नई जवानी की बुर की चुदाई-1

(Nai Jawani Ki Bur Ki Chudai- Part 1)

This story is part of a series:

दोस्तो, आप सब के सामने आपका प्यारा शरद जवान बुर की चुदाई की कहानी के साथ हाजिर है।
लेकिन इस बार यह एक ऐसे प्रशंसक की कहानी है जो थोड़ा उम्र दराज हैं, अन्तर्वासना की कहानियाँ भी पढ़ते हैं… और मुझे मेल लिखकर मेरी लिखी कहानियों की प्रशंसा करते हैं।

पर एक दिन ये महाशय मुझसे बोले- शरद जी, मेरे साथ भी एक छोटी घटना घटी है, अगर आप लिखना चाहें तो, मैं आपको कहानी भेजूँ?
मेरे हाँ कहने पर उन्होने अपनी कहानी भेजी पर साथ ही यह रिक्वेस्ट की कि उनकी मेल आईडी न दूं, जो भी कमेंट होंगे वो कहानी के प्रकाशन पर ही पढ़ लेंगे या फिर मेरी मेल पर जो कमेंट होंगे वो मैं उनको बता दूं।

मैंने उनकी बात मानते हुए उनके द्वारा भेजी गई कहानी को पढ़ा, कहानी मेरी दृष्टि में काफी रोचक है, बाकी आप सभी मेहरबानों के कमेंट के उपर है कि यह कहानी रोचक है कि नहीं।
इसी के साथ मैं अपने शब्दों को मिलाते हुए उन महाशय की कहानी को लिख रहा हूँ, उम्मीद करता हूँ कि कहानी पसंद आयेगी।

दोस्तो मेरा नाम शक्ति देवनागर… मैं 46 साल का हूँ, लखनऊ का रहने वाला हूँ और एक प्राईवेट ऑफिस में क्लर्क के पद पर कार्यरत हूँ।

दो साल पहले तक मेरी आर्थिक स्थिति सही नहीं थी, किसी तरह गुजर बसर चल जाता था, पर दो साल पहले इस प्राईवेट कम्पनी का ऐड आया था और उस ऐड को पड़ने के बाद मैं भी इन्टरव्यू देने गया। इन्टरव्यू देते समय पता नहीं मुझे क्या हो गया था कि मेरे आँखों से आँसू निकल पड़े। शायद विश्वास नहीं था अपने ऊपर… लेकिन जो मैडम थी, शायद 22 वर्ष की थी, साधारण नाक नक्शे की थी, उनकी दया के कारण मुझे वो नौकरी मिल गई।

हालाँकि सैलरी कम थी, लेकिन बंधी-बंधाई सैलरी मिलने की आस में मैंने उस काम के लिये हाँ कर दिया। अगले दिन से मैं काम पर लग गया।
वो मैडम जिसका नाम प्रिया है एक कुछ सख्त मिजाज की लेडी है। उसने मुझे अपने ही चेम्बर में एक कोने की सीट दिखाई और मुझे काम समझाने लगी।

वैसे तो वो किसी बात का बुरा नहीं मानती थी, लेकिन अगर किसी का काम अधूरा हो, तो फिर उस बन्दे की शामत ही थी, चाहे फिर वो लड़की हो या लड़का। उसका कपड़ा पहनने का तरीका बहुत ही उत्तेजक था… वो टीशर्ट और जींस ही अकसर पहनती थी। वो कपड़े बहुत ही टाईट पहनती थी, इससे उसके पुट्ठे और छाती का उभार खुल कर प्रदर्शित होता था।
चूंकि मैं नया नया था, इसलिये मैं ज्यादा इस बात को तवज्जो नहीं दे रहा था।

हालांकि एक बात मैंने नोटिस की कि वो सभी बातों का जवाब बड़ी सफाई के साथ देती थी। चाहे बात द्विअर्थी ही क्यों न हो।

ऐसे ही एक दिन में बैठा हुआ था कि एक और कर्मचारी था जो काफी देर से मेरी सीट पर बैठ हुए काम कर रहा था, मुझे देखते खड़ा हुआ और कहीं जाने की तैयारी कर रहा था और बार-बार ‘मैडम इजाजत है क्या…’ कह रहा था।
मैडम झल्ला कर बोली- अरे बाबा जाओ ना!
तभी वो शायद मैडम को छेड़ते हुए बोला- जाऊँ कैसे? अभी आपने लिया नहीं और फिर कहोगी तुमने दिया नहीं इसलिये मैंने लिया नहीं।

मैडम उसी समय एक रजिस्टर उठाया और उसमें कुछ लिखने के बाद बोली- ठीक है न, अब तो तुमने दे दिया और मैंने ले लिया, अब जाओ1
मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने मैडम से पूछा- मैडम, ये कैसा लेना देना है?
मेरी तरफ देखते हुए बोली- एटेन्ड्स की बात हो रही थी।

उस दिन से पहले तक मैं थोड़ा सा खुल नहीं पा रहा था, शायद नई-नई ज्वाईनिंग के कारण… लेकिन अब मेरी भी थोड़ी सी धारणा बदल गई थी और मैं भी उससे छेड़छाड़ करने लगा था। पर वो मेरे काबू में नहीं आ रही थी।
हाँ… एक बात तो है वो अपने काम के प्रति बड़ी ईमानदार थी, काम अगर पेन्डिंग है तो वो काम पूरा करके जाती थी।

इसी तरह एक बार काम करते हुए बहुत देर हो चुकी थी, हम दोनों साथ-साथ ही घर के लिये निकले, रास्ते में मैंने उसे ड्रॉप करने के लिये ऑफर दिया, लेकिन उसने मना कर दिया।
इससे मेरा मन थोड़ा बोझिल हो गया और फिर मैं अपने काम से काम रखने लगा।

धीरे-धीरे एक साल बीतने लगा और मैं प्रिया से केवल काम की बात करता था। मुझे ऐसा लगने लगा कि वो मुझे इग्नोर कर रही थी क्योंकि उसने न तो मुझे अपना नम्बर दिया और न ही मेरा नम्बर लिया।

खैर बात उसके बर्थ डे से शुरू होती है, उस दिन उसने मुझे जबरदस्ती अपनी बर्थ डे पार्टी पर बुलाया और अच्छे से बात करना शुरू की और उस दिन से वो मेरे पास ज्यादा समय बिता रही थी, अब मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी और मैं उसे छेड़ने लगा था, जिसका वो रिप्लाई भी मुस्कुरा कर देने लगी।

एक दिन मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया- तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है या नहीं?
उसने बोला- ऑफिस के काम से फुर्सत नहीं मिलती तो बॉयफ्रेंड कहां से पालूँ?
तो मुझे लगा कि उसके करीबी होने का मुझे एक मौका मिल सकता है।

धीरे-धीरे मैं उससे खुल कर बात करने लगा, वो भी मुझे वैसा ही जवाब देने लगी, लेकिन बीच-बीच में वो ऐसी हरकत कर देती कि फिर मुझे वापस अपनी मांद में जाना पड़ता।
लेकिन ऊपर वाले के यहाँ देर है अंधेर नहीं।

शुक्रवार का दिन था और शनिवार के दिन कुछ जरूरी कागज की जरूरत थी, ताकि उसको दूसरे ऑफिस में फारवर्ड किया जा सके, मुझे भी ऑफिस के काम से सुबह ही लखनऊ जाना था। तो हमारे बॉस ने तय किया कि चाहे जैसे हो उस काम को कम्पलीट करके प्रिया को सभी कागज हैण्ड ओवर आज ही कर देना है ताकि प्रिया उस पेपर को डिसपेच करने से पहले एक बार अच्छे से चेक कर ले।
प्रिया घर जा चुकी थी और बॉस भी घर जा चुके थे। मैंने अपना काम खत्म किया और पेपर लेकर प्रिया मैडम के घर आ गया।

मेरा पेट दर्द हो रहा था और मुझे प्रेशर भी बहुत मार रहा था। जैसे ही मैं प्रिया के घर पहुँचा और उसके घर की कॉल बेल बजाई, दरवाजे पर प्रिया ही थी, दरवाजे पर ही उसने वो पेपर लिये और वापस जाने लगी, तो मैंने अपनी प्रॉबल्म बताई, पहले तो वो न नुकुर करती रही, और बोली कि वो घर में अकेली है और उसके मम्मी पापा कभी भी आ सकते है, असामान्य स्थिति से बचने के लिये वो मना कर रही है।

लेकिन फिर मेरी हालत पर दया दिखाते हुए मुझे अन्दर बुला लिया और वाशरूम दिखाते हुए बोली- जाओ।

मैं बातों को ध्यान दिये बिना वाशरूम में घुसा और फ्रेश होने लगा। अब जैसे-जैसे मैं अपने पेट दर्द पर काबू पाने लगा, वैसे-वैसे मेरे दिमाग में खुरापात शुरू होने लगी, आज एक मौका है अगर वास्तव में मेरे लिये प्रिया के दिल के कोने में थोड़ी भी जगह होगी तो मेरी बात मानेगी, नहीं तो फिर जो मेरे साथ होगा, उसके लिये भी मैं तैयार था।
इसलिये फारिग होने पर मैंने अपने पूरे कपड़े उसी वाशरूम में उतारे और बाहर नंगा ही आ गया।

जैसे ही मैंने लैट्रिन का दरवाजा खोला, प्रिया सामने थी, मुझे नंगा देखकर बोली- शक्ति तुम नंगे क्यों हो?
आम तौर पर कोई भी लड़की किसी को नंगा देखे तो तुरन्त अपनी आँख बन्द कर लेती, पर प्रिया मुझे एकटक देख रही थी, मुझ उसकी इस बात से थोड़ा हौंसला मिला। तभी वो मुझसे बोली- जल्दी से अपने कपड़े पहनो और जाओ यहाँ से, मेरे मम्मी-पापा कभी भी आ सकते हैं।

‘यह तो कोई बात नहीं हुई कि तुम मुझे नंगा देखो।’ मैं अभी अपनी बात पूरी कर ही रहा था कि वो बोल पड़ी- मैंने तुमसे थोड़े ही कहा था कि पखाने से नंगे निकलो, अब जाओ यहाँ से1
मैं समझ रहा था कि थोड़ा और प्रयास करने से कम से कम मैं भी प्रिया को नंगी देख सकता था।

मैंने अपने कपड़े उठाये और गुसलखाने में घुस गया और वहीं से प्रिया को आवाज लगाई, मेरी आवाज सुनकर प्रिया गुसलखाने के पास आई और मुझे हल्के से झड़पते हुए बोली- अभी तक तुमने अपने कपड़े नहीं पहने, जल्दी करो, मम्मी-पापा आते ही होंगे।
मैंने उसकी इसी बात को पकड़ते हुए अपनी कपड़े को पानी से भरे हुए टब की तरफ करते हुए बोला- तुमने मुझे नंगा देखा है, मुझे भी तुम्हें नंगी देखना है।
‘यह नहीं हो सकता, तुम अपने कपड़े पहनो और अब चले जाओ। नहीं तो अब बुरा हो जायेगा।’

मैं थोड़ा डर गया, लेकिन मन ने कहा कि ‘एक अन्तिम कोशिश कर लो, शायद नजर को सकून मिल जाये।’

यह ख्याल आते ही मैंने चड्डी को टब में डाल दिया और प्रिया से बोला- अगर तुम नंगी नहीं होगी तो मैं अपने सब कपड़े पानी में डाल दूंगा और इसी तरह नंगा रहूँगा, फिर तुम जानो और तुम्हारा काम!
बनियान डालने वाला ही था कि प्रिया मुझे रोकते हुए बोली- रूको!
कहकर वो अपने एक-एक कपड़े उतारने लगी और पूरी तरह से नंगी हो गई।

क्या उजला शरीर थी प्रिया का… उम्म्ह… अहह… हय… याह… मैं टकटकी लगा कर देखता ही रह गया! क्या छोटे-छोटे संतरे जैसी उसकी चुची थी, उन संतरों जैसी चुची पर काली छोटी मोटी सी निप्पल थी। उसकी योनि पर घने-घने गुच्छे रूपी बालों को पहरा था। वह अपने दोनों हाथों से अपनी बुर को छुपाने का अथक प्रयास कर रही थी। उसकी कांखों और टाँगों पर भी बाल थे, जैसे एक अनछुई नवयौवना के होते हों।
तभी वो मुझे झकझोरते हुए मुझसे बोली- शक्ति, अब तुमने मुझे नंगी देख लिया है, अब तुम जाओ प्लीज!

मैं तुरन्त अपने घुटने के बल पर उसके समीप बैठ गया और उसकी नाभि को चूमते हुए उसे थैंक्स बोला।
वो मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली- जाओ प्लीज, मम्मी-पापा कभी भी आ सकते हैं।

मैंने उसकी बात को सुना और खड़े होकर उसको अपने से चिपका लिया, वो भी मुझसे कस कर चिपक गई, वो बड़ी गहरी-गहरी सांसें ले रही थी और उसकी गर्म सांसें मुझसे टकरा रही थी।
फिर वो मुझसे अलग होते हुए बोली- अब जल्दी से जाओ, मैंने तुम्हारी बात मान ली, अब तुम भी मेरी बात मानो।
मैंने तुरन्त ही अपने कपड़े पहने और वहां से चला गया। वो मुझे नंगी ही दरवाजे तक छोड़ने आई।
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शनिवार और रविवार का दिन मेरे लिये कैसा बीता, मैं खुद भी नहीं समझ पाया, मेरे मन में प्रिया की बुर की चुदाई का ख्याल आ रहा था… मैं उसको फोन करना चाह रहा था, पर हिम्मत नहीं पड़ रही थी।

खैर किसी तरह सोमवार को मैं ऑफिस पहुँचा, तो प्रिया वहां नहीं थी। ऑफिस से पता चला कि शनिवार को जो जरूरी काम था, उसको करके वो चली गई थी।
अब मुझे अपने किये पर अफसोस हो रहा था। मैं सोच रहा था कि सिर्फ एक बार प्रिया से मेरी बात हो जाये तो मैं उससे माफी मांग लूँ।
खैर उस दिन मैंने किसी तरह से अपना समय काटा और घर जाने को हुआ तो मेरे कदम खुद-ब-खुद प्रिया के घर की तरफ बढ़ गये।
घर के नीचे पहुँच कर मैं घंटी बजाने ही वाला था कि मेरे मन ने एक बार फिर ऐसा करने से रोक दिया।

मैं चुपचाप घर चला आया, लेकिन मैं पूरी रात इस बात का विचार करके नहीं सो पाया कि कहीं मैंने प्रिया को हर्ट तो नहीं कर दिया, मुझे लगा कि प्रिया की बुर की चुदाई के बारे में मेरी सोच अनुचित है। लेकिन प्रिया की चुप्पी ने भी तो मेरा हौंसला बढ़ाया था और वो खुद भी मुझसे लिपटी हुई थी, उसकी बातों में कहीं भी सख्ती नहीं थी।

खैर, मैं दूसरे दिन ऑफिस पहुँचा तो देखा तो प्रिया भी ऑफिस में थी। उसको देखकर मेरे मन भी खुश हुए बिना न रह सका, पर हम दोनों एक दूसरे से बात नहीं कर रहे थे। मैं उससे माफ़ी मांगना चाह रहा था, पर मौका हाथ नहीं आ रहा था।

खैर एक बजे के आस-पास जब हम दोनों को एकान्त मिला तो मैं तुरन्त प्रिया की तरफ घूमा और अपने हाथ जोड़कर उससे माफी मांगने लगा।
वो तुरन्त मेरे हाथ को पकड़कर बोली- इसकी कोई जरूरत नहीं है, जो होना था हो गया।
फिर हम दोनों अपना काम करने लगे।

मैं एक जवान बुर की चुदाई के लिए आतुर था अगले भाग में देखें कि मेरी कोशिश क्या रंग लाती है।
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