शायरा मेरा प्यार- 18

(Shayra Mera Pyar- Part 18)

This story is part of a series:

उसकी चुत चाटते चाटते मैं खुद‌ ही होश खोने लगा. जैसे जैसे मेरी जीभ शायरा की चुत पर चल रही थी … वैसे वैसे मेरी उसकी चुत के प्रति दीवानगी‌ बढ़ती जा रही थी.

दोस्तो, मैं महेश अपनी सेक्स कहानी के इस चुदाई वाले हिस्से में आपको मजा देने के लिए हाजिर हूँ.

अब तक आपने पढ़ा था कि मैं शायरा की खुली चुत को देख रहा था.

अब आगे:

उसकी चुत की दोनों फांकें एक दूसरे से चिपकी हुई थीं … मगर कचौड़ी के जैसे बिल्कुल फूली हुई थीं. इसलिए चुत के अन्दर का सिन्दूरी रंग बाहर से ही नजर आ रहा था.

चुत पर हल्के हल्के बाल‌ थे मगर गीले होने के कारण वो चुत की फांकों से ही चिपक गए थे.
ट्यूब लाईट की दूधिया सफेद रोशनी में उसकी झांटें अलग ही चमक रही थीं.

मैं तो ना जाने कब से शायरा की चुत को देखने के लिया मरा जा रहा था.
ऊपर से ट्यूब लाईट की उस दूधिया रोशनी में शायरा की चूत को देखना बस क्या कहूँ.
कुछ देर तक‌ तो मैं बस अब आंखों से ही शायरा की चुदाई करता रहा.

शायरा की उस नन्ही परी को देखने के बाद मुझसे अब रहा नहीं गया, इसलिए अपने आप ही मेरा सिर‌ उसकी जांघों के बीच झुक गया.

उसकी चूत पूरी भीगी‌ हुई थी … इसलिए मैं बाहर बाहर से ही चूत को प्यार करने लगा.

मगर उसकी चुत को चाटते चाटते मैं अब खुद‌ ही होश खोने लगा, क्योंकि जैसे जैसे मेरी जीभ शायरा की चुत पर चल रही थी … वैसे वैसे ही मेरी उसकी चुत के प्रति दीवानगी‌ बढ़ती जा रही थी.

पता नहीं क्या हो गया था मुझको … मुझे तो ऐसा लग‌ रहा था कि इस दुनिया में बस शायरा की वो नन्ही सी चुत और मैं, सिर्फ़ हम दोनों ही हैं … बाकी तो जैसे कुछ है ही नहीं.

शायरा का बस अब एक काम रह गया था और वो था मादक सिसकारियां लेना, मगर शर्म के कारण वो बेचारी तो वो भी ठीक से नहीं ले‌ पा रही थी.

जैसे एक पत्नी सुहागरात के दिन अपने पति के साथ चुदाई करते हुए शर्म के कारण खुल कर सिसकारियां नहीं ले पाती है … उसी तरह शायरा भी मुझसे शर्मा कर सिसकारियों पर कंट्रोल रख रही थी.
पर जो भी था, उसमें मुझे एक अलग ही आनन्द मिल रहा था.

शायरा की चुत की गुलाबी फांकों पर लगे रस को चाटते चाटते मेरी ललचाई जीभ उसके गहरे कूप में भी जा पहुंची और उसके प्रेमद्वार को चाट चाट कर शायरा को आनन्द देने लगी.
वो भी अपना पानी छोड़ कर मेरी प्यास बुझा रही थी मगर वो प्यास थी‌ कि‌ बुझ ही नहीं रही थी.

मैं कुछ देर तक‌ तो चुत की फांकों को जीभ से ही कुरेदता रहा … मगर जब वो जीभ से नहीं खुली, तो मैंने हाथ का सहारा लिया और अपने अंगूठे व उंगली से चुत के होंठों को थोड़ा सा फैलाकर देखा.

अन्दर से तो शायरा की मुनिया और भी गुलाबी थी … और उसकी दरार तो बिल्कुल ही बंद थी.

शायरा की चूत के होंठों को खोलकर मैं अब अपनी जीभ से उसके अन्दर के गुलाबी भाग को चाटने लगा, अपनी जीभ को अन्दर घुसाकर उससे खेलने लगा.

वो तो अपनी मादक सिसकारियां और अपनी भूख पर कंट्रोल कर रही थी, मगर उसकी चुत में मैं जितनी ज़ोर से अपनी जीभ अन्दर डाल रहा था, वो उतनी ही ज़ोर से मेरी जीभ को बाहर फेंक दे रही थी. जैसे कि उसकी चुत कह रही हो कि मुझे जीभ नहीं, तुम्हारा लंड चाहिये … लंड देना है तो अपना लंड पेल दो, जीभ से मेरा क्या होगा? जीभ से तो मेरी आग और भी भड़क जाएगी.

पर मैं भी कहां हार मानने वाला था. मैं भी उसकी चूत में अपनी जीभ डालता रहा, उसे चाटता रहा और उसकी टाइट चूत मेरी जीभ को बाहर धकेलती रही.

इस खेल में भी मुझे अपना ही आनन्द आ रहा था, साथ ही शायरा को भी.
शायरा तो अब इतनी गर्म हो गयी थी कि उससे और ज्यादा बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपना पानी छोड़ दिया.
मैं भी वो सारा अमृत पी गया और उसकी चूत को चाटकर साफ कर दिया.

स्खलन के बाद शायरा अब निढाल सी हो गयी थी … इसलिए शायरा के अमृत को पीने के बाद मैंने अब एक बार घड़ी की तरफ देखा.

एक घंटे से भी ज्यादा समय हो गया था मुझे … और अभी तक मैं शायरा के साथ सिर्फ़ ऊपर ऊपर से ही प्यार कर रहा था. मतलब मुझे शायरा के साथ प्यार करते हुए समय का भी ध्यान नहीं रहा था.

अब ज़्यादा देर करना भी ठीक नहीं होता … इसलिए मैंने अपने सारे कपड़े निकाल दिए और बिल्कुल नंगा होकर शायरा की टांगों के बीच आ गया.

शायरा ने अपनी आंखें खोलकर एक बार फिर से मेरी तरफ देखा.
मगर जैसे ही उसकी नजर मेरे तन्नाये लंड की तरफ गयी, शर्मा कर उसने फिर से आंखें बन्द कर लीं.

मैंने भी अपने लंड पर थूक लगाकर शायरा की चुत पर रख दिया, जिससे शायरा ने अपनी आंखों को और भी जोर से मींच लिया.
शायद शायरा मेरे मूसल लंड के आकार से डर रही थी.

ये तो मुझे भी पता था कि अब लंड और चूत का मिलन होने वाला है और उस मिलन में दर्द भी होने वाला है.
पर शायरा की चुत को दर्द देने से पहले मैं अपने लंड से उसकी चूत को प्यार करना चाहता था. उसकी चुत की गर्मी को फील करना चाहता था.
इसलिए कुछ देर तक मैंने लंड वैसे ही रहने दिया.

मुझे कुछ ना करते देख शायरा ने फिर से आंखें खोल कर मेरी तरफ देखा.
शायद मुझे वो आगे बढ़ने को कह रही थी. मैंने भी फिर से अपने लंड पर थूक लगाया और लंड को चूत पर लगाकर शायरा के ऊपर आ गया.

आज शायरा मेरी हो जाने वाली थी, इसलिए शायरा के ऊपर आकर मैंने पहले तो उसके होंठों पर प्यार से एक किस किया, फिर अपने कूल्हों को उचकाकर एक जोर का धक्का लगा दिया.

एक तो शायरा की चुत पहले ही गीली होकर चिकनी हो रखी थी … ऊपर से मैंने भी अपने लंड पर काफी थूक लगा लिया था. इसलिए मैंने अब जैसे ही धक्का मारा तो शायरा के मुँह से आवाज निकल गई.
उसके मुँह से ‘ईश्.आह्ह् ..’ की एक दबी सी कराह निकली और मेरा लंड फिसलकर चुत की लाईन में ऊपर की तरफ निकल गया.

शायद मैंने अपने लंड को भी ठीक से सैट नहीं किया था, इसलिए एक बार फिर से मैंने अपने लंड को चुत के मुँह पर लगाया.

तभी शायरा ने एक जोर की सांस लेकर पहले ही अपने शरीर को कड़ा कर लिया.

अपने लंड को शायरा की चुत पर लगाके मैंने फिर से एक जोर का धक्का मारा.
अबकी बार मेरा लंड का सुपारा शायरा की चूत की फांकों को चीरता हुआ सीधा अन्दर धंस गया … और एक बार फिर से शायरा के मुँह से घुटी घुटी सी कराह निकल गयी.

शायरा अपने होंठों को भींच कर अपनी चीख को रोके हुए थी, पर उसके चेहरे से पता चल रहा था कि उसे काफी दर्द हो रहा था. वो दर्द तो शायरा को हो रहा था मगर दिल मेरा दुख रहा था.

शायरा का दर्द कम करने के लिए मैंने अपने होंठ उसके होंठों से जोड़ दिए और उन्हें हौले हौले प्यार से चूसने लगा, ताकि शायरा दर्द को भूल कर किस पर फोकस करे … और उसका दर्द कुछ कम हो ज़ाए.

शायरा कुंवारी तो नहीं थी मगर उसकी चुत से मुझे नहीं‌ लग रहा था कि उसका पति कभी ठीक से उसकी चु्दाई करता भी होगा.

शायद उसका हज़्बेंड नामर्द हो, तभी तो उसको इतना सा लंड अन्दर जाने से ही दर्द हो रहा था.

खैर … लंड पेले हुए ही उसे कुछ देर चूमने चाटने से ही वो अब शांत हो गयी थी.
मगर फिर भी मैं उसके मम्मों को दबाने मसलने लगा था, जिससे शायरा को पूरी तरह से अच्छा लगने लगा.

अब आगे बढ़ने से पहले‌ मैं शायरा से पूछना चाह रहा था कि और अन्दर डालूं या ना डालूं.
पर शायरा ने तो अपने बदन को‌ कड़ा करके जोरों से आंखें बंद कर रखी थीं. शायद वो मेरे अगले धक्के का इंतजार कर रही थी, इसलिए मैंने भी अब एक जोरदार धक्का और लगा दिया.

अबकी बार लगभग मेरा आधे से भी ज्यादा लंड शायरा की चुत में समा गया. शायरा ने अब बहुत कोशिश की कि उसके मुँह से चीख ना निकले, पर ये ऐसा धक्का था कि किसी भी लड़की की चीख निकल जाती.

शायरा की भी चीख निकल गयी, पर उसके होंठ मेरे मुँह में थे, इसलिए उसकी दबी हुई चीख मेरे मुँह में ही दबकर रह गयी.

शायरा को सांसें लेने की अब ज़्यादा ज़रूरत थी … इसलिए मैंने उसके होंठों को अपने होंठों से आज़ाद कर दिया, पर उसके मम्मों को मैं अभी भी दबाता रहा.

शायरा के होंठों को छोड़ते ही उसके मुँह से अब ‘आह मर गई … दर्द हो रहा है.’ निकला, पर शायरा ने कंट्रोल करते हुए उस लाइन को बीच में ही रोक लिया और एक दो लम्बी लम्बी व गहरी गहरी सांसें लीं.

अभी तो सिर्फ़ आधा ही लंड अन्दर गया था, पूरा लंड अन्दर जाना अभी बाकी था. पर मुझे क्या हुआ था, जो मैं शायरा के दर्द की इतनी परवाह कर रहा था.
ये शायद प्यार ही था, जो मैं शायरा से प्यार तो करना चाह रहा था … पर उसे दर्द होता नहीं देख पा रहा था.

मुझे पता था कि शायरा को दर्द हो रहा है, पर फिर भी शायरा ने ही मुझसे अपने लंड को बाहर निकालने को कहा और ना ही उसे और अन्दर डालने को कहा.
वो बस चुपचाप मेरे नीचे लेटी रही.

शायरा मुझसे इतना प्यार करती थी कि वो अपने दर्द को मुझ पर जाहिर नहीं होने देना चाहती थी.
इसलिए उसने आंखें खोल कर एक बार मेरी तरफ‌ देखा, जैसे कि मुझे वो अब कुछ देर रुकने को‌ कह रही हो.

शायरा को शायद विश्वास था कि अगर मैं भी सही में उससे प्यार करता हूँ, तो मैं उसका ये इशारा समझ जाऊंगा.
और हुआ भी ऐसा ही. मैं समझ गया कि शायरा क्या कहना चाहती है … इसलिए मैं अब ऐसे ही रुक गया.

मुझे ऐसे देख कर शायरा की आंखों में भी अब राहत सी ली. इसलिए मैं भी अपने लंड को तो अब ऐसे ही रखे रहा. मगर शायरा को सांत्वना देने के लिए उसके होंठों को मैंने फिर से चूसना शुरू कर दिया, साथ ही एक हाथ से उसके मम्मों को भी दबाने लगा. इससे कुछ ही देर बाद शायरा ने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया.

शायरा का दर्द अब कुछ क‌म हो गया था, इसलिए कुछ देर उसके होंठों को चूसने के बाद मैंने उसके होंठों व मम्मों को छोड़ दिया.
फिर शायरा की तरफ देखते हुए एक दो बार अपने लंड को चुत में अन्दर बाहर किया.
शायरा को अब दर्द तो हुआ मगर उसने उसे अनदेखा कर दिया.

शायरा भी मेरी तरफ देख ही रही थी. उसके चेहरे पर अब दर्द कम था और प्यार ज्यादा दिख रहा था. इसलिए मैंने अपने होंठों को फिर से शायरा के होंठों से जोड़ दिया और उसके होंठों को चूसते हुए धीरे धीरे अपने लंड को अन्दर बाहर करने लगा.

शायरा का दर्द तो अब कुछ कम‌ हो गया था … मगर अभी तक ना तो मैंने अपना पूरा लंड अन्दर डाला था … और ना ही खुलकर धक्के लगा रहा था. मैं बस इंतज़ार कर रहा था कि कब शायरा की चूत पानी छोड़े और मैं उसे खुलकर इस खेल का मजा दे सकूं.

करीब पांच मिनट तक ऐसे ही धीरे धीरे अपने लंड को चुत में अन्दर बाहर करने के बाद शायरा की चूत पानी ने छोड़ा और चुत कुछ गीली हुई.

चूत में पानी आने से अब उसमें मेरे लंड के लिए जगह भी बनने लगी थी. इसलिए मैंने अब एक आख़िरी झटका और मारा और अपना पूरा लंड अन्दर घुसा दिया.

शायरा के मुँह से एक बार फिर से दबी हुई चीख निकली, मगर उसे वो अन्दर ही अन्दर पी गयी. शायरा का बचा हुआ दर्द कम करने के लिए मैं अब उसके मम्मों दबाने‌ लगा.

“बस हो गया, अब दर्द नहीं होगा. जितना दर्द होना था … वो बस हो गया, अब थोड़ी देर रूको … सब ठीक हो जाएगा.” मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा.

शायरा भी मेरी आंखों में देख रही थी और उसकी आंखें कह रही थीं कि मुझे दर्द नहीं हो रहा है … तुम अपना काम‌ कर लो. पर मुझे पता था कि शायरा झूठ बोल रही है. मेरे लंड से दर्द ना हो, ये तो हो ही नहीं सकता.

मेरा लंड अन्दर जाते ही शायर के मुँह से चीख निकली थी, इसलिए उसे यकीनन दर्द हो रहा था … पर वो जानबूझकर उसे अनदेखा कर रही थी.

शायद शायरा ये मेरे लिए कह रही थी कि उसे दर्द नहीं हो रहा. पर मैं समझ रहा था कि वो बस मेरे लिए, अपने प्यार के लिए दर्द बर्दाश्त कर रही है. इसलिए मैंने अपने लंड को बाहर निकाल लिया और प्यार से उसके होंठों को चूसने‌ लगा.

कुछ देर शायरा के होंठों को चूसने के बाद मैंने अपने लंड को अब धीरे से एक बार फिर से अन्दर किया और शायरा के होंठों को चूसते हुए लंड को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा.

लंड को हिलाने से शायरा को दर्द हो रहा था, इसलिए उसने अपने दोनों हाथ मेरे पीठ पर रख लिए. अब जैसे ही उसको दर्द होता … वो अपने बदन को कड़ा करके नाख़ून मेरी पीठ में गड़ा देती … मगर उसकी आंखें कहतीं कि मुझे दर्द नहीं हो रहा.

एक तरफ तो वो दर्द की वजह से अपने नाख़ूनों से मेरी पीठ को खरोंच रही थी और दूसरी तरफ कह रही थी कि मुझे दर्द नहीं हो रहा. वो अजीब ही कशमकश की स्थिति बन रही थी.

शायरा के साथ चुदाई करते हुए मुझे कोई जल्दी नहीं थी … इसलिए मैं अब धीरे धीरे ही अपने लंड को अन्दर बाहर करने लगा … और लगभग दो तीन मिनट तक ऐसे ही आराम आराम से लंड को हिलाता रहा.

शायरा बस अब बिना पलकें झपकाये मुझे देख रही थी. पता नहीं क्या देख रही थी वो. मैं जो प्यार से लंड को अन्दर बाहर कर रहा था उसे, या फिर मैं उसे ज़्यादा दर्द नहीं होने दे रहा … उसे.

मैं लंड को बड़े ही प्यार से शायरा की चूत में अन्दर बाहर कर रहा था.

शायद शायरा मेरा ये प्यार ही देख रही थी.

मैं अपने लंड को शायरा की चूत में गहराई तक अन्दर घुसा रहा था, पर ऐसा मैं धीरे धीरे और बिल्कुल आराम आराम से ही‌ कर रहा था.
जिससे शायरा का दर्द तो कम नहीं हुआ … पर मुझे लग रहा था कि उसका प्यार जरूर बढ़ रहा था.

मैं अपने लंड को शायरा की चूत से पूरा बाहर निकाल लेता और फिर चुत की गहराई में अन्दर तक पूरा घुसा देता. ऐसा मैंने 20 25 बार किया, तब जाकर शायरा की चूत ने मेरे लंड के लिए कुछ जगह बनाई और लंड आराम से अन्दर बाहर जाने लगा.

शायरा की चुत के साथ साथ मैंने उसके दिल में भी अपने लिए जगह बना ली थी. चूत में लंड के लिए जगह बनने से अब शायरा का दर्द ख़त्म हो गया और शायरा के दिल में जगह बनने से मेरा डर खत्म हो गया था.

दोस्तो, इस सेक्स कहानी को अगले भाग में आगे लिखूंगा, तब तक आप मेल लिखिएगा.
[email protected]

कहानी जारी है.

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top