चूत चुदाई का कौतूहल
Chut Chudai ka Kautuhal
परेश जोशी
अन्तर्वासना के सभी पाठकों एवं गुरूजी को मेरा नमस्कार।
मैं गुड्डू इन्दौर से हूँ, मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ, मैंने अन्तर्वासना की सारी कहानियाँ पढ़ी हैं।
आज मैं आपको अपनी कहानी सुनाने जा रहा हूँ। यह कहानी तब की है जब मैं 18 साल का था।
मैं चुदाई के बारे में कुछ नहीं जानता था।
मेरे घर में मैं, मेरी मम्मी, पापा और एक छोटी बहन थी जो मुझसे दो साल छोटी थी।
मेरे पड़ोस में एक आंटी रहती थीं जिनकी उम्र करीब 29 साल की थी। आंटी एकदम मल्लिका शेरावत की तरह दिखती थीं। जब वो चलती थीं तो उनके चूचे ऐसे हिलते थे कि देखने वाले का लण्ड खड़ा हो जाए।
उनके घर में वो और उनके पति दो ही लोग थे, उनकी शादी को 5 साल हो गए थे और उनका कोई बच्चा नहीं था।
आंटी के पति सुबह 9:30 पर ऑफिस चले जाते थे और रात को 8 बजे आते थे।
मैं आंटी के यहाँ ट्यूशन पढ़ने जाता था।
एक दिन मैं आंटी के घर गया और मैंने दरवाजा खटखटाया।
काफी देर तक आंटी ने दरवाजा नहीं खोला।
मैंने दरवाजे को धक्का दिया तो वह खुल गया।
मैं अन्दर गया तो वहाँ कोई नहीं था। मैंने सारे घर में देखा लेकिन मुझे कोई नहीं दिखा।
फिर मैं आंटी के कमरे की तरफ गया तो मुझे कुछ आवाजें आईं। मैंने कमरे के दरवाजे की आड़ में से देखा तो आंटी का पलंग दिखा जिस पर आंटी लेटी थीं और अपनी चूत में उंगली डाल कर अन्दर-बाहर कर रही थी।
आंटी के मुँह से ‘आह-आह’ की आवाजें आ रही थी।
मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया कि आंटी यह क्या कर रही थीं।
मैं डर कर बाहर आ गया और थोड़ी देर बाहर ही खड़ा रहा।
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और आंटी बाहर आईं।
मुझे देख कर वह बोलीं- अरे गुड्डू.. बाहर क्यों खड़ा है..? अन्दर आ ना।
मैं अन्दर गया। मुझे आंटी ने बैठाया और रसोई में चली गईं। फिर मैंने अपनी किताबें खोलीं और पढ़ने लगा।
रसोई से बाहर आकर आंटी मेरे पास बैठ गईं और मुझे पढ़ाने लगीं, पर मेरा ध्यान पढ़ने में नहीं लग रहा था क्योंकि मेरी आँखों के सामने तो आंटी चूत में ऊँगली डाल कर अन्दर-बाहर करती हुई नजर आ रही थीं।
यह मेरी समझ से बाहर था कि आखिर आंटी कर क्या रही थीं।
यह कहानी आप अन्तर्वासना पर पढ़ रहे हैं।
थोड़ी देर बाद आंटी मुझसे बोलीं- अरे गुड्डू तेरा ध्यान कहाँ है?
तो मैं होश में आया, मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया- आंटी आप कमरे में क्या कर रही थीं?
मेरा सवाल सुनते ही आंटी सन्न रह गईं और उनका मुँह खुला का खुला रह गया, वो पूछने लगीं- कब.. क्या कर रही थी?
मैंने कहा- अभी थोड़ी देर पहले।
हालांकि मैं अन्दर ही अन्दर घबरा रहा था कि अगर आंटी गुस्सा हो गईं और मम्मी को बता दिया तो मैं तो गया काम से।
आंटी बोलीं- बता क्या देखा तूने?
मैंने कहा- आंटी, आप अपनी ऊँगली साड़ी के अन्दर डालकर क्या कर रही थीं?
आंटी बोलीं- अरे मुझे खुजली हो रही थी तो मैं खुजा रही थी।
मैंने कहा- आप आवाजें क्यों निकाल रही थीं?
तो आंटी बोलीं- खुजाने में मुझे बड़ा मजा आता है। क्या तुम जब नीचे खुजाते हो तो तुम्हें मजा नहीं आता?
तो मैंने कहा- पता नहीं।
आंटी की आँखों में मुझे कुछ शरारत दिखाई दे रही थी।
इस पर आंटी बोलीं- चल मैं तुझे खुजलाती हूँ। तू बताना कि तुझे मजा आया कि नहीं?
मैं बोला- नहीं.. मुझे नहीं करना गंदी बात।
आंटी बोलीं- अरे यह गंदी बात नहीं होती, ये मजे तो सारे लोग लेते हैं।
मैंने कहा- आप झूठ बोलती हैं।
तो वो बोलीं- सच.. सारे लोग करते हैं। तेरे मम्मी-पापा भी करते हैं।
इस पर मैं सकपका गया, मुझे लग रहा था कि आंटी झूठ बोल रही हैं।
मैंने अपनी सारी किताबें बैग में रखी और आंटी से बोला- मैं जा रहा हूँ। कल आऊँगा पढ़ने।
यह कह कर मैं वहाँ से चला आया। रात को खाना खाकर मैं थोड़ी देर टीवी देखता रहा और फिर कमरे में आ गया।
पर मेरी आँखों में नींद नहीं थी, मुझे तो आंटी ऊँगली करती दिखाई दे रही थीं, मुझे आंटी की मजे वाली बात याद आ गई।
मैंने सोचा आज मैं देखता हूँ कि मम्मी-पापा मजे करते हैं या नहीं?
मम्मी-पापा का कमरा मेरे कमरे से सटा हुआ था। दोनों कमरों के बीच एक दरवाजा था जो हमेशा बंद ही रहता था। मैंने गौर से उस दरवाजे को देखा तो मुझे उसमें एक दरार दिखाई दी। उस दरार में से मैंने झांका तो मुझे मम्मी-पापा का पलंग साफ दिखाई दे रहा था।
मैंने रात की प्लानिंग करना शुरू कर दी।
रात को मैं दरवाजे पर कान लगा कर बैठ गया। कुछ देर बाद मुझे सिसकारियों की आवाज आने लगीं।
मैंने तुरंत दरवाजे में से झांका तो हैरान रह गया।
पापा-मम्मी की साड़ी ऊॅची करके मम्मी की चूत चाट रहे थे और मम्मी सिसकारियां ले रही थीं।
फिर मम्मी ने पापा को अपने ऊपर खींच लिया और पापा ने अपना लण्ड मम्मी की चूत में डाल दिया।
मैं देखकर हैरान था कि पापा अपना लण्ड मम्मी की चूत में क्यों डाल रहे हैं?
अब पापा अपना लण्ड मम्मी की चूत में अन्दर-बाहर कर रहे थे और मम्मी की सिसकारियां बढ़ती जा रही थीं।
कुछ ही सेकण्ड में पापा के झटके तेज होने लगे और वो गुर्राते हुए मम्मी के ऊपर निढाल होकर गिर पड़े और मम्मी ने भी जोर से ‘आह-आह’ करके उन्हें अपनी बांहों में कसकर पकड़ लिया।
कुछ देर वो ऐसे ही लेटे रहे और फिर पापा, मम्मी की बगल में चिपक कर सो गए।
मेरी तो नींद ही उड़ गई। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा था?
उस रात जैसे-तैसे मैं सो पाया।
अगले दिन मैं आंटी के यहाँ पढ़ने गया पर मेरा मन पढ़ने में नहीं था।
आंटी बोलीं- क्या हुआ?
तो मैंने उन्हें सारी बात बताई।
वो बोलीं- तुम्हारे मम्मी-पापा मजे वाला खेल खेल रहे थे।
मैं बोला- ऐसे कोई मजे का खेल होता है क्या?
आंटी बोलीं- तुझे ऐसे समझ नहीं आएगा जब तक कि तू खुद नहीं खेलेगा। फिर तुझे समझ आएगा कि इस खेल में कितना मजा आता है।
आंटी मेरा चेहरा देखने लगीं। फिर धीरे से बोलीं- तुझे भी मजे का खेल खेलना है?
मैं सोचने लगा तो आंटी बोलीं- मैं किसी को नहीं बताऊँगी। यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच ही रहेगी।
मैंने सोचा जब पापा-मम्मी करते हैं, तो एक बार देखना चाहिए कि इसमें लगता कैसा है?
आंटी ने धीरे से अपना हाथ मेरे लण्ड पर रख दिया और उसे मसलने लगीं।
मेरे बदन में जैसे करंट दौड़ने लगा। मैंने आंटी का हाथ पकड़ लिया लेकिन आंटी अपना हाथ तेजी से चलाने लगीं।
मुझे तो जैसे नशा चढ़ने लगा और मैंने हथियार डाल दिए।
आंटी ने मेरी चड्डी की चेन खोल कर मेरा लण्ड बाहर निकाल लिया और उसे चूसने लगीं।
मैं आंटी को रोकना चाहता था लेकिन आंटी ने ये काम इतनी तेजी से किया कि मैं सभंल ही नहीं पाया।
आंटी जोर-जोर से मेरा लण्ड चूसे जा रही थीं और मैं नशे में डूबता जा रहा था।
कुछ देर बाद मेरे शरीर में जोरों का करंट दौड़ा जैसे कि मेरे शरीर से कुछ बाहर निकलना चाहता हो।
मैं झटके लेने लगा और निढाल होकर गिर पड़ा। कुछ देर तक मुझे होश ही नहीं था कि मैं कहाँ हूँ?
जैसे ही मुझे होश आया, आंटी बोलीं- मजा आया या नहीं?
मैं बोला- हाँ.. मजा तो आया।
आंटी बोलीं- असली मजा तो अभी बाकी है.. लेना है क्या?
मैंने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया।
आंटी बोलीं- चल कमरे में.. फिर देती हूँ असली मजा।
हम दोनों कमरे में गए। आंटी ने ब्रा-पैन्टी को छोड़कर अपने सारे कपड़े उतार दिए और मेरे भी उतार दिए।
हम दोनों नंगे थे। अब आंटी ने मुझे बिस्तर पर गिरा दिया और मेरे शरीर पर चूमना चालू कर दिया।
मुझे फिर करंट लगने लगा। आंटी ने पूरे शरीर पर चूमते-चूमते मेरा लण्ड पकड़ लिया और हिलाने लगीं।
अब मेरा लण्ड कड़क होने लगा। आंटी ने अपनी पैन्टी उतार दी और मेरे ऊपर बैठ कर चूत के दरवाजे पर मेरा लण्ड रखा और धीरे-धीरे उस पर बैठने लगीं।
मेरा लण्ड सरसराता हुआ उनकी चूत में घुसता जा रहा था। अचानक मेरे लण्ड में तेज दर्द हुआ।
मैं आंटी को हटाना चाहता था लेकिन आंटी ने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए और ऊपर-नीचे होने लगीं।
मैं दर्द से चिल्लाने लगा, लेकिन आंटी ने मेरे होंठ अपने होंठ से बन्द कर दिए।
अब मेरी हालत कसाई की पकड़ में बकरे जैसी हो गई।
आंटी ने मेरे ऊपर उछलना चालू रखा और अपनी रफ्तार बढ़ाने लगीं।
कुछ ही पलों में मुझे मजा आने लगा। आंटी सिसकारियाँ लेती हुई धक्के तेज करने लगीं।
थोड़ी ही देर में मेरा शरीर फिर अकड़ने लगा।
आंटी तेज सिसकारियां लेते हुए तेज धक्के लगाये जा रही थी।
फिर झटके ले-ले कर ‘आह..आह’ करने लगीं और मेरे अन्दर का लावा भी फूट गया।
दोनों झटके लेकर शांत हो गए और आधे घण्टे के बाद हमको होश आया तो हम दोनों नंगे चिपक कर सो रहे थे।
आंटी ने मुझसे पूछा- बोल, कैसा लगा?
मैंने कहा- बहुत मजा आया।
इसके बाद मैंने आंटी के साथ अनगिनत बार चुदाई किया। इसके आगे की कहानियाँ बाद में लिखूँगा।
आपका गुड्डू
What did you think of this story??
Comments