शायरा मेरा प्यार- 7
(Shayra Mera Pyar- Part 7)
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जिस चम्मच को शायरा के होंठों और जीभ ने छुआ था, उसको मुँह में लेने से एक बार तो ऐसा लगा जैसे मेरे होंठों ने शायरा के नर्म होंठों और उसकी जीभ को ही छूआ हो.
हैलो फ्रेंड्स, मैं महेश अपनी जान शायरा की प्रेम कहानी को सेक्स कहानी के रूप में आपको सुना रहा था.
अब तक आपने पढ़ा था कि मैं ममता जी की चुदाई कर रहा था और बाहर खिड़की के पास छिप कर खड़ी शायरा हमारी चुदाई को देख रही थी.
अब आगे:
ममता जी ने अपनी चुत से हाथ निकाल कर देखा और कहने लगीं- ओय ये क्या कर दिया तूने?
उन्होंने मुझे हिलाते हुए कहा.
“क्या हुआ?”
ये कहते हुए अब मैं भी उठकर बैठ गया और देखा, तो सामने ही ममता जी अपनी टांगें चौड़ी किए खड़ी थीं.
उनकी चुत से मेरे वीर्य के साथ साथ हल्का खून रिस रहा था. उनकी जांघों पर भी कुछ खून लगा हुआ था, जिसे वो मेरे अंडरवियर से साफ कर रही थीं.
ममता जी की जांघों पर खून देखा, तो मेरा ध्यान खुद की तरफ भी चला गया.
मेरी जांघें तो साफ थीं मगर मेरे लंड पर काफी खून लगा हुआ था और बेडशीट पर भी एक दो जगह कुछ खून लगा हुआ था.
वो तो मुझे पता था कि ऐसा कुछ करते समय बिस्तर पर दाग लग जाते हैं … इसलिए मैं पहले ही अपने साथ अपनी बेडशीट लेकर आया था. नहीं तो शायद शायरा का भी बिस्तर गंदा हो जाता.
“ये … ये क्या हुआ?”
मैंने ममता जी की तरफ देखते हुए कहा.
“क्या हुआ क्या है? तूने ही किया है ये!”
ममता जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.
मैंने भी उनकी तरफ देखते हुए पूछा- क्यों … मैंने क्या किया?
“और नहीं तो किसने किया है, तूने ही किया है ये … मेरा तो महीना आने में अभी टाईम था. पर तू ना इतनी जोर से करता है कि बस … और फिर बोलने से रुकता भी तो नहीं है. धकापेल मचाए रहता है.
ममता जी ने मेरे अंडरवियर अपनी चुत को पौंछते हुए ही कहा.
ममता जी ने मेरी चुदाई करने की तरीफ की थी या फिर शिकायत … मुझे नहीं पता. पर जब जोर से चुदाई करने की बात आई, तो मेरा ध्यान फिर से खिड़की पर चला गया.
शायरा अभी भी खिड़की पर ही थी मगर वो अब फिर से नीचे बैठ गयी थी. क्योंकि वो मुझे अब नजर तो नहीं आ रही थी, बस पहले की तरह ही खिड़की पर उसके कपड़ों की वजह से नीला सा प्रकाश फैला हुआ नजर आ रहा था.
ममता जी की मैंने दो बार धुआंधार और जबरदस्त चुदाई की थी. लास्ट वाली तो इतनी जबरदस्त थी कि ममता जी के पीरियड भी समय से पहले ही आ गए थे.
उनकी चुत को तो मैंने जैसे उधेड़ कर ही रख दिया था. जिसे देख शायद शायरा के पैर कांप उठे होंगे.
उसका खड़ा रहना मुश्किल हो रहा होगा … और वो भी ये सब देख कर अपनी चुत में उंगली करने को मज़बूर हो गयी थी, शायद इसीलिए वो अब फिर से नीचे बैठ गयी थी.
“अब देख क्या रहा है मुझे … कहीं से पैड लाकर दे … आह्ह मम्मीईई … बहुत दुख रहा है … और जलन सी भी हो रही है.” ममता जी ने कराहते हुए कहा.
मेरा अंडरवियर गंदा हो गया था इसलिए ममता जी ने अब अंडरवियर को तो नीचे फैंक दिया और मेरी बनियान को उठाकर उससे अपनी चुत को पौंछने लगीं.
“आप ये … ये क्या कर रही हो? मेरे सारे कपड़े खराब कर दिए.” मैंने खीजते हुए कहा.
“तूने ही किया है ये सब … इसलिए तेरे ही कपड़े खराब होंगे … मेरा तो महीना आने में अभी टाईम था, पर तेरी वजह से तीन चार दिन पहले ही आ गया. मुझे अब पैड लाकर दे.” ममता जी ने अपनी चुत को पौंछते हुए ही कहा.
“अब इस समय पैड कहां से लाऊं … आप रास्ते में बाजार से खरीद लेना!” मैंने कहा.
“अच्छा … रास्ते में मेरे कपड़े खराब हो गए तो … नहीं अभी लाकर दो.” ममता जी ने कहा.
मैं सोच ही रहा था कि अब इतनी जल्दी सैनिटरी पैड कहां से लाऊं. तभी मेरे दिमाग में आया कि सैनिटरी पैड तो शायरा भी इस्तेमाल करती होगी.
शायरा का नाम आते ही मेरी निगाहें फिर से खिड़की पर चली गईं. मगर शायरा अब वहां नहीं थी. मैंने अन्दर वाली खिड़की की तरफ देखा, तो शायरा मुझे जल्दी से बाहर जाती दिखाई दी.
शायद उसने सोचा होगा कि मैं अब सैनिटरी पैड लेने बाजार जाऊंगा और वो पकड़ी जाएगी, इसलिए वहां से वो चुपचाप जल्दी से निकल गयी.
शायरा के चले जाने के बाद मेरे दिमाग में एक बार तो आया कि कहीं वो बाहर जाकर अब कुछ करेगी तो नहीं?
मगर फिर सोचा कि नहीं … उसे ऐसा ही कुछ करना होता, तो वो अब तक कब का कर चुकी होती.
वैसे मेरा प्लान कामयाब ही रहा था. मेरे जाल में वो लगभग तो फंस ही गयी थी. क्योंकि इतने दिनों से प्यासी शेरनी को मैंने आज शिकार जो दिखा दिया था.
उसके अन्दर की आग को लगभग तो मैं भड़काने में कामयाब ही रहा था, तभी तो वो पूरी चुदाई देखती रही.
नहीं तो वो हमें कब का पकड़ लेती … और हो भी सकता था कि वो शोर मचाकर बाहर के लोगों को भी बुला लेती.
मगर उसने वैसा कुछ नहीं किया. उसके पास तो वहां से चुपचाप निकल जाने का भी चांस था, पर वो खिड़की से छुप कर पूरी चुदाई देखती रही.
मेरी योजना कामयाब तो हो गयी थी, लेकिन अब देखो इसका रियेक्शन क्या होता है. वो गुस्सा करेगी … या मुझसे शर्माएगी? इसका पता तो उससे मिलकर ही चलेगा.
वैसे भी उसकी नजरों में मैं खराब तो था ही. अब जो होगा, वो तो उससे मिलकर ही पता चल पाएगा.
चाहे कुछ भी हो, पर अब उससे बात करने में मज़ा तो जरूर आएगा.
क्या सोच रही होगी वो मेरे बारे में? कितनी बार पानी निकला होगा उसकी चुत से? फिर भी लग तो ऐसा ही रहा था कि वो मेरे जाल में फंस जाएगी. अब देखो बस मुझे शाम तक का इंतजार था.
खैर … मैंने अब शायरा के कमरे में इधर उधर देखा, तो ड्रेसिंग टेबल में मुझे सैनिटरी पैड का पैकेट मिल गया. मगर उसमें बस दो ही पैड थे, जो कि ममता जी ने दोनों ही ले लिए.
मैंने भी सोचा कि बाजार जाने से अच्छा तो यही रहेगा कि अभी ममता जी इनको इस्तेमाल कर लें. यहां तो मैं फिर कभी चुपचाप बाद में भी लाकर रख दूँगा.
मैंने और ममता जी ने अब अपने अपने कपड़े पहन लिए और शायरा के घर को अन्दर से पहले के जैसे ही ठीक से करके बाहर आ गए. ममता जी को छोड़ने मैं बस नीचे तक ही गया.
ममता जी को अब कॉलेज तो जाना नहीं था … इसलिए मैंने उनके घर के लिए उन्हें वहीं से एक ऑटो रिक्शा में बिठा दिया.
ममता जी को छोड़कर मैं वापस आया ही था कि मुझे दरवाजे पर एक कोरियर वाला खड़ा मिल गया.
कोरियर वाला- सर, ये शायरा जी यहीं रहती हैं?
मैं- हां … यहीं रहती हैं, पर इस समय वो घर पर नहीं है, कोई काम है?
कोरियर वाला- ज्…जी … उनका ये कोरियर है, मैंने उनके ऑफिस में फोन करके भी बताया था, वो यहीं मिलने वाली थीं … पर शायद अभी तक आई नहीं.
ओह्ह … तो शायरा को इस कोरियर वाले ने यहां बुलाया था.
तभी मैं सोचूं कि इस समय वो घर पर कैसे आ गयी?
वो ये कोरियर लेने के लिए घर पर आई थी मगर कुछ और ही मिल गया.
मैंने दिल में ही सोचा.
उस कोरियर से मेरे दिमाग में अब एक और नयी योजना आ गयी. अब बेवजह तो मैं शायरा से मिल नहीं सकता था, इसलिए मुझे इस कोरियर के जरिये उससे मिलने का बहुत ही सही बहाना लग रहा था.
मैं- देखो इस समय तो वो घर पर है नहीं, अगर तुम चाहो, तो ये कोरियर मुझे दे सकते हो, मैं उनको दे दूंगा.
कोरियर वाला- जी अ्.अ..आप?
मैं- म्.म.. मैं उनका पति हूँ.
ना जाने क्यों मेरे मुँह से ये निकल गया. मुझे पता था कि वो कोरियर वाला ऐसे तो मुझे ये कोरियर देगा नहीं … इसलिए अनायास ही मेरे मुँह से ये निकल गया था.
उस कोरियर वाले ने एक बार तो मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, फिर बिना कुछ कहे उसने वो कोरियर चुपचाप मुझे दे दिया.
वो कोरियर विदेश से आया था, जिसमें एक लिफाफे के साथ एक बड़ा सा और थोड़ा भारी पैकेज था. शायद ये शायरा के पति ने भेजा था … क्योंकि उस पर एक तरफ तो यहां का पता था, मगर दूसरी तरफ सऊदी का कोई पता लिखा हुआ था. मुझे मालूम था कि सऊदी में तो शायरा का पति ही रहता था.
खैर … मैं वो कोरियर लेकर अपने कमरे पर आ गया. अपने कमरे में आकर मैं अब लेटा तो ऐसे ही था, मगर पता ही नहीं चला कि कब मुझे इतनी गहरी नींद लगी कि इसके बाद रात को ही मेरी आंख खुली.
मैं जब उठा … उस समय रात के नौ बज रहे थे. उठते ही सबसे पहले मेरी नजर शायरा के उस कोरियर पर पड़ी, जिससे मेरे दिमाग में पूरे दिन का घटनाक्रम एक बार फिर से घूम गया.
सोने के चक्कर में मैं शायरा के बारे में तो भूल ही गया था.
वैसे देर तो काफी हो गयी थी … मगर फिर भी शायरा से मिलने के लिए मैं वो कोरियर लेकर नीचे की मंजिल पर आ गया.
शायरा के घर का दरवाजा अन्दर से बन्द था. इसलिए मुझे थोड़ा डर सा तो लग रहा था, मगर फिर भी थोड़ी हिम्मत जुटा कर मैंने उसके घर का दरवाजा खटखटा दिया.
अब शायरा से ज़्यादा मुझे डर महसूस हो रहा था.
मैं सोच रहा था कि इस समय शायरा क्या कर रही होगी? उसके दिमाग़ में क्या चल रहा होगा? मुझे देखते ही क्या सोचेगी? कहीं वो गुस्सा तो नहीं करेगी?
उसके घर का दरवाजा बजाने के बाद बहुत से सवाल मेरे दिमाग़ में चल रहे थे.
कुछ देर तो उसके घर से कोई आवाज नहीं आई … मगर मेरे दोबारा दरवाजा बजाते ही शायरा ने दरवाजा खोल दिया.
दरवाजा खुलते ही शायरा की नजर सीधा मुझ पर पड़ी, जिससे एक बार तो उसने मुझसे नजरें मिलाईं; फिर अगले ही पल उसने अपनी आंखें नीचे कर लीं जैसे कि वो शर्मा रही थी.
वैसे मैं उम्मीद भी यही कर रहा था.
मैं ऊपरवाले से बस इसी बात की दुआ कर रहा था.
क्योंकि उसका शर्माना, मुझसे आंख ना मिलाना, उसको कमज़ोर बना रहा था … और मैं तो यही चाहता था.
शायरा नाइटी में थी, इसलिए शायद वो कुछ असामान्य भी महसूस कर रही थी.
उसको तो शायद उम्मीद भी नहीं थी कि मैं रात को उसके यहां आऊंगा.
शायरा ने जो देखा, उसके बाद मेरे आने से शायद वो घबरा भी रही थी … क्योंकि वो अब अपनी नजरें नीची करके खड़ी हो गयी थी.
वह इतना शर्मा रही थी कि उससे कुछ बोला भी नहीं जा रहा था.
मुझे ये देख कर अब अच्छा लग रहा था क्योंकि मेरा प्लान कामयाब हो गया था.
शायरा को मैं ही होश में लेकर आया.
मैं- गुड इवनिंग.
वो- हंहां ..!
मैं- मैंने कहा जी गुड इवनिंग.
वो- गुड इवनिंग.
मैं- ये आपका कोरियर आया था, आप तो घर पर थी नहीं, इसलिए मैंने ले लिया था, वही देने आया था.
वो- हां, उसने वो बैंक में मुझे फोन तो किया था … पर मुझे याद ही नहीं रहा.
मैं- कोई बात नहीं, ये लीजिये.
वो- थैंक्यू.
शायरा ने बस इतना ही कहा और वो कोरियर का पैकट मुझसे ले लिया.
मैं- अच्छा, मैं चलता हूँ, मुझे होटल से खाना भी खाना है … नहीं तो होटल बन्द हो जाएगा.
मैंने ये जानबूझ कर कहा ताकि दिखावे के लिए ही सही, मगर वो मुझे खाने के लिए जरूर कहेगी.
मैं मुड़ने को हुआ तभी वो बोली- सुनो.
मैं- जी, आपने कुछ कहा?
वो- हां … वो मैं भी खाना ही खा रही थी, तुम भी यहीं खा लो.
मैं- अरे नहीं … नहीं … मेरा तो ये रोज का काम है, अब रोजाना भी आपको तकलीफ़ देना ठीक नहीं.
वो- इसमें तकलीफ़ की क्या बात है? वैसे भी इतना तो मैं ज्यादा ही बनाती ही हूँ, जिसमें तुम भी खा लेना.
उसने ये शायद बेमन से कहा था … मगर मैं भी पक्का बेशर्म था.
मैं- वैसे क्या बनाया है? अन्दर से खुशबू तो बहुत अच्छी आ रही है.
मैंने उसकी तारीफ करते हुए कहा और सीधा अन्दर घुस गया.
उसने मुझे खाने के लिए बोल तो दिया था … मगर शायद अब वो भी सोच रही होगी कि मुझसे खाने के लिए बोलकर ही गलती कर दी.
वो- कुछ खास नहीं, बस राजमा चावल ही है … चलो बैठो.
खाना पहले से ही टेबल पर लगा हुआ था इसलिए हम दोनों ही खाने बैठ गए.
मेरे आने से पहले शायद शायरा खाना ही खा रही थी क्योंकि जिस कुर्सी पर वो बैठी थी, उसके सामने एक इस्तेमाल की हुई प्लेट रखी हुई थी जिसमें कुछ खाना बचा हुआ था.
मैं- आप खाना खा रही थी ना? सॉरी, मैंने आपको खाना खाते हुए डिस्टर्ब किया.
वो- अरे कोई नहीं … वैसे भी मेरा खाना हो गया था, मैं तो बस ऐसे ही बैठी हुई थी. पर तुम क्यों बैठ गए, तुम तो शुरू करो.
मैं- हां … हां … पर आप भी तो खाओ.
वो- नहीं … मैंने बताया ना, मेरा हो गया था. अब तो बस ऐसे ही तुम्हारे साथ के लिए बैठी हूँ, खाओ.
अब देर किस बात की थी, मैं भी शुरू हो गया.
मैं- अब तो अगर आप नहीं भी कहोगी, तब भी मैं खा ही लूंगा. वैसे खाना बहुत टेस्टी बनाती है आप … कसम से आपका खाना खाकर मुझे मेरी भाभी की याद आ जाती है.
वो- इतना भी टेस्टी नहीं … मैंने थोड़ा सा ही लिया था … वो भी बच गया.
मैं- अब आपको नहीं लगा तो कह नहीं सकता, लेकिन मुझे तो बहुत टेस्टी लग रहा है.
मैंने एक तो दिन भर से खाना नहीं खाया था और ऊपर से राजमा चावल काफी टेस्टी भी थे.
इसलिए कुछ ही देर में मैंने जितना भी खाना प्लेट में डाला था, वो सब खत्म कर दिया. अब चावल तो बचे थे … पर राजमा खत्म हो गया था.
मैं- ज्..जी … वो थोड़े राजमा और मिल सकते हैं?
शायरा ने एक बार तो मेरी प्लेट की तरफ देखा फिर इधर उधर देखते हुए बोली- वो राजमा तो …
शायद उसने इतने ही बनाये थे इसलिए वो शर्मिंदा सी हो गयी.
“अरे कोई बता नहीं … अगर आपका हो गया, तो मुझे ये दे दीजिये.” मैंने उसकी प्लेट की तरफ इशारा करते हुए कहा.
वो- नहीं … नहीं.. मैं और बना देती हूँ.. ये तो मेरे झूठे हैं.
मैं- अरे झूठे ही तो हैं … कोई खराब तो नहीं हो गए!
ये कहते हुए मैंने उसकी प्लेट को पकड़कर अपनी तरफ खींच लिया.
वो- अरे अरे … ये क्या कर रहे हो? मैं और बना देती हूँ ना … ये झूठे है मेरे.
उसने अपनी प्लेट को पकड़ने की कोशिश तो की मगर फिर भी मैंने उसकी प्लेट को उठाकर अपने आगे रख लिया.
शायरा की प्लेट के साथ साथ अब उसकी झूठी चम्मच भी प्लेट में ही आ गयी थी इसलिए मैंने खुद की चम्मच को तो अपनी प्लेट में ही छोड़ दिया और उसकी झूठी चम्मच को उठा लिया.
कसम से उसकी झूठी चम्मच से खाने में तो मजा ही कुछ अलग आया.
क्योंकि जिस चम्मच को शायरा के होंठों और जीभ ने छुआ था, उस चम्मच को मुँह में लेने से एक बार तो ऐसा लगा था … जैसे कि मेरे होंठों ने शायरा के नर्म नर्म होंठों को और मेरी जीभ ने उसकी उसकी गर्म गर्म जीभ को ही छू लिया हो.
शायरा मुझे हैरानी से देख रही थी.
इसके बाद क्या हुआ … उसको अगले बार लिखूंगा. आपको सेक्स कहानी कैसी लग रही है, प्लीज़ मेल कीजिएगा.
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कहानी जारी है.
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