नए ऑफिसर के साथ गांड मारने मराने का खेल

(Officer Ki Gand Mari)

आजाद गांडू 2021-01-23 Comments

मुझे और मेरे एक दोस्त को रेलवे की नौकरी मिल गयी थी. एक दिन मेरे दोस्त ने मुझे एक नए आये अफसर से मिलवाया. उसके साथ हमारा गांडूपाना कैसे चला?

मेरी पिछली गे सेक्स कहानी
नसीब से गांड की दम पर नौकरी मिली
के आगे की इस सेक्स कहानी को पेश कर रहा हूँ.

पिछली सेक्स कहानी में मैं 24 साल का था व मेरा दोस्त प्रभात बीस-इक्कीस का था. मैं और मेरा दोस्त प्रभात बम्बई रेलवे की प्रवेश परीक्षा देने गए थे.

वहां मैं अपने गांव के परिचित और मुझसे तीन चार साल बड़े एक गबरू सजीले नौजवान नसीम भाई मिल गए थे. नसीम भाई रेलवे में ही कर्मचारी थे.

हम दोनों रात को उनके कमरे में ठहरे. मेरे साथी प्रभात की नसीम भाई ने गांड मार दी. दूसरी रात को प्रभात को अपार्टमेंट के बगल के कमरे में रहने वाले भाई साहब ले गए उन्होंने भी उसकी रगड़ कर मार दी.

इधर दूसरे दिन नसीम भाई ने अपने कमरे में मेरी गांड मार दी थी. फिर न जाने क्यों खुद नसीम भाई ने मेरे लंड से अपनी गांड भी मरवा ली.

फिर कड़ियां जुड़ती चली गईं और हम दोनों सिलेक्ट होकर नौकरी करने लगे.

तीन साल बाद एक दिन प्रभात अपनी शादी का निमंत्रण देने आया व मेरे जोरदार चुम्बन ले डाले.

अब आगे:

उपरोक्त घटना के छह महीने के बाद की बात है. रेलवे का एनलाइनमेंट का कार्यक्रम चल रहा था. वे लोग झांसी से नाप-जोख करते चले आ रहे थे. दुनिया भर का तामझाम साथ था.
फील्ड की पूरी टीम थी. उसी में मेरा दोस्त प्रभात भी था. वह टेक्निकल एक्सपर्ट था. कुछ लेबर का काम करने वाले लोग साथ थे. एक दो और सहयोगी थे.

हां जो इन्चार्ज थे, वो साहब एक बिल्कुल नौजवान थे … उनका नाम सुधीर जी था.
प्रभात उन्हें मेरे पास मिलाने को लाया.

वे उम्र में प्रभात से भी छोटे थे, यही कोई बीस इक्कीस साल के रहे होंगे. मैंने उन्हें बिठाया, चाय मंगवाई.

फिर मैंने पूछा- आपने कब ज्वाइन किया?
वे बोले- अभी छह माह पहले. मैं अभी एप्रेन्टिस ऑफिसर हूँ.

इस बात पर प्रभात न जाने क्यों हंस पड़ा, फिर एकदम से बोला- ये अभी लौंडे अफसर हैं.
मैं चुप रहा.

मगर प्रभात बोला- सब चलता है, सुधीर मेरे दोस्त बन गए हैं.
मैं समझ गया कि प्रभात से कैसी दोस्ती हो गई है.

मैंने कहा- आप बहुत हैंडसम हैं … स्मार्ट हैं.
इस पर सुधीर खुद ही बोला- सर नमकीन कहिये, नमकीन लौंडा … यही तो आप प्रभात को कहते हैं न. मैं उससे किसी भी तरह से कम नहीं हूँ.

सारी बात खुल गई तो मैं झेंप गया- अरे वह मेरा पुराना दोस्त है.
सुधीर- तो आज से मुझे भी अपना दोस्त समझें, सीरयिसनेस से जंगल में जिंदगी कटती ही नहीं है.
मैं -जैसी आपकी मर्जी. आपकी कम्पनी अच्छी रहेगी, कोई सहयोग मेरी तरफ से चाहिए हो, तो जरूर कहें.

अब सुधीर जी जब तब झांसी जाते तो थे, पर रोज नहीं जा पाते थे. वो कभी बहुत थक जाते … कभी देर हो जाती. जिस वजह से जाने का मतलब ही नहीं रहता था.

उनकी इस विवशता को देख कर मैंने अपना निवास का एक कमरा उन्हें दे दिया. उसमें एक कूलर भी लग गया. सीलिंग फैन तो थे ही.

मात्र दो कमरे थे. एक स्टाफ का व्यक्ति उन्हें खाना बना देता, दो लोग ही थे. लेबर अपना बना लेते या सहयोग कर लेते. एक पलंग लग गया … रेलवे के गद्दे थे.

प्रभात भी कभी झांसी जाता, कभी यहीं रूक जाता.
मैंने एक दिन उससे पूछा- दुल्हन कैसी है?

उसने बताया- हमारे पास पैसा नहीं था. मां, बहन की शादी पढ़े लिखे नौकर पेशा से करना चाहती थी. उन्होंने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था. परिवार की शान व सम्मान से जोड़ लिया था. बहन सुन्दर थी, इन्टर पास भी थी. शादी में तो दहेज चाहिए नहीं था. अतः एक लड़के से शादी कर दी. तो उसकी भाभी की बहन से मुझे शादी करना पड़ी. यह एक समझौते वाली शादी है. इसमें लड़के की पसंद का कोई मतलब नहीं होता है. ठीक है … सब चलता है. लड़की एवरेज है, कोई खास नहीं है.

मैं- अरे यार … मेरे हीरो को ऐसा जोड़ा?
प्रभात- तभी तो सर … उस दिन पिता जी सकपका गए थे. लड़की औसत से भी कम है … देखने में भी खास नहीं पढ़ी भी नहीं … शादी के लिए नकली सर्टीफिकेट बनवा रखा था. बाद में सब कलई खुल गई. वो गांव की है, कल्चर्ड भी नहीं है. ससुराल वालों की स्थिति ये है कि अब वो मुझ पर उल्टे चढ़े रहते है.
उसके मुँह से ऐसी बातें सुन कर मेरा भी दिमाग़ खराब हो गया.

एक दिन मैं वहीं क्वार्टर में लंच टाईम पर बैठा था. गाड़ियां निकल गई थीं. मेरे साथी ड्यूटी पर थे. सुधीर जी उस दिन यहीं सोए थे.

मैं उनसे बोला- आईए, मेरे साथ लंच करें.
वे बोले- आाप मेरे लिए कितना करते हैं, कुछ रिर्टन भी नहीं लेते.

मैंने खुलते हुए कहा- तुम कहो तो एक क़िश्त अभी वसूल लूं.
मेरी बात से वे हतप्रभ हो गए- अभी कितना?
मैं- बस थोड़ी सी, जो प्रभात देता है … तुम भी दे दो.

वे मुस्कुरा कर बोले- ठीक है. मैं अभी दे देता हूं.

वे अपने पैंट की जेब से पर्स निकालने लगे.
मैं- अभी उसे वहीं रखा रहने दो. मैं खुद लिए लेता हूं.

मैंने उनके गले में हाथ डाला, तब वे थोड़ा समझे … फिर मैंने उनका जोरदार चुम्बन ले डाला.
वे जोर से हंसे और अपने हाथ के उल्टे पंजे से होंठ पौंछने लगे.

मैंने कहा- चलो छोटी वाली किश्त निपट गई … अब खाना खाएं!

वे बैठ कर लंच लेने लगे.
एक दो दिन वे शांत रहे.

फिर एक दिन मैंने उनसे कहा- क़िश्त?
वे हंस दिए, तो इस बार मैंने उनका लम्बा किस ले लिया.
वे बोले- एक और क़िश्त.
मैंने एक और ले ली.

एक दिन वो बोले- आज बड़ी क़िश्त?
मैं- वह भी ले लूंगा.
वे चेहरा सवालिया बना कर देखने लगे.

तो मैंने कहा- प्रभात से पूछ लेना … या बिना पूछे ही दोगे.
वे बोले- हां जरूर, इसमें क्या पूछना. जो आप कहें, उसमें मैं राजी.
मैंने कहा- चलिए, मूड बनने दीजिए.

दो दिन बाद मैंने ड्यूटी से आकर क्वार्टर पर पहुंचा. मैं टिफिन लाया था उसे रखा. और कहा कि टिफिन रखे जा रहा हूं, लंच टाईम पर आऊंगा.

सुधीर जी अभी सो कर उठे थे. मैं पलंग पर बैठ गया. वे लेट्रिन से निकले थे, अंडरवियर में थे … हाथ धोकर आए थे.

मेरे सामने पीठ करके तौलिया से हाथ पौंछ रहे थे. मेरे चेहरे के सामने उनके चूतड़ थे. मैं उन्हें सहलाने लगा.

मैंने कहा- आपका चेहरा ही नमकीन नहीं है, चूतड़ भी मस्त हैं. प्रभात पर तो जवानी फूट पड़ी है … पर आप भी कम नहीं हैं.

मैं सुधीर के कूल्हे सहला रहा था.

वे बोले- ढंग से करो न.. डर डर के क्यों कर रहे हो, अच्छी तरह से लो.
मैं खुलकर उनकी गांड मसलने लगा.

अब वे मुस्करा दिए- आप वाकई शौक रखते हैं!

मैंने उनसे उत्साह मिलने पर अपना मुँह उनके चूतड़ों से लगा दिया. और दोनों चूतड़ बारी बारी से चूम लिए.

वे हंसे बोले- अरे गांड का चूमा तो लंड से लिया जाता है, ऐसे तो अनाड़ी लेते हैं.

अब मैंने अपनी बांह उनकी कमर के चारों ओर लपेट कर उन्हें अपनी गोदी में खींच लिया और होंठों के दो तीन चूमा ले लिए. फिर मैं खड़ा हो गया और उनको पलंग पर झुका दिया.

वे बोले- मैं मजाक कर रहा था.

पर इतनी देर में तो मैंने उनका अंडरवियर नीचे खिसका दिया. वे ‘न … न ..’ तो कर रहे थे, पर गांड मराने के लिए झुक गए.

अब मैंने लंड में थूक लगा कर गांड पर टिका दिया और उनकी कमर पकड़ कर कसके धक्का दे दिया. मेरा सुपारा अन्दर घुस गया था.
वो दर्द से आह करने लगे.

मैंने कहा- टांगें चौड़ी करो और गांड थोड़ी ढीली करो.
उन्होंने की और मैंने पूरा लंड अन्दर डाल दिया.
वे ‘आ आ ..’ करने लगे, फिर चुप हो गए.

मैं धीरे धीरे धक्के देने लगा. फिर धक्कों की रफ्तार बढ़ा कर पूछा- यार लग तो नहीं रही!

वे चुप रहे … फिर गांड चलाने लगे. मैं समझ गया कि साब पुराने खिलाड़ी हैं. अब उनकी गांड ढीली पड़ गई थी. हरकत बंद हो गई थी.

वे पीछे मुड़ कर बोले- अभी झड़े नहीं?
मैंने कहा- प्रभात जितना जोर तो नहीं है, पर मजा आया कि नहीं!

वह- नहीं यार, प्रभात से ज्यादा मजा आया … आपका हथियार भी मस्त है.
मैं- बस थोड़ा और … अभी गांड न सिकोड़ना … थोड़ी देर ढीली रखें कॉपरेट करें … हल्की हल्की जल रही होगी. बस अब धक्के नहीं दूंगा.

वे मस्ती में थे, सो बोले- ऐसी कोई बात नहीं … आप अच्छी तरह निपट लें. मैं थोड़ा और दर्द सह लूंगा … मजा भी तो ले रहा हूं.
मैं उनका चुम्बन लेने लगा. तो वे मेरा ही होंठ चूसने लगे.

फिर गांड चुदाई के दौरान ही हम दोनों करवट से हुए, तो सामने प्रभात खड़ा था.

उसे देख कर हम दोनों अलग हो गए.

मैंने उससे पूछा- तुम कब आए?
वह बोला- आप किवाड़ लगाना भूल गए थे … यह तो अच्छा हुआ कि मैं आ गया. कोई और होता, तो बवाल हो जाता … आपका मजा बिगड़ गया सॉरी.

फिर वो मेरे से बोला- अब थोड़ा आप बाहर घूम आएं.

ये कह कर उसने सुधीर का पहना हुआ अंडरवियर फिर से नीचे करके उतार दिया. उन्हें पलंग पर लिटाया और कहा- ठीक से पलंग पर लेट जाओ.

सुधीर औंधा लेट गया. वो तेल की शीशी किचिन से लाया, अपने लंड पर तेल लपेटा और सुधीर की खुली गांड में लंड पेल दिया.
वो मेरे से बोला- भाई साहब केवल चुदाई न देखते रहें … बाहर भी नजर रखें.

मैं कमरे से बाहर खड़ा हो गया और किवाड़ लगा दिए. इधर से उसकी चुदाई का काम साफ़ दिख रहा था. मैं बाहर आस-पास भी देख लेता था.

प्रभात अपना मस्त लंड सुधीर की गांड में पेले जा रहा था. दे दनादन दे दनादन मचाए था.
वह इतने जोर से जोश में धक्के लगा रहा था कि जैसे गांड को आज फाड़ ही डालेगा. जब वह लंड खींचता, तो केवल सुपारा ही अन्दर गांड में रहता बाकी पूरा लंड बाहर दिखता. एक दो बार तो पूरा बाहर आ गया, उसे दुबारा डालना पड़ा.

सटा सट सटा सट लंड अन्दर बाहर अन्दर बाहर कर रहा था.

ये देख कर मेरा लंड तो दुबारा से खड़ा हो गया.
तभी उधर एक बंदा आता दिखा. तो मैंने जोर से आवाज लगा कर पूछा- भैया कैसे?

मैं उसके पास चला गया व बात करके उसे वहीं से लौटा दिया. जब वो दोनों निपट गए, तब दरवाजे खोले.

सुधीर- किसी की गांड मारने में जितना आनन्द आता है, उतना ही किसी को गांड मारते देखने में आता है. आपने इन्हें देखने नहीं दिया.

प्रभात हंसने लगा और मुझसे बोला- कभी जब सुधीर मेरी मारें … तब देख लेना.
मैं- अच्छा ऐसा भी है क्या?
प्रभात- हां हम अटा-सटा करते रहते हैं.

वे बाथरूम से निपट गए, सुधीर बाथरूम में घुस गया. तभी उनका खाना बनाने वाला आ गया.

‘साहब पोहे और चाय नाश्ता ले आऊं?’
‘हां ले आओ.’

फिर सुधीर नहा कर निकले, तैयार हुए. मैं ड्यूटी पर जा बैठा.

ऐसे ही दो-तीन बार मुझे सुधीर की मारने को मिली.

एक बार प्रभात ने शिकायत की- वाह अब सुधीर ही सुधीर … मैं कहीं नहीं?
मैंने कहा- यार, तुम तो बीवी से निपट कर आते हो … फिर सुधीर जैसे नमकीन माल पर भी हाथ साफ करते हो … मेरी भी तो समझो!

प्रभात- अच्छा आप भी केवल सुधीर के साथ … ये नहीं चलेगा, मैं भी तो हूं. आज मेरी मारें.
मैंने कहा- यार अब तुम बड़े हो गए हो, अब मारने लगे हो.

वह बोला- बातें नहीं, मेरी भी खुजला रही है. फिर तो हम लोग चले जाएंगे, आज हो ही जाए.
मुझे उसकी बात मानना पड़ी.

हम दोनों उसी कमरे में पहुंचे. वो कपड़े उतार कर खड़ा हुआ, तो देखा उसका शरीर मस्त हो गया था. अब वो दुबला नहीं था. मस्त गबरू जवान था. क्या उसकी बांहें, चौड़े कंधे, मजबूत जांघें. फिर जब वो घूमा, तो बड़े बड़े मस्त चूतड़. मुझे तो उसे देख कर ही तरन्नुम आ गई.

वो केवल अहसान उतारने के लिए मुझसे अपनी गांड मराना चाहता था. दोस्ती की खतिर वो मेरा मन रखना चाहता था.

वह फिर लेटा और औंधा हो गया.
मैंने एक तकिया उसकी कमर के नीचे रखा, तो वो बोला- यह क्यों?
मैंने कहा- अब तेरे चूतड़ बड़े हो गए हैं और काफी मस्त हो गए हैं.

वो हंस दिया.

मैंने जोश में उसके चूतड़ मसल डाले, वह आ आ कर उठा.

फिर मैंने उसके दोनों चूतड़ों का चुम्बन ले लिया. गांड के छेद पर पर थूका … और उंगली से गांड को ढीली किया.
वो भी गांड खोल कर लंड का इंतजार करने लगा.

मैंने लंड टिका दिया, मेरा दोस्त एकदम तैयार था. सच में उसकी गांड बड़ी कुलबुला रही थी. उसने मेरा पूरा लंड बिना हल्ला मचाए अन्दर डलवा लिया.

अब मैं मजे से लंड अन्दर बाहर करने लगा. तेज तेज धक्के देना शुरू कर दिए.
मैंने पूरे जोश में गांड चुदाई का धमाका शुरू कर दिया.
वह भी मजे से आ आ करते हुए कहने लगा- वाह … वाह … आज तो मजा बांध दिया.

मैं रूका नहीं … दम से लगा रहा. मैं हांफ गया था मगर फिर भी गांड मारने में लगा रहा.

अब तो उसने खुद ही अपनी गांड चौड़ी कर ली और चूतड़ फैला लिए.

वह मेरा पुराना दोस्त था, उसे समझाना ही नहीं पड़ा … वो खुद अपने आप अपनी गांड को लंड के मुताबिक़ करता जा रहा था.

जब मैं थक कर रूका, तो मैंने चाहा कि लंड बाहर निकाल लूं, पर मैं उसकी ख़ुशी के लिए लंड अन्दर डाले रहा.

अब वो कमर हिला कर गांड चलाने लगा. वो मस्ती से चूतड़ उचका उचका कर लंड ले रहा था.

कुछ ही देर में हम दोनों थक गए थे. मैं झड़ भी गया था, इसलिए मैं उसके बगल में लेट गया. वह उठा और वो पेशाब करके अपनी गांड कर धो आ गया.

आकर मेरे बगल में पलंग पर खड़ा होकर बोला- आज तो मजा बांध दिया … मैंने आपको हरा दिया. हांफ गए यार मजा आ गया, थैंक्यू … आज आप पूरे जोश में थे. मेरी गांड की ऐसी-तैसी कर दी.

मैंने कहा- यार … तुम भी तो ऐसा ही चाहते थे, तो ऐसा ही सही. सही में मजा आ गया. तुम ऐसे ही करते हो न!

मैंने गांड हिला कर उसकी नकल की.
वह ये देख कर जोर से हंसने लगा- वाह … गुरू को चेले की नकल करते देख कर मजा आ गया. वैसे आप मुझे चूतिया बना रहे हो. आपके पास पहले से ही सब तरकीबें हैं. मुझे आपने आज बहुत संतुष्ट किया. अब आप आराम करें, मैं थोड़ी देर में आऊंगा.

ये कह कर वो कपड़े पहन कर बाहर चला गया.

अब अगली बार मैं प्रभात के साथ आए सुधीर जी … और उनके साथ एक नए शख्श असलम की गांड चुदाई की कहानी लिखूंगा. आप कमेंट्स करना न भूलें.

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top