जो पहले कर ना सकी थी
(Jo Pahle Na Kar Saki Thi)
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keyboard_arrow_left कारनामा पूरा ना करने की सजा
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keyboard_arrow_right आम हारे, चीकू जीते
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वो भी कर ही लिया
लगातार मेरी नाक बह रही है, सारा बदन टूट रहा है, अभी उठी हूँ… श्रेया ने कॉफी बना कर दी, उससे भी ज़्यादा कुछ फ़र्क नहीं लगा उसने पूछा- कैसी तबीयत है?
मैं बोली- थोड़ा दर्द है चूचियों और निप्प्लों में पर ज्यादा नहीं !
वो हंसती रही मुझे देख कर..
कल दोपहर सजा के तौर पर किए गय कारनामे के बाद मुझे लगा कि मैं क्यों नहीं कर पाई थी अपना कारनामा तो सोचा आज अपने तरीके से करके देखती हूँ, पर फ़िर भी अपने मित्र से चैट करके कुछ सलाह ली और उसके बाद मैंने तैयारी शुरू की…
जल्दी से साड़ी पेटीकोट सब उतार कर सिर्फ़ वही काला गाउन पहन लिया… सामान इकट्ठा करने लगी।
फ्रीज़र पहले सी फुल कूल मोड पर कर दिया था… देखा, ढेर सारी बर्फ थी उसमें… अब सामान जोड़ने लगी…
जो करतब मैं करने की सोच रही थी, मुझे पहले मालूम था कि यह बहुत तकलीफ़देह होगा, हाथ-पैर बांधने ही पड़ेंगे वरना नहीं सह पाऊँगी, कल का अनुभव था… तभी सोचा रस्सी.. पर इससे बहुत दर्द होगा और मैं कोई जानवर थोड़े हूँ… समझ नहीं आ रहा था.. तभी ध्यान में आया कि पेटिकोट के नाड़े ठीक रहेंगे… तीन नाड़े जुटा लिए पर कम थे, ज़रूरत थी 4-5 की !
श्रेया के लोअर में से 3 मजबूत फ़ीते निकाल लिये, अब तीन मोमबत्ती निकाल कर रख ली…
पर चीख रोकने के लिए क्या? रस्सी से काम नहीं चलेगा, तभी श्रेया का स्टॉल लिया… तब सोचा पलंग या दीवान पर बँधना सम्भव नहीं था, तभी याद आया.. मेरे पति ने अपने लिए एक ख़टिया जैसा पलंग लिया था… उसने मच्छरदानी बान्धने के लिये चारों तरफ़ जगह थी।
एक दिया जला कर पास रख दिया उसमें ढेर सारा तेल डाल दिया मोमबत्ती के लिए काम आएगा.. हड़बड़ में माचिस से कुछ गलती हो सकती है।
अब घण्टी बजी श्रेया आ गई… उसे कुछ पता नहीं था, दोनों ने कॉफ़ी पी, उसे कॉफी पीते पीते मैंने सब धीरे धीरे बताया। यह भी बताया कि जो मैं करूंगी, वो बाद में तुझे भी करना है।
वो बोली- आप करो.. मैं नहीं करुंगी।
मैंने कहा- फिर कब ऐसा मौका मिलेगा, तुम्हें तो मुझसे आधा ही करना है…
असल में वो मोमबत्ती से चूचियों पर मोम टपकाने से डर गई.. मैंने कहा- जितनी बूंदें तू मुझ पर डालेगी, उनसे आधी ही मैं तुझ पर डालूंगी, इसमें मज़ा आएगा ! मैंने दो बार हाथ पर मोम डाल कर देख लिया है।
तो वो मान गई। उसने डीवीडी पर नई फ़िल्म लगाई, आवाज थोड़ी तेज कर दी कि अगर चीख निकली तो बाहर ना जाए। कमरे में एसी का तापमान बढ़ा लिया !
मैंने उसे बर्फ का गिलास और आइस क्यूब ट्रे लाने को कहा… गिलास दो दिन फ्रीज़र रहने के कारण सख्त था, बर्फ अंदर-बाहर जमी थी ऐसा लगा था जैसे पूरा बर्फ का हो…
मैंने कहा- थोड़ी देर में निकल जाएगी बर्फ, तब तक बाकी काम कर ले…
मैंने उसे नंगी होने को कहा, खुद भी गाऊन उतार दिया और खटिया पर एक कम्बल बिछा दिया और लेट गई हाथ फैला कर, श्रेया से कहा- शुरू कर !
उसने अभी सिर्फ़ ऊपर के कपड़े उतारे थे, ब्रा-पैंटी पहनी हुई थी.. मैंने कहा- इन्हें क्यों अपने बदन पर लटका रखा है? उतार कर फ़ेंक दे !
वो मना करने लगी पर मैंने कहा- नहीं, यह खेल की शर्त है, दोनों पूर्णनग्नावस्था में रह कर सारा करतब करेंगी।
थोड़े गुस्से से उसने अपने दोनों अधोवस्त्र उतार कर दीवान पर फेंक दिए।
मैंने कहा- मेरे दोनों पैर नाड़े से बान्ध कस के ! खुले ना !
उसे अच्छा नहीं लगा, मैंने कहा- अरे बाबा, कुछ नहीं होगा, यह तो इसलिए ताकि मैं ज्यादा हिलडुल ना सकूँ।
फिर उसने मेरे दोनों पैर फैलाकर दूर दूर बाँध दिए इतने कसकर कि हिलाना मुश्किल था।
अब मैं बोली- हाथों को भी नाड़े से ऐसे ही बान्ध दे !
उसने दो नाड़ों से उसने बाँध दिया…
मैंने कहा- एक स्टॉल पेट के ऊपर से, दूसरे से मुँह को बांध देना बाद में !
उसने मेरे कहे अनुसार कर दिया।
अब तक गिलास की बर्फ पिंघल कर निकलने लायक नहीं हुई थी, दो दिन से जमी थी ना। फिर ठोक कर श्रेया ने गिलास से बर्फ निकाली.. थोड़ी बड़ी लग रही थी, शायद अंदर ना जाए, मैंने कहा- इतनी बड़ी मत डालना प्लीज..
अब तो मैं बँधी थी… हर कारनामे के वक़्त खड़े रहने वाले मेरे उरोज अब जैसे मरे पड़े थे… नीचे लटक रहे थे, शायद उन्हें भी डर था कि आज उनके साथ क्या होगा, पता नहीं !
श्रेया ने दोनों हाथ से मेरी चूचियाँ बगल से ऊपर को बीच में की मगर फिर नीचे लटक गई.. दो तीन बार ऐसा हुआ, वो नीचे जा रहे थे श्रेया नटखट है, अंदर गई और वो ऊन के धागे ले आई…
मैंने कहा- क्या करेगी?
वो बोली- देखती रहो आप…
उसने धागों से ठीक से मेरे चुचूकों को बान्ध दिया और डोर मेरे मुँह में दे दी, बोली- आपके हैं, अब संभालो इन्हें…
मज़ाक में मैंने खींचा तो दोनों बराबर खड़े हो गये… अब सब तैयार था पर बर्फ नहीं पिघल रही थी, उसने दोनों खड़े निप्प्लों पर थोड़ी क्रीम लगाई बड़े आराम से कहीं ऊन ना खुल जाए, मुझे गुदगुदी हुई… मैंने अपने होंठ दांतों के नीचे दबा लिए…
अब उसने दो आइस क्यूब से मेरे चूचों को ठंडा कर दिया, बहुत गुदगुदी हो रही थी, पर हिल ना पाई। उसे तो बड़ा मज़ा आ रहा था…
अब उसने स्टॉल से कस कर मुँह बाँध दिया.. मैंने भी विरोध नहीं किया… उसने आराम से मेरी योनि में उंगली डाली, कुछ पानी सा निकल रहा था, उसने वो गिलास वाली लम्बी बर्फ़ मेरी चूत से लगाई तो मैं हिल गई, खुलने की कोशिश की…
अब उसे लगा कि मैं अंदर नहीं लूँगी, तभी वो अंदर से उसने कोई स्प्रे लाई, मेरी योनि पर छिड़का ! मुझे अजीब सा लगा…
उसने कहा- इससे दर्द कम होता है…
अब वो बार बार बर्फ़ को मेरी योनि में डालने का प्रयास करती, पर असफल हो रहा था…
वो गिलास के आकार की बर्फ़ का मोटा हिस्सा मेरे अन्दर घुसाने की कोशिश कर रही थी, तभी उसने नीचे वाला पतला हिस्सा मेरी चूत पर टिकाया, एक हाथ से ठीक से योनि-लबों को खोला, दूसरे से ज़ोर से धकेल दिया… अब एकदम से पूरी बर्फ़ अंदर चली गई, मेरी चीख निकल गई पर टीवी की आवाज़ में मेरी आवाज़ दब गई… मैं छटपटाने लगी…
स्प्रे से दर्द कम था पर ऐसा लगा कि कोई आइस बेबी अंदर हो, मेरी डीलिवरी के टाइम में ऐसा ही दर्द हुआ था, बता नहीं सकती, सोच कर भी डर जाती हूँ… मैं उछलने लगी, श्रेया से कहा- निकाल दे..
पर उसने उंगली डाल कर खींचा और बाहर निकाल कर और ज़ोर से अंदर डाल दिया। मुझे पता था कि अब यह नहीं मानेगी, उसने टी वी की आवाज और बढ़ा दी। मैं बोलने का प्रयास ना करूँ इसलिए एक आइस क्यूब स्टॉल से नीचे से मेरे मुंह में डाल दिया। मैं मन ही मन उसे गालियाँ देने लगी, पता नहीं श्रेया इतनी कठोर कैसे हो गई।
उसने कुछ आइस क्यूब मेरी चूचियों पर रगड़े, तभी उसने दिये से मोमबत्ती जलाई.. ऊपर से मेरे दायें स्तन पर मोम टपकाने लगी, मुझे हल्का सा दर्द हुआ पर यह गर्मी नीचे के आइस बेबी से अच्छी थी।
फिर उसने मेरे बायें उभार पर मोम टपकाया… मैं उछल पड़ी… पर बँधी थी… अब उसने एक मोमबत्ती और जलाई और ऊपर से एक साथ दोनों चूचियों पर मोम गिराने लगी, बूंद के उभार पर छूने से पहले ही मैं उछल पड़ती.. पर मेरे चूचे बर्फ़ लगाने के कारण ठण्डे थे तो मोम एकदम ठण्डा होकर जम जाता।
पर नीचे चूत से तो मानो मैं मर ही गई थी, जैसे योनि में जान ही नहीं थी… मैंने आँखें बन्द कर ली थी, मेरी दोनों आँखों से ढेर सा पानी बह रहा था…
पर तभी उसने दोनों मोमबत्तियों से मेरे निप्प्लों पर मोम टपकाया तो मैं जलन से तड़प उठी, अपने दोनों हाथ खींच कर मैंने अपने बन्धन तोड़ दिये।
उसने झट से मोमबत्तियाँ बुझाई, मेरी रस्सियाँ खोली, मुझे लगा मैं बहोश हो रही हूँ…पर नहीं ! जल्दी से उसने मुझ पर गरम चादर डाली, पैर खोल दिए, थोड़ा स्प्रे मेरे वक्ष पर किया…
थोड़ा सुकून लगा.. मैं चल तक नहीं पा रही थी, उसने वैसे ही सहारा देकर उठा कर मुझे बेड पर लिटाया, मेरी टाँगें भी हिल नहीं रही थी, शायद अब भी आइस बेबी अंदर था।
पर उसने कहा- सब पिंघल गया है…
मैंने चुपचाप आँखें मूंद ली… काफ़ी दर्द हो रहा था, ऐसा लग रहा था कि मैं कोई गर्भवती थी, अभी मेरा प्रसव हुआ है और मेरा बच्चा मेरे दोनों निप्प्ल चूस रहा है…
नाक अब भी लगातार बह रही है, कहानी टाईप करते करते भी.. और गाउन के अलावा कुछ नहीं पहन पाई हूँ, ना ऊपर ना नीचे !
आज रात श्रेया का भी ऐसा ही हाल करूँगी, पक्का ! पर इत्ना ज़्यादा नहीं, वो नाजुक है.. नहीं सह पाएगी ज्यादा !
मुझे उम्मीद है कल मेरी मासिक शुरु हो जाएगी, अभी मीठा मीठा दर्द है पूरे बदन में, निप्प्ल और योनि तो इतने संवेदनशील हो रहे हैं कि शायद एक दो दिन तक कुछ ना पहन सकूँ अंदर ! अब तो बदन ढकने के लिये सिर्फ़ काले गाउन ही सहारा है !
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