चलती ट्रेन में चूत चुदाई रंगरंगेलियां-2
(Train me Chut Chudai Rang Rangeliyan- Part 2)
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रात को करीब 2 बजे मेरी नींद खुली तो पाया कि राजे मेरे चूची चूस रहा था। चूची पर गर्म गर्म मुंह लगने से ही मेरी नींद खुल गई थी। मैंने उउउऊँ… उउउऊँ.. उउउऊँ… करते हुए राजे को हटाने की असफल चेष्टा करी- राजे मादरचोद सोने दे न प्लीज़!
परंतु आप सभी जानते हैं कि राजे जैसा चोदू चूतेश भला पीछे हट सकता है क्या! माँ के लौड़े ने एक चूची निचोड़नी और दूसरी चूसनी! फिर पहली वाली चूसनी और दूसरी निचोड़नी!
थोड़ी ही देर में मुझे भी मज़े में ठरक चढ़नी शुरू हो गई, मेरे भी मुंह से सी सी सी… आह उम्म्ह… अहह… हय… याह… हाय हाय… आह की वासना से भरपूर आवाज़ें निकलने लगीं।
फिर क्या था, राजे ने मेरा शरीर चाटना शुरू कर दिया, वो मेरा पेट चाट रहा था और दोनों चूचे एक एक हाथ में जकड़ कर भोम्पू बजा रहा था।
नींद कभी की हवा हो चुकी थी, राजे के चूचे दबाने के अंदाज़ ने मेरी काम वासना की अग्नि को भीषण कर दिया था तथा उसका मेरा बदन चाटना उस अग्नि में घी डालने जैसा हो रहा था। मैं तेज़ ठरक में चूर बार बार कसमसा रही थी और सीत्कार भरने लगी थी, जी चाहता था कि राजे का मूसल चंद बुर को फाड़ ही डाले, मगर वो हरामी तो मुझे चाटने में लगा हुआ था। लगता था कि कमीना मुझसे चुदाई की भीख मंगवा के ही दम लेगा।
उसकी गर्म गर्म गीली जीभ मेरे शरीर पर घूम घूम के मेरे भीतर बिजलियाँ दौड़ा रही थी। उधर चूचुक मसल मसल के बहनचोद ने मुझे मतवाली कर रखा था। आनन्द की पराकाष्ठा हो चली थी। अभी तक तो लंड ने चूत को छुआ तक नहीं था और मैं झड़ने को हो गई थी।
मैंने राजे से लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा- राजे माँ के लौड़े… कितना तरसायेगा कमीने… चल राजा सूत दे लंड… अब और दुखी न कर जानू…
राजे हरामज़ादे ने उत्तर के रूप में बड़े ज़ोर से मेरी चूचियों की घुंडियां इतने ज़ोर से मसलीं कि मेरी आह निकल गई और चूत से रस तेज़ी से बहने लगा।
‘राजे राजे राजे… जान लेकर रहेगा क्या मादरचोद?’ मैंने तड़प के गुहार लगाई।
राजे ने इस बार चूचुक छोड़ के मेरी जांघें ज़ोर से मसल डालीं और हंसते हुए बोला- चुप करके मज़े लूटे जा बद्ज़ात रंडी… जल्दी क्या है कुतिया… तेरी माँ की चूत, बहन की लौड़ी छिनाल… आज तो मंद मंद, धीमे धीमे चुदाई करेंगे मादरचोद!
इतना कह के राजे ने मेरी जांघों को जो मसलना कुचलना शुरू किया कि क्या बताऊँ… उसके हाथ बिजली की तेज़ी से कभी चूचों को, कभी जांघों को, तो कभी कन्धों को निचोड़ते।
मेरे पैर उसने मुंह के पास कर लिए थे और वो उनको चाट रहा था और कभी अंगूठा, तो कभी उंगलियाँ मुंह में लॉलीपॉप के तरह चूस रहा था।
जब राजे पैर चाटता है तो मज़े से रानियां अंधी हो जाती हैं, समय जैसे रुक जाता है, कमीना बड़ा कलाकार है चाटने में… चूत रस से सराबोर हो गई थी और बड़ी बेकरारी से इंतज़ार में थी कि कब चूतेश का लौड़ा आये और उसमें निवास करे।
मैं तो तब तक बेसुध सी हो चुकी थी और शांति से पड़ी हुई राजे के खिलवाड़ का आनन्द उठा रही थी। चूत तो हरामज़ादी लगता था किसी बम की तरह फट जायगी, कामोत्तेजना की आग पूरे शवाब पर आ चुकी थी, मेरे मुंह से आहें, सीत्कारें और किलकारियां निकल रही थीं। लगता था कि यह विस्फोटक आनन्द मेरा दम ही न निकाल दे।
राजे भी खूब गर्म हो चुका था और दबादब गालियाँ बक रहा था, बहनचोद… हराम की ज़नी रांड… बद्ज़ात कुतिया… कमीनी वेश्या… मादरचोद… बेटी की लौड़ी… आज तेरी चूत का कीमा बनेगा करमजली… तेरे चूचे आज उखाड़ न डाले तो मेरा नाम राजे नहीं साली.. ले बहनचोद अब लौड़ा ले बदबख्त रंडी… ले भोसड़ी वाली ले..
कहते हुए राजे ने फुर्ती से मेरी टाँगें फैलाई और फुनफुनाते हुए लौड़े को चूत के मुंह से लगा दिया। चूत ने जैसे ही लंड का स्पर्श पाया साली धड़ाम से झड़ गई… ठरक से बेहद गर्म तो थी ही, रस की फुहारें लंड पर छा गयीं।
दूसरे ही पल राजे ने माँ की लौड़ी.. ले..ए..ए..ए.. कहते हुए एक ज़बरदस्त शॉट जो टिकाया तो लंड बहनचोद मेरी रसीली चूत में पूरा का पूरा जा घुसा। आआआहह करते हुए मैं फिर से बेतहाशा झड़ी।
राजे अब मेरे ऊपर लेट गया था और मेरे चूचुक उसकी छाती के नीचे दब गए। पाठकों अपने आशिक का लंड चूत में फंसा हो और उसके बदन का बोझ लड़की के ऊपर आ गया हो तो कितने अपार सुख का अनुभव होता है यह मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकती। जो पाठिकाएं चुदी हुई हैं वे इस कल्पनातीत सुख को भली भांति समझती हैं और जो सील बन्द बुर वाली पाठिकाएं हैं वे भी जब चुदेंगी तो इस मधुर सुख का लुत्फ़ ले पाएंगी।
तेज़ मज़े में मदमस्त होकर सी सी सी करते हुए मैंने टाँगें राजे की कमर के इर्द गिर्द कस के लपेट लीं और ज़ोर से कस लिया। राजे बड़े आराम से लंड को तुनके दे रहा था, पूरा लंड चूत में ठुंसा हुआ था और चूत अनायास ही बार बार खुल बंद, खुल बंद, खुल बंद हो रही थी।
चूत से रस भी निकले जा रहा था।
आनन्द में मग्न मैं ना जाने कौनसे आकाश में उड़ी जा रही थी। राजे मुझे बहुत ही धीरे धीरे चोद रहा था, अत्यंत छोटे और हल्के से धक्के लगा रहा था, लंड को ज़रा सा बाहर खींचता और फिर हौले से चूत में घुसा देता।
कई कई बार तो काफी देर तक धक्के ही न टिकाता, सिर्फ लंड के तुनके मार मार के मज़ा देता। उसके बोझ तले दबी हुई मैं यह अलौकिक आनन्द लूट रही थी। इस मंद मंद चुदाई का मज़ा इतना अधिक था कि मेरी नस नस, दिल, दिमाग और रूह आनन्द विभोर हो रही थी।
आँखें मूंदे हुए मैं राजे के इस मंद मंद चुदाई के सरूर में टुन्न थी। कभी कभी चूतड़ उछाल के अपनी तरफ से शॉट लगाने की कोशिश कर लेती थी लेकिन राजे ने इतना कस के मुझे जकड़ा हुआ था कि मैं आधा या एक इंच से ज़्यादा गहरा धक्का न लगा पाती थी।
मेरी सुध बुध गुम हो चुकी थी, समय का चक्र थम गया था, मुझे लगता था कि तमाम सृष्टि में केवल हम दो प्राणी थे।
राजे की प्यार भरी अनेकों चुम्मियां, हौले हौले से धक्के, चूत का बारम्बार झड़ना और ट्रेन की धकड़ धकड़ के सिवा कुछ भी नहीं सूझ रहा था।
ट्रेन जब झटके लेती तो खुद ब खुद मस्त धक्के भी लग जाते थे।
यह मदमस्त चुदाई न जाने कितनी देर चली। एक घंटे से तो निश्चय ही अधिक हो गया होगा। मुझे तो लगने लगा था कि ये बहन का लौड़ा चूतेश रात भर यूँही चोदे जाएगा, पता नहीं कब झड़ेगा।
कभी कभी जब वो तीन चार तगड़े धक्के ठोकता तो मेरी चूत ढेर हो जाती और मैं स्खलित होकर चूत में ढेर सारा रस बहा देती। इतना रस निकाल के चूत में खूब पिच्च पिच्च हो गई थी। राजे का लंड भी चूत रस में तर था। चूत के बाहर शरीर का सब भाग रस से भीग गया था, झांटें भी रस से सराबोर थीं।
हर धक्के में फचाक फचाक की आवाज़ होती, मेरे चेहरा पसीने से भीग गया था और राजे के बदन भी पसीने पसीने था।
राजे इसी प्रकार चुदाई करता हुआ मेरे कानों में कुछ कुछ कहे जा रहा था- जानेमन तू बहुत हसीं रांड है कमीनी… धक्क धक्क धक्क… तेरी चूत तो सच में जन्नत का छेद है सेक्सी कुतिया… धक्क धक्क धक्क… फच्च फच्च फच्च… तुझे चोदने में बड़ा मज़ा आता है मोना रानी… धक्क धक्क धक्क… फच्च फच्च फच्च… तू तो मेरी जान है मादरचोद कुलटा… धक्क धक्क धक्क… फच्च फच्च फच्च… मैं तुझ पे कुर्बान जाऊं मेरी जान… तेरी बहन की चूत मारूँ रंडी की औलाद… आहा आहा आहा आहा… बेटीचोद मज़े में गांड फाटे जा रही है रंडी… धक्क धक्क धक्क… फच्च फच्च फच्च… धक्क धक्क धक्क… फच्च फच्च फच्च… यार मोनारानी बड़ी टाइट चूत है… आहा आहा आहा.. धक्क धक्क धक्क… फच्च फच्च फच्च…
राजे ये सब फुसफुसा रहा था और मुझे चूमे जा रहा था। हर बार कुछ प्यार की बात बोलने के बाद मझे चूमता और तीन चार शॉट लगा देता।
साले चूतेश ने मेरा सारा चेहरा सैकड़ों बार चूम लिया। गीले गीले, गर्म गर्म, चुदास की गर्मी से उबलते हुए मस्त चुम्मे! मेरा भेजा सातवें आसमान पे उड़ा देने वाले मतवाले चुम्मे!!
चुदास के सागर में मैं गोते खा रही थी। न जाने चूत कितनी बार झड़ चुकी थी। राजे अब मेरे कानों के लौ चूस रहा था। बहनचोद कान की लौ चूस के कोई इतना मज़ा दे सकता है यह मैंने उस समय जाना।
फिर कुछ धक्के और वही फच्च फच्च फच्च की आवाज़… अब राजे भी झड़ने के करीब पहुँच चुका था। यह मुझे ऐसे महसूस हुआ कि उसका बदन जल्दी जल्दी कंपकंपाने लगा था जैसे एक झुरझुरी सी उसमें दौड़ रही हो। हरामज़ादा मुझे पचासों बार चोद चुका था इसलिए मैं अब उसके बदन की भाषा खूब समझने लगी थी।
राजे मेरी चूत में झड़ने वाला है यह बात मन में आते ही मेरी उत्तेजना यकायक तीव्र हो गई। मेरी चूत में भी एक तेज़ सुरसुरी होने लगी। मैंने राजे के बालों में उंगलियां फिराते हुए कहा- बहनचोद, अब थोड़े से पलंगतोड़ धक्के भी ठोक न यार.. अब दिल कर रहा है कि तू मुझे कुचल डाले.. राजा अब ऐसे धक्के मार कि मेरी चटनी बन जाए..प्लीज़ राजे!
राजे ने हंसकर पहले तो मेरे होंठ चूसे फिर फुसफुसाया- अरे कमीनी, प्लीज़ क्यों कहती है रंडी रखैल… तू तो मेरी मालकिन है, सिर्फ हुक्म दिया कर.. जैसी आज्ञा मोना रानी जी!
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राजे ने अपने आप को थोड़ा सा उठाया, हाथों को मेरे चूचुक पर जमा दिया और निप्पल उंगली और अंगूठे में भींच के दस बारह ज़बरदस्त धक्के टिकाये, चूचियों की घुंडियों की तो सचमुच चटनी बनने वाली हो गई। बेहद तेज़ हवस में बौरा के मैं चिल्लाई- हाँ हाँ हाँ राजे माँ के लौड़े… ऐसे ही चोद कुत्ते..हाय हाय हाय… बहनचोद चूची बचेगी या फाड़ डालेगा कमीने… हाय हाय हाय अम्मा बचाओ इस मादरचोद से… आह आह आह आह…’
तभी पूरी ताक़त से राजे ने अनेकों शॉट बिजली की तेज़ी से ठोके, दन दन दन दन दन जैसे कोई मशीन गन चल रही हो… दन दन दन दन दन… उसकी गालियों, मेरी सीत्कारों, ठा ठा ठा करके टकराते हुए हमारे कटिप्रदेश और लंड घुसते समय फचाक फचाक फचाक की मदमस्त कर देने वाली चुदाई की आवाज़ों से ट्रेन का कूपा गूंज उठा।
मैं चरम सीमा के शिखर पे थी और बस लुढ़कने को ही थी, राजे भी झड़ने से थोड़ा ही दूर था। राजे दुबारा से मेरे ऊपर लेट गया और फिर उसने रगड़ रगड़ के दनादन दनादन जो धक्के पे धक्का मारा है तो मैं डर गई कि कहीं बर्थ ही न टूट जाए।
वाकई में पलंगतोड़ धक्के थे, दो तीन झटकों में ही मेरी तो टन्न बोल गई, राजे के बाल खींचते हुए, उसकी पीठ पर नाख़ून गड़ाते हुए, मैं चिल्लाते हुए बड़े ज़ोर से स्खलित हुई, चूत से रस की धारा बह चली।
राजे की साँस फूल गई थी, अब वो एक कुत्ते की तरह ज़ोर ज़ोर से हांफ रहा था और उसके मुंह से ज़ोरों के भैं भैं भैं की आवाज़ आ रही थी, उसके माथे से पसीना टपक के मेरी गर्दन पर गिर रहा था।
मैंने ध्यान से अपने महा चोदू आशिक़ को प्यार से निहारा, हरामी की आँखें चढ़ी हुई थीं, चेहरा लाल सुर्ख हो गया था, नथुने फूले हुए थे। ट्रेन के एयर कंडीशन चलने के बावजूद पसीने की बूंदें उसके माथे पर चमक रही थीं।
वो अब किसी भी क्षण झड़ सकता था… मुझे उस पर बहुत प्यार आ रहा था, उसका सिर पकड़ के मैंने उसके होंठ अपने होंटों से चिपका लिए और चूमने लगी, हाथ राजे की रीढ़ की हड्डी पर लगा कर मैंने उंगलियों से रीढ़ को दबाते हुए नीचे से नितम्ब उछाल के कुछ धक्के लगाए।
राजे ने मुंह मेरे मुंह से अलग किया और तेज़ी से कुहनियों के बल होकर हरामज़ादे ने पूरी ताक़त से बीस पच्चीस ज़ोरदार शॉट लगाए। साली हराम की ज़नी… बद्ज़ात रांड… तेरी माँ की चूत फाड़ूं कमीनी… बहनचोद सड़कछाप रंडी.. मादरचोद कुतिया.. इत्यादि बकते बकते राजे ने अचानक से आह भरी और झड़ा।
लंड ने हुमक हुमक के ढेर सा लावा मेरी चूत में बिखेर दिया… चूत भी पीछे क्यों रहती। हरामज़ादी भी तुर्की-ब-तुर्की झड़ती चली गई। चूत में राजे का लावा और खुद का जूस भर गया।
राजे ने कई बार तुनके मार मार के मलाई झाड़ी और फिर थके हुए भैंसे की तरह मेरे ऊपर ढेर हो गया।
काफी देर तक हम यूँ ही पड़े हुए थकान निकालते रहे।
तेज़ रफ़्तार राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन ने एक झटका खाया तो राजे का मुरझाया हुआ लंड चूत से बाहर फिसल आया।
मैं भी अपनी तन्द्रा से जागी, राजे को कहा- मादरचोद, मुझे सूसू लगी है उठने दे न!
राजे मेरे ऊपर से उठ गया तो मैंने झट से उसके लंड पर नज़र दौड़ाई, मूसलचंद झड़ के ठंडा पड़ा हुआ था और चूत रस व लावा में सना हुआ था।
मैंने उंगली से सारा माल समेत के मुंह में डाल के चूसा और राजे के वीर्य के साथ मिले हुए अपनी चूत रस का स्वाद चखा। वाआहहह वाह्ह्ह वाह्ह्ह !!!
राजे ने घसीट के मेरी चूत से मुंह लगा दिया और उसने भी चूत के आस पास, जांघों तक फैला हुआ माल चाट लिया। फिर मादरचोद ने कुत्ते की तरह होंठों पर जीभ फ़िरा कर चटखारा लिया।
मैं जैसे ही उठ कर कूपे से बाहर सूसू को जाने को हुई, राजे ने मेरी बाजू पकड़ ली और बोला- माँ की लोड़ी, कहाँ जा रही है कुतिया? हरामज़ादी भूल गई क्या… तू राजे के साथ है जहाँ सूसू के लिए बाथरूम जाना मना है।
मैं हंस दी, मैं जानती थी वो यही कहेगा, फिर भी मज़ा लेने के लिए मैंने बाथरूम जाने की बात कही थी।
मैंने राजे की छाती से मुंह लगा के कहा- राजे माँ के लौड़े, भूल सकती हूँ कभी… मैं तो यह चेक कर रही थी कि तुझको भी याद है कि नहीं… ले एक चुम्मी ले कमीने… उम्म्म्मआ..
राजे ने झट से मेरी कमर जकड़ी और पालक झपकते ही उछाल के मुझको ऊपर वाली बर्थ पे बिठा दिया- ले मादरचोद रंडी… आज तू ट्रेन में ऊपर की बर्थ पे बैठ के मुझे स्वर्ण अमृत पिलाने का आनन्द भी लूट… जल्दी कर बहुत प्यासा हूँ।
मैं उकड़ू बैठ गई और राजे का सिर पकड़ के उसका मुंह अपनी चूत से लगा दिया। शीईईईई की आवाज़ मुंह से कहते हुए मैंने राजे के मुंह में धारा मारनी शुरू कर दी… सुर्रर्र सुर्रर्र सुर्रर्र सुर्रर्र सुर्रर्र करती हुए सूसू (क्षमा करना राजे गलती हो गई… सूसू नहीं स्वर्ण रस) की धार निकल के राजे के मुंह में जाने लगी।
राजे हमेशा की भांति हुमक हुमक के मज़े लेकर पीता चला गया। वो अमृत पिए जा रहा था और मेरी आँखों में आँखें डाले मुझे प्यारी भरी नज़रों से देखे जा रहा था।
सुर्र सुर्र सुर्र सुर्र सुर्र सुर्र… ..सुर्र सुर्र सुर्र सुर्र सुर्र सुर्र… ..सुर्र सुर्र सुर्र सुर्र सुर्र सुर्र… .सुर्र सुर्र सुर्र… .सुर्र सुर्र… .सुर्र… सारा खज़ाना खाली हो गया तो राजे ने जीभ से चाट के सफाई कर दी, चटखारे लेते हुए अमृत के स्वाद की तारीफ भी की।
मैंने नीचे झांक कर देखा तो कुत्ते का लंड फिर से अकड़ गया था, अगर तुरंत ही कुछ न किया गया तो ये मादरचोद तो एक बार फिर शुरू हो जाएगा जबकि इतनी चुदाई के बाद मैं बहुत तक चुकी थी और सोना चाहती थी इसलिए मैंने कहा- राजे, अब मुझे उतार और चुपचाप अच्छे बच्चे की तरह सो जा… मैं थपकी देकर सुलाउंगी इस चोदू बच्चे को… उतार दे राजा जल्दी से अम्मा को!
राजे ने मेरी कमर पकड़ी और मुझे उतार के नीचे वाली बर्थ पर रख दिया। मैं तुरंत ही करवट के बल लेट गई और बोली- आजा राजा आजा… तुझे दूध पिलाकर सुला देती हूँ… बहुत थक गया है न मेरा बच्चा… आजा थोड़ा सा आराम कर ले!
राजे मेरी बगल में लेट गया और एक चूची मुंह में ले ली दूसरी हाथ में, जैसे नन्हे मुन्ने बेबी माँ का दूध पीते समय करते हैं।
मैंने उसको कस के अपनी छाती से चिपका लिया और टाँगें उसकी टांगों में लपेट लीं।
वो मचल मचल के चूचा यूँ चूस रहा था जैसे उसमें सचमुच दूध आ रहा हो! हमेशा की तरह मैंने राजे के बालों से खेलते हुए उसे थपकियाँ देनी शुरू कर दीं। जब जब मैं उसे इस प्रकार लिटा कर मम्मा पिलाती हूँ, मुझे उस पर इतना प्यार आता है, इतना प्यार आता है कि क्या बताऊँ!
दो ही मिनटों में राजे सो गया और थोड़ी देर के बाद मेरी भी आंख लग गई।
हमारी नींद सुबह वेटर के दरवाज़ा खटखटाने से खुली, वो चाय लेकर आया था।
राजे ने उसे वेट करने को कहा, मेरे नंगे बदन को कम्बल से ढक के उसने कपड़े पहने और वेटर को अंदर बुला लिया।
वेटर चाय रखकर चला गया।
सुबह के सात बजे थे। चाय पीकर मैंने भी कपड़े पहने और राजे की छेड़ छाड़ का लुत्फ़ लेती रही।
आठ बजे ट्रेन अँधेरी पहुँच गई जहाँ हमें उतारना था। होटल की कार रिसीव करने स्टेशन पर मौजूद थी। होटल ललित में राजे ने बुकिंग करवाई हुई थी, आधे घंटे में होटल आ गए। बाली दीदी ने ग्यारह बजे आने का कहा था।
रूम में पहुँच कर जैसा मुझे मालूम था होगा, वही हुआ। अभी होटल वाला सामान रूम में रखकर निकला ही था कि राजे ने मुझे जकड़ के फर्श पर कारपेट पर ही पटक दिया और जल्दी से मुझको नंगी करके चोद डाला।
इस बार उसने मुझे कुतिया बना के पीछे से चूत में लंड घुसा के चुदाई की।
राजे जब डॉगी स्टाइल में चुदाई करता है तो न जाने क्यों वहशी दरिंदा बन जाता है। हरामी ने अपनी पूरी मरदाना ताक़त लगा कर चूचे निचोड़े, निप्पल्स को बुरी तरह से उमेठा और खूब नोचा खसूटा, साथ ही इस स्टाइल में उसको मेरे नितम्ब हर समय दीखते हैं तो कमीना उन पर भी हमला बोल देता है, मम्मों को छोड़ा तो चूतड़ों को नोचा, मसला और उन पर कस कस के चाँटे मारे।
हालाँकि उस टाइम तो इतना मज़ा आया कि मैं मस्ती में दीवानी होकर अनेकों बार चरम सीमा पार उतर गई। मगर बाद में बहनचोद तीन चार दिन तक चूचुक भी और चूतड़ भी दुखते रहे।
कहता है कि मोना रानी, तेरे बम देखकर ऐसा नशा छाता है कि दिल करता है इन चिकने, सुडौल चूतड़ों को खा ही जाऊँ।
वैसे भी जब भी वो मेरा पिछाड़ देखता है तो नितम्ब खूब चाटता है और साथ में मेरी गांड का छेद भी चाट चाट के तर कर देता है।
कई बार उसके बाद मेरी गांड भी मारी जाती है। खैर चुद चुदवा के मैं तो ज़बरदस्त चुदाई की थकान से चूर होकर बिस्तर पे ढेर हो गई और दो चार क्षणों में ही गहरी नींद में खो गई।
राजे सोया नहीं और न जाने क्या करता रहा!
मालूम नहीं किस टाइम एक धम्म की आवाज़ से मेरी नींद टूटी और मैं हड़बड़ा के उठी। ये धम्म की आवाज़ इसलिए हुई थी कि राजे बाली दीदी को लिपटाये लिपटाये ही बिस्तर पर आ गिरा था।
आगे का वर्णन मैं अगली कहानी में करुँगी। बहुत मस्ती हुई थी हम तीनों की शाम सात बजे तक… और रात को फिर मैं और मेरा चूतेश राजे!
इसका पूरा ब्यौरा मैं अगली कथा में दूंगी।
आशा है कि प्रस्तुति आपको पसंद आएगी।
नमस्कार!
मोनारानी के शब्द समाप्त
चूतेश के शब्द
तो यारो, कैसी लगी मोनारानी की यह मदमस्त चूत चुदाई की कहानी? अपनी राय ज़रूर लिखियेगा।
नमस्कार
चूतेश
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