मज़हबी लड़की निकली सेक्स की प्यासी- 6
(Xxx Group Sex Kahani)
Xxx ग्रुप सेक्स कहानी में पढ़ें कि मैं अपने दो दोस्तों के साथ एक चुदाई की तलबगार लड़की की चूत गांड मार रहा था, साथ में मुख चोदन भी चल रहा था. आप भी मजा लें.
मेरी Xxx ग्रुप सेक्स कहानी के पिछले भाग
मज़हबी लड़की निकली सेक्स की प्यासी- 5
में आपने पढ़ा कि
>हमारी तरह वह भी हमारे बीच पसर गयी और तृप्ति पूर्ण ढंग से हंसने लगी। मैं उसके पास था तो उसकी छातियां सहलाने लगा।
“मजा आया?” मैंने मुस्कराते हुए पूछा।
“बहुत ज्यादा … उम्मीद से कहीं ज्यादा!” वह आंखें चमकाती हुई बोली।<
अब आगे की Xxx ग्रुप सेक्स कहानी:
थोड़ी देर हम यूँ ही पड़े अगले दौर के लिये ऊर्जा बनाते रहे।
"चलो साफ हो लेते हैं ... गंवाने के लिये वक्त कम है अपने पास।" शिवम ने कहा।
"चलो।" मैंने उठते हुए कहा।
हम साथ ही खड़े हुए थे और साफ होने के लिये अलग-अलग बाथरूम जाने की भी जरूरत नहीं थी। हम एक साथ ही बाथरूम पहुंचे और शावर चला कर नंगे ही नहाने लग गये।
साथ ही हमने साबुन से अपने-अपने हथियार भी कायदे से साफ कर लिये.
जबकि हमारे मुकाबले हिना को ज्यादा सफाई करनी पड़ी। उसे कमोड पर बैठ कर पीछे छेद में घुसा वीर्य भी जोर लगा कर निकालना पड़ा और अंदर उंगली दे कर योनि को भी अच्छे से साफ करना पड़ा।
फिर उसने साबुन के इस्तेमाल से दोनों छेदों को अच्छे से साफ कर लिया और सब साफ हो चुके तो वहीं चिपटा चिपटी करने लगे।
अब हम अलग-अलग नहीं उससे लिपट रहे थे बल्कि तीनों साथ ही उससे लिपट रहे थे, उसे रगड़ रहे थे। कोई उसके होंठ चूसने लगता तो कोई दोनों चूचियों को पीने लगता और कोई नीचे झुक कर उसकी योनि को मुंह में भर लेता। गीली उंगलियां अब भी उसके पिछले छेद में उतारी जा रही थीं।
आधे घंटे तक हम यूँ ही बाथरूम में खेलते रहे फिर तौलिये से बदन पौंछते बाहर निकले।
वापस उसी बेड पर पहुंच कर फिर तीनों उसे रगड़ने लगे।
"चलो अब तुम हमारे सामान टाईट करो, फिर तुम्हारे छेद को हम ढीला करते हैं।" रोहित ने कहा।
हम तीनों उसके चेहरे के पास अपने-अपने हथियार लटकाये खड़े हो गये और बारी-बारी तीनों के लिंग चूसने लगी। एक का लिंग मुंह में ले कर चूसते हुए टाईट करती तो बाकी दोनों के लिंग अपने दोनों हाथों में ले कर सहलाने लगती।
थोड़ी देर में तीनों सामान एकदम लकड़ी हो गये।
तत्पश्चात, मैं नीचे लेट गया और उसे मेरे मुंह पर इस तरह थोड़ी ऊंचाई बना कर बैठने को कहा कि मैं उसके छेदों पर जीभ चला सकूं।
वह उसी पोजीशन में मेरे मुंह पर आ गयी और मैं उसकी जांघों में हाथ फंसाते उसकी योनि मुंह में भर कर चूसने लगा, उसके आगे पीछे के छेदों को जीभ से खोदने लगा.
उत्तेजित होकर वह 'आह-आह' करने लगी जबकि अब शिवम नीचे हो कर उसके दूधों पर मुंह मार रहा था और हिना उसके सर को सहला रही थी. रोहित अभी वैसे ही खड़ा था जो झुक कर कहीं उसके होंठों को चूसता तो कहीं अपना लिंग उसके मुंह में दे कर उसका मुंह चोदने लगता।
थोड़ी देर बाद हमने उसे गिरा लिया लेकिन जगह बदल बदल कर हरकतें वही होती रहीं। उसका मुंह भी चूमा-चूसा और चोदा जाता रहा, उसके दोनों दूध भी मसले और चुभलाये जाते रहे और उसके दोनों छेद भी चाटे, मसले और खोदे जाते रहे।
"अब घुसेड़ो ... बहुत गर्म हो गयी है।" थोड़ी देर बाद वह बेचैनी से बोली।
"ओके ... लेकिन पहले तुम्हारे पिछले छेद को ढीला कर लेते हैं, तब असली मजा ले पाओगी। यकीन करो, पता नहीं तुम्हें आगे जिंदगी में यह सब सुख मिले न मिले लेकिन आज का दिन तुम अपने बुढ़ापे तक नहीं भूलोगी।"
"करो ... जैसे चाहे करो।" वह जोश में थरथराते हुए बोली।
"तुम्हारे दोनों छेद अच्छी तरह गीले और चिकना चुके हैं, अब तुम खुद से हमारे सामान गीले कर के अंदर घुसाओ ताकि अपने हिसाब से एडजस्ट कर सको। डरना मत ... थोड़ी दर्द होगी लेकिन दो चार बार अंदर बाहर करने पर छेद मतलब भर ढीला हो जायेगा।"
"तेल नहीं है ... थोड़ी चिकनाई और बढ़ जायेगी।" वह कुछ हिचकते हुए बोली।
"अरे छोड़ो ... ऐसे ही करो। दोनों छेद बह रहे हैं तुम्हारे ... जरूरत ही नहीं एक्सट्रा चिकनाई की।"
कहते हुए मैं लेट गया और उसे अपने लिंग पर बैठने का इशारा किया।
उसने मुंह में लार बना कर पूरे लिंग को गीला कर दिया और फिर खुद उस के ऊपर आ गयी। मैंने अपनी उंगलियों से पकड़ कर उसे सीधा कर दिया और वह निशाना लगा कर उस पर बैठने लगी। पहली दो कोशिशें नाकाम रहीं और लिंग फिसल कर पीछे के बजाय आगे ही घुस गया।
लेकिन तीसरी कोशिश में लिंग सही जगह फंस गया और उसके चेहरे पर फिर हल्के दर्द के भाव उभरे लेकिन उसने बर्दाश्त करते हुए उसे अंदर लेना शुरू किया और पूरा अंदर ले लिया।
उसकी मदद के लिये मैं अंगूठे से उसके भगोष्ठ और भगांकुर को सहलाने लगा।
कुछ पल वह बैठी रही और जब छेद एडजस्ट हो गया तब ऊपर होने लगी और लिंग को बाहर निकाल दिया। दो सेकेंड रुक फिर खुद को सटीक निशाना लगाते हुए नीचे दबाया और इस बार लिंग थोड़ी आसानी से अंदर हो गया।
उसने एक के बाद एक कई बार इस प्रक्रिया को दोहराया और फिर जैसे उसके छेद में इतनी जगह बन गयी कि मेरा लिंग आराम से अंदर बाहर होने लगा।
"हो गया ... अब शिवम का लो।" मैंने उसे अपने ऊपर से हटाते हुए कहा।
वह शिवम के सामान पर झुक गयी और उसे कुछ सेकेंड में अपने थूक और लार से गीला और चिकना कर दिया। फिर उसके ऊपर ठीक उसी तरह बैठी ... वहां तो फिसल कर आगे के छेद में घुसने की नौबत नहीं आई लेकिन शिवम का साईज मेरे मुकाबले हैवी था तो वह फंस गया और जोर लगाने पर एकदम टाईट अंदर घुसा।
उसके चेहरे पर फिर दर्द दिखने लगा तो मैं पास हो कर उसके एक निपल को होंठों में ले कर चुभलाते हुए एक हाथ से उसकी योनि मसलने लगा।
वह कुछ क्षण के लिये थम गयी थी कि छेद शिवम के लिंग के हिसाब से एडजस्ट हो जाये ... फिर जब आगे से थोड़ी गर्मी मिली और उसे थोड़ी राहत महसूस हुई तो उसने फिर वही प्रक्रिया दोहराई।
थोड़ी देर में उसका छेद शिवम के हिसाब से भी एडजस्ट हो गया, भले दर्द बना रहा हो पर वह अंदर बाहर होने लगा।
"अब झुको ... थोड़ा हम पीछे से धक्के लगा लेते हैं।" मैंने उसके दूध थपथपाते हुए कहा।
शरीफ लड़की की तरह वह शिवम के ऊपर से हटी और फिर डॉगी स्टाईल में आ गयी। इस बाद घुटने फैलाने की जरूरत नहीं थी बल्कि उसने घुटने पास ही रखे थे। पीछे से हम उसका वह गीला और बहता छेद देख सकते थे जो अब देखने में उतना कसा नहीं लग रहा था।
मैंने उस पर अपना लिंग टिका कर दबाया और पहले की अपेक्षा आसानी से वह अंदर समा गया। मैं उसके नितम्बों को मुट्ठी में दबोच कर धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा।
वह नीचे से एक हाथ से अपनी योनि रगड़ने लगी कि उसकी उत्तेजना बनी रहे।
जब आसानी से पक-पक मेरा लिंग अंदर-बाहर होने लगा तब मैंने अपना सामान निकाल कर रोहित को इशारा किया और उसने मेरी जगह लेते हुए पहले उसके छेद में लार भरी और फिर अपना लिंग ठोक दिया।
वह थोड़ा कुनमुनाई लेकिन अंततः एडजस्ट कर लिया और रोहित धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा।
मैं नीचे हाथ डाल कर उसकी योनि सहलाने लगा था जबकि शिवम अब उसके होंठों को चूसने लगा था और वह खुद एक हाथ से उसके हथियार को सहलाने लगी थी।
थोड़ी देर की धक्कम-पेल के बाद उसका छेद खुल गया।
"अब आओ ... तुम्हें अलौकिक सुख देते हैं।" मैंने उठते हुए कहा।
सब अलग-अलग हो गये ... फिर मैं और शिवम अपनी टांगें फैलाये इस तरह सट कर बैठे कि हमारे लिंग आपस में सट गये। एक-एक टांग हमें इस पोजीशन के लिये एक दूसरे पर चढ़ानी पड़ी थी और अपने हाथों को पीछे टिका कर इतना गैप बनाना पड़ा था कि बीच में वह फिट हो सके।
उसने इशारा समझ लिया और शिवम की तरफ चेहरा किये, दोनों पैर इधर-उधर रखती इस तरह बीच में आई कि शिवम का लिंग उसकी योनि पर टिका और मेरा उसके गुदा द्वार पर ... फिर उसने एक गहरी सांस भरते हुए खुद को नीचे दबाया तो दोनों लिंग अंदर सरक गये।
वह कुछ पल रुकी फिर एकदम नीचे बैठ गयी और दोनों हथियार फिसलते हुए उसकी आगे पीछे दोनों गहराइयों में उतर गये।
उसके मुंह से एक तेज कराह निकली और उसने आंखें भींच लीं। वह उस सुख को अनुभव कर रही थी जो यूं दोनों छेदों के एकसाथ भरने पर अनुभव होता है।
"कैसा लग रहा है?" मैंने शरारत से पूछा।
"बेहद अजीब मगर बहुत अच्छा ... दिमाग में जैसे फुलझड़ियां छूट रही हैं।"
"अभी तुम्हारा तीसरा छेद बाकी है।" मैंने रोहित को इशारा किया और वह खड़ा हो कर अपना हथियार हिना के चेहरे के पास ले आया।
उसने उस पर थूक कर उसे पहले साफ किया और फिर मुंह में ले लिया। रोहित ने उसका सर पकड़ लिया था कि वह उसके लिंग को बाहर न निकालने पाये। उसे सक करती वह ऊपर नीचे होने लगी और उसके दोनों छेदों की रगड़ाई होने लगी।
उसके हवा में झूलते चूचों में एक मैंने थाम लिया था और दूसरा शिवम ने और हम उन्हें मसलने लगे थे, जबकि वह खुद एक हाथ से अपनी योनि के ऊपरी हिस्से को सहलाने लगी थी।
अब एकदम परफेक्ट पोज था।
तीनों मिल कर उसे चोद रहे थे और एकसाथ तीन-तीन हथियारों का मजा ले रही थी।
लेकिन इस तरह चूंकि धक्के उसे खुद लगाने पड़ रहे थे तो वह जल्दी ही थक गयी।
"तुम लोग करो अब!" उसने रोहित को पीछे हटाते हुए कहा।
हम फिर अलग-अलग हो गये।
अब मेरे इशारे पर रोहित सीधा लेट गया और हिना उसकी तरफ ही रुख किये उसके लिंग को अपनी योनि में लेती उसके सीने पर झुक गयी। हालांकि उसने बीच में गैप बरकरार रखा था कि धक्के लगाने में दिक्कत न हो ... फिर यूं उसके उठे हुए चूतड़ों के पीछे रोहित आ गया और उसने हिना के पीछे खाली पड़े गुदा द्वार में अपना लिंग घुसा दिया। दो-दो मोटे लिंग से उसके छेद भर गये।
वे दोनों अब अलग-अलग रिदम में कमर चलाते उसे चोदने लगे।
मेरे लिये उसका मुंह बचा था तो मैं उसके मुंह की तरफ आ गया और उसने बड़ी सहजता से मेरे लिंग को मुंह में ले लिया ... और मैं उसका मुंह चोदने लगा।
काफी देर तक हम उसे यूँ ही चोदते रहे।
फिर अगले आसन की बारी आई तो मैं बेड के नीचे पैर लटका कर लेट गया और वह मेरी तरफ अपनी पीठ किये मेरे लिंग पर ऐसी बैठी कि उसकी गांड़ के छेद में मेरा लिंग पेवस्त हो गया और आगे से उसकी खुली योनि पर रोहित ने नीचे खड़े हो कर अटैक कर दिया। मैंने कोहनियों को टिका कर अपने हाथ खड़े कर लिये थे और उसने अपने हाथ मेरे पंजों पर टिका लिये थे कि वह खुद को इतना ऊपर रख सके कि रोहित तो सामने से धक्के लगाये ही, नीचे से मैं भी कमर उचका-उचका कर धक्के लगा सकूं।
शिवम अब उसके चेहरे के पास आ खड़ा हुआ था और उसके मुंह में हथियार दे दिया था जिसे वह लपड़-लपड़ चूसने लगी थी।
चुदाई होती रही और कमरे में धचर-पचर की कर्णप्रिय आवाजें गूंजती रहीं।
हम यूँ ही जगहें और आसन बदल-बदल कर उसे चोदते रहे।
यहां भी वही बात थी कि हमें इधर-उधर होते डिस्टर्बेंस का सामना करना पड़ रहा था जिससे हमें वह एकाग्रता नहीं मिल पा रही थी कि हम जल्दी झड़ सकते जबकि उसके तो तीनों ही छेद लगातार चुद रहे थे तो उसकी उत्तेजना में कोई कमी न आने पा रही थी और वह यूं ही तीन बार झड़ गयी थी।
चोदते-चोदते हम थक गये तो हमारे झड़ने की बारी आई और तय हुआ कि जो जहां है, वहीं माल निकाल दे।
अंतिम स्ट्रोक के वक्त मैं उसके मुंह में था, रोहित उसके पीछे घुसा हुआ था और शिवम उसकी अगले छेद को चोद रहा था।
सबसे पहले मैं ही झड़ा था और मैंने झड़ने के वक्त उसका सर दबोच लिया था कि वह बाहर न निकाल दे.
लेकिन इस बार उसके अंदाज से लगा नहीं कि वह मुंह से बाहर निकालती, बल्कि उसने खुद से लिंग को जीभ और तालू के बीच कस लिया था कि जो भी निकले वह अंदर खींच ले और यूं हासिल हुए रस को वह पी गयी। झड़ने के बाद फिर गीले और लिसलिसा गये लिंग को सर आगे-पीछे करती चूसने लगी।
मेरे बाद रोहित ने उसके चूतड़ों को सख्ती से पकड़ कर उसके पिछले छेद को भर दिया और उसके कुछ देर बाद कुछ आखिरी जोरदार झटकों के साथ शिवम भी स्खलित हो गया।
तीनों कुछ देर उसे दबोचे रहे और फिर अलग हट कर बिस्तर पर फैल कर हांफने लगे।
वह भी अधलेटी सी पसर गयी ... उसके नीचे दोनों छेदों से वीर्य बह रहा था और होंठों से भी लिसलिसी सी एक लकीर नीचे टपक रही थी जबकि उसके चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि और तृप्ति के भाव थे और आंखों में ऐसी चमक जैसे कोई बिल्ली ढेर सी मलाई चाट कर हटी हो।
"मजा आ गया।" उसने हंसते हुए कहा।
"और करना है या चलें अब?" मैंने उसे टटोलने वाले अंदाज में पूछा।
"एक बार और ... पता नहीं फिर कभी यह नियामत मिले न मिले!" उसके मन का लालच अपनी जगह बना हुआ था।
"इस बार कैसे?"
"नहाते हुए ... सब एक साथ ... बाथरूम में ही!" उसने आंखें चमकाते हुए कहा।
हमें क्या एतराज होता।
थोड़ी देर के ब्रेक के बाद हम बाथरूम में पहुंच गये और शावर के साथ रगड़ाई में लग गये।
वहां लेटने या घुटनों के बल टाईल्स पर बैठने की सुविधा तो थी नहीं, इसलिये सारे आसन वही इस्तेमाल हुए जो खड़े हो कर या झुक कर काम आ सकें, फिर कमोड का भी इस्तेमाल हमने कुर्सी की तरह कर लिया।
यहां भी वही बात हुई कि इधर-उधर होने या ब्रेक मिलने से हमारी एकाग्रता टूट जाती, दूसरे पानी भी तापमान बढ़ने में बाधक बन रहा था तो इन बातों से हमारी टाइमिंग बढ़ गयी और यह तीसरा सेशन भी लगभग घंटा भर चला।
इस बीच वह पूरी तरह निचुड़ गयी थी और अंत तक पहुंचते-पहुंचते एकदम शिथिल पड़ गयी थी।
तीसरे और अंतिम राउंड में उसने हम तीनों को ही अपने मुंह में झड़वाया था, हां इस बार उसने मनी हलक में नहीं उतारी बल्कि सब बाहर ही उगल दी थी।
बहरहाल, इस चुदाई को होते तीन घंटे से ऊपर हो गये थे और हम चोदते-चोदते तो वह चुदते-चुदते बुरी तरह थक गये थे ... काम खत्म हुआ तो वापसी करने में देर नहीं लगाई।
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