एक दिल चार राहें- 24
(Free Sex Xxx Story)
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फ्री सेक्स Xxx स्टोरी में पढ़ें कि मैं होटल में अपने ऑफिस की लड़की की चुदाई कर रहा था. मैं उसकी गांड मारना चाहता था. मैंने उसकी गांड के गुलाबी छेद पर उंगली भी फिराई पर …
नताशा शांत लेटी हुई लम्बी-लम्बी साँसें लिए जा रही थी। और मेरा लंड तो बार-बार उसके नितम्बों की खाई में अपने मंजिल तलासता हुआ ठोकरें मार रहा था और मेरा दिल जोर जोर से धड़कने सा लगा था।
पर … दोस्तो! मंजिल अभी थोड़ी दूर थी।
“प्रेम … आह …”
“हां मेरी जान?” मुझे लगा नताशा अब बोलेगी मेरे पिछले द्वार का भी उद्धार कर डालो।
अब आगे की फ्री सेक्स Xxx स्टोरी:
अब नताशा ने अपने नितम्ब थोड़े से और ऊपर उठा लिए और फिर अपना एक हाथ पीछे करके मेरे लंड को पकड़कर उसे अपनी चूत के छेद पर लगाने की कोशिश करने लगी।
ओह … अब मुझे समझ आया मैडम नये आसन और अंदाज़ में करवाना चाहती है।
मुझे एक बार तो थोड़ी निराशा सी हुई पर बाद में मैंने सोचा चलो एक बार इसको जिस प्रकार चाहती है करवा लेने दो … देर सवेर गांड के लिए भी राजी हो ही जायेगी।
मैंने एक धक्का लगाते हुए नताशा का काम आसान बना दिया। मेरा लंड उसकी चूत में समा गया। नताशा ने एक हिचकी सी लेते हुए एक आह सी भरी।
आपको याद होगा यह आसन नीरुबेन (अभी ना जाओ चोदकर) https://www.antarvasna3.com/padosi/padosi-abhi-na-jao-chod-ke-1/ को बहुत पसंद आता था। छोटे लिंग वालों के लिए यह आशन इतना सही नहीं होता पर थोड़े लम्बे लिंग वाले पुरुषों के लिए यह आशन बहुत अच्छा होता है।
मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए। जैसे ही मैं धक्का लगाता नताशा अपने नितम्बों को ऊपर उठा लेती और फिर धक्के के साथ ही उसकी जांघें और पेट तकिये से जा टकराता और नताशा के मुंह से ‘हुच्च’ की सी आवाज निकलती।
नताशा के लिए तो यह अनुभव ज़रा भी नितांत और नया नहीं लग रहा था। पता नहीं साली ने यह सब काम-कलाएं कहाँ से सीखी होंगी। उसके कसे हुए गोल नितम्बों का स्पर्श पाकर मेरी जांघें को तो जैसे जन्नत की हूरों का ही मज़ा आने लगा था।
मैंने इसी प्रकार 5-7 मिनट धक्के लगाए थे। नताशा तो आंखें बंद किए बस मीठी आहें ही भरती जा रही थी। मुझे लगा अगर यह डॉगी स्टाइल में हो जाए तो और भी ज्यादा मज़ा आ सकता है।
फिर मैंने उसे डॉगी स्टाइल में होने को कहा तो उसने पहले तो अपने नितम्ब ऊपर उठाये और फिर अपने पेट के नीचे से तकिया निकाल दिया और अपने पैरों को समेटते हुए डॉगी स्टाइल में हो गई।
अब तो वह और भी ज्यादा चुलबुली हो गई थी। उसने अपना सिर तकिये से टिका दिया और मेरे धक्कों के साथ अपने नितम्ब भी आगे पीछे करने लगी थी। जैसे ही तेज धक्के के साथ लंड उसकी चूत में जाता एक फच्च की आवाज सी निकलती और हम दोनों ही रोमांच के सागर में गोते लगाने लगते।
मैंने अपना एक हाथ नीचे करके उसकी चूत के दाने और उसमें पहनी हुयी बाली और दूसरे हाथ से उसके उरोज के घुंडियों को मसलना चालू कर दिया। नताशा ने अपना एक अंगूठा अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी। आप सोच सकते हैं उसे देख कर मुझे मिक्की (तीन चुम्बन) की कितनी याद आई होगी।
जैसे ही मेरा लंड उसकी चूत में जाता उसकी गांड का छल्ला भी संकोचन सा करता और जब मेरा लंड बाहर निकलता तो उसकी गांड का छेद थोड़ा खुल जाता और उसका अन्दर का गुलाबी रंग नज़र आने लगता। हे भगवान्! रबड़ बैंड जैसी कातिल गांड तो मुझे जैसे ललचा रही थी।
मैंने अपने अंगूठे पर अपना थूक लगाया और फिर उसकी गांड के छल्ले पर फिराने लगा। एक दो बार उसने अपना हाथ पीछे करके मेरे हाथ को हटाने की कोशिश जरूर की थी पर अब तो शायद उसे भी मज़ा आने लगा था। वह अपने नितम्बों को मेरे धक्कों के साथ आगे पीछे करने लगी थी। इस दौरान उसका एक बार फिर से ओर्गास्म हो गया था।
प्रिय पाठको! आप लोगों ने कई काम कहानियों में पढ़ा होगा कि ‘फिर उनकी चुदाई अगले आधे घंटे तक चली।’
दोस्तो, असल जिन्दगी में ऐसा नहीं होता। यह आसन बहुत आनंददायक होता है पर इसमें स्त्री जल्दी थक जाती है और पुरुष का वीर्य भी बहुत जल्दी निकल जाता है।
“ओह … प्रेम … मेरी तो कमर ही दुखने लगी है.”
“ओके … अच्छा तुम एक काम करो … धीरे-धीरे अपने पैर पसारकर सीधे कर लो.”
अब नताशा ने मेरे कहे अनुसार अपना एक पैर पसार दिया और करवट के बल होते हुए एक पैर मोड़कर अपना घुटना पेट की तरफ कर लिया। मैंने ध्यान रखा कि मेरा लंड उसकी चूत के अन्दर ही फंसा रहे।
मैं उसकी दोनों जाँघों के बीच आ गया और उसकी एक जांघ के ऊपर बैठ गया और अपने हाथों से उसके नितम्बों और कमर को सहलाने लगा। अब धक्के ज्यादा जोर से नहीं लगाए जा सकते थे। थोड़ी देर ऐसे ही रहने के बाद मैंने अपना लंड अन्दर-बाहर करना चालू कर दिया।
“जान कहो तो एक नया प्रयोग करें?”
“क..क्या?” उसने अपनी आँखें बंद किए हुए ही पूछा।
“रुको एक मिनट!” कहकर मैं उसके ऊपर से उठ गया।
नताशा हैरानी भरी नज़रों से मेरी ओर देखती रही।
अब मैंने उसे पीठ के बल लेटाते हुए उसकी जांघ को पकड़कर उसे सीधा किया और उसका पैर पकड़कर ऊपर उठा लिया। फिर दूसरी जांघ पर बैठ कर उसके पैर को अपने कंधे पर रख लिया। ऐसा करने से उसकी चूत तो किसी फूल की तरह खिल उठी और रस से लबालब भरा हुआ लाल कमल नज़र आने लगा। अब मैंने अपने लंड को हाथ में पकड़कर उसकी चूत में फंसा दिया। लंड महाराज उसके गर्भाशय तक अन्दर समा गए।
“आइइइइईई …” नताशा की मीठी किलकारी कमरे में गूँज उठी।
अब मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी जांघ को पकड़ कर अपने पेट से लगा कर धक्के लगाने शुरू कर दिए। इस आसन में स्त्री बहुत जल्दी चरम उत्कर्ष तक पहुँच जाती है। मुझे एक बार आंटी गुलबदन ने बताया था कि गदराई हुई औरतों के लिए यह आसन बहुत अच्छा होता है इस आसन में उन्हें पूर्ण संतुष्टि मिल जाती है।
अब तो मेरा एक हाथ उसके गदराये हुए पेट और उरोजों की सैर करने लगा था. और दूसरा हाथ उसके नितम्बों की खाई में दबे उस जन्नत के दूसरे दरवाजे का रस पान करने लगा था।
मैं बार-बार सोच रहा था- काश!एक बार यह मेरे लंड को गांड में ले ले तो बंगलुरु आना सच में ही सफल हो जाए।
इसी ख्याल से मेरा लंड और भी खूंखार सा हो गया और मैंने अब जोर-जोर से धक्के लगाने चालू कर दिए। नताशा की चूत ने तो दो-तीन धक्कों के बाद ही एकबार फिर से पानी छोड़ दिया था पर मेरा मन अभी नहीं भरा था।
5-7 मिनट बाद नताशा आह … ऊंह … करती हुयी फिर से कसमसाने सी लगी थी। मुझे लगता है वह भी अब चाहने लगी है कि अब मैं अपनी फुहारें उसकी चूत में छोड़ दूं।
और फिर 3-4 धक्कों के बाद मेरे लंड ने फुहारें छोड़नी शुरू कर दी। नताशा तो उत्तेजना के मारे जैसे छटपटाने सी लगी थी मैंने कसकर उसकी जांघ को अपने हाथों में कस लिया। अब तो नताशा ने भी अपनी चूत का संकोचन करना शुरू कर दिया था और उसका शरीर भी झटके से खाने लगा था। और एक बार फिर से उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। इस बार हम दोनों का स्खलन एक साथ ही हुआ था।
वीर्य स्खलन के बाद मैं थोड़ा पीछे झुकते हुए अपना सिर उसके पैरों की ओर करते हुए लेट गया। मैंने ध्यान रखा मेरा लंड अभी उसकी चूत में फंसा रहे। अब हम दोनों की जांघें कैंची की तरह एक दूसरे में उलझी हुई थी। हम दोनों लम्बी-लम्बी साँसें लेते उस नैसर्गिक आनंद को लेते रहे जिसे आम भाषा में चुदाई और प्रेम की भाषा में तो बस मधुर मिलन या सुखद सहचर्य ही कहा जा सकता है।
थोड़ी देर बाद मैं उठकर बेड की टेक लगाकर बैठ गया और नताशा ने मेरी गोद में अपना सिर रख दिया। मैंने नीचे झुक कर एक बार उसके होंठों का चुम्बन लिया और फिर उसके माथे और सिर पर अपने हाथ फिराने लगा।
नताशा तो बेसुध सी हुयी बस मीठी सीत्कारें और आहें ही भरती रही।
थोड़ी देर बाद नताशा ने आँखें खोली और उठने का उपक्रम सा करने लगी।
“क्या हुआ जानेमन?”
“प्रेम … तुमने तो एक ही दिन में मेरे सारे कस बल निकाल दिए. अब और हिम्मत नहीं बची।“
“अरे मेरी जान तुम इतनी खूबसूरत हो कि मेरा तो अभी मन ही नहीं भरा है.” मैंने उसके गालों पर चुम्बन लेते हुए कहा।
“ना जान बस आज और नहीं … हे भगवान् 7 बज गए.” उसने दीवार पर लगी घड़ी देखते हुए कहा।
“क्या हुआ?”
“प्रेम … अब मुझे जाना होगा …
मुझे लगा नताशा अब बाथरूम जाना चाहेगी। मेरा मन तो कर रहा था उसे अपनी गोद में उठाकर बाथरूम में ले जाऊं और उसकी सु-सु से निकलने वाली सीटी का मधुर संगीत सुनूँ। उसकी गुलाबी कलिकाओं से मूत की पतली धार को टकराते हुए देखने का दृश्य तो बहुत ही नयनाभिराम होगा आप सोच सकते हैं।
“अगर बाथरूम जाना हो तो हो आओ.”
“ओह … प्रेम … मेरे से तो उठा ही नहीं जा रहा.”
और फिर उसने अपनी बैग से टिशुपेपर निकाला और अपनी जाँघों और चूत के चीरे को थोड़ा सा साफ़ किया और फिर उस टिशुपेपर को अपनी चूत पर लगाकर पैंटी अपनी पैंटी पहन ली।
मुझे अपनी तरफ हैरानी से देखता पाकर उसने हंसते हुए कहा “प्रेम! मैं तुम्हारे इस प्रेमरस को किसी अनमोल खजाने की तरह सहेज कर रखना चाहती हूँ। धीरे-धीरे जब यह बाहर निकलेगा तो तुम्हारे प्रेम को बार-बार महसूस करूंगी।
मेरे होंठों पर भी मुस्कान फ़ैल गई।
“कल का क्या प्रोग्राम है आपका?”
“वो … कल तो मुझे एक बार सुबह ही हेड ऑफिस में रिपोर्ट करना होगा।”
“ओह … आप कब तक फ्री हो पाओगे?”
“बता नहीं सकता वहाँ जाने के बाद ही पता चलेगा। अगर जल्दी फ्री हो गया तो मैं तुम्हें फोन कर दूंगा.”
“ओह …” नताशा को शायद मेरी बातों से निराशा सी हो रही थी।
“यार परसों सन्डे है अगर तुम सुबह जल्दी आ जाओ तो हम दोनों पूरे दिन मज़े कर सकते हैं.” मैंने उसकी ओर आँख मारते हुए कहा।
“यही तो मुसीबत है.”
“क्या मतलब?”
“वो मेरी कजिन की बेटी का जन्मदिन है सन्डे को तो मेरा आना मुश्किल लग रहा है.”
“ओह …”
“प्रेम एक काम कर सकते हो क्या?”
“क्या?”
“तुम सन्डे दोपहर में या शाम को हमारे यहाँ आ जाओ और फिर रात में वहीं रुक जाना.”
“अरे नहीं जान … वो पूछेंगे तो मैं क्या जवाब दूंगा?”
“ओहो … तुम भी निरे फट्टू हो? मैं उन्हें बता दूंगी तुम मेरे गुलफाम हो?”
“गुलफाम … मतलब?” मेरे तो नताशा की बातें पल्ले ही नहीं पड़ रही थी सच कहूं तो मुझे कुछ समझ ही नहीं आया था।
“अरे यार … मैं तुम्हारा परिचय अपने पति के रूप में करवा दूंगी कि तुम मेरे से मिलने के लिए आये हो। और खास बात तो यह है कि उन्होंने अभी तक मेरे उस चूतिये गुलफाम को देखा भी नहीं है तो किसी को क्या पता चलेगा?”
“पर … अगर …”
“अब अगर मगर रहने दो … अब इसमें इतना क्या सोचना है मैं सब मैनेज कर लूंगी तुम बस आ जाओ … मैं आज ही उनको बता देती हूँ कि नितेश का फोन आया है वो मिलने के लिए सन्डे को आ रहे हैं। फिर तो हम 2 दिन खूब मस्ती कर सकते हैं।”
“मैं कल एक बार ऑफिस अटेंड कर लूं उसके बाद सोचते हैं.” कहकर मैंने एक बार तो नताशा को टाल दिया।
मैं नताशा के प्रस्ताव के बारे में सोच रहा था।
एक बार नताशा ने मुझे बताया कि उसकी कजिन के दो किशोरी लौंडियाँ भी हैं। जिस प्रकार नताशा ने उनकी खूबसूरती का वर्णन किया था मेरा मन तो करने लगा था इन दोनों मुजस्समों का भी दीदार करके आँखें सेक ली जाएँ।
ओह … पर इसमें बहुत बड़ा रिस्क भी है।
अगर किसी को पता लग गया तो मेरा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा. हाँ नताशा ना घर की रहेगी ना घाट की।
अभी तो उसके दिमाग में जवानी का फितूर चढ़ा है अगर कोई 19-20 बात हो गई तो संभालना मुश्किल हो जाएगा। मैं ऐसी जोखिम कदापि नहीं ले सकता।
कई बार तो मुझे लगता है मैं यह किस सिंड्रोम में उलझ गया हूँ? पता नहीं वे संधि की उम्र के आसपास जवानी की दहलीज के इस पार खड़ी किशोरी लड़कियों को देख कर मैं अपने आप को रोक नहीं पाता और किसी भी प्रकार उन्हें पाने के लिए बेताब रहने लगता हूँ।
पलक के जाने के बाद मैंने तीसरी कसम खाई थी कि अब मैं किसी नटखट नादाँ मासूम लड़की से प्रेम नहीं करूंगा पर गौरी और फिर सानिया ने मेरी इस कसम को तौड़ ही डाला।
प्रिय पाठको! आप की क्या राय है? क्या मुझे इन सब चीजों को अब छोड़ देना चाहिए?
यही सोचता हुआ मैं नताशा को टैक्सी तक छोड़कर वापस रूम में आ गया।
फ्री सेक्स Xxx स्टोरी में मजा आ रहा है ना आपको?
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फ्री सेक्स Xxx स्टोरी जारी रहेगी.
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