सम्भोग से आत्मदर्शन-4
(Sambhog Se Aatmdarshan- Part 4)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left सम्भोग से आत्मदर्शन-3
-
keyboard_arrow_right सम्भोग से आत्मदर्शन-5
-
View all stories in series
अभी तक इस हिंदी एडल्ट कहानी में आपने पढ़ा कि मैंने तनु और उसकी मम्मी को बता दिया था कि छोटी को ठीक करने के लिए, उसके दिल से सेक्स के प्रति दर्द और नफरत को निकालने के लिए उसके सामने आनन्द दायक सेक्स करना पड़ेगा, उसे दिखाना पड़ेगा कि सेक्स सही तरीके से सही साथी के साथ किया जाए तो बुरा नहीं होता, यह दर्द नहीं देता अपितु आनन्द देता है, मजा देता है.
अब आगे:
तभी आंटी चाय बनाने के लिए किचन में चली गई।
और आंटी के चाय बनाने के लिए जाते ही तनु ने मेरे सर के ऊपर झुक कर मेरे कान में कहा- संदीप, अब तुम जो चाहो करो, मैंने सब कुछ तुम पर छोड़ दिया है, पर माँ से मैंने इस मामले में ज्यादा बात नहीं की है, बस इतना कहा है कि संदीप जो कह रहा है वो हमें करना पड़ेगा… बाकी बातें तुम खुद ही संभाल लो।
मैं आंटी जी के चाय बनाते समय उनके पीछे पीछे किचन में चला गया, फिर आंटी ने मुंह बनाते हुए हुए कहा- यहाँ क्यों आ गये?
मैंने कहा- आपको कोई एतराज तो नहीं है ना अगर तनु और मैं हम बिस्तर हो जायें?
उन्होंने मुझे घूर कर देखा और कहा- मुझे लग तो रहा था कि तुम दोनों ने कुछ ना कुछ अलग प्लान बनाया है, अब सोच ही चुके हो तो जो मर्जी आये करो, मुझे क्यों पूछ रहे हो?
मैंने कहा- यह सिर्फ इलाज के लिए है वरना हम भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहते।
इन सब बातों के बीच मैंने महसूस किया कि आंटी खुद भी इन चीजों के लिए तैयार हो जाती, और मैंने तनु को इस बात के लिए मना कर कहीं गलती तो नहीं कर दी, क्योंकि आंटी भी एक औरत ही थी, कहीं उनको अपना हक छिनता ना दिखे।
इसलिए मैंने तुरन्त बात को संभालने कि कोशिश की- आंटी जी, अगर आप ही इस काम के लिए हाँ कह देती तो मैं तनु को इसके लिए नहीं कहता, और बात सिर्फ छोटी के इलाज की है, अगर आपकी सहमति अब भी ना हुई तो ऐसा कुछ नहीं होगा, शायद आपको ये सब इलाज कम और तन की भूख ज्यादा लग रही है।
आंटी कुछ कहें या ना कहें… पर मैं संदीप साहू डॉक्टर तो था नहीं, इसलिए सम्भोग और उसके अलग अलग तरीके ही बता सकता था, मैं तो बस तुक्का मार रहा था कि छोटी ठीक हो जाये, और मुझे भी कुछ सुकून मिल जाये।
अब पहली बार आंटी ने खुल कर बात की- इलाज की बात है इसलिए मैं मना नहीं कर पा रही हूँ, क्यूंकि तुम्हारे इलाज का तरीका और उसमें छिपे सिद्धांत मुझे अच्छे लग रहे हैं। वास्तव में छोटी का पागलपन उस डर की वजह से ही है, अगर वो डर उसके दिमाग से चला जाये तो सब ठीक हो सकता है। और इस डर की वजह भी मैं ही हूँ जिसे मैं तुम्हें फिर कभी बताऊंगी। पर मेरे लिए इस निर्णय में हाँ या नहीं कहना मुश्किल हो रहा है।
फिर क्या था मैंने उनकी इन बातों को ही स्वीकृति समझा और कहा- जब हम छोटी के सामने ये सब करेंगे तब उसे डर लगेगा और वो अपना आपा भी खो सकती है उसके दिमाग पर बुरा असर भी पड़ सकता है। जैसे किसी दवाई का ओवर डोज किसी की जान ले लेती है वैसे ही इस केस में भी हो सकता है। इस साईड इफेक्ट से बचने का उपाय यह है कि जब हम छोटी के सामने ये सब कर रहें हों तब आप (आंटी) हमारे खेल की लाईव कांमेट्री करें। मतलब आप छोटी को बताते रहें कि अब तनु के साथ क्या हो रहा है, वो कैसा महसूस कर रही है, और छोटी को संभालते रहें, दिलासा देते रहें कि ये जो हो रहा है वो सब अच्छा हो रहा है।
साथ ही सेक्स और शरीर का ज्ञान भी छोटी को देते जायें, तभी धीरे धीरे छोटी के मन से उस घटना या सेक्स का डर जो दिमाग में बैठा है, वो दूर हो पायेगा। हो सकता है हमें ऐसा करते देख छोटी बौखला उठे या उसका मन भी आकर्षित हो जाये, किसी भी परिस्थिति को नियंत्रित करना आवश्यक है। इसके लिए आपको (आंटी) साथ रहना और छोटी को सम्हालना समझाना आवश्यक है।
पर आंटी इस बात की अभी कोई गारंटी नहीं है कि तनु को पहली बार में भी मजा ही आयेगा, इसलिए जैसे आपने सुझाव दिया था कि पहली बार अलग से छोटी के बगैर सम्भोग क्रीड़ा हो ताकि दूसरी बार मजे और इलाज के लाभ की पूरी गारंटी हो।
आंटी बहुत ज्यादा अनुभवी थी, उन्होंने ‘हम्म्म…’ कहते हुए एक थैला हाथ में रखा और कहा- मैं यहाँ नहीं रह पाऊंगी, मैं चाय पीने के बाद बाजार जा रही हूँ, डेढ़ दो घंटे बाद आऊंगी. इतना समय काफी है या और देर से आऊं।
मैंने शरमा कर सर झुका दिया और मुंडी हल्के से हाँ में हिला दी।
आंटी के जाते ही मैंने बाहर का दरवाजा लगाया और तनु का हाथ पकड़ कर उस कमरे में ले गया जिसे इन्हीं सब कामों के लिए साफ किया गया था। मैं और तनु दोनों ही सेक्स में काफी अनुभवी थे, पर दोनों के तन के सम्पूर्ण मिलन का यह पहला अनुभव था, जाहिर है रोमांच और उत्सुकता के साथ लज्जा की भी थोड़ी बहुत परतें हम दोनों के बीच थी।
जहाँ मैं प्रथम मिलन की खुमारी में मदहोश हुआ जा रहा था, वहीं तनु किसी नवयौवना कि भांति शरमा रही थी। आंटी बाहर जा चुकी थी और छोटी सो रही थी, अब हमें रोकने या व्यवधान पहुँचाने वाला कोई नहीं था।
फिर भी हमने कमरे का दरवाजा बंद किया, जिससे कमरे की रोशनी थोड़ी कम हो गई, पर मन का उन्माद बढ़ने लगा।
तनु को मैंने अपनी ओर खींचा और तनु किसी पेड़ पर लिपटी बेल की भांति आकर मुझसे लिपट गई और मेरे कान में कहा- संदीप, मैं चाहती तो पहले भी थी कि कभी मैं तुम्हारी बाहों में इस तरह झूलूं और सम्भोग का वो परम आनन्द पाऊं जिसके तुम महारथी हो। पर संदीप, कभी ये ना सोचा था कि मेरी ये हसरत छोटी के इलाज के बहाने पूरी होगी, और वो भी इस बेशर्मी के साथ कि अपनी माँ की जानकारी में हवस का ये खेल खेलूं।
मैंने तनु को बांहों में कसते हुए कहा- कि अब ये सब सोचने का समय नहीं रहा, सच कहूँ तो मैं भी नहीं जानता कि इस तरह के इलाज से छोटी ठीक होगी या नहीं, पर मेरा दिल कहता है कि मैं छोटी को ठीक कर लूंगा। बस अब तुम मेरा साथ दो। तीर कमान से निकल चुका है, अब किसी भी बात में समय गंवाना ठीक नहीं।
इन बातों के दौरान ही मैंने तनु की साड़ी का पल्लू सरका दिया था, और अब मैंने उसे खुद से थोड़ा अलग करते हुए उसकी साड़ी शरीर से अलग कर दी। मद्धम रौशमी में गुलाबी पेटीकोट, गुलाबी ब्लाऊज में एक कामदेवी मेरे सामने खड़ी थी।
उस वक्त ऐसा लगा मानों मैंने भगवान से वरदान में उसे मांगा हो और वो वहाँ पर सिर्फ मेरे लिए प्रकट हुई हो।
जब मैंने उसे और इत्मिनान से निहारा तो उसके पेटीकोट के नाड़ा बांधने वाली जगह से उसके काले रंग की पेंटी की झलक मिल रही थी। मेरा दिल और जोर से धड़कने लगा। उसके भी सीने के उभारों का उठना बैठना बता रहा था कि धड़कनों पर संयम तनु का भी नहीं है.
मैंने सीधे उसकी कमर पर हाथ रखा और अपनी ओर खींच लिया।
उसके अंदर की सिहरन सिसकियों के जरिए बाहर आ गई और मेरे अदर की तड़प मेरी आँखों में चमक बनकर छा गई। मैंने उनके सुर्ख होंठों पर एक चुम्बन अंकित किया, और उसका जवाब भी उसी गर्मजोशी के साथ मिला. अब तक हम आपस में लिपटे चिपटे थे और एक दूसरे को छू भी लिया था, पर सम्भोग के समय का स्पर्श और बाकी सारे स्पर्श में कोई मेल नहीं होता।
जब आप सम्भोग के लिए आगे बढ़ रहे हों तब हर चीज सुहानी हो जाती है, हर हरकत प्यारी लगने लगती है, हर पल मीठा लगने लगता है। तनु के स्पर्श में मुझे आज वही प्यार उसी मिठास का अहसास हो रहा था।
उसके हाथ मेरी गर्दन में चले गये और बालों को सहलाने और खींचने लगे, यह संकेत था कि अब तनु कामुकता की राह में निस्संकोच कदम बढ़ाने को तैयार है।
और मेरे को यह यकीन होते ही मेरा हाथ उसके खूबसूरती और कोमलता समेटे उरोजों का बेरहमी से मर्दन करने लगे।
बेरहमी से मर्दन करने के पहले हल्के फुल्के ढंग से सहलाना बहुत बार हुआ था, पर ऐसा मौका आज आया था, और तनु जैसी अनुभवी के लिए ये मर्दन पीड़ा दायक नहीं थी, बल्कि आनन्द की सीमा को सीधे पहले गेयर से पांचवे गेयर में ले जाने का साधन था।
मुझे तनु के अनुभवी होने और बड़े लंड के स्वाद चखने की बात का पूरा अहसास था और मैं यह भी जानता था कि जब तक औरत अलग अलग लंड नहीं देख लेती है, उसे लंड के छोटे बड़े होने से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जब वो बड़े लंड से चुद चुकी हो तब उसके लिए मेरे जैसा सात इंच वाला लंड भी मायने नहीं रखता. मैं इन्हीं बातों की वजह से फोरप्ले में जोर ज्यादा जोर दे रहा था, क्योंकि कला वाली चीजों में साइज का मायने घट जाता है।
और हुआ भी यही, मैं एक हाथ से ब्लाऊज के ऊपर से ही उसके उरोजों को सहलाता दबाता और मरोड़ता रहा, दूसरे हाथ से उसकी पीठ को सहारा दे रखा था और अपने तीसरे हाथ से उसकी भगनासा पर दस्तक दे रहा था. तीसरा हाथ समझ तो गये ना मैं अपने सात इंच से बड़े खड़े और सख्त हो चुके लिंग से उसकी योनि प्रदेश के ऊपर कपड़ों के साथ ही दस्तक दे रहा था।
हम दोनों ने होठों के चुम्बन को मुंह और जीभ चूसने तक का सफर तय करा दिया था। उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ मुझे अलग ही दुनिया की सैर करा रहे थे, और जीभ चूस कर चुम्बन में साथ देने की उस कामदेवी की कला ने मुझे खड़े खड़े ही जन्नत की सैर करा दी।
पर अब मेरा खुद पर काबू करना कठिन हो रहा था, इसलिए मैंने दो मिनट में अपनी पैन्ट और शर्ट निकाल फेंके, तब तक तनु ने भी अपना ब्लाऊज निकाल दिया।
और जैसे ही उसकी काली ब्रा में कसी उसकी गोरी चुची नजर आई, मैं तो देखता ही रह गया, दूधिया रंग की इतनी मुलायम त्वचा और काले रंग के मखमली कपड़ों ने उन्हें बहुत जोर से जकड़ रखा था, मम्मों के कुछ हिस्से उछल कर बाहर आने को बेताब थे, या शायद मुझे देखने के लिए बाहर निकल आये थे।
अब मैंने एक बार फिर तनु की कमर में हाथ डाला और उसे पीछे की ओर थोड़ा झुकाते हुए उसकी गर्दन को चूमने लगा, कंधे और गर्दन को चूमते हुए मैं जल्द ही उरोजों तक पहुँचा, उसके निप्पल कामोत्तेजना में तन चुके थे, जिसका आभास ब्रा के ऊपर से भी हो रहा था.
पहले मैंने उसके दोनों उरोजों को बारी बारी से ब्रा के ऊपर से ही सहला लिया और निप्पल को भी उसी स्थिति में काटा, चाटा, जब मुझसे रहा नहीं गया मैंने ब्रा खोलने के बजाये उसे ऊपर की ओर सरका दिया, जिससे उसके चुचे और कड़े और आकर्षक होकर मेरे सामने आ गये।
उसके खूबसूरत उभारों पर भूरे रंग का बेहतरीन घेरा था और गुलाबी लाल रंगत लिये निप्पल जिन्हें देख कर मैं अपने मन को उसे चूसने से ना रोक पाया। सच कहूँ तो मुझे तनु की खूबसूरती का सही अनुमान आज तक नहीं लग पाया था, नहीं तो शायद मैं आज तक उसे भोगे बिना नहीं रह पाता.
तनु ने अपने बारे में जितनी बातें पहले बताई थी वो उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत थी।
अभी तक हम खड़े ही थे, हालांकि कामुकता में हमारे पैर कांप रहे थे, और खड़े रह पाना मुश्किल हो रहा था पर हम जो कर रहे थे उसके लिए खड़े में ही पोजिशन बनती है। और उसके उरोजों का पूरा आनन्द लेने के बाद मैं लगभग घुटनों पर बैठ गया और उसकी कामुक गहरी नाभि को चाटने लगा।
तनु की सिहरन स्पष्ट थी और उसकी कंपकंपी ने उसके तन के रोम कूपों को जागृत और खड़ा कर दिया था।
इसी दरमियान मैंने उसके पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया और तनु ने इसी समयकाल में अपनी ब्रा उतार कर फेंक दी। ब्रा और पेटीकोट उतरते ही मेरा खुद पर काबू कर पाना मुश्किल होने लगा, मैंने सीधे अब तक कामरस से भीग चुकी उसकी पेंटी के ऊपर, उसकी योनि की जगह पर अपना मुंह इस तरह लगा दिया जैसे मैं कुछ सूँघने का प्रयास कर रहा हूँ। क्योंकि जितना प्यारा कामरस होता है उतनी ही मधुर उसकी महक होती है।
अब मैंने तनु को नीचे लेटाया उसने अपने चेहरे पर एक हाथ मोड़ कर लिया, जिससे उसका आधा चेहरा ढक गया, शायद उसने ऐसा शर्म की वजह से किया हो। अब मैंने भी जल्दी से अपनी चड्डी बनियान उतारी और तनु को एक नजर निहारने लगा।
उसके पैरों के नाखून से लेकर सर के बाल तक, हर जगह से खूबसूरती और मादकता का अहसास था, बेडौल या भद्दा शब्द शायद उसके जीवन के किसी काल में नहीं आया होगा, उसके तलवे भी गुलाबी रंगत को समेटे हुए थे, तनु का नंगा बदन देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसे गुलाब फेंक कर भी मारो तो शरीर में खरोंच आ जाये।
उभार छोटे थे या बड़े उसकी हाईट कितनी थी ये मैं कई बार बता चुका हूँ, और इस वक्त उसके शरीर को किसी नापतौल की कसौटी में कसना या परखना उसके साथ अन्याय था।
मुझे तो यह भी लग रहा था कि इस फूल सी कन्या को मैं भोगूंगा तब यह सह पायेगी भी या नहीं।
तभी मेरे मस्तिष्क में ख्याल आया कि इसने तो तीन लड़कों को एक साथ धूल चटा दी थी, फिर मेरी क्या औकात है।
मैं मुस्कुराते हुए उसके पैरों की तरफ बैठ गया और उसके पैर के तलवे पर अपनी जीभ घुमाई, उसे मेरे ऐसा करने का अनुमान नहीं था वो सर से पांव तक सिहर गई, क्योंकि तलवे में गुदगुदी भी होती है।
फिर मैंने उसके दोनों पैरों में ऐसा ही किया और फिर उसके पैरों के अंगूठे को मुंह में लेकर चूसने लगा, वो हाथ पैर इधर उधर झटक कर छटपटाने लगी, यह सुख उसकी कल्पना से भी परे था।
मैं अपनी जीभ की करामात दिखाते हुए ऊपर की ओर बढ़ने लगा, मेरे लिंग महराज को भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था, पर हम अपनी पहली मुलाकात को आम से खास बनाना चाह रहे थे।
हिंदी एडल्ट कहानी जारी रहेगी.
अपनी राय इस पते पर देंवे..
[email protected]
[email protected]
What did you think of this story??
Comments