लव प्रेम और वासना- 3

(Unlimited Sex Kahani)

अनलिमिटेड सेक्स कहानी में मैं एक लड़की को पसंद करता था. उसकी शादी हो गयी. काफी समय बाद उसने मुझे अपने घर बुलाया. और आखिर मैं उसके साथ बेड पर था नंगा.

दोस्तो, मैं संदीप साहू आपको अपनी शादीशुदा प्रेमिका खुशी की चुदाई की कहानी सुना रहा था.
कहानी के दूसरे भाग
मेरी प्रियतमा आई मेरी बांहों में
में अब तक आपने पढ़ लिया था कि खुशी मेरे साथ बिस्तर पर थी और हम दोनों अपनी प्रणय लीला आरंभ कर चुके थे.

अब आगे अनलिमिटेड सेक्स कहानी:

उसकी चूत की ये हालत जानकर मुझसे भी रहा ना गया और मैं उसके उरोजों से खेलते हुए नीचे सरकने लगा.
खुशी के हर अंग को मैं चूम और चाट लेना चाहता था.

मैंने अब अपनी कलाबाजी खुशी की आकर्षक नाभि पर दिखाई और प्रतिक्रिया में खुशी ने मेरा लंड पकड़ने की कोशिश की.
उसका सहयोग करते हुए मैंने अपने अंडरवियर को निकाल फेंका.

तत्काल खुशी के हाथों से मेरे अकड़ चुके नग्न लंड का स्पर्श महसूस हुआ.
उसके मुख से कामुकता भरी आह निकल आई.

मैंने खुशी की पैंटी को दांतों से पकड़ कर उसके शरीर से अलग करने की कोशिश की.
खुशी ने सहयोग किया और हम दोनों ही अब मादरजात नग्न अवस्था में आ गए.

खुशी की शानदार चिकनी चूत देखकर मैं पागल सा हो गया.
मैंने उसकी भगनासा पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी और सीधे होकर खुशी की आंखों में देखकर कहा- खुशी, आई लव यू! तुम सचमुच लाजवाब हो!
ऐसा कहते हुए मैंने अपनी दो उंगलियां उसकी चूत में सरका दीं.

खुशी ने आंखें बंद करते हुए मुझे अपनी ओर खींच लिया.
हम कामुक चुंबन में खो गए.

उंगली से मैंने उसकी चूत टटोलना जारी रखा और खुशी ने अपने हाथों से मेरा लंड मसलना भी तेज कर दिया.

मैंने चुंबन को विराम देते हुए चूत का स्वाद चखने की सोची और उसकी चूत को बहुत नाजुक तरीके से चाटना सहलाना शुरू कर दिया.

इधर खुशी ने भी मेरे लंड को अपने मुँह से लगाने में देरी नहीं की.
फिर क्या था लंड का चूसना और चूत का चाटना … हर पल उग्र होता गया.

वह मुझे निचोड़ लेना चाहती थी तो मैं उसे!

ऐसे ही कुछ पल और बीते होंगे कि खुशी की लड़खड़ाती आवाज मेरे कानों में गूंजी- संदीप आहह संदीप … अब डाल भी दो, अब और बर्दाश्त नहीं होता!

मैंने भी उसकी बेचैनी समझकर उसे मुकाम तक पहुंचाना सही समझा और अपने लंड को, जिसकी नसें भी फटने को आतुर थीं … खुशी की गुलाबी चूत पर टिका दिया.

उस मनमोहक चूत पर लंड का प्रथम स्पर्श ही आनन्द का चरम था.
पर मानव की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होतीं.
मैंने भी अब परमानंद की प्राप्ति का प्रयास किया.

खुशी ने भी लंड देव के स्वागत के लिए पैर फैला लिए.
लेकिन मैं ठहरा कमीना इंसान … मैंने अपनी आदतनुसार उसकी चूत के मुहाने पर लंड टिका कर उससे गाली बकने की डिमांड करने लगा.

पर उसने मना कर दिया.
और बिना कुछ बुलवाए मैं भी कहां चोदने वाला था.

उसने हल्के गुस्से वाले नखरे से मेरी छाती पर मुक्के मारे और कहा- तुम बहुत बदमाश हो. अब चोदो मुझे मेरी चूत में अपना लंड डाल दो! बस इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बोल सकती.

मेरे लिए भी उसका इतना बोलना ही काफी था, उसकी आंखें मुंद गईं और मैंने स्वर्ग में प्रवेश पा लिया.

शुरूआती धक्के काफी धीमे रहे.
एक दूसरे को महसूस करने वाले … रूह से रूह का परिचय हो रहा था.

जब कुछ पल बीत गए तो रूह रूह में समा जाने को आतुर होने लगी.

खुशी ने अपने पैर मेरी कमर में लपेट दिए और अपने नाखून मेरी पीठ पर गड़ाती हुई मुझे खींचने लगी.

मैं भी कहां ठहरने वाला था. मेरी गति भी बढ़ गई.
‘आहह … ऊहहह … उम्म्मह … ओहह इस्स्स …’ की आवाजें स्वतः ही हमारे मुख से निकलने लगीं.

ऐसे कामुक सफर की समाप्ति कोई नहीं चाहता, पर हम मंजिल तक पहुंचने के लिए ही तो इस सुहाने सफर पर निकले थे!

तो फिर क्या … खुशी का बड़बड़ाना बढ़ने लगा.
ए सी की ठंडी हवा में भी हम पसीने से तरबतर थे.
दोनों के ही शरीर कांपने लगे, आवाजें कांपने लगी.

‘संदीप और जोर से … और तेज …’ कहती हुई उसने अपने नाखून मेरी पीठ पर जोरों से गड़ा दिए.

खुशी ने परमानंद की प्राप्ति कर ली थी, पर मैं उसी गति से चलता रहा.

कुछ ही क्षणों पश्चात कुछ तेज धक्कों के साथ मैं भी स्खलित हो गया.

हम दोनों इतने मदहोश थे कि हमें ना तो कोई पोजिशन बदलने का होश रहा और ना ही पानी अन्दर गिरने का डर!

हम मंजिल पर पहुंच चुके थे और एक दूसरे से लिपट कर सांसों पर संयम रखने का प्रयत्न कर रहे थे.
खुशी किसी फूल की भांति बच्चों की भांति निश्चल और शांत पड़ी रही.

हम कुछ देर ऐसी ही नींद के आगोश में चले गए.
पहले मेरी आंखें खुलीं, तो मैंने उसके गेसुओं को सहलाते संवारते हुए माथे पर चुंबन दिया!

उसके चेहरे पर मुस्कुाहट थी मतलब वह भी जाग चुकी थी, पर आंखें नहीं खोल रही थी.
शायद शर्म उस पर हावी थी.

उसने वैसे ही कहा- थैंक्स संदीप, आई लव यू!
मैंने भी आई लव यू टू कहा और उससे आंखें खोलने की गुहार लगाई.

उसने मुस्कुराते हुए धीमे से अपनी आंखें खोलीं.
हमने एक दूसरे को देखा और देखते ही रहे … न जाने कितनी देर!

ये नहीं पता, लेकिन ये जरूर पता है कि हम एक दूसरे की आंखों से कामुकता का नशा कर रहे थे.
और जब नशा पूरा चढ़ गया तब हमने एक दूसरे को खींच लिया … फिर एक दूसरे के मुँह में जीभ डालकर चुंबन शुरू कर दिया.

अब हम दोनों के हाथ भी एक दूसरे को पहले से ज्यादा आजाद तरीके से सहला रहे थे.

अभी-अभी मैंने जिस अवस्था को मंजिल कहने की भूल की थी, हो सकता है वह महज एक पड़ाव हो क्योंकि कामनगर की यात्रा अभी बाकी थी, यह खुशी ने स्पष्ट कर दिया था.

इस बार मेरे लंड महराज में तनाव धीमे गति से आ रहा था.
पर इसकी चिंता मैं क्यूं करूं … खुशी तो है ना हथियार को अपने लायक रेडी करने के लिए!

अब खुशी ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया और उसने मुझे नीचे लिटा कर मेरे ऊपर खुद आ गई.
उसने मुझे माथे से चूमना शुरू किया.

फिर तो क्या होंठ, गाल, सीना … और वह पहुंच गई लंड देव तक.
उसने जो लंड चूसा तो लंड अकड़ कर लोहे का रॉड बन गया.

ख़ुशी ने चूसा ही ऐसा था कि किसी मीठे के लंड में भी तनाव आ जाए.

यह तो फिर भी सात इंची लंड था, जिसने जाने कितनी ही चूतों से कुश्ती लड़ी है.

खुशी शर्मोहया से पार जाकर अपना प्रदर्शन कर रही थी.

एक समय आया जब खुशी ने खुद ऊपर आकर अपनी चूत मेरे मुँह में लगा दी.
मैं भी तो इसी क्षण की प्रतीक्षा में था … मैंने उसकी गुलाबी चूत की फांकों को ऐसे चूसा मानो ये दुनिया के आनन्द का अंतिम क्षण हो.

यह उपक्रम भी कुछ देर चल सका.

उसके बाद खुशी ने एक और कहर बरपाया.
उसने मेरे ऊपर झुक कर अपने उरोज मेरे चेहरे पर सहलाये और निप्पल को मेरे होंठों से टिका दिया.

मेरे चूसने से जब उसका मन भर गया तब उसने अपने उरोजों से ही मेरे पूरे बदन को सहलाया और आखिर में अपने मदमस्त उरोजों को जोड़कर उसके बीच मेरा लंड फंसाकर मुझे स्वर्गिक आनन्द का अहसास कराया.

मेरा लंड अकड़ कर झटके मारने लगा और मैं उसके बालों को सहलाते हुए उसे शाबाशी देने लगा.

अब खुशी ने फिर से पैंतरा बदला और अपने दोनों पैर मेरे आजू-बाजू डालकर मेरे ऊपर आ गई, लंड को अपनी लपलपाती चूत में सैट करके बैठती चली गई.

इस असीम आनन्द का बखान करना मेरे वश में नहीं और ऊपर से उसने अपने सुंदर सुडौल उरोजों को जब मेरे ऊपर झुक कर मेरे मुँह में दे दिया.
तब तो मैं अपने आनन्द का बखान करने वाली सिसकारियां भी नहीं निकाल पा रहा था.

सच में स्त्री का यह रूप किसी को भी भटका दे.

काम वासना में सराबोर खुशी मेरे लंड पर उछल रही थी, उसकी हर उछाल नपी-तुली थी.

उसके उरोजों की थिरकन चुदाई के थाप के साथ लयबद्ध थी.
उस पूरे उपक्रम के लिए आनन्द शब्द बहुत छोटा सा प्रतीत होता है.

खुशी की आंखें सुर्ख लाल हो गई थीं, गाल पर बाल बिखर गए थे, उसके नाखून मेरे सीने को आनन्ददायक जख्म दे रहे थे.
क्या यह सब सच है … या मैं कोई स्वप्न देख रहा हूँ.

मैं अभी यह पूरी तरह सोच भी नहीं पाया था कि खुशी ने चुदाई करते हुए ही झुक कर मेरे होंठों पर हमला कर दिया.

हम एक दूसरे की जीभ चुभलाने लगे.
कमरे का तापमान हमारी वजह से बढ़ने लगा.

इधर चुदाई में तेजी आने लगी और ‘आह हहह ईस्स स्स्स’ की कामुक ध्वनि भी तेज होने लगी.
खुशी का यह रूप देखना तो क्या, मैंने सोचा भी ना था.
वह रोने लगी थी … बड़बड़ाने लगी थी … मुझे पीटने लगी थी.

उसकी थकावट उसके चेहरे पर उसके शरीर पर दिखने लगी लेकिन खुशी चुदाई के इस पल को जरा भी विराम देने के मूड में नहीं थी.

अब मुझे कमान संभालनी थी, खुशी ने अपनी तरफ से चुदाई में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
लेकिन फिर भी कामक्रीड़ाओं की अनंत धाराओं में से बहुत कुछ बाकी था, जिसके लिए मेरा सहयोग भी आवश्यक था.

मैंने खुशी के दोनों कंधों पर हाथ रखकर उसे रोका, चुंबन दिए और उसे लेटने को कहा.

अब मैंने अपनी जगह उसे लिटा कर एक बार उसकी लाल हो चुकी चूत को चाटा और उसके ऊपर लंड घिस कर धीरे से धक्का मार दिया.
साथ ही उसके दोनों पैर मैंने अपने कंधों में उठा लिए थे जिससे मेरा पूरा लंड उसकी चूत की गहराई तक उतर रहा था.

खुशी की मदहोश चीखें और तेज हो गई थीं.
चूंकि ये हमारी दूसरी पारी थी इसलिए हम स्खलन से अभी काफी दूर थे.

मैंने बहुत तेज धक्कों के साथ खुशी का इम्तिहान ले लिया और जब वह इम्तिहान में खरी उतरी, तब उसे मैंने घोड़ी बन जाने को कहा.

उसने भी यंत्रवत कहना माना, उसने सामने तकिए पर मुँह टिका कर अपनी चूत उभार दी जो लालिमा के कारण और भी ज्यादा आकर्षक लग रही थी.

मैंने उसके नितंबों पर चपत लगा दी.
इससे वह चिहुंक उठी.

लंड देव को भी कहां सब्र था … मैंने एक हाथ को उसकी पीठ पर रखा और चूत में लयबद्ध तरीके से लंड प्रवेश करा दिया.
उसी के साथ मैंने उसकी चुदाई शुरू कर दी.

चुदाई के दौरान मैंने उसकी गोरी गोल गुंदाज गांड पर खूब तबला बजाया.

मैं पूरी ताकत से खुशी को चोदे जा रहा था और खुशी भी पूरा आनन्द ले रही थी.

अब मैंने चुदाई धीमे कर दी लेकिन लंड पूरी तरह बाहर खींच कर एक बार में ही पूरा ठोक दिया.

ऐसी चुदाई में खुशी की चीख निकल जाती थी.
खुशी मेरे सामने घोड़ी बनी हुई थी तो जाहिर है कि मेरी इच्छा उसकी गांड मारने की भी हुई.

मैंने एक बार जब लंड बाहर खींचा तो दुबारा डालने के समय गांड के छेद में डालने का प्रयास कर दिया.
लंड मुश्किल से एक इंच ही अन्दर गया होगा कि खुशी दर्द के मारे बिलबिला उठी और एक ओर लुढ़क गई.

मैंने उसे संभालने का प्रयत्न किया पर मैं असफल रहा.

खुशी रोने लगी और मुझे कोसने लगी.
मैं उससे लगातार माफी मांगता रहा.

मैंने कान पकड़े, पर वह चुप होने का नाम नहीं ले रही थी.
इधर चुदाई का मूड उखड़ने लगा था.

फिर मैंने सीधे खुशी को चुंबन देना शुरू कर दिया और उसे सॉरी कहा.

खुशी थोड़ी सी शांत हुई तो मैं लेट गया और खुशी से कहा- लो, तुम ही करो … तुम्हें जो अच्छा लगे!
इस पर खुशी ने कहा- यार तुम जो कर रहे थे, वह सब अच्छा लग रहा था सिवाय पीछे डालने के!

मैंने कहा- वह सब अब भूल जाओ और मुझे इन्जॉय कराओ और खुद भी करो!

खुशी ने हम्म्म कहा … और मुझे एक बार फिर अपने उरोजों से मसाज देती हुई लंड पर आकर रूक गई और लंड को चूसने लगी.
लंड देव वापस फुफकारने लगे.

खुशी ने लंड चूसते वक्त चूत चाटने के लिए मेरे मुँह में दे दी थी तो अब लंड और चूत दोनों ही शानदार चुदाई के लिए तैयार थे.

उसने मेरे ऊपर आकर लंड अपनी चूत में डाल लिया और बैठती चली गई.
हम काफी समय से चुदाई कर रहे थे तो हमारे शरीर थकने लगे थे.
ऐसे समय में आप जल्द से जल्द स्खलन चाहते हो.

खुशी ने भी वही किया. वह शुरू से ही आक्रमक धक्के लगाने लगी.
हम दोनों ‘आहहह … ऊहहहह … इस्स्स’ की आवाज निकालने लगे, जो यंत्रवत स्वतः ही निकल रहे थे.

खुशी ने झुक कर मेरी गर्दन के पीछे हाथ डाल कर मुझे पकड़ लिया और अपनी कमर लचकाने की गति तेज कर दी.
लंड पूरा अन्दर बाहर हो रहा था.

मेरे हाथ कभी उसके उरोजों पर, तो कभी उसके चूतड़ों को सहला रहे थे, दबा रहे थे.

हम दोनों ही कामाग्नि में तपकर लाल हो चुके थे.
हमारी मंजिल पास थी इसलिए एक बार फिर हम बड़बड़ाने लगे.
मैं भी आने वाला था सो मैं भी नीचे से धक्के मारने लगा.

‘आहहहह इस्स्सस ऊहहहह संदीप आई लव यू!’
‘आह खुशी मेरी जान … मजा आ गया …’
‘फक मी हार्ड संदीप … तुम मेरी जान हो … ओहह नाइस संदीप.’

जाने ऐसे कितने शब्द कमरे में गूंज रहे थे.

अगले कुछ तेज झटकों के बाद खुशी का स्खलन हो गया और वह मुझ पर ऐसे ही पसर गई.
पर मेरा होना बाकी था तो मैंने भी वैसे ही नीचे से धक्के लगाने शुरू कर दिए और आठ दस तेज धक्कों के बाद मैंने भी अपना वीर्य त्याग दिया.

खुशी अब लुढ़क कर मेरे बगल में आ गई और मुझे प्यार से निहारने लगी.
मैं भी उस देवी को ऐसे देख रहा था, जैसे मौन रहकर उसका आभार मान रहा हूँ.

खुशी ने चादर खींच कर हम दोनों को ढक लिया, मुझे जमकर गले लगाया, चूमा और थैंक्स कहते हुए उसने मेरे सीने पर सर रख कर आंखें बंद कर लीं.
स्पष्ट था कि हम आज रात ऐसे ही सोने वाले हैं.
मैंने भी उसकी पीठ सहलाते हुए ‘आई लव यू’ कहा और उसे सोते हुए देखते रहा.

अचानक मेरे होंठों पर चुम्मी ने मुझे चौंका दिया.
रात को कब मेरी नींद लगी, पता ही नहीं चला और अब सुबह खुशी ने मुझे किस करते हुए जगाया- उठो डार्लिंग, दस बज रहे हैं!

मैंने खुशी को बिस्तर पर खींच लिया, खुशी ने एक टॉप पहन लिया था और नीचे शॉर्ट्स.
मैंने खुशी का टॉप ऊपर किया और उसके मम्मे दबाने चूसने लगा.

खुशी ने इस्स्स करके अपने मम्मे छुड़ाये और प्यार से मुझे चूमते हुए कहा- अभी नहीं डियर, बाद में … आज का मेरा बहुत सारा प्लान है!

मैंने भी उसकी आंखों में प्यार से देखा और कहा- जो हुकुम मेरी आका.
हम दोनों हंस पड़े.

खुशी ने मुझसे कहा- तुम फ्रेश हो जाओ … मैं कॉफी बनाकर लाती हूँ.

हमने साथ में कॉफी पी, फिर खुशी ने मेरे रेडी होने तक नाश्ता बना लिया था और खुद भी रेडी हो गई थी.
लगभग हम बारह बजे घर से निकल गए.

मैंने ध्यान दिया कि उसके हाथों में मेरी लाई हुई साड़ी का बैग था.
खुशी ने सबसे पहले एक बुटीक के सामने कार रोकी.

उसने मेरी दी हुई साड़ी को वहां छोड़ते हुए कहा कि इसमें मेरे ब्लाउज का नाप है, सेम वैसा ही बनना चाहिए और ये आप मुझे आज शाम तक ही पूरा करके देना.

पर सामने वाले ने दूसरे दिन तक टाईम मांगा, इस पर खुशी ने मन मारकर ओके कहा और उसे हिदायत दी कि उसे समय पर साड़ी ब्लाउज ओके मिलना चाहिए.

फिर हमने शॉपिंग की, रेस्टारेंट गए टेंपल घूमे गार्डन घूमे, लंबे समय तक साथ बैठे, लांग ड्राईव का मजा, नाईट पार्टी का मजा, ये रोज होता रहा.
रात को चुदाई, साथ नहाना और नहाते हुए भी चुदाई करना, फिर दिन भर धूम धड़ाका.

वह कहते हैं ना कि सब आपके हाथ में है, पर वक्त हाथ में नहीं है.
लोग सही कहते हैं.

पहले दिन की सेक्स कहानी मैंने पूरे विस्तार से आप लोगों को सुनाई.
आगे के तीन दिन भी सब ऐसा ही रहा.

लेकिन मैं जिस काम के बहाने आया था, मेरा मन उस ओर भी जाता था.
तो मैं समय निकाल कर दिन में एक मैसेज कुसुम को कर ही देता था ‘तुम कब फ्री हो रही हो, कब मिलोगी?’

उसका जवाब देर से आता- सॉरी संदीप, मैं अभी कुछ बता नहीं सकती. मैं कोशिश कर रही हूँ कि जल्दी तुमसे मिलूँ, तुम अपना ख्याल रखना.
तीन दिन हो गए, यही सब चल रहा था मेरी वापसी का दिन भी नजदीक आ रहा था.

मैं खुशी के घर से एक दिन पहले निकलने वाला था.
उस दिन हमने जमकर अनलिमिटेड सेक्स और चुदाई की जिसमें वासना कम प्रेम ज्यादा दिखाई दिया.

उस दिन घूमने जाने के समय खुशी ने मेरी उपहार वाली साड़ी पहनी थी.
हमने साथ में बहुत सी सुंदर तस्वीरें भी खिंचवाईं.

उसके बाद लौटकर खुशी मेरी विदाई की पैकिंग कर रही थी.

मैंने समय पाकर कुसुम को तीन चार मैसेज किए- क्या यार कब मिलोगी, धोखा तो नहीं दे रही हो!
जैसे ही मैंने मैसेज किया खुशी के फोन का मैसेज टोन बजा.

उसका फोन रोज की ही तरह वहीं टेबल पर पड़ा था.
मेरे मन को एक झटका लगा और मैंने पास जाकर अपना संदेह मिटाने की कोशिश की.

मैंने खुशी के फोन पर नोटिफिकेशन पर अपने मैसेज देखे.
इसका मतलब खुशी ही कुसुम है!
मैं आवाक रह गया!

क्या खुशी मुझे कुसुम के बहाने खुद यहां बुलाना चाहती थी, क्या खुशी चालाक है, शातिर है, या सिर्फ एक मजाक?
मेरे मन में हजारों ऐसी बातें चलने लगी थीं.
मैंने खुशी का फोन और चेक करने की सोची, पर खुशी दौड़ कर आ रही थी.

मैंने अनजान बनकर वहीं टेबल से दूसरी चीज उठा ली और खुशी से कुछ देर बाद लौटने की बात कहकर घर से बाहर निकल गया.

खुशी और कुसुम एक ही है … ये सोच-सोच कर ही मेरा सर भन्ना रहा था.
लेकिन सबसे ज्यादा अचरज की बात तो ये थी कि दोनों के व्यवहार बिल्कुल भिन्न थे.

मैंने कुछ सोच कर कुसुम को फिर एक मैसेज किया.
‘कुसुम तुम मिल रही हो कि नहीं … सच सच बता दो, कम से कम मैं अपने समय का सही उपयोग तो कर सकूं!’

इस बार कुसुम का जवाब आया.
आता भी क्यों नहीं, मैसेज करने के लिए अब वह अकेली जो थी.
उसने लिखा- सॉरी संदीप, मैं बारह तेरह तारीख के पहले फ्री नहीं हो सकती.

कुसुम जानती थी कि मैं आठ तारीख तक लौट जाऊंगा.
फिर ऐसा कहने का सीधा मतलब था कि वह मुझसे मिलना नहीं चाहती थी.
इसका सीधा मतलब ये भी था कि कुसुम ही खुशी है.

मैंने लिखा- अभी तो मुझे जाना होगा … कुसुम तुमसे बिना मिले लौटना अच्छा नहीं लगेगा.
कुछ सोच कर मैंने खुशी के घर का रूख कर लिया और मैंने खुशी को सामने बिठा कर कहा- खुशी, मैं तुमसे एक सच कहना चाहता हूँ!

खुशी की आंखें डबडबा गई थीं. उसे लग रहा था कि उसकी पोल खुल गई है.

पर मैंने कुछ दूसरी बात कही- खुशी, मैंने तुमसे झूठ कहा था कि मैं भैया के साथ आया हूं. असल में मैं तुमसे ही मिलने आया हूँ. आई लव यू खुशी!
खुशी मुझसे लिपट कर रोने लगी.

अगर मैंने खुशी को जाहिर कर दिया कि मैं सच्चाई जान गया हूं तो शायद मैं खुशी और कुसुम दोनों को खो बैठता, पर मैंने अनजान बनकर दोनों का प्यार पाने का फैसला किया.

इस तरह अब हमारे पास एक अतिरिक्त दिन था जिसमें प्यार की बरसात और कामुकता की शिखर के दर्शन हुए.

फिर खुशी मुझे मुंबई एयरपोर्ट तक छोड़ने भी आई … और विदाई के समय सबके सामने रोती हुई गले लगकर मिली, जम कर किस भी किया और जल्दी मिलने का वादा लेकर विदा किया.
मन तो और रूकने का था पर सब कुछ तो मन का नहीं होता ना!

जैसे अभी कहानी में कुछ बातें आपके मन की होंगी, तो कुछ बातें बेमन की.. खैर … मुझे तो आज कुसुम ने खुशी का उपहार देकर विदा कर दिया.

इस अनलिमिटेड सेक्स कहानी पर आप सबकी क्या राय है, नीचे दिए गए ई-मेल पते कमेंट करके जरूर बताएं.
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