पहलवान से बिस्तर पर कुश्ती और चूत की ठुकाई
(Hot Lady Xx Kahani)
हॉट लेडी Xx कहानी एम तलाकशुदा औरत की है जिसे कुश्ती के अखाड़े में एक पहलवान पसंद आ गया. दोनों तरफ वासना भड़क चुकी थी. तो तन का मिलन कैसे हुआ?
सभी पाठकों को मेरा नमस्कार। मैं आपकी प्यारी पहाड़न रितिका शर्मा एक बार फ़िर हाज़िर हूँ अपनी नई आपबीती हॉट लेडी Xx कहानी आपके साथ साझा करने के लिए।
इससे पहले अन्तर्वासना पर मेरी दो कहानियां
पंजाबी सांड ड्राइवर से घोड़ी बन कर चुदी
मैं बीच सड़क पर रण्डी बन के चुदी
प्रकाशित हो चुकी हैं तो आपमें से ज़्यादातर लोग मुझे जानते ही होंगे। फिर भी नए पाठकों को कहानी शुरू करने से पहले अपना परिचय दे देती हूँ।
यह कहानी सुनें.
मेरी उम्र 45 वर्ष है और मैं हिमाचल से हूँ।
कई साल पहले ही मेरा तलाक हो चुका है।
मेरा एक बेटा है 20 साल का … जो आजकल दिल्ली में पढ़ रहा है।
तलाक के बाद से मैं अपने बेटे के साथ एक अलग घर में रहने लगी थी जो मुझे कोर्ट के फैसले के बाद मिला था।
शादी के बाद से मैं पति के बिज़नस में हिस्सेदार थी लेकिन तलाक़ होने के बाद मैंने उनसे अलग होकर अपना बिज़नस अलग कर लिया।
मेरा रंग गोरा है और मेरा फिगर 34-32-37 का है। पिछले 9 सालों से मैं शहर में एक ट्रैवल एजेंसी चला रही हूँ।
तो आप सबको ज़्यादा इंतजार न करवाते हुए सीधा कहानी पर आती हूँ।
ये घटना इस साल फ़रवरी की है।
हुआ यूं कि पिछले साल पास ही के एक गाँव में एक छोटे वार्षिक मेले में मेरा जाना हुआ।
दरअसल मेरी एक सहेली जिला परिषद की सदस्य है और जनप्रतिनिधि होने के नाते वह उस मेले के समापन समारोह पर बतौर मुख्यातिथि आमंत्रित थी।
उसने मुझे भी साथ चलने के लिए कहा।
मैं भी काफ़ी वक़्त से किसी कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं हुई थी इसलिए मैंने झट से हामी भर दी।
कार्यक्रम वाले दिन मैं साड़ी में सज धज कर तैयार हुई और अपनी सहेली के साथ कार्यक्रम में जाने के लिए निकली।
कार्यक्रम में पहुँच कर हमारा स्वागत हुआ और हमने स्टेज पर अपनी कुर्सियां सम्भाल लीं।
कार्यक्रम में उस दिन कुश्ती प्रतियोगिता का फाइनल मुकाबला भी हो रहा था।
कुश्ती उत्तर भारत के लगभग हर मेले में आयोजित किया जाने वाला खेल है।
इस मेले में भी दूसरे प्रदेशों के बहुत से पहलवान हिस्सा लेने आए थे।
हमारे पहुँचने से पहले ही कुश्ती का फाइनल मुकाबला शुरू हो चुका था जो मेला मैदान में स्टेज से थोड़ा दूर चल रहा था।
मुकाबले की समाप्ति के बाद स्थानीय कलाकारों द्वारा स्टेज पर कुछ लोकनृत्य प्रदर्शित किए गए और फिर बारी आई समापन समारोह की।
मेरी सहेली मंच के एक कोने पर रखे डाइस पर जनता के सम्बोधन के लिए गई तो मैंने भी मंच से नीचे नज़रें दौड़ा कर ध्यान से देखा।
कुश्ती करने आए हट्टे कट्टे पहलवान मुझे ही देख रहे थे।
मन ही मन मुझे बहुत खुशी हुई और मैं भी बीच बीच में उड़ती नज़रों से उस तरफ़ नज़र रखने लगी।
मेरी सहेली का सम्बोधन खत्म हुआ तो आखिर में बारी आई पुरस्कार वितरण की!
जिसमें पहले स्कूली बच्चे, स्थानीय कलाकार और आख़िर में कुश्ती प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया जाना था।
मेरी सहेली सबको ईनाम दे रही थी और मैं उसके बगल में खड़ी थी।
कुश्ती का एक पहलवान भी ईनाम लेने मंच पर चढ़ा जो पिछले आधे घण्टे से सिर्फ एकटक मुझे देख रहा था।
मुझे देखते हुए मैंने उसे कई बार नोटिस किया था पर नज़रें मिलने पर वो कहीं और देखने लग जा रहा था।
मंच पर उसे चेक और मोमेंटो से सम्मानित किया जा रहा था और मेरी सहेली उससे कुछ सामान्य सवाल कर रही थी तो भी उसकी नज़रें मेरी सहेली तो कभी मेरे वक्ष पर ज़्यादा थीं।
पुरस्कार लेने के बाद आगे बढ़ते हुए जब हमारी नज़रें मिलीं तो उसने पलक झपकते ही मुझे ऊपर से नीचे तक जिस तरह से देखा, मेरे शरीर में बिजली सी कौंध गई।
मुझे जिस्म में एक अजीब सी गुदगुदी महसूस हुई।
अब मेरा मन भी लुच्चा होने लगा और मैंने उस पहलवान को एक औरत की नज़र से देखना शुरू किया।
लगभग 5 फ़ीट 8 इंच लम्बा और बलिष्ठ शरीर वाला वो पहलवान स्टेज से नीचे उतरकर एक कोने में खड़ा अभी भी सिर्फ मुझे ही घूर रहा था।
उसके बाद राष्ट्रगान के साथ समारोह का समापन होना था।
पूरे राष्ट्रगान में वो सिर्फ मुझे एकटक ऐसे देखता रहा कि मुझे ही शर्म आ गई।
उसने भी मुझे काफ़ी बार उसे देखते हुए देख लिया था और शायद इसीलिए बार बार देख कर ट्राई मार रहा था।
समापन के बाद हम सीधा अपनी गाड़ी के पास पहुँचे और गाड़ी में बैठ कर घर के लिए निकल गए।
उस दौरान वो मुझे कहीं दिखाई नहीं दिया या शायद हमारे आसपास भीड़ होने की वजह से मैं उसे देख नहीं पाई।
घर आने के बाद बात आई गई हो गई और फिर सामान्य जीवन शुरू हो गया।
कुछ दिनों के बाद फेसबुक पर मैंने देखा कि मेरी सहेली कुछ फ़ोटो में टैग हुई है।
फ़ोटो खोलने पर देखा तो उसी मेले के समापन समारोह के फ़ोटो थे।
ये फ़ोटो देखकर मुझे उस पहलवान की याद आ गई और मैंने टैग हुए नाम और कमेंट लाइक वगैरा देखने शुरू किए।
मुझे लगा कि शायद उसकी प्रोफाइल मुझे दिखाई पड़ जाए।
ज़्यादा ढूंढने की नौबत नहीं पड़ी क्योंकि पुरस्कार वाली फ़ोटो में वह टैग हुआ था।
प्रोफाइल में फ़ोटो देख कर मैं उसे पहचान गई।
मैं उससे खुद सम्पर्क नहीं करना चाहती थी लेकिन बिना बात किए रह भी नहीं पा रह थी।
तो मैंने बहुत देर सोच कर कोई दो तीन फ़ोटो जिनमें मैं और मेरी सहेली थे, उन पर कमेंट कर दिया।
सिर्फ इस उम्मीद में कि वो पहलवान कमेन्ट देख कर मैसेज ज़रूर करेगा।
उसकी प्रोफाइल काफी एक्टिव थी इसलिए मुझे लगा कि मेरे कमेन्ट वो ज़रूर देख लेगा।
दो तीन दिन बाद फेसबुक चेक करती हूं तो मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट में वो पहलवान भी दिखाई देता है।
मतलब मेरा कमेन्ट करने का आइडिया काम कर गया।
लेकिन मैं उसे ऐड नहीं करती हूँ। मैसेज में अनजान बनने का नाटक कर पूछती हूँ कि वो कौन है और मुझे कैसे जानता है।
वो मुझे कहता है कि मेले में मुझे देखा था और मुझसे दोस्ती करना चाहता है।
मैं उसे पहली चैटिंग में न ज़्यादा भाव देती हूँ और न ही ऐड करती हूँ।
दो तीन दिन उसके रोज़ मैसेज आते हैं जिनका मैं कोई खास उत्तर नहीं देती।
मैं उससे कहती हूँ कि मेरे परिवार के सदस्य फेसबुक मित्र हैं इसलिए मैं यहां किसी गैर को ऐड नहीं करती।
अगले दिन वो मेसेज में अपना व्हाट्सएप नम्बर दे कर मैसेज करने को कहता है।
मैं उसे मना कर देती हूँ और उसकी फ्रेंड रिक्वेस्ट डिलीट कर देती हूँ।
अभी तक जिन लोगों से मेरा शारीरिक संबंध रहा है वो मेरे निजी जीवन से दूर ही रहे हैं, जिन्हें मेरे बारे में कुछ ज़्यादा मालूम नहीं।
लेकिन यह पहलवान मेरे शहर में बहुत लोगों को जानता है।
ज़ाहिर सी बात है मुझे भी जान गया है और मैं बदनामी मोल नहीं लेना चाहती।
मुझे समझ नहीं आता कि क्या करूँ!
मन है कि मानता ही नहीं है; दिमाग में बस वो पहलवान ही छाया हुआ है।
कुछ दिन यूं ही बीतने के बाद मैं उस दूसरे नम्बर से व्हाट्सएप मैसेज करती हूँ जो मैंने निक्कू से बात करने के लिए ले रखा था।
वो पहलवान हिमाचल के एक अन्य जिले का रहने वाला है और उसका अपना अच्छा खासा कारोबार है।
पहलवानी और कसरत करने का शौक है इसलिए कुश्ती प्रतियोगिता में भाग लेता रहता है।
कुछ दिन हमारी व्हाट्सएप पर बात होती है।
थोड़े दिनों में बात व्हाट्सएप चैट से फोन कॉल पर पहुंच जाती है।
मेरे अंदर की आग उससे छिपी नहीं है।
मैं उससे और वो मुझसे क्या चाहता है ये हम दोनों ही जानते हैं।
बातें सामान्य से कब सेक्स पर पहुंच जाती हैं, पता नहीं चलता।
कुछ ही दिनों में हम दोनों में खुल कर बात होने लगती हैं।
पहलवान पर मेरा जादू चल गया है, वह मुझे मिलने के लिए वो बेताब हो उठता है।
वो मुझसे बार बार मिलने की योजना बनाने के लिए कहता है जिसे मैं मना कर देती हूँ।
मन तो मेरा भी बहुत है लेकिन कैसे मिलूं मुझे समझ नहीं आ रहा।
ऐसे ही कुछ दिन बीतते हैं और कुछ दिन बाद मेरा एक अन्य जिले के हिल स्टेशन काम के सिलसिले से जाने का कार्यक्रम बनता है।
हिलस्टेशन का नाम मैं साझा नहीं कर सकती हूँ।
वहां एक कॉटेज लीज पर लेने और उसे टूरिज्म के पर्पज से चलाने का मेरा काफी समय से विचार था लेकिन सही प्रॉपर्टी और डील अभी जाकर मुक्कमल हो पाई।
प्रॉपर्टी मुख्य शहर से थोड़ा दूर वीराने में है जहां आसपास और भी होटल, होमस्टे इत्यादि हैं लेकिन थोड़ा दूर हैं।
मैं कुछ महीने पहले भी एक बार लोकेशन देखने जा चुकी थी पर अब उसे व्यापार के लिए मेरा जाना जरूरी था।
तो मैं कुछ दिन वहां रह कर सब ज़रूरी काम करवाने के लिए गाड़ी से निकलती हूँ।
मेरा 2-3 दिन वहीं रुकने का प्लान है।
घर से सुबह निकल कर शाम तक मैं कॉटेज पर पहुंचती हूँ।
अगले दो-तीन दिनों में सभी ज़रूरी काम करने के बाद रात में मैं पहलवान को फ़ोन मिलाती हूँ और उसे बताती हूँ कि मैं कहाँ हूँ।
अगर वो मिलना चाहता है तो कल यहां कॉटेज पर आ जाए।
अभी स्टाफ में सिर्फ एक कुक और हाउसकीपर ही हैं जिन्हें मैं दो दिन के लिए छुट्टी दे देती हूँ ये बोल कर कि दो दिन मेरे रिश्तेदार आने वाले हैं जो सप्ताहांत एकांत में बिताना चाहते हैं।
पहलवान मुझसे मिलने के लिए पागल हो गया है।
कहता है उसे उम्मीद ही नहीं थी कि ऐसा मौका भी मिलेगा।
उसके घर से यहां की दूरी 5 घण्टे की है।
शाम के अंधेरे में पहलवान दिए पते पर पहुंचता है।
मैं भी उससे मिलने के लिए बेताब हो रही हूं।
पहलवान पहुंचा और हम आमने सामने बैठते हैं, कुछ देर बातें करते हैं।
बातें करते करते वो मुझे अपने पास आकर बैठने के लिए कहता है।
मैं कुर्सी से उठ कर सोफे पर बैठती हूँ तो वो खिसक कर मेरे साथ सट कर बैठ जाता है।
मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचता है और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख कर उन्हें चूम लेता है।
मैं उसका साथ देती हूँ और दस मिनट तक वो मेरे होंठों का रसपान करता है।
उसके बाद खड़ा होकर मुझे किसी बच्ची की तरह अपनी गोद में उठाता है और कमरे में ले जाता है।
मैं कहती हूँ- जाओ पहले नहा कर आओ; बाकी बातें बाद में!
नहाने जाने से पहले वो बैग से शराब की छोटी बोतल निकाल कर टेबल पर रखता है।
मैं शराब नहीं पीती लेकिन मुझे उसके पीने से कोई आपत्ति नहीं है।
जब तक वो नहा कर निकलता है, मैं खाने के लिए प्लेट में नमकीन इत्यादि सजा कर रख देती हूँ।
सिर्फ चड्डी और बनियान पहन कर वो नहा कर निकलता है।
इतने पास से उसका विशालकाय शरीर मैं पहली बार देख रही हूँ।
चड्डी और बनियान हल्की हल्की भीगी हुई शरीर से चिपकी है।
गीली चड्डी पर लण्ड का उभार साफ झलक रहा है।
वो कहता है कि कपड़े उतरने ही हैं इसलिए पहनेगा नहीं!
मैंने कमरे में एक तरफ हीटर चला रखा है, स्वेटर भी पहन रखा है।
पहलवान को नन्गे भी ठंड नहीं लग रही।
वो बोतल से पैग बना कर धीरे धीरे पी रहा है।
मुझे अपने पास अपनी गोद में बैठने के लिए बुलाता है।
मैं जाकर उसी गोद में बैठ जाती हूँ और फिर से हमारे होंठ एक दूसरे से मिल जाते हैं।
बीच में रुककर वो पेग गटकता है और फिर मुझे चूमने लग पड़ता है। साथ में एक हाथ मेरी पीठ पर फिरा रहा है।
गिलास को मेज पर रख कर मुझे उठाकर बिस्तर पर बिठाता है और मेरी स्वेटर उतार कर कमीज के ऊपर से ही मेरी चूचियां मसलता है।
उसके सख्त हाथों के मसलने से दर्द में मुझसे आह निकल जाती है।
वो ज़्यादा देर न करता हुआ मेरी कमीज़ और सलवार उतार कर मुझे ब्रा और पैंटी में कर देता है।
मुझे लिटाकर वो ऊपर चढ़ कर मेरे शरीर को चूमने चाटने लगता है; माथे से ले कर पैरों तक मुझे जी भर के चाटता है।
मेरी आँखें बंद हैं और मैं मदमस्त आनन्द ले रही हूँ।
वह मेरी ब्रा का हुक खोल कर ब्रा निकालता है और दोनों मम्मे मसलने के बाद मुंह मे ले कर पागलों की तरह चूसता है।
फिर एक हाथ नीचे ले जा कर मेरी पैंटी में डाल कर चूत में उंगली डाल रहा है।
मेरी चूत अब तक पानी से लबालब भर गई है।
कुछ देर फिंगरिंग करने के बाद चड्डी से लण्ड बाहर निकाल कर मेरे हाथ में दे देता है।
इतना सख्त लण्ड मैं पहली बार छू रही हूँ।
लोहे की रॉड जैसा लण्ड हाथ में ले कर मैं सहलाती हूँ जो अपने पूरे आकर में आ गया है।
ज़्यादा देर न करते हुए उसका लण्ड मैं मुंह में ले कर चूसती हूँ।
जितना हो सके मैं उसे मुंह में लेने की कोशिश करती हूँ लेकिन फिर भी पूरा मुँह में नहीं ले पाती हूँ।
कुछ देर चूसने के बाद मुझे कहता है कि वो मुँह की चुदाई करेगा क्योंकि उसे आधा अधूरा लण्ड चुसाने में मजा नहीं आ रहा।
मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरा सिर हवा में लटकता रख कर खुद नीचे खड़ा हो कर मेरे मुँह में लण्ड घुसा कर अंदर बाहर करना शुरू करता है।
मेरी आवाज़ औऱ सांस दोनों नहीं निकल रही।
मैं लेटे लेटे ही रुकने के लिए कहती हूँ पर वो नहीं रुकता और 4-5 मिनट यूं ही मेरे मुँह की ठुकाई कर गले तक लण्ड डाल कर अंदर झड़ जाता है और तब तक लण्ड बाहर नहीं निकलता जब तक आखिरी बूंद नहीं निकल जाती।
मुँह के अंदर झड़वाना मुझे पहले बिल्कुल पसंद नहीं था; अब भी नहीं है.
लेकिन अब मेरे सभी दीवाने मेरे मुँह में ही झड़ना पसन्द करते हैं तो मैं उन्हें रोक नहीं पाती।
पहलवान का लण्ड पांच मिनट में फिर तन जाता है और अब वो मुझसे मुठ मरवाने के लिए फिर से लण्ड हाथ में दे देता है।
एक हाथ से मेरी चूत में फिंगरिंग करने के बाद लण्ड के टोपे को चूत के ऊपर रगड़ने लगता है।
मैं आँखें बंद कर स्वप्नलोक की सैर कर रही हूँ।
पहलवान अपना लण्ड धीरे धीरे चूत में उतार देता है जिसे मैं आहें भरती हुई पूरा अंदर ले लेती हूँ।
मेरी चूत की असली ठुकाई अब चालू होती है।
पहलवान पूरे ज़ोर से शॉट लगा कर मेरी चुदाई कर रहा है।
हर बार पूरा लण्ड बाहर निकाल फिर जड़ तक अंदर ठोक रहा है।
सिलेंडर में पिस्टन चलने की तरह दनादन मेरी पेलाई चल रही है और मैं नीचे लेटी अधमरी सी सिसकारियां भर रही हूँ।
उफ़्फ़ … आज भी वो चुदाई याद कर के चूत पानी से भर जाती है।
8-10 मिनट की पेलमपेल चुदाई के बाद पहलवान मेरी चूत में ही झड़ जाता है।
ऐसी ज़बरदस्त चुदाई के बाद मैं अंदर से तृप्त हो चुकी हूं और जब मुझे लगने लगता है कि अब तो पहलवान भी थक गया होगा.
उसी समय पहलवान अपना लण्ड मेरे हाथ में पकड़ा कर फिर मुठ मारने को कहता है।
“हर दिन लीटर के हिसाब से लस्सी पीने का कमाल है ये जान! आज तेरी चूत की लस्सी तसल्ली से निकालता रहूंगा।”
पहलवान के ये कहने की देर थी कि मेरे शरीर में फिर झुरझुरी सी होने लगती है।
इस बार पहलवान मेरे शरीर को कभी चूम तो कभी चाट रहा है। मेरी चूत में अपना मुँह लगा कर जीभ पूरी अंदर तक घुसा कर घुमाता है और मैं तो बस बड़बड़ाते हुए बार बार झड़े जा रही हूँ।
इसी मदहोशी में खोए खोए मुझे उसकी ज़ुबान अपनी गांड के छेद पर महसूस होती है।
मैं उसे मना करती हूँ लेकिन वो मानने वालों में से नहीं है।
यह मेरे लिए नया अनुभव है।
गोल गोल जीभ फिराने के बाद वो छेद में अंदर तक झीभ डाल कर मेरी गांड चाटता है।
मुझे अजीब सा आनन्द मिलता है जिसे मैं बयां नहीं कर सकती।
काफी देर तक यही चलता रहता है।
उसके बाद वो अपना लण्ड एक बार फिर मेरे होंठों पर रखता है और आंखों के इशारों को मैं बखूबी समझते हुए लण्ड को मुँह में भर लेती हूँ।
अब जनाब को खुश करने की बारी मेरी है।
टोपे पर जीभ फिरा कर लॉलीपॉप की तरह चूसती हूँ।
शरारत करते हुए मैं उसकी गोलियों को मुँह में डाल कर चूसती हूँ।
मैं ऐसा भी करूंगी उसे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी।
उसकी हैरान नज़रों में नज़रें मिलां कर मैं फिर उसके टट्टे मुंह में ले कर खूब चूसती चाटती हूं।
मुझे अब एक और शरारत सूझती है; उसके लण्ड को अपने चूचों में दबा कर आगे पीछे करती हूँ और तब तक तेज़ तेज़ अच्छे से दबा कर करती रहती हूँ जब तक वो झड़ नहीं जाता।
अब तक दोनों बहुत थक चुके हैं और बिस्तर पर पड़े बातें करते कब नींद आ जाती है पता नहीं चलता।
रात को उठने के बाद पेलमपेल चुदाई के एक दो दौर और चलते हैं।
सुबह पहलवान के जाने से पहले एक आखिरी ठुकाई बाथरूम में शावर के नीचे साथ में भीगते हुए होती है।
हम दोनों का मन और शरीर तृप्त हो चुका है।
उसके बाद पहलवान मुझ से विदा लेता है और अपने घर के लिए निकल जाता है।
मैं एक दिन और रुक कर आराम करती हूँ और अपना काम निपटा कर वापिस चल देती हूँ।
इसके बाद और भी बहुत सी यादगार रातें हुईं।
मेरी पहली गांड ठुकाई के बारे में अगली बार सुनाऊंगी।
तब तक के लिए इंतज़ार कीजिए।
मेरी हॉट लेडी Xx कहानी कैसी लगी सुझावों में ज़रूर बताइएगा।
मेरा ईमेल एड्रेस [email protected] है।
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