पड़ोसन लड़कियों आंटियों की चूत चुदाई-1

(Padosan Lakiyon, Auntiyon ki Choot Chudai- Part 1)

Antarvasna 2015-03-03 Comments

This story is part of a series:

दोस्तों मैं सुदर्शन फिर आपके सामने हाजिर हूँ।

कहानी से पहले दो शब्द लिखना चाहता हूँ कि पड़ोसी लड़कियों आंटियों की चूत चुदाई की ये सभी घटनाएँ मेरी शादी से पूर्व की हैं और मैं हर सम्भोग से पूर्व कन्डोम अवश्य इस्तेमाल करता था।

कहानी लिखने का मेरा उद्देश्य सिर्फ आपका मन उत्तेजित करने का है।
मेरी सलाह है कि यदि आप विवाहित हैं तो पत्नी के प्रति ईमानदार रहें।

प्रिय मित्रो, मैं भगवान से सरकारी नौकरी माँगता था, पर मुझे हमेशा ही नौकरी के बदले में छोकरी मिलती थी।
अब मैं अपने जिंदगी में घटी कई घटनाओं का जिक्र एक कहानी में कर रहा हूँ।

मेरे पड़ोस में एक प्रोफेसर किराए के लॉज में रहते थे।
उनकी बेटी कविता जो मुझ से 2 वर्ष छोटी थी।

एक बार उसने मेरे घर में कूड़ा फेंका.. मैंने उससे लड़ाई कर ली और उसके पापा से शिकायत भी कर दी.. बात खत्म हो गई।

उसके बाद वो मुझसे खफा रहने लगी।

करीब 10 वर्ष बाद वो गजब की माल हो गई.. पर बचपन की उस घटना के कारण उससे कभी बात नहीं कर सका.. हाँलाकि उसके मम्मी-पापा से बात होती थी।
कविता को चोदने की मेरी इच्छा बहुत थी.. पर वो मुझे मिली नहीं।

कविता की मम्मी जब नहाती थीं तो वे अपने बाथरूम का दरवाजा खोलकर नहाती थीं। मैं अपने घर की तीसरी मंजिल पर स्थित कमरे की खिड़की में दूरबीन सैट करके उन्हें देखता था।

वो शायद वेपरवाह हो कर नहाती थीं.. साड़ी, चोली को उतार कर और साया ऊपर को उठा कर चूचियों को बाँध कर नहाती थीं। फिर बैठ कर साया ऊपर करके अपनी बुर में रगड़ कर साबुन लगातीं.. फिर बुर में ऊँगली अन्दर-बाहर करती थीं।

उनकी इस हरकत को देख कर मेरा लंड खड़ा हो जाता.. तो कभी-कभी मैं सड़का भी मार लेता था।

गर्मी की छुट्टी में कविता की मौसी की दो लड़कियाँ पलक और अनुजा घूमने आईं। मैं रात में पेशाब करने उठा.. उस समय मेरा लंड एकदम टाईट था.. मैं बहुत तेजी से मूतने की कोशिश करता पर धार रूक-रूक कर निकल रही थी।

तभी कविता के घर की लाइट जली.. मैंने पेशाब रोकने की कोशिश की.. पर बहुत तेज जलन होने लगी।

मैं खुद को रोक ना सका.. जब तक आखिरी बूँद धरती पर ना टपक गई।

तभी हंसने की आवाज सुनकर मुड़ कर देखा तो कविता की मौसी की दोनों लड़कियाँ अपनी दीवार से देख रही थीं।
मैं उन दोनों को हँसता देखने लगा।

तो पलक.. जो बड़ी थी उसने इशारे से मुझे बुलाया।

मैं चूत पाने की हसरत में लपक कर दीवार पर चढ़ गया।

वो बोली- तुम्हारा ‘वो’ बहुत मस्त है। तुम हमसे दोस्ती करोगे?

मैंने कहा- दोस्ती बराबर की होती है.. मंजूर हो तो बोलो।

पलक बोली- ठीक है।

मैंने कहा- आपने तो मेरा देख लिया.. अब आप भी अपनी बुर को दिखाओ।

उन दोनों ने अपना स्कर्ट ऊपर करके अपनी चड्डी सरका दी। पलक की बुर आंटी की बुर से कसी थी और बुर के बाहर के होंठों के चमड़े चिपके और टाईट थे। अनुजा की बुर तो एकदम कोरी और छोटी सी थी।

अनुजा और पलक की बुर के भूगोल को देख कर मैंने उनसे कहा- अभी तो यहाँ कुछ हो नहीं हो सकता।

तभी पलक बोली- मौसाजी एक हफ्ते बाद अपने कॉलेज के चपरासी की लड़की की शादी में शामिल होने चपरासी के गाँव 4 दिन के लिए जायेंगे।

मैंने कहा- ठीक है.. मैं तुम्हारी लॉज में दिन में आने की फूलप्रूफ व्यवस्था करता हूँ। तुम दोनों मौसी से कोचिंग पढ़ने को बोलो।

मेरी योजना रंग लाई.. उनके कोचिंग के कहने पर कविता के पापा ने मुझे घर पर बुलाया और बोले- पायल और अनुजा की रेलवे के ‘ग्रुप-डी’ की परीक्षा है.. अगले दिन तुम अपनी तैयारी इनके साथ कर लो। इन्हें भी पढ़ा देना.. मैं तुम्हें 2000 खर्च के लिए दूँगा।

मैंने कहा- अंकल अब टाईम तो कम है अतः 8 घंटे रोज पढ़ाई करवा कर ही कोर्स पूरा होगा.. पर मेरी दो शर्त हैं दोपहर का भोजन आपके यहाँ ही करूँगा और कोई पढ़ाते समय डिस्टर्ब ना करे।

वो बोले- ठीक है।

मैं जानता था कि प्रोफेसर साहब के यहाँ रोज तर माल (बढ़िया भोजन) बनता है। मैं एक हफ्ते तक पढ़ने और पढ़ाने जाता रहा। जिससे लॉज के अन्य किराएदार शक ना करें।

अब प्रोफेसर साहब चपरासी के गाँव निमंत्रण में चले गए।
मैं रोज की तरह पलक और अनुजा को पढ़ाने गया..
मैंने देखा कि दोनों चुदासी सी तैयार और खुली बैठी थीं।

थोड़ी देर की रसीली बातों के बाद बाद मैं पलक के उरोजों (चूचियों) को दबाने लगा और उसके होंठों को चूसने लगा।

कभी उसके जीभ मेरे मुँह में तो कभी मेरी जीभ उसके मुँह में घुसती रही.. जुबानों की कुश्ती होने लगी.. उसकी गर्म लार मुझको बहुत अच्छी लग रही थी।

थोड़ी देर बाद मैंने अपने लंड को चूसने को कहा.. तो उसने पहले से ही पास में रखा हुआ पानी का जग मेरे लौड़े उड़ेल दिया.. और हाथ से मुठिया कर मेरा लण्ड साफ किया.. फिर होंठों में दबा कर आगे-पीछे करते हुए चूसने लगी।

मैं उसकी गर्म जीभ और खिंचाव को बर्दाश्त न कर सका और 2 मिनट में ही उसके मुँह में वीर्य की पिचकारी छोड़ बैठा।
वो हँस पड़ी और उसने मेरे वीर्य को थूक कर पानी से कुल्ला कर लिया।

मैंने पूछा- स्वाद कैसा था?

पलक बोली- जैसे कच्चा आटा।

फिर मैंने उसको लिटाया और उसके एक-एक अंग को चूमने लगा.. फिर बुर के बहते पानी को पोंछ कर साफ़ पानी से बुर को कीटाणु रहित करने के बाद बुर को चाटने लगा।

थोड़ी देर बाद उसकी बुर के दोनों फलकों को फैलाकर जीभ से चोदने लगा.. वो शीघ्र ही सिसियाने लगी।

बोली- अब डाल दो।

मैं बुर को फैलाते हुए लंड के टोपे के अग्रिम भाग को फंसाकर धक्का लगाने लगा।

धीरे-धीरे पूरा लंड बुर की गहराई में खो गया.. सिर्फ अंडकोष बाहर लटक रहे थे।
पलक चुदी-चुदाई थी.. सो कोई चिल्ल-पों नहीं हुई।

फिर मेरी और पलक की चुदाई का जो तूफान उठा.. वो मेरे झड़ने के बाद ही खत्म हुआ।
हम दोनों काफी देर तक एक-दूसरे में समाए पड़े रहे।
इस बीच अनुजा हम दोनों की चुदाई को बड़े मजे से देख रही थी।

अनुजा का क्या हुआ अगले भाग में लिखूँगा।

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top