गलतफहमी-19
(Galatfahami- Part 19)
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दोस्तो.. कहानी अब अपने चरम पर पहुंचने वाली है, थोड़ा सा धर्य और बनाये रखें। इस भाग में पढ़ें इंडियन कॉलेज गर्ल की चुदाई!
मैं अपना चूत सहलाने लगी और पुस्तक में दिख रहे लंड और लोगों को अपने इर्द गिर्द महसूस करने लगी। बड़े-बड़े जानवर जैसे लोगों के बीच खुद को कुचलता हुआ महसूस करके भी मुझे अच्छा लग रहा था। फिर कुछ ही पलों में मैंने अपनी ब्रा पेंटी भी उतार फेंकी, और अब तो मैं जवान भी हो ही चुकी थी। मेरी चूत के चारों ओर बाल आ चुके थे, भूरे मुलायम बालों में अब कालापन आ गया था, शरीर भरा-भरा सा लगने लगा था।
मैं रोहन को बहुत ज्यादा याद कर रही थी, और अब चूत की चुदाई के लिए भी सोचने लगी थी, पुस्तक के एक और पृष्ठ पर मेरी नजर गड़ गई। उसमें एक लड़की दो लड़कों से चुदवा रही थी, मैंने खुद को उस लड़की की जगह महसूस किया तो उसमें लड़कों की जगह मुझे रोहन और मेरे उस सर का चेहरा नजर आया जिसके लिए मैंने पहले भी चूत में उंगली की थी।
मैंने पुस्तक के एक-एक पन्ने को बीस-बीस बार से कम नहीं देखा होगा। वैसे मैं अब सेक्स के बारे मे काफी कुछ जान गई थी, फिर भी ऐसी तस्वीरों को देखना मेरे लिए अनोखा और रोमांचक अनुभव था।
जब मैं अपने शरीर को सहलाते हुए, मम्मों को समलते हुए और चूत को सहलाते हुए भी स्खलित नहीं हो पा रही थी तब मैंने अपने कमरे में रखी गुलाब जल की छोटी लंड आकार की शीशी का इस्तेमाल किया, भले ही मुझे उसे चूत में डालने से दर्द हुआ और ब्लडिंग हुई पर मैं उस समय के असीम आनन्द के सामने सब कुछ भूल गई थी और उसे जोर-जोर से आगे पीछे करते हुए, रोहन को महसूस करते हुए झड़ गई।
और रात भर में मैं चार बार और भी स्खलित हुई।
फिर मैंने पुस्तक को संभाल के रखा।
सुबह मेरी हालत खराब थी पर मैंने बिल्कुल भी जाहिर नहीं होने दिया। उस पुस्तक को मैंने लगभग दस दिनों तक पास रखा और शुरुआत के चार पांच रात मेरे ऐसे ही कटे, फिर मेरे लिए वह पुस्तक सामान्य होने लगी।
प्रेरणा ने पुस्तक देखने के दूसरे ही दिन स्कूल में मुझे छेड़ते हुए कहा- क्यों कविता रानी, कहीं चूत छिल तो नहीं गई?
मैंने आँखें दिखाते हुए कहा- मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ है।
तो उसने फिर कहा- अरे..! मैं तो भूल ही गई थी कि तू तो गांड का शौक रखती है।
अब मैं शर्मा गई.. और उसे मारने के लिए दौड़ाने लगी तभी एक टीचर ने रोका और कहा- क्या हुआ?
तो प्रेरणा ने फिर छेड़ा- बता ना क्या हुआ है।
मैंने कुछ नहीं कहा.. फिर सॉरी कह के हट गई।
बाद में प्रेरणा आई और मेरे गले में झूल के कहने लगी- मुझे नहीं पता कि तेरी छिली या नहीं, पर पहली बार पुस्तक देख के मैंने चूत इतनी रगड़ी थी कि घाव सा हो गया था।
मैंने शरमा कर प्रेरणा को गले लगा लिया।
पुस्तक के कारण हमारी सेक्स के प्रति तड़प बढ़ गई थी और अब प्रेरणा विशाल को और मैं रोहन को और भी ज्यादा चाहने लगी थी। हम चारों एक दूसरे के राजदार बन गये थे, हमें मिलने के लिए अच्छी जगह नहीं मिलती थी और ज्यादा रिस्क लेने से हम डरते थे इसलिए हम महीने में एक दो बार ही मिल पाते थे।
फिर हम सबने पढ़ाई पर मन लगाया और बारहवीं का पेपर अच्छे से दिया लेकिन अब गर्मी की छुट्टियां और विरह की अग्नि बर्दाश्त नहीं हो रही थी और बारहवीं के रिजल्ट के बाद हमें आगे की पढ़ाई के लिए शहर भी जाना था, पता नहीं कौन कहाँ जायेगा। इसी उथापोह में मुझे रोहन से मिलने की जल्दी थी।
इस समय तक हमने नया कुछ नहीं किया था, पर पुराना जो भी सीखा था वो सब बहुत आजमा लिया था। और हमारा यौवन भी तो पूरे शवाब पर था। सीने से लेकर कूल्हों तक सभी जगह पैनापन सा आ रहा था। समझदारी भी बढ़ रही थी साथ ही बेचैनी भी!
स्कूल के समय तो हम एक दूसरे को देखकर मन को शांत कर लेते थे, पर गर्मी की छुट्टियों में अपने यार से दूरी बर्दाश्त नहीं हो रही थी।
फिर एक दिन मैंने पापा के फोन से प्रेरणा के घर फोन लगाकर प्रेरणा से बात की तो पता चला कि वो अपने मम्मी पापा और भाई के साथ चार पांच दिनों के लिए बाहर जा रही है। पता नहीं उसी समय मेरे दिमाग में कैसे एक आइडिया आया, मैंने तुरंत प्रेरणा से कहा- यार तू मेरे और रोहन के मिलने के लिए गाड़ी वाले रूम की चाबी छोड़ के जा ना..!
पहले तो प्रेरणा ने कहा- यार, ये कैसे हो सकता है?
फिर कहा- तू एक काम करना.. हमारे घर की बाऊंड्री के पास वाले गमले से चाबी उठा लेना, मैं पापा से नजर बचा कर गाड़ी रूम की दूसरी चाबी वहाँ छोड़ दूंगी, फिर तुम खुल कर ऐश कर लेना। पर हाँ अगर तू पकड़ी गई तो मैं कह दूंगी कि मैं कुछ नहीं जानती।
मैं तो खुशी के मारे उछल ही पड़ी और दूसरे दिन छोटी को रोहन की बहन के पास छोड़ने के बहाने रोहन को एक छोटा सा लैटर थमा आई जिसमें मैंने अपनी पूरी प्लानिंग लिख दी थी।
प्रेरणा का घर हमारे कस्बे के बाहरी इलाके में था इसलिए लोगों की चहलपहल कम ही रहती थी और गर्मी के मौसम में दोपहर को ऐसे भी शांति रहती है, मैं वहाँ पहले पहुंची और मैंने गाड़ी रूम का लॉक खोला और अंदर बैठ के रोहन का इंतजार करने लगी, घड़ी की हर एक टिक मेरा धड़कन बढ़ा रही थी।
फिर मुझे किसी के आने का अहसास हुआ, हाँ वो रोहन ही था, वो अंदर आया और हमने गेट बंद कर दिया, मैंने उससे सबसे पहला सवाल किया कि किसी ने तुम्हें देखा तो नहीं?
तो उसने कहा- शायद नहीं…
और मुझसे लिपट गया।
प्रेरणा के घर के गाड़ी रूम में रोहन ने मुझे सीने से लगा लिया, और धन्यवाद देते हुए कहा- सच में यार कविता, मैं भी कब से मौके की तलाश में था, पर तुम मुझसे भी दो कदम आगे निकली।
हम जहाँ खड़े थे वो सिर्फ गाड़ी रखने की जगह थी, मतलब साफ है कि वहाँ पलंग गद्दा जैसा कुछ भी नहीं था। बस एक दो पुराने फटे बोरे रखे थे, वह भी शायद बेकार थे इसीलिए यहाँ पड़े थे।
हम लोगों ने उसे बिछाया और उस पर बैठ गये.
सच मानिये कि जब आपको किसी से मिलन की प्यास हो तब फटा बोरा भी आपको मखमल की सेज लगता है। मेरे साथ भी यही हुआ मैं उसे मखमल की सेज समझ कर लेट गई और रोहन मेरे ऊपर पसरता चला गया।
ऐसा नहीं है कि रोहन और मैं पहली बार लिपट रहें हों, पर अलग हालातों में और लंबे इंतजार और बेचैनी के साथ मिलने से हर मिलन पहली मुलाकात जैसा अहसास कराता है।
हम एक दूसरे के हर अंग को चूम रहे थे.. चाट रहे थे… सहला रहे थे।
मन में उस जगह को लेकर डर तो था पर उतना ही रोमांच भी था।
मैंने अपना हाथ रोहन के लंड पे पहुंचा दिया और रोहन ने मेरे कोमल मम्मों के ऊपर सख्त हो चुकी चूचुकों को ऐंठ दिया। और उस दर्द के मजे में मेरी आँखें मुंदती चली गई.
तभी रोहन ने मेरी चूत पर हाथ रख कर दबाते हुए कहा- कविता, एक बात कहूँ?
मैंने लरकते हुए स्वर में कहा- हाँ बोलो ना जान?
तो उसने कहा- आज तुम्हारी योनि का उदघाटन करने का बहुत मन है।
मैंने थोड़ा चौंकते हुए कहा- मन तो मेरा भी है रोहन, पर मैं चूत में लिंग डलवा के बिन ब्याही माँ बनने की बदनामी से डरती हूँ।
तो रोहन ने कहा- तुम चिंता मत करो.. मैंने ***** डॉ. भैय्या से एक दिन बात की थी उसने बताया है कि चुदाई करने के बाद वीर्य निकलने के वक्त अगर हम अंदर ना गिरा कर लंड बाहर खींच ले तो लड़की माँ नहीं बनती। तुम मेरा भरोसा रखो मैं अंदर वीर्य नहीं गिराऊंगा। और डॉ. भैय्या ने कहा है कि ज्यादा ही डर हो तो निरोध का उपयोग कर लेना चाहिए।
मैंने कहा- निरोध क्या है?
तो रोहन ने माथा पीटते हुए कहा- अरे पगली, कंडोम को ही निरोध कहते हैं। ये देखो मैं ये लाया भी हूँ।
अब कंडोम को देख कर मुझे थोड़ी खुशी भी हो रही थी क्योंकि मैं भी अपनी योनि भेदवाना चाहती थी। और डर खुशी और संसय के साथ मैंने शर्माते हुए हाँ में सर हिलाया और रोहन खुशी के मारे झूम उठा और बहुत हड़बड़ी में अपने और मेरे कपड़े निकालने लगा.
तब मैंने ही उसे कहा- अरे यार, मैं तो तुम्हारी ही हूँ… पर अभी प्यार तो कर लो.. चूत के इतने दीवाने हो गये कि कविता को ही भूल गये?
तब रोहन ने मेरे चेहरे को थाम लिया- हाँ जान, मैं चूत मिलने से खुश जरूर हूँ पर इतना भी नहीं कि अपनी कविता को भूल जाऊं, दुनिया की कोई भी खुशी तुमसे बढ़ कर नहीं हो सकती।
मैंने रोहन की आँखों में आँखें डाली और कहा- इतना प्यार करते हो मुझसे?
तो उसने कहा- शायद इससे भी ज्यादा.. जो मैं तुम्हें कभी दिखा नहीं सकता।
और इन बातों के साथ ही हम एक दूसरे के बचे हुए कपड़े उतारने लगे।
आज एक बार फिर सब कुछ नया सा लग रहा था, मेरी सफेद ब्रा और मेहरुन कलर की पेंटी भी रोहन ने खिसका दी, मेरा दमकता बदन किसी सुंदर तराशी हुई मूर्ति के समान प्रतीत हो रहा था। मैंने रोहन के अंडरवियर और बनियान शरीर से अलग कर दी।
गर्मी का दिन और सेक्स की आग की वजह से मेरे शरीर में पसीने आ रहे थे, जो शबनम की बूँदों की मानिंद चमक रहे थे। मेरे मम्में पहले की तुलना में अब और भारी हो गये थे, जांघों की मोटाई गोरापन और चिकनापन, बढ़ गई थी और नाभि गहराने लगी थी। कूल्हों का उभार, आँखें कटार जैसी, होंठ रसीले… अब ऐसे में रोहन तो क्या, कोई सन्यासी भी होता तो पिंघल जाता।
अभी मैंने अपने नर्म गद्देदार मखमली गुलाबी चूत का जिक्र भी नहीं किया है। पता नहीं रोहन किस सोच में बुत बना खड़ा रहा और मुझे निहारता रहा… उसके मन में भी जरूर कुछ ना कुछ चल रहा होगा, पर उसका वो जाने.. मैं क्या जानूँ!
मैंने तो बस आगे बढ़ कर रोहन का लिंग पकड़ लिया और सामने बैठ कर मुंह में भर लिया, चूंकि हम नये नहीं थे इसलिए इस काम से उसे भी कोई हैरानी नहीं हुई।
पर दूसरे ही पल रोहन ने मुझे खुद से अलग कर दिया, और इस बात से मुझे बहुत हैरानी हुई क्योंकि वो ऐसा कभी नहीं करता था… और आज तो उसका लिंग पहले के मुकाबले ज्यादा तना था ज्यादा बड़ा और मोटा लग रहा था।
मुझे ज्यादा नहीं सोचना पड़ा क्योंकि रोहन ने कहा- आज तुम देखो कि प्यार क्या होता है!
और मेरी बाजुओं को चूमने लगा।
मैं उसके इस आत्मविश्वास की दीवानी होने लगी, और हाँ अब तो हम बहुत कुछ उस नंगी तस्वीरों वाली पुस्तकों से भी सीख चुके हैं। शायद रोहन आज उन्हीं पैतरों को आजमाने के मूड में था। उसने मेरे शरीर से बह रहे पसीने की परवाह किये बिना मुझे चाटना शुरु कर दिया.. पहले हम जब भी मिलते थे उसका फोकस मम्मों और चूत और गांड की छेद पे होता था, पर आज वह कुछ अलग कर रहा था, वह कंधों को, पीठ को, पैर की पिंडलियों को, जांघों को बाजुओं को, जीभ से सहलाये जा रहा था, थोड़ी-थोड़ी देर में रुक कर मेरी जमकर तारीफ करता और हाथों से सहलाने लगता था।
जब बहुत देर तक उसने मेरे तने मम्मों, निप्पल और फूली हुई चूत को छुआ तक नहीं तब मैंने उन्हें खुद से सहलाने, दबाने की कोशिश की पर रोहन ने मेरा हाथ उन जगहों से हटा दिया।
अब मैं समझ गई कि आज रोहन पहले मेरी प्यास बढ़ायेगा और उसके बाद मेरी प्यास बुझायेगा।
मैं तो ये सब सोच कर ही रोमांचित होने लगी, लेकिन चूत बिना छुये भी पानी बहाने लगी, पर रोहन ने अपना उपक्रम जारी रखा, और गजब तो तब हुआ जब उसने मुझे उलटा लेटा दिया और मेरी पीठ पर अपना लंड फिराने लगा।
मेरा रोम-रोम सिहर उठा, जब मुझसे रहा ही नहीं गया तब मैंने सीधे होते हुए, उसक लंड को खींच के अपने मुंह में भर लिया और पागलों की भांति चूसने लगी, मैं उसका चमकदार सुपारा लॉलीपाप की तरह चाटने लगी और अपने ही हाथों मम्मों को मसल कर चूत को भी रगड़ने लगी।
अब रोहन सीधे मेरे सीने पर आकर बैठ गया और मेरे मम्मों को समेटते हुए उसके बीच में लंड रखकर चोदने की कोशिश करने लगा।
लेकिन मैं किशोरी थी, तो मेरे मम्में बड़े होने के बावजूद भी इतने बड़े और थुलथुले नहीं थे कि आपस में आसानी से जुड़ पाते।
खैर उसे अनुभव नहीं था और मेरे लिए भी ये चीज नई थी तो हम दोनों और भी उत्तेजित हो गये।
फिर रोहन फिसलते चूमते चाटते हुए नीचे की ओर बैठ गया और मेरी चूत को छोड़ कर उसने उसके चारों ओर घेरे में अपनी जीभ घुमानी शुरु कर दी।
मैं पागल होकर उसके बाल नोचने लगी और उसका लंड मांगने लगी, मैंने कहा- चाहो तो चूत में डाल दो या मेरे मुंह में दे दो..
पर रोहन ने ये दोनों ही काम नहीं किए.
मैं और बेचैन होकर उसके बाल नोचे जा रही थी पर उसने परवाह किये बिना ही मेरी चूत को शिद्दत से अपने मुख का सुख प्रदान किया। ऐसा बहुत देर तक होने के बाद मैं बिना चुदे भी मदहोशी में बेहोश सी होने लगी।
तभी रोहन उठा और अपने लंड पर कंडोम चढ़ाने लगा, पर मैंने उसे मना करते हुए कहा- रोहन, अब इसकी कोई जरूरत नहीं है, बस तुम अंदर पानी मत छोड़ना..
रोहन ने कहा- तुम एक बार फिर सोच लो, बाद में मुझे दोष मत देना।
मैंने कहा- तुम अब कुछ मत सोचो रोहन, बस अब तुम मेरी इस चूत में लंड घुसा ही दो।
रोहन ने ‘ठीक है…’ कहते हुए.. मेरी टांगों के बीच बैठकर मेरी चूत में अपना लंड सैट किया, और कहने लगा- कविता, तुम्हें शायद दर्द हो सकता है, तुम तैयार हो ना..!
अब मेरे बर्दाश्त से बाहर हो गया, तब मैंने कहा- अरे हाँ कमीने, मैं तो कब से चूत फड़वाने को तैयार हूँ पर तुम्हारी ही फट रही है।
इतना सुनकर रोहन मुस्कुराया और झुक कर मेरे होंठों को चूमते हुए अपना सुपारा मेरी चूत में उतार दिया। मुझे असहनीय दर्द हुआ पर दर्द से भी कई गुना ज्यादा मजा आ रहा था, मैंने अपने नाखून उसकी पीठ में गड़ा दिये और हल्की चीख के साथ उसके अगले हमले का इंतजार करने लगी।
इस समय दूसरी लड़की को बहुत ज्यादा दर्द होता है, पर मैंने अपनी चूत में उंगली और गुलाबजल की बोतल से लंड के लायक पर्याप्त जगह बना ली थी, शायद इसी वजह से मुझे दर्द तो हुआ पर बहुत कम हुआ।
रोहन ने देखा कि मैं उसका सुपारा आसानी से बर्दाश्त कर गई तो उसने अगले ही पल और दबाव बनाते हुए अपना आधा लंड मेरी चूत में उतार दिया, मैं अभी भी दर्द और मजे के मिश्रित स्वर में कराह उठी।
रोहन ने एक बार फिर मुझे सहज पाया और इस बार उसने पूरी ताकत से एक ही झटके में अपना लंड मेरे जड़ तक बिठा दिया।
अब मैं दर्द और मजे के मिश्रण में नहीं चीखी.. बल्कि सिर्फ और सिर्फ दर्द के मारे मिमिया उठी। किताब की तस्वीरों के सामने छोटा लगने वाला रोहन के लंड ने मेरी चूत को लहूलुहान कर दिया था।
मैं दर्द के मारे छटपटाने सी लगी।
पर रोहन ने लंड नहीं निकाला और वैसे ही रुक कर मेरे सामान्य होने का इंतजार करने लगा।
मैं तुरंत सामान्य ना हो सकी, मेरे मोती जैसे आंसू मेरे लाल गुलाबी गालों पर ढलक गये, जिसे रोहन ने पौंछते हुए कहा- सॉरी जान.. पर हर लड़की को यह दर्द सहना ही पड़ता है, यह असीम आनन्द को प्राप्त करने के मार्ग का फाटक है। आज मैंने उस दरवाजे को तोड़ कर तुम्हारे असीम आनन्द का मार्ग हमेशा के लिए खोल दिया है।
वैसे तो मैं दर्द से परेशान थी, पर उसके इस प्रवचन से मुझे हंसी आई और मैंने महसूस किया कि मेरा दर्द भी पहले से कम हो गया है। मैं शरमा के मुस्कुरा उठी और रोहन से नजरें हटा कर बोली- तुम सॉरी मत बोलो.. मुझे बहुत अच्छा लगा..
पर मैंने ऐसा कह कर शायद गलती कर दी थी, मेरा ऐसा कहते ही रोहन ने अपने हाथों से मेरा चेहरा घुमाया और मेरी आँखों में आँखें गड़ाये रखा और अपना लिंग आखरी छोर तक खींच के फिर तेजी के साथ मेरी चूत के जड़ में बिठा दिया।
मैं दर्द को दांत पीस कर सह गई पर रोहन की आँखों से आँखें मिलाये रखा।
हम अपने प्यार की शुरुआत की ही तरह आज फिर एक दूसरे से प्रतियोगिता करने में उतर आये थे, हम दोनों में से कोई भी नजर नहीं हटा रहा था, और धक्कों की गति बढ़ती ही जा रही थी, साथ ही बढ़ रहा था हमारा आनन्द, हमारी उत्तेजना हमारा प्यार..
हम आहह.. उहहह ..ओहहह ईईईससस्स् जैसी आवाजें निकालते रहे.. या यूं कहें कि हमारे मुख से स्वत: ऐसे शब्द झरते रहे।
हम एक दूसरे का साथ देते हुए ‘आई लव यू…’ कहते हुए.. अपनी लय मिला कर चुदाई करते रहे.
पर रोहन ज्यादा देर टिक नहीं पाया।
टिकता भी कैसे नया खून.. पहली चुदाई.. उसमें भी अठारह उन्नीस मिनट टिक गया, वही बहुत है।
उसने एक झटके में अपना लंड चूत से बाहर खींचा और मेरे पेट में अपना पतला वीर्य, बहुत समय तक झटके के साथ उड़ेलता रहा। और मैं तो चूमा चाटी से चुदाई तक तीन बार स्खलित हो ही चुकी थी।
फिर हमने एक दूसरे को साफ किया और कुछ देर ऐसे ही लेट गये। हम दोनों के ही मन में बहुत ज्यादा सुकून था। हम प्रेरणा के घर के गाड़ी रूम मे चोरी छुपे मिल रहे थे, हमें जल्दी वहाँ से निकलना भी था इसलिए हम लोगों ने जल्दी से कपड़े पहने और थोड़ी देर और चूमा चाटी करने के बाद बाहर का माहौल भांपते हुए वहाँ से निकल कर अपने-अपने घरों का रुख किया।
प्रेरणा के घर वालों के आने तक हम लोगों ने लगभग पांच दिन जम कर चुदाई की और सच में असली चुदाई के बाद मैं और भी निखरने लगी।
कहानी जारी रहेगी..
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