एक खेल ऐसा भी-4
Ek Khel Aisa Bhi-4
‘प्लीज़ मत डालो.. बहुत दर्द होता है..’
‘मेरी रानी.. थोड़ा तो सहना पड़ेगा.. थोड़ी देर..आखिर तुम अभी पहली बार ले रही हो पहली बार तो दर्द होता ही है..उसके बाद देखना.. कैसा सुख लूटोगी तुम…’
थोड़ी देर और कोशिश की मैंने, पर कच्ची कली की फुलवारी में घुसना आसान ना था।
मैं जैसे ही धक्का लगाता, वो ऊपर को सरक जाती थी।
वैसे तो वो भी चुदने के लिए बेताब थी, पर पहल तो उसके पुरुष को ही करनी थी।
उसने कातरभाव से मुझे देखा, जैसे कह रही हो.. कुछ भी करके मेरे साथ सम्भोग कर डालो..
तब मैंने एक नए सिरे से प्रयत्न किया।
मैंने उसे उठा कर खाने की मेज ले आया और उसकी कमर से ऊपर का भाग मेज पर लिटा दिया, जिससे उसकी टाँगें मेज के किनारे से लटक गईं और पैर जमीन पर टिक गए।
इस अवस्था में उसके विशाल चूतड़ मेज की किनारी पर टिक गए।
मेज दीवार से टिकी थी, इस तरह अगर अब मैं उसके पीछे से अपना लंड उसके चूतड़ों के बीच से घुसाता तो वो लंड के धक्के से आगे नहीं बढ़ती और इस तरह लंड अन्दर घुस ही जाता।
वो भी समझ गई कि मैं क्या करना चाह रहा हूँ और वो तैयार हो गई।
अपने हाथों से उसने मेज पकड़ ली, चूत के होंठ फड़क-फड़क कर बता रहे थे कि वो किसी भी हमले के लिए तैयार है, लंड भी तना हुआ था..
मैं आगे बढ़ा, लंड का सिर गुप्तांग के दरवाजे पर रखा। मैंने हाथ से लंड की थोड़ी मालिश की.. लंड प्री-कम से सराबोर था एकदम लाल.. थोड़ा सा अन्दर धकेलते हुए मैंने लंड को फंसा लिया।
अब रिंकी के चूतड़ पकड़ते हुए.. मैंने धक्का मारना शुरू किया… लंड के धक्के से टाँगें और खुलने लगीं। दर्द और आनन्द अब उसके कंठ से चीख और सीत्कारों की आवाज़ में निकलने लगा।
जैसे-जैसे मुझे लगने लगा कि घुसना मुश्किल है वैसे-वैसे मैं चूतड़ और दबाते हुए धक्का मारने में अपनी ताक़त बढ़ाने लगा।
वो जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी।
लंड का सिर ही सबसे मोटा होता है… अब लगभग 5 मिनट के कोशिश के बाद वो घुस चुका था।
रिंकी की आँखों में आँसू थे..पर उसने बताया कि बड़ा मजा आ रहा है और अब मैं लंड को कतई बाहर ना निकालूँ।
अब मैंने फिर जोर देना शुरू किया और लंड आहिस्ता-आहिस्ता घुसने लगा, आधे से ज्यादा घुस चुका था।
अचानक मुझे लगा कि अन्दर चूत में कोई दीवार सी है जो अब लंड को अन्दर घुसने से रोक रही है।
‘ओहह्ह…कौमार्यझिल्ली…’ मैंने मन में कहा।
‘रिंकी थोड़ा सा यह झटका सह लेना बस.. मैं अब तुम्हें फूल बनाने जा रहा हूँ… आज के बाद तुम कुमारी ना रहोगी..’
‘प्लीज़ कर दो.. फाड़ दो उसे…अपने लंड को आगे बढ़ाओ… रोको मत… मैं सह लूँगी..’
मैंने लंड को थोड़ा सा बाहर निकलते हुए उसके चूतड़ कस कर पकड़ते हुए.. एक पूरी ताक़त से ठाप मारी।
‘उउईई…म्म्म्माआ आ ह्हह.. येई. ह्हहह्ह ह.. अम्मा म्मररर ग्गईई.. इस लंड ने मुझे म्मअररर डाला…!’
इस चीख में भी वो मधुर सी आवाज़ सुनाई दी जो कि कौमार्य के फटने की आवाज़ थी।
अब मैंने लंड को पूरा घुसा लिया था और मेरी जंघाएं उसके चूतड़ से सट गई थीं, हमारी टाँगें गुंथ गईं।
अब मैं भी उसकी पीठ पर लेट गया और उसके हाथ पकड़ लिए।
‘धन्यवाद डार्लिंग.. मेरी जान अपना कौमार्य मुझे देने के लिए..’
‘बस अब मुझे निचोड़ डालो.. मेरे कामदेव..’
मैंने कुछ कहा नहीं.. पर होंठों को उसके होंठों से चूसने लगा… मेरे हाथों ने अन्दर घुस कर उसकी छाती मसलनी शुरू कर दी.. नीचे मैंने लंड को आहिस्ता-आहिस्ता बाहर निकाला और फिर अन्दर डाला.. थोड़ी सी लंबाई से और उसका पूरा बदन थरथरा उठा।
रिंकी अपने जीवन के प्रथम स्खलन का सुख भोग रही थी.. मदहोश कर देने वाली आवाज़ों के साथ.. उसने कई झटके लिए.. शायद इतना रस निकला था कि हमारी जंघाएं भीग गई थीं.. पर किसे परवाह थी।
‘क्यों रिंकी मजा आया?’
‘उफ्फ्फ़ बस आज के बाद तो मैं रोज ही चुदवाने आऊँगी.. आपसे.. आप चोदोगे ना?’
‘हाँ.. पर अपनी सारी सहेलियों को भी तुम्हें इस लंड से खुलवाना होगा।’
‘हाँ.. मैं उन्हें भी आपकी दुल्हन बनाऊँगी.. पर मुझे तो आप रोज चोदोगे ना?’
‘हाँ.. मेरी जान।’
मेरा लंड अब आराम से अन्दर-बाहर हो रहा था।
हालांकि रिंकी की चूत बहुत तंग थी.. पर अब मैथुन करने में आसान हो गया था।
मैंने अब गति देनी शुरू की और धक्के भी लंबे कर दिए, मैं मदमस्त सांड हो उठा।
अचानक मैंने उसे उठा लिया मेरा पूरा लंड उसकी चूत में ही घुसा था।
इसी अवस्था में मैंने उसे पलट कर लिटा दिया। अब उसके मम्मे मेरे चूसने के लिए मेरे सम्मुख थे, फिर उसको पेलना शुरू करते हुए मैंने अब अपने होंठ उसके मम्मों को पीने के काम पर लगा दिए।
उसने अपनी जंघाएं मेरी कमर पर बाँध लीं और अपने चूतड़ उठा-उठा कर चुदवाने लगी।
कैसा आश्चर्य था एक कमसिन लड़की.. पहली बार में ही चुदवाने में इतनी कुशल हो गई थी।
मेरे अंडकोष के बार-बार ठोकने से उसकी चूत का निचला हिस्सा लाल हो चला था।
जब-जब मेरा लंड पूरा अन्दर घुसता था और मेरी जांघ उसकी जांघों से टकराती थी.. ‘थप..थप’ की बड़ी जोर-जोर की आवाज़ें आती थीं।
इस बीच रिंकी का बदन और दो बार झटके खा चुका था।
अब मैंने लंड अन्दर ही रखते हुए उसे फिर उठा कर बिस्तर पर पटक दिया।
पूरे शरीर का भार उसके नाजुक बदन पर डाल कर मैंने उसे अब रौंदना शुरू किया।
लंड प्रचंड गति ले चुका था और पूरे 8-9 इंच लम्बा झटका ले रहा था।
एक-दो बार तो लंड पूरा बाहर आकर फिर घुस गया.. वो उछल-उछल पड़ती थी।
मेरे होंठ बराबर उसके मम्मे चूसने के काम में जुटे थे।
‘बस अब सींच दो मुझे और सह नहीं पाऊँगी.. आप मार डालोगे मुझे.. और जोर से चोदो अपने इस मूसल जैसे लंड से.. मेरी बुर को रौंद डालो.. इसने आपको बहुत सताया है.. इसे उसकी सजा दो.. संभव हो तो चीर-फाड़ दो इसे.. मेरे राजा…’
मैं सांड की तरह हुंकार रहा था। मैंने उसके नितम्बों को बुरी तरह मसल दिया था। उसके गुप्तांग के होंठ इस आक्रमण से लाल हो उठे थे.. जहाँ लंड और चूत का मिलन हो रहा था उस चुदाई स्थल पर खून और प्री-कम और रिंकी के रज के मिले-जुले दृव्य की वजह से ‘फच्च-फच्च’ की सी आवाज़ आ रही थी।
फिर मैंने लंड घुसाए हुए ही उसे कुतिया के जैसी अवस्था में ले लिया। उसके खूबसूरत चूतड़ों के बीच से निकलता मेरा मोटा सख्त लोहे जैसा सरिया बाहर आता.. फिर अन्दर घुस जाता।
वो चीख मारती… मैंने उसे जकड़ रखा था।
अचानक मुझे एक नई चीज़ सूझी… मैंने एक हाथ से उसके बदन को फिर उठा लिया और उसे और आईने के सामने ले गया। मेरा लंड अभी भी उसकी चूत में घुसा हुआ था।
‘यह क्या कर रहे हो मेरे राजा?’
‘मेरी रानी अब मैं तुझे चोदते हुए अपने आप को देखूँगा और तू भी देखेगी अपनी चुदती हुई चूत?’
‘उउईम्महन मैं देखूँगी तो मेरा बदन तड़प कर टूट जाएगा.. आप आज मेरी जान ले लोगे क्या?’
मैंने एक कुर्सी आईने के पास खींच ली। कुर्सी की पीठ पकड़ कर रिंकी अपने बदन को कमर से मोड़ कर 90 डिग्री का कोण बनाते हुए खड़ी हो गई।
उसकी चूत को फाड़ता हुआ मेरा लंड उसमें घुसा हुआ था।
अब सामने शीशे में चुदाई का सीन था।
मैंने खुद को थोड़ा सैट किया ताकि घुसता-निकलता प्री-कम में डूबा चमचमाता हुआ लंड भी दिखे।
रिंकी जैसी कमसिन और मुहल्ले की सबसे सुन्दर लौंडिया इस समय मेरे नंगे बदन के साथ नंगी होकर गुंथी हुई है और चुदवा रही है, यह दृश्य शीशे में देख कर मेरा लंड कामुकता की नई ऊँचाइयों को छूने लगा।
मैंने फिर पीछे से चोदना शुरू किया।
हम दोनों ही शीशे में देख रहे थे.. उस मोटे मुस्टंडे लंड के साथ.. मैं छोटे और लंबे-लंबे धक्कों का मजा लेने लगा।
जब लंड चूत से बाहर आता तो उस तंग चूत की अंदरूनी गुलाबी दीवार भी लंड के साथ चिपक कर रगड़ खाती हुई बाहर खिंच जाती और जब लंड अन्दर घुसता चला जाता तब..चूत के बाहरी होंठ भी अन्दर ठंस जाते।
इसी दशा में मैंने लगभग 30 धक्के लगाए। वो बीच में दो बार और तड़प उठी थी।
अब सहना मुश्किल हो रहा था.. मैंने शीशे में देखते-देखते ही रफ्तार बढ़ाना शुरू किया।
तेज गति के साथ उसके बड़े-बड़े मम्मे भी आगे-पीछे हिलते जा रहे थे और मेरी चुदाई की गति के साथ ‘थप.. थप थप..थप..’ का शोर फिर काफी तेज हो गया।
‘उउउहहह्ह.. आअनन्न.. चोदो मुझे और जोर से… आआहह्ह… फक मी उउहहहह्ह.. मा… म्ममार ग्गईई… प्लीज़ प्लीज़ और जोर से..’ रिंकी की चीखें बढ़ती ही जा रही थीं।
अचानक मुझे लगा कि लंड फूलने लगा है और इस वजह से चूत की दीवारों से उसका घर्षण बढ़ गया है..मेरी नस-नस तनतनाने लगीं और मुझे लगा कि सारे शरीर से निचुड़ कर कुछ है.. जो लंड की तरफ जा रहा है।
‘रिंकी मुझे होने वाला है..’
‘प्लीज़ मेरी चूत को भर दो.. मेरे गर्भ को सींच दो…’
उसने कुर्सी को और जोर से जकड़ लिया।
अब रोकना असंभव था.. लंड पूरी रफ्तार से चुदाई कर रहा था और उसके लिए रुकना संभव नहीं था।
‘मुझे इस चुदाई का पूरा प्रसाद चाहिए.. अपने कामदेव से..’
मेरे हाथों ने नीचे से उसके मम्मे जकड़ लिए- तो फिर लो.. मेरी रानी, मेरी जान… स्सा आअररा.. ललीएल्ल्ललो… तुम्हारी चूत की पूरी गहराई भर द्ड्दूओनग्ग्गाआअ. .माआइंन्ण…’
मेरे लंड ने एक अंतिम प्रहार किया और उसी के साथ वीर्य उगलने की प्रक्रिया शुरू की… जैसे कोई ज्वालामुखी फूट पड़ा हो।
लंड सिकुड़ा फिर फूला.. वीर्य की एक मोटी सी धार निकली और रिंकी की बुर को भरती चली गई।
फिर एक और विस्फोट और एक और धार.. चूत की सारी गहराइयों को भिगोती हुई अन्दर चली गई।
इस तरह मेरे लंड ने कोई 8-10 बार आग उगली और फिर मैं उसके बदन पर ढेर हो गया।
‘तुम मेरे देवता हो..’ उसे मुझ पर बड़ा प्यार आ रहा था।
मैंने भी उसे प्यार से चूम लिया- नहीं, मैं तुम्हारा प्रेमी हूँ और तुम मेरी जान हो..
करीब 2-3 घंटे के बाद नींद खुली.. तब अहसास हुआ कि उस भरपूर चुदाई ने नींद का आगोश ला दिया था।
मुझे अपने विचारों से अवगत कराएँ।
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