया, तो मैंने उसका लण्ड पकड़ के अपनी चूत पर रखा। उसने धक्का मारा तो लण्ड अंदर नहीं गया, वो बोला- अरे टाइट मत करो, आराम से इसे अंदर लेने की कोशिश करो।
मैंने अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया, जब उसने दोबारा धक्का मारा तो उसके लण्ड का सुपाड़ा मेरी चूत में घुस गया, मुझे दर्द हुआ, मेरे मुँह से हल्की सी चीख निकल गई, थी भी तो मैं सिर्फ 18-19 साल की।
उसने मेरे दोनों हाथों की उँगलियों में अपनी उँगलियाँ फंसाई और मेरे दोनों हाथ खींच के बिल्कुल ऊपर ले गया, मैंने अपनी टाँगों को उसकी कमर के गिर्द लपेट लिया, उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रखे, अपना लण्ड थोड़ा पीछे किया और दूसरा धक्का मारा, अबकि बार लण्ड थोड़ा और मेरे अंदर घुसा, मेरी दूसरी चीख मेरे मुँह से उसके मुँह में ही रह गई।
उसने फिर वैसे ही किया और इस तरह 4-5 घस्सों में उसने अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में उतार दिया। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने लकड़ी का कीला ठोक कर मेरे पेशाब करने की जगह को ही बंद कर दिया हो। मेरी आँखों के दोनों किनारों से आंसू निकल आए, पर उसने कोई परवाह नहीं की।’तेरी चूत बहुत टाइट है, आज तक इतनी टाइट चूत नहीं देखी।’
मैंने भी कहा- तुम पहले इंसान हो जिसने मेरी सील तोड़ी है, आज से पहले इसमे सिर्फ मेरी उंगली या पैन वगैरह ही गए हैं।
यह सुन कर वो बहुत खुश हुआ- वाह, तो आज तो कच्ची फाड़ दी, शुक्रिया भगवान !
यह कह कर वो हँसा और फिर तो चल सो चल, वो आगे पीछे करता रहा। जब मैंने भी फिर से पानी छोड़ना शुरू कर दिया तो वो अपना पूरा लण्ड मेरी चूत के आखरी सिरे तक लेजा कर मुझे चोद रहा था। बेशक मुझे थोड़ा दर्द हो रहा था पर फिर भी मज़ा आ रहा था। जितना वो ऊपर से ज़ोर लगा रहा था, उतना मैं नीचे से कमर उठा उठा कर उसका साथ दे रही थी।
हम दोनों के बदन पसीने से भीग रहे थे, पर संभोग की गाड़ी पूरी रफ्तार से दौड़ रही थी।
करीब 8-10 मिनट की चुदाई के बाद उसने अपनी मर्दांगी का सारा रस मेरी चूत में उड़ेल दिया। वो थक कर मेरे ऊपर ही लेट गया। जब उसका लण्ड ढीला पड़ा तो अपने अपने आप मेरी चूत से बाहर निकल गया और उसके साथ उसका वीर्य भी मेरी चूत से बाहर चू गया।
मैं इस बात को लेकर बहुत खुश थी के चलो जो भी सही पर आज कोई है जिसने मेरा कौमार्य भंग कर दिया।
कुछ देर हम लेटे रहे, फिर उसने कहा- मैं तुम्हें फिर से चोदना चाहता हूँ, एक बार फिर से करें?
मैंने बड़ी खुशी से हाँ कही। उस सारी रात हम सोये नहीं, और पूरी रात में उसने 4 बार मेरे साथ सेक्स किया, मेरी फ़ुद्दी रगड़ी।
सुबह करीब 5 बजे वो चुपचाप से मेरे घर से निकाल गया। लेकिन उसके बाद कभी ऐसा मौका नहीं मिला। वीरू फिर भी हमारे घर आता था, पर भाभी ने उसे कभी मेरे लिए नहीं छोड़ा, जब भी वो आता तो भाभी ही उस से मज़े लेती, मुझ तक तो पहुँचने ही नहीं देती।
फिर वीरू भी बाहर चला गया। मेरी पढ़ाई पूरी हो गई, एम ए बी एड करके मैं फिर अपने ही स्कूल में टीचर लग गई, पर न तो मेरी शादी हुई, और न ही चुदाई।
भाभी आज भी मज़े ले रही है, और आज भी मैं अपनी काम-पिपासा बैंगन, खीरा जैसी चीजों से शांत करती हूँ।
कोई लण्ड वाला सुन रहा है क्या।
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