यह कैसा मोड़-2
प्रेषक : विजय पण्डित
“यह तो गार्डन है… किसी ने देख लिया तो बड़ी बदनामी होगी…”
“तो फिर…?”
“मौका तलाशते हैं… किसी होटल में चलें…?”
“अरे हाँ… मेरी सहेली का एक होटल है वहाँ वो लंच के बाद आ जाती है… उसके पति फिर लंच पर चले जाते हैं… वहाँ देखती हूँ…”
रोहित और शिखा दोनों ठीक समय पर उस होटल में पहुँच गये। उसे देखते ही होटल मालकिन उर्मिला बोल- यही हैं जनाब…?
“जी नमस्ते…” मैंने उन्हें मुस्करा कर अभिवादन किया।
“उं हु… छह फ़ुट के हो…” फिर मुस्करा कर बोली- टैक्स दोगे…? कमरे का किराया तो मैं लूंगी नहीं…!”
शिखा ने टेढी नजर से मुझे देखा… फिर उर्मिला को बोली- माल है माल…! अच्छे से टेस्ट कर लेना…
मैं सब समझ रहा था।
“थेंक्स मेम…” मैंने उसकी सहेली का आभार प्रकट किया।
“अरे, इसमें थेंक्स की क्या बात है? मैं तुम्हारे काम आऊँ और तुम मेरे काम आओ… जिन्दगी तो ऐसे ही चलती है… आओ !”
वो हम दोनों को चौथी मंजिल पर ले गई- यह चौथी मंजिल अभी खाली है सो इसका मैं मुख्य दरवाजा बन्द देती हूँ और यह चाबी तुम रखो…!
फिर उसने मुझे आँख मारी और नीचे चली गई। शिखा ने दरवाजे को लॉक कर दिया और कमरे में चल दिये। खासा बड़ा एयर कन्डीशन कमरा था। उसने एयर कन्डीशन चला कर तापमान सेट कर दिया।
“अब स्नान कर लें?” शिखा ने अपने होंठ चबाते हुये कहा।
“क्यों…?”
“यार, चूमा चाटी करेंगे… साफ़ तो हो जायें… खुशबू आनी चाहिये ना…!”
“खुशबू? पर यार बाथरूम तो एक ही है।”
“हम भी तो एक ही हैं…!”
शिखा तो बेशरम की तरह अपने एक एक कपड़े उतारने लगी थी। मैं तो फिर मर्द था, मैंने भी देखा देखी अपने कपड़े भी उतार दिये। वो मुझे नाच नाच कर घूम घूम कर अपने अंग, गुप्तांग सब कुछ उभार कर दिखा रही थी। मैंने भी अपना कड़क लण्ड खूब उभार उभार कर उछाला। फिर एक दूसरे से लिपट गये।
मैंने उसे अपनी गोदी में उठाया और बाथरूम में ले गया। वहाँ पर हमने एक दूसरे को खूब घिस घिस कर नहलाया। फिर वैसे ही नंगे बाहर आ गये। उसने 72 इन्च का बड़ा टीवी ऑन कर दिया, उसमें ब्ल्यू फ़िल्म चल रही थी। उसने भीगे बदन को रगड़ रगड़ कर साफ़ किया… फिर उसने साईड पर पड़ी मेज़ पर से कुछ मेकअप किया।
“यह मेकअप…?”
“सुन्दर लगूंगी तो जोर से चोदेगा ना।”
“शिखा, तू तो बड़ी चालू निकली… कितनों से चुदा चुकी हो…?”
“चुप… मैंने पूछा क्या तुमसे कि तुमने कितनों को चोदा है?”
“एक को भी नहीं ! सच… अब आ जाओ !” रोहित ने उसे लिपटाने की कोशिश की पर शिखा अपनी दोनों टांगें खोल कर एक
विशेष एंगल में खड़ी हो गई। रोहित ने अपनी आँखें बन्द ही कर ली और उसकी रसभरी चूत से अपनी जीभ चिपका दी। वो अपनी लम्बी जीभ से उसकी चूत को साफ़ करता हुआ चूस भी रहा था। शिखा जोर जोर से चीख चीख कर अपनी खुशी जता रही थी।
“मार डाल भोसड़ी के… घुसा दे पूरी जीभ…। उईईइ मां… रोहित यार… लण्ड घुसेड़ दे…!”
रोहित ने शिखा को एक मेज पर हाथों के बल झुका दिया। अपना सख्त लण्ड उसे घोड़ी बना कर पीछे से उसकी चूत में घुसाने लगा।
“अरे ऐसे नहीं… जरा यूँ घूम कर… हाँ ठीक… अब धीरे से घुसेड़ना… !” शिखा बार बार अपना एंगल कुछ विशेष पोजीशन पर रख रही थी।
जैसे ही रोहित ने लण्ड घुसेड़ा तो शिखा मारे आनन्द के चीख उठी- मार डाला रे… ओह्ह्ह्ह… कितना मोटा लण्ड है… धीरे से यार… ये तो मेरी चूत फ़ाड़ ही देगा।
“ले ले यार मेरा मोटा लण्ड… तेरे लिये ही तो है ये !”
मैंने ठीक से उसकी चूत में लण्ड घुसा दिया और फिर एक लय में उसे चोदने लगा।
वो अपनी खुशी का इजहार चीख चीख कर रही थी। मैंने उसके झूलते हुये बोबे थाम लिये और उन्हें मचकाने लगा। उसकी मस्ती भरी चीखों से मुझे भी जोर की मस्ती आने लगी थी। शिखा मुझे बार बार एक विशेष एंगल से चोदने को कह रही थी, शिखा अपनी दोनों टांगें खूब चीर कर अपने चूतड़ आगे पीछे करके चुदवा रही थी।
कुछ ही देर में मेरा हाल बुरा हो चला था। मैंने उसे कस कर पीछे से जकड़ लिया और लण्ड बाहर खींच लिया… मेरा वीर्य बस निकला निकला ही था। अब मैंने शिखा की तेजी देखी… उसने फ़ुर्ती से झुक कर मेर लण्ड को अपने मुख में ले लिया और मेरी पिचकारियों का स्वागत करने लगी। मैं एक पिचकारी छोड़ता वो अपने मुख पर उसे ले लेती… यूं करके उसने अपना पूरा चेहरा ही मेरे वीर्य से भर लिया। अब वो बड़े ही सेक्सी तरीके से उसे जीभ बाहर निकाल कर चाट रही थी। अपनी अंगुलियों से उसे ले लेकर चाटने लगी थी।
हम दोनों वहीं सोफ़े पर बैठ गये…
“कैसा लगा रोहित…?”
“मजा आ गया रानी…”
“अब पास आ जा… जितनी देर में तेरा लण्ड खड़ा होता है… तू मेरी गाण्ड चाट ले।”
“चल हट… गन्दी कहीं की…”
“अरे खूब मल मल कर तो साफ़ की है ना…”
फिर मैं हंस दिया… सच तो है… मैंने ही तो उसकी गाण्ड साबुन से अंगुली भीतर डाल डाल कर साफ़ की थी।
शिखा ने अपनी दोनों टांगें फ़ैला ली और घोड़ी बन गई। आह ! कैसी सुन्दर सी सलोनी गोरी गोरी गोल गोल गाण्ड थी। बीच में खूबसूरत सा एक मस्त छेद… थोड़ा सा खुला हुआ… मैंने झुक कर अपनी जीभ नुकीली की और उसकी गाण्ड में उसे डाल दिया। वो आनन्द से उछल पड़ी।
मैंने अपनी जीभ अन्दर-बाहर की तो शिखा खुशी से मस्ता उठी।
“जीभ छोड़ यार… लण्ड से ही चोद दे… मजा आ जायेगा…!”
यह सब सुन कर मेरा लण्ड फिर से सख्त हो गया। उसकी गाण्ड चाट चाट कर मैंने उसे खूब गुदगुदी की, फिर बोला- लण्ड घुसेड़ दूँ क्या?
मेरे कहते ही उसने अपना एंगल बदला और कहा- अब आ जा।
मैंने उसके थोड़े से खुले छेद में अपना लण्ड का सुपाड़ा दबाया। बिना किसी जोर के मेरा लण्ड का सुपाड़ा अन्दर बैठ गया।
“क्या बात है जानू… मक्खन जैसी गाण्ड है… तेरी गाण्ड लण्ड लेने के लिये हमेशा ही खुली रहती है क्या?”
“तेरे जैसा मस्त लौड़ा हो तो बात ही क्या है जानू…”
लण्ड फिर तो घुसता ही चला गया। शिखा हंसते हुये आई आई… करती हुई अपनी खुशी जता रही थी। मुझे उसकी गाण्ड चोदने में कोई तकलीफ़ नहीं हुई बल्कि जैसा आनन्द चूत में आता है वैसा ही मस्त मजा आया। खूब देर तक मैंने शिखा की गाण्ड चोदी। फिर जब मेरा वीर्य उसकी गाण्ड में निकाला तो मैं तो जैसे निढाल हो गया। मेरा लण्ड अपने आप ही बाहर आ गया। उसकी गाण्ड में से गाढ़ा गाढ़ा वीर्य धीरे से निकल पड़ा। वो कुछ देर वैसे ही पड़ी रही।
मैं थका हुआ सा उठा और स्नानघर में आ गया। मैंने फिर से स्नान किया और बाहर आ गया। इतनी देर में शिखा बिल्कुल टिपटॉप हो कर तैयार हो चुकी थी। वो नीचे गई और थोड़ी ही देर में चाय नाश्ते के साथ उर्मिला भी साथ आ गई। शिखा ने उठ कर दरवाजा बन्द कर दिया।
“पहले क्या पसन्द करोगे… चाय नाश्ता या कुछ और…”
“कुछ और क्या उर्मिला जी…?”
उर्मिला ने अपनी दोनों टांगें धीरे से खोल दी… उनकी चिकनी चूत चमचमा उठी।
शिखा ने कहा- … रोहित… इनका सम्मान करो, उसे प्यार करो…
रोहित मुस्करा उठा वो उठ कर उर्मिला की टांगों के मध्य आ कर बैठ गया और धीरे से उसकी स्कर्ट ऊपर करके उसकी रसभरी चूत को पीने लगा। उसकी चूत यूँ तो मस्त थी पर रसीली बहुत थी। वो जल्दी ही झड़ गई।
फिर तीनों ने चाय नाश्ता किया। तभी किसी ने खटखटाया। उर्मिला उठ कर गई, आने वाले ने उसे एक सीडी दी। उर्मिला ने वो सीडी प्लेयर में लगा दी…
बड़े से टीवी पर फ़िल्म चलने लगी। बहुत शानदार शूट हुई थी। हाई डेफ़िनेशन में थी… क्या तो लण्ड और क्या तो चूत… इतनी साफ़ और चमकदार दिख रही थी।
रोहित कुछ कुछ असमंजस में था।
“उर्मिला जी… ये फ़िल्म कुछ जानी पहचानी सी लग रही है।”
“ये लो रोहित, तुम्हारे पचास हजार… और शिखा थेंक्स… ये आपके पचास हजार।”
“ये क्या?” मैं एकदम से बौखला गया।
“यह आपकी और शिखा की ब्ल्यू फ़िल्म है… अब यह एडिटिंग के बाद तैयार होकर मार्केट में जायेगी… यदि डिमान्ड आयेगी तो अगली बार एक लाख रुपये मिलेंगे…।”
यानी मस्ती की मस्ती और माल का माल… मैं तो खुशी के मारे उछल पड़ा…
“शिखा, कोई खतरा तो नहीं है ना…?”
“तू तो सच में चूतिया है… अरे इसमें मैं भी तो हूँ… गाण्ड तो मेरी फ़टनी चहिये ना?” शिखा ने हंसते हुये कहा।
“इसे कुछ पोज बनाने की ट्रेनिन्ग दे देना… ताकि मूवी में सब कुछ साफ़ साफ़ नजर आये।” उर्मिला ने शिखा को कहा फिर बोली-
रोहित… एन्जोय… शिखा ही नहीं, तुम्हें कई खूबसूरत लड़कियों से भी करना पड़ेगा… बाय !
हम दोनों होटल से बाहर निकल आये… अब समझ में नहीं आ रहा था कि मैं इतने रुपयों का क्या करुंगा। शिख तो सीधे बैंक गई और उसने सारे पैसे जमा करवा दिये। मैंने भी यही किया।
अब महक के पीछे पीछे मत भागना… बुलाये तो जाना भी नहीं…
मैंने शिखा से कहा- अरे, प्यार से कहती तो जान हाजिर थी… चूतिया बना कर तो वो नफ़रत ही पैदा कर सकती है… फिर कब मिलोगी…?
“ऑफ़र आने दो… फिर रिहर्सल भी करना है ना… अभी पढ़ाई में मन लगाओ… अरे हाँ, तुम महक से वो नोट्स ला सकते हो…?”
“उफ़्फ़ ! फिर वो ही… महक…”
“अच्छा तो रहने दे… पढ़ाई में मैं इतनी कमजोर भी नहीं हूँ…!”
फिर वो खिलखिलाती हुई चल पड़ी…
विजय पण्डित
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