टीचर की यौन वासना की तृप्ति-13
(Teacher Ki Yaun Vasna Ki Tripti- Part 13)
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अब तक इस सेक्स कहानी में आपने पढ़ा कि नम्रता और मैं, हम दोनों अपने अपने पार्टनर के साथ रात को चुदाई कर चुके थे.
नम्रता मुझे अपने पति के संग हुई चुदाई के बारे में सुनाने में लगी थी.
अब आगे:
नम्रता आगे बोली- उनकी नजरें नाईटी को भेदते हुए मेरे अर्धनग्न जिस्म को घूरे जा रही थीं और वे अपने हाथ हिलाये जा रहे थे. मैं उनको ललचाते हुए अपनी गांड मटका रही थी. वो अभी भी मेरी तरफ टकटकी लगाये हुए देखे जा रहे थे. शायद सोच रहे होंगे कि अब आएगी, अब आएगी, लेकिन मुझे उनको तरसाने में मजा आ रहा था. एक-दो बार उन्होंने पास आने के लिए बोला भी, पर मुझे उनको तरसाने में मजा आ रहा था. अंत में वो उठकर मेरे पीछे आए और मेरे मम्मे को कस कर भींचते हुए बोले कि अच्छा बकेती चोद रही हो, मुझे तड़पाने में मजा आ रहा है.
फिर मैं सीधी खड़ी हो गयी और मेरे पति राजेश ने मुझे पीछे से अपनी बांहों में लेकर मेरी गर्दन और गालों को चूमते हुए कहा कि तुम इस नाईटी में बहुत सेक्सी लग रही हो.
फिर मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर मुझे बेड तक लाये और बेड पर बैठते हुए बोले कि वाउउउउ, इस नाईटी में तुम बहुत सेक्सी लग रही हो.
फिर मेरी चूत को नाईटी के ऊपर ही सहलाते हुए मेरे मम्मों से खेलने लगे और फिर मुझे अपने से चिपकाकर मुझे सूंघने लगे. अभी भी उनका एक हाथ मेरी चूत पर था और रह रह कर फांकों के बीच उंगली चला रहे थे. कभी उंगली को अन्दर डालने की कोशिश करते.
मैंने अपनी एक टांग उठाकर बेड पर टिका दिया ताकि उनको उंगली करने में आसानी हो जाए. वो अभी भी मेरे पेट पर अपने चुंबन की बौछार कर रहे थे. फिर नाईटी को ऊपर कर कर मेरी जांघों को चूमने लगे और नाईटी के अन्दर हाथ डालकर मेरी बुर में उंगली डाल कर साथ ही दूसरी उंगली से मेरी गांड कुरेदने में लग गए. मुझे बड़ा मजा आ रहा था.
उंगली करते हुए पति देव बोले- नम्रता वहां पर दूसरों को अपनी बीवी के साथ एन्जॉय करते देख कर मुझे तुम्हारी याद बहुत आ रही थी.
मैंने पूछा- क्यों किसी कपल की चुदाई सीन देख लिया था?
पति- नहीं यार, लेकिन एक-दो लोगों को देखा, जो मौका पाते ही एक दूसरे के सामानों के साथ खेल रहे थे, मुझे तुम्हारी याद बहुत आ रही थी.
मैं- कोई बात नहीं, अब तो मैं तुम्हारे सामने हूं.. जो करना चाहो कर लो.
पति- मना तो नहीं करोगी?
मैं- मैंने कब मना किया है, मैं तो चाहती हूं कि मेरा मियां खुश रहे.
पति- तब ठीक है.. जरा ये नाईटी उतारकर मुँह उधर करके झुक जाओ.
मैंने नाईटी उतार फेंकी, मैं घूमती उससे पहले पति ने अपनी उंगिलयां मेरे नंगे जिस्म पर चलानी शुरू कर दीं, मेरे दोनों मम्मों को अपने मुँह में बारी-बारी लेकर चूसने लगे. वे कभी मेरी घुमटी को अपने दांतों के बीच लेकर काटते, उसके बाद अपनी उंगलियों के बीच मेरी घुमटी को फंसाकर उस पर अंगूठे के नाखून से खरोंच करने लगते. इससे मेरी चूत में एक चुनचुनहाट सी होने लगी थी. मैं अपनी जांघों को कस कर भींच कर उस चुनचुनहाट पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी. लेकिन बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी. सो मेरा हाथ अपने आप मेरी चूत को खुजलाने लगा.
राजेश ने मुस्कुराते हुए मेरी नाभि को चूमते हुए मेरी चूत को भी चूमा और फिर मेरी कमर को पकड़ मुझे घुमा दिया. घूमने के बाद मैं झुक गयी. बस फिर क्या था. राजेश मेरी चूतड़ों को दबाते गए और फिर फैला कर अपनी जीभ मेरी गांड में चलाते हुए चूत तक ले गए. फिर चूत से गांड की तरफ, फिर कूल्हों को मसलते हुए कूल्हों को फैला दिया. फिर गांड से लेकर चूत तक और चूत से लेकर गांड तक जीभ चलाते हुए मेरी जांघों को चाटने लगे.
बीच-बीच में तो ये मेरे लटके हुए मम्मों को भी मसलने से नहीं चूक रहे थे. मेरे दूध कस कर मसल देते. जिस तरह से राजेश मेरे जिस्म से आज खेल रहे थे, मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी. मेरे अन्दर का रिसाव शुरू हो चुका था.
तभी राजेश अपनी उंगली मेरी चूत के अन्दर डालकर घुमाने लगे, मेरा रस उनकी उंगलियों में लग चुका था. राजेश ने अपनी उंगली को बाहर निकाला और फिर अपने मुँह में उंगली भरकर चटकारे लेते हुए बोले- वाह क्या स्वाद है तुम्हारी चूत के रस का.
मैं दंग थी.
फिर वे मुझसे बोले- नम्रता एक बात बताओ, जैसे मैं तुम्हारी गांड और चूत चाटकर तुम्हें मजा दे रहा हूं, क्या तुम वैसे ही मेरे लंड को चूसते हुए मेरी गांड भी चाटोगी.
मैं- हम्म.
पति- अगर मान लो तुम मेरा लंड चूस रही हो और तुम्हारे चूसते-चूसते मेरा माल निकलने लगे तो??
मैं इस बार चुप हो गयी. दो तीन बार पूछा, जब मैंने जवाब नहीं दिया.. तो मेरे कूल्हे पर दांत गड़ाते हुए बोले- मतलब तुम मेरा साथ नहीं दोगी.
मैं पल्टी और उनकी गोद पर बैठ गयी. अपनी टांगों से उनकी कमर को कसते हुए और उनके होंठों को चूसने लगी.
तो मेरे गालों को अपने हाथों के बीच कैद करते हुए बोले- जान तुमने अभी भी जवाब नहीं दिया.
मैं- अगर आप जिद करोगे, तो मैं मना नहीं कर पाउंगी.
पति- अरे वाह मेरी सेक्सी नम्रता, आओ फिर देर किस बात की है.
ये कहकर वो पलंग पर लेट गए और मैं उनकी टांगों के बीच घोड़ी पोजिशन में आकर उनके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.
पति- आह-आह नम्रता, बहुत मजा आ रहा है. एक काम करो नम्रता, तुम भी अपनी चूत का मुँह मेरे मुँह के पास कर दो, ताकि मैं भी मजा ले सकूं.
मैं तुरन्त ही घूम गयी और 69 की पोजिशन में आकर उनके लंड को चूसने का मजा लेने लगी.
नम्रता से इतनी बात होते-होते कब दो घंटे बीत गए, मुझे पता ही नहीं चला.
फिर नम्रता मेरे गालों को दबाते हुए बोली- मेरी जान अब तुम्हें आगे की कहानी सुनने के लिए कल का इंतजार करना पड़ेगा.
खैर, शाम को घर आया. काम निपटाकर आज रात बीवी को फिर पकड़ा और अच्छे से उसको चूमा-चाटी करके मजा लेने लगा. मैं उसके उरोजों को अच्छे से मसलकर और मुँह में भरकर चूसते हुए उसकी चूत को सहलाने लगा. अभी भी मैं अपनी रेखा के निप्पल को चूसे जा रहा था. तभी रेखा ने अपने पैरों को और अच्छे से फैला दिया ताकि मेरे हाथ उसकी चूत को और अच्छे से सहला सकें.
तभी वो अपने होंठों को चबाते हुए बोली- सुनते हैं?
मैं- हूं.
रेखा- अब आप अपना मेरे अन्दर डालिए ना.
रेखा बड़ी मासूमियत से बोली, लेकिन मैंने भी उसे झेलाने के लिए बोला- क्या डाल दूं.. और कहां डाल दूं.
इस समय रेखा की आंखें बिल्कुल लाल सुर्ख हो चुकी थीं, फिर भी शब्दों को ऐसा लग रहा था कि बड़ी मुश्किल से निकाल रही हो.
रेखा बोली- अपना लंड मेरी बुर में डाल दीजिए.
रेखा का बस इतना ही कहना था कि मैं उसके ऊपर चढ़ गया और रेखा तुरन्त ही मेरे लंड को पकड़ कर अपनी चूत के अन्दर डालने का यत्न करने लगी.
मैंने भी उसकी बैचेनी को देखते हुए लंड को अन्दर का रास्ता दिखाया. जैसे ही मेरा लंड अन्दर गया कि रेखा ने तुरन्त ही अपनी कमर को उचकाना शुरू कर दिया.
उसकी यौन उत्सुकता को देखकर मैंने भी अपनी रेलगाड़ी चलानी शुरू कर दी. धीरे-धीरे सिकुड़ा हुआ छेद खुलने लगा और फच-फच की आवाज बढ़ने लगी.
काफी देर से मैं धक्के पे धक्के मारता जा रहा था, जिसकी वजह से कमर में दर्द होने लगा. मैं रेखा के ऊपर गिर गया और खुद को पलटाते हुए रेखा को अपने ऊपर कर लिया और फिर अपनी कमर उठा-उठाकर धक्के लगाने शुरू कर दिए.
शायद इस तरीके से रेखा को ज्यादा आनन्द नहीं आया, तो वो खुद ही सीधी होकर बैठ गयी और फिर अपनी कमर को गोल-गोल घुमाने लगी. फिर थोड़ा मेरे ऊपर झुकते हुए धीरे-धीरे मुझे चोदने लगी. उसकी स्पीड बढ़ती गयी और फिर फच-फच की आवाज आने लगी.
फिर वो भी वक्त आया कि रेखा के सब्र का बांध के टूटने का असर मेरे लंड पर पड़ने लगा था कि तभी मेरे लंड ने भी मुझे चेतावनी देनी शुरू कर दी.
उधर रेखा का इंजन अभी भी चालू था और वो मुझे लगातार चोदे जा रही थी. इधर मेरे शरीर में अकड़न होने लगी और मेरे लंड से फव्वारा छूटकर रेखा की चूत के अन्दर गिरने लगा.
तभी रेखा भी धड़ाम से मेरे ऊपर गिर पड़ी और लम्बी लम्बी सांसें लेने लगी. मेरे भी जिस्म की अकड़न खत्म हो चुकी थी. मैं रेखा की पीठ सहलाते हुए उसके गालों को चूमने लगा और रेखा मेरे गालों को चूमने लगी.
थोड़ी देर बाद रेखा मेरे ऊपर से उतर गयी और फिर दोनों लोग हाफ करवट लेकर एक दूसरे से चिपककर सो गए.
फिर सुबह एक कप चाय और प्यारी सी मुस्कान के साथ रेखा ने मुझे जगाया और फिर हम दोनों साथ-साथ चाय पी.
मैं स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगा. स्कूल पहुंच कर मेरे और नम्रता के बीच एक-बार फिर हाय हैलो हुई और फिर उस दो घंटे का मैं इंतजार करने लगा, जिसमे नम्रता मुझे आगे की कहानी सुनाने वाली थी.
फिर वो समय आ ही गया और मैं और नम्रता एक-दूसरे का हाथ पकड़े बैठे हुए थे.
नम्रता मुस्कुराकर बोली- बड़े उतावले लग रहे हो.
मैंने भी उसी अंदाज में जवाब दिया- सही कह रही हो, अब तुम्हारी मिलने से रही, तो कहानी ही सुनकर अपने मन को संतुष्ट कर लूंगा.
मेरी नाक को पकड़ते हुए नम्रता बोली- आस मत छोड़ो, पता नहीं कब पूरी हो जाए.
मैं- हां यह बात तो सही है.
मैंने नम्रता की जांघ पर हाथ फेरते हुए कहा, तो बदले में उसने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया.
मैं- अच्छा चलो, अब जल्दी से बता दो फिर क्या हुआ?
नम्रता- फिर मेरी चूत तो वैसे ही गीली हो चुकी थी, लेकिन राजेश अब भी मेरी गीली चूत पर ही जीभ चला रहे थे और फिर चटखारे लेते हुए मेरे निकलते हुए रस की तारीफ कर रहे थे. उसके बाद वो मेरी गांड में भी अच्छे से अपनी जीभ चलाकर उंगली को मेरी गांड के अन्दर डालने की कोशिश करने लगे. मैं अपनी गांड को भींचकर उनकी उंगली अन्दर जाने से रोकने की पूरी कोशिश कर रही थी, साथ ही उनके लंड को अपने गले के अन्दर तक ले लेती, तो वो मेरी फांकों को काट लेते. कभी फांकों को फैलाकर मेरे अंगूर दाने पर अपनी जीभ चला देते. मैं भी राजेश को पूरा मजा देने का प्लान बना चुकी थी. मैं उनके लाल सुपाड़े पर अपनी जीभ चलाने लगी. उनका लंड भी रस छोड़ने लगा था. मैं चाह रही थी कि चुसाई में ही राजेश अपना माल छोड़ दे. इनके जिस्म पर पड़ती हुई अकड़न संकेत देने लगे थे कि कभी भी उनका लंड उल्टी कर सकता है. इसलिए मैं भी अपनी पूरी ताकत से अपनी चूत उनके मुख पर लगा कर उनको चाटने के लिए मजबूर कर रही थी.
हालांकि राजेश हूं हूं कर रहे थे, लेकिन मैं अन्जान सी बनी हुई उनके लंड को चूसे जा रही थी और उनका जिस्म अकड़ता ही जा रहा था. इसी बीच राजेश ने जोर देकर मुझे अपने ऊपर से उतार दिया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. उनके लंड ने पिचकारी का मुँह खोल दिया और उनके रस ने मेरे गले को तर कर दिया. उनको दिखाने के लिए मैं हड़बड़ा कर एक किनारे हट गयी और ओकने लगी. मेरी पीठ थपथपाते हुए मुझसे सॉरी बोलने लगे.
नम्रता- नहीं.. नहीं.. कोई बात नहीं.
ये कहकर मैंने उनको बिस्तर पर एक बार फिर लेटाया और उनके जिस्म से चिपकते हुए उनके माल को अपने हाथों से साफ करने लगी.
अपने पति की बात सुनात सुनाते नम्रता मेरी तरफ देखते हुए बोली- तुम्हारे वीर्य ने मुझे वीर्य पीने का ऐसा दीवाना बनाया कि मैं राजेश के वीर्य के रस के एक बूंद को भी छोड़ना नहीं चाहती थी, इसलिए मैंने थोड़ा ऊपर की तरफ होते हुए राजेश के मुँह में अपनी चूची को चूसने के लिए दे दिया और खुद उनके वीर्य से सने मेरे हाथ को चाट-चाटकर साफ करने लगी. फिर मैं उनके जिस्म के ऊपर इस तरह लेट गयी कि मेरी चूत उनके लंड के ऊपर आ जाए.
अभी भी राजेश मेरी पीठ को सहलाये जा रहे थे. फिर उन्होंने मुझे अपने से अलग किया और करवट लेकर मुझे चिपकाते हुए बोले- नम्रता, तुम्हारा रस तो बहुत ही स्वादिष्ट था.
नम्रता- आपका भी..
मैंने उन्हें प्रोत्साहित करते हुए कहा.
तभी मेरी ठुड्डी को पकड़ कर बोले- सच कह रही हो?
नम्रता- हां..
फिर कुछ देर तक वो मेरी पीठ और बालो को सहलाते रहे और मैं उनकी पीठ और चूतड़ को सहलाती रही. थोड़ी ही देर बाद एक-दूसरे के जिस्म की गर्मी ने एक हल्की लौ जलने लगी, जो हाथ अभी तक मेरी पीठ को अहिस्ता-अहिस्ता सहला रहे थे, वो ही हाथ अब मेरी पीठ को भींचने लगे थे. राजेश मेरी चूत को कसकर अपनी मुट्ठी के बीच दबा रहे थे. मैं भी उनके लंड को पकड़कर दबाती तो कभी उनके अंडों को.
कुछ ही देर में उनका लंड खड़ा होकर टाईट हो गया, वो झट से मेरे ऊपर आ गए और लंड को मेरी चूत के अन्दर पेल दिया और फिर धक्के मारने लगे. जब वो धक्के मारते-मारते थक जाते, तो मुझे अपने ऊपर कर लेते तो मैं उनके लंड की चुदाई करने लगती. फिर वो मुझे अपने नीचे ले लेते और मेरी बुर को रौंदने लगते.
काफी देर तक हम दोनों के बीच यही चलता रहा, इस बीच मैं झड़ चुकी थी, लेकिन मैं राजेश का साथ दिए जा रही थी और फिर अन्त में, राजेश मेरी चूत के अन्दर झड़ गए.
थोड़ी देर तक मेरे ऊपर पड़े रहे, फिर मुझसे अलग हुए मेरे माथे को चूमते हुए बोले- नम्रता, आज मुझे बहुत मजा आया.
इतना कहकर उन्होंने मुझे कसकर अपनी बांहों में भर लिया. फिर पता नहीं हम दोनों को कब नींद आ गयी.
सुबह आलर्म ने हम दोनों की आंखें खोली.
नम्रता ने अपनी बात खत्म की, तो मैं नम्रता से बोला- यार तुमने जो कहानी सुनाई है, उसको सुनते हुए मैं अपने लंड को भींच रहा था, मेरा रस निकलने वाला है, पीने का इरादा है क्या?
पर यह क्या, तभी घंटी बज गयी और हम दोनों को वापिस अपने अपने क्लास में जाना पड़ा.
इस प्रकार मेरी इच्छा अधूरी रह गयी. हां बीच-बीच में एक-दूसरे के जिस्म में समाने जाने का मौका मिल जाता था. हमारी सब की जिंदगी हंसी खुशी चल रही थी.
तो दोस्तो, मेरी सेक्स कहानी कैसी लगी, आप सभी के मेल के इंतजार में आपका अपना शरद सक्सेना.
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