तीसरी कसम-6

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प्रेम गुरु की अनन्तिम रचना

“पलक अगर कहो तो आज तुम्हें पहले वो … वो …?” मेरा तो जैसे गला ही सूखने लगा था।

“सर, ये वो.. वो.. क्या होता है ?” मेरी हालत को देख कर मुस्कुरा रही थी।

“म … मेरा मतलब है कि तुम्हें वो बूब्स को चुसवाना भी तो सिखाना था ?”

“हाँ तो ?”

“क्यों ना आज शुरुआत उसी से की जाए ?” मैंने डरते डरते कहा, मैं जानता था कि वो मना कर देगी। लडकियाँ कितनी भी मासूम क्यों ना हों पर इन बातों को झट से समझ जाती हैं।

पर मेरी हैरानी की उस समय सीमा ही नहीं रही जब उसने कहा,”ठीक है गुरूजी … जैसा आप बोलें। पर कुछ और मत कर बैठना !” वो अपनी मोटी मोटी आँखें झपकाते हुए मंद मंद मुस्कुराने लगी।

मेरा दिल तो बल्लियों ही उछलने लगा था। मैंने अपना कोट और जूते उतार दिए। मेरे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि मुझे कैसे शुरुआत करनी चाहिए। आज मुझे लगने लगा था कि मैं अपने आप को प्रेम गुरु झूठ ही समझता रहा हूँ। इस कमसिन बला के सामने मेरी हालत इस तरह खराब हो जायेगी मैंने सोचा ही नहीं था।

“सर एक बात पूछूं ?”

“ओह्हो … पलक तुम मुझे सर मत बोला करो।”

“क्यों ?”

“जब तुम सर बोलती हो तो मुझे लगता है मैं किसी सरकारी स्कूल का मास्टर हूँ !”

“वो.. वो… मिक्की आपको क्या कह कर बुलाती थी?”

“वो तो मुझे जीजू कह कर बुलाती थी।”

“क्या मकाऊ (मरुस्थल का ऊँट) नहीं बुलाती थी?” कह कर वो हंसने लगी।

“ओह … पलक तुम बड़ी शरारती हो गई हो !”

“कैसे?”

“मकाऊ तो सिमरन बुलाती थी।”

“ओह हाँ … तो मैं आपको फूफाजी बुला लिया करूँ?” वो जोर जोर से हंसने लगी।

मैंने उसे घूर कर देखा तो वो बोली,”चलो कोई बात नहीं मैं भी आपको अब जीजू ही बुलाऊंगी … अच्छा एक बात सच बताना?”

“हम्म्म …?”

“क्या आपको सिमरन और मिक्की की बहुत याद आती है?”

“हाँ..”

“क्या आपको अब भी छोटी छोटी लड़कियाँ अच्छी लगती हैं?”

“पर तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो?”

“ऐसे ही।”

“फिर भी?”

“क्या आप उसे बहुत प्रेम करते थे?”

“हाँ … पलक … पर तुम भी तो मेरी मिक्की जैसी ही हो !”

“पर मैं मिक्की की तरह बच्ची तो नहीं हूँ !”

“मैं जानता हूँ मेरी दादी अम्मा, अब तुम बच्ची नहीं बड़ी हो गई हो !” कहते हुए मैंने उसके गालों पर हलकी सी चिकोटी काट ली। भला इतना सुन्दर मौका मैं हाथ से कैसे जाने देता।

“ऊईई आईईईईई…..”

“क्या हुआ?”

“हटो परे… ऊँट जीवो….” वो अपने गालों को सहलाती हुई बोली।

बचपन लांघने के बाद यौवन की दहलीज़ पर खड़ी दुबली पतली अधखिली कलियों को पता नहीं बड़ी होने की क्या जल्दी लगी रहती है। काश ये कमसिन कलियाँ कभी फूल ना बने बस यूंही अपनी खुशबू बिखेरती रहें।

एक बात बताऊँ ! देखा जाए तो हम सभी अपनी उम्र के 10 साल पीछे में अपने आपको देखना पसंद करते हैं। अगर कोई औरत 40 की है तो वो हमेशा यही सोचेगी कि काश वो इस समय 30 की ही होती। जब पलक भी 25-26 की हो जायेगी तो यही सोचेगी काश वो 15-16 की ही होती।

“पलक ! छोड़ो इन बेकार बातों को !”

“ठीक है फूफा …जी … अर्रर्रर्र …जीजू ………?”

पलक खड़ी हो गई और उसने बड़ी अदा से अपना टॉप उतार दिया। आज उसने ब्रा नहीं पहनी थी। आज तो उसके उरोज भरे पूरे लग रहे थे। एक ही दिन में उनकी रंगत निखर आई थी। मुझे तो लगा जैसे अभी ये दोनों गुलाबी रंग के परिंदे अपने पंख फैलाकर उड़ जायेंगे। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। मैंने उसकी ओर अपनी बाहें फैला दी। वो शर्माते हुए मेरे पास आ कर खड़ी हो गई और फिर अपनी दोनों टांगें मेरी कमर के दोनों ओर कर के मेरी गोद में बैठ गई। फिर उसने अपना सिर मेरे सीने से लगा दिया। उसके कमसिन बदन की मादक गंध से मैं तो सराबोर ही हो उठा। उसके अधर कांप से रहे थे और वह कुछ घबरा भी रही थी। पर मैं जानता था मेरी बाहों में आकर उसे एक सहारे का बोध तो हो ही रहा था।

उसके अबोध चहरे को देख कर मेरा रोमांच और भी बढ़ गया। उसने अपनी आँखें बंद कर ली। फिर वो अपनी बाहें मेरे गले में डाल कर अपनी गर्दन को पीछे करके झूल सी गई। ऐसा करने से उसके दोनों उरोज तन कर ठीक मेरे मुँह के सामने आ गए। उसके शरीर से मीठी धाराएँ बहने लगी थी और लाज और रोमांच के कारण उसकी आँखें स्वतः मुंद सी गई थी। मैंने एक हाथ से उसकी कमर पकड़ ली और दूसरे हाथ से उसका एक उरोज को पकड़ लिया। अब मैंने धीरे से अपने होंठ उसके चने के जितने बड़े चुचूक पर लगा दिए। पहले मैंने उस पर एक चुम्बन लिया और फिर अपनी जीभ को नुकीला करके उसके एरोला और चूचक पर गोल गोल परिक्रमा की तो पलक ने एक सिसकारी सी ली।

अब मैंने एक उरोज को पूरा का पूरा अपने मुँह में भर लिया और धीरे धीरे चुस्की लगाने लगा। रसीले आम की तरह उसका पूरा उरोज मेरे मुँह में समां गया। अब मैंने अपना एक हाथ उसकी पीठ पर भी फिराना चालू कर दिया। उसके अछूते कुंवारे बदन से आती खुशबू ने तो मुझे इतना उत्तेजित कर दिया था कि मेरा शेर तो खूंटे की तरह पैंट फाड़ कर बाहर आने को होने लगा था। पर वो बेचारा तो उसके नाज़ुक नितम्बों के दबाव से पिस ही रहा था। मैंने अपना हाथ उसकी पीठ से नीचे की ओर ले जाना चालू कर दिया। उसकी मीठी सीत्कार चालू हो गई थी। उसने मेरा सर अपने हाथों में पकड़ लिया और अपनी छाती की ओर दबाने लगी।

मैं बारी बारी से दोनों उरोजों को चूसता रहा। कभी मैं उसे पूरा मुँह में भर लेता और चूसते हुए धेरे धीरे अपना मुँह पीछे करते हुए उसे थोड़ा सा बाहर निकाल कर फिर से मुँह में पूरा भर लेता।

मैंने उसके उरोज की घुंडी को अपने दांतों के बीच लेकर हल्के से दबाया तो पलक एक जोर की किलकारी मारते हुए जोर से उछली तो मेरा फिसलता हुआ हाथ स्कर्ट में छुपे दोनों नितम्बों की गहरी संकरी खाई से जा टकराया। मुलायम गद्देदार गोल गोल नितम्बों के बीच में फंसी कच्छी पूरी गीली हो गई थी।

पलक के लिए तो यह सब अनूठा और अप्रत्याशित ही था। उसके छोटे छोटे चुचूक तो तनकर नुकीले हो गए थे। मैं कभी उन्हें दांतों से दबाता और कभी उन पर जीभ फिराता। मैं बारी बारी दोनों उरोजों को चूमता चाटता रहा और कभी उन्हें हौले होले मसलता और कभी दबाता। पर पुरुष का स्पर्श तो वैसे भी जवान लड़की को मतवाला बना देता है। पलक तो इतनी रोमांचित हो गई थी कि वो तो मेरी गोद में उछलने ही लगी थी। आप मेरे मिट्ठू की हालत समझ सकते हैं। मुझे लगने लगा अगर यह ऐसे ही मेरी गोद में उछलती रही तो मेरा पप्पू तो पैंट के अन्दर ही वीरगति को प्राप्त हो जाएगा।

मेरे एक हाथ अब फिसल कर उसके वर्जित क्षेत्र तक (जाँघों के बीच फसी उसकी कच्छी के पास) पहुँच गया था। उसकी कच्छी इतनी कसी हुई थी कि मेरा हाथ अन्दर तो नहीं जा सकता था पर मैंने कच्छी के ऊपर से ही जाँघों के बीच उस उभरे हुए भाग को टटोलना चालू कर दिया। कामरस में डूबी उसकी पिक्की तो जैसे फूल सी गई थी। मैंने जैसे ही कच्छी के ऊपर से ही उसके चीरे पर अपनी अंगुली फिराई पलक की किलकारी पूरे कमरे में गूँज गई। अब मैंने अपनी दो अंगुलियाँ उसकी कच्छी के सिरे के अन्दर फसाई तो मेरी अंगुलियाँ उसकी फांकों से जा टकराई। रेशमी बालों और फांकों के गीलेपन का अहसास पाते ही मैं तो जैसे जन्नत में पहुँच गया। अचानक मुझे लगा पलक का बदन कुछ अकड़ने सा लगा है। उसने एक किलकारी मारी और अपने हाथों से मेरा सर पकड़ कर अपनी छाती से दबा दिया। मुझे लगा उसकी पिक्की ने प्रथम रसधार छोड़ दी है। मेरी दोनों अंगुलियाँ किसी गर्म लिसलिसे रस से भीग गई।

अचानक उसने मेरा सर अपने हाथों में पकड़ा और अपना मुँह नीचे करते हुए अपने रसीले गुलाबी अधरों को मेरे होंठों से लगा कर बेतहाशा चूमने लगी। उसका चेहरा सुर्ख (लाल) हो गया था और आँखों में लालिमा दौड़ने लगी थी। मैंने उसे कसकर अपनी बाहों में भींच लिया। हमारे प्यासे होंठ इस तरह चिपक गए जैसे कोई सदियों से बिछुड़े प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे से चिपके हों। उसके कोमल होंठ मेरे प्यासे होंठों के नीचे जैसे पिसने ही लगे थे। वह उम् उम् करती हुई अपनी कमर और नितम्बों से झटके से लगाने लगी थी।

उसने अब मेरी शर्ट के बटन खोलना चालू कर दिया। वह तो इतनी उतावली हो रही थी कि मुझे लगा इस आपाधापी में मैं कहीं कुर्सी से नीचे ही ना गिर पडूँ। मैंने पलक को रोकते हुए बिस्तर पर चलने का इशारा किया।

फिर तो उसने मुझे इतना जोर से अपनी बाहों में कस लिया जैसे उसे डर हो कि मैं कहीं उससे दूर न हो जाऊँ। मैंने उसके अधरों को अपने मुँह में भर लिया और उसे जोर जोर से चूसने लगा। अब मैं कुर्सी से उठ खड़ा हुआ पर पलक ने अपनी पकड़ नहीं छोड़ी। वो मेरी कमर के गिर्द अपने पैरों को कसे मेरी गोद में चिपकी ही रही।

अब हम बिस्तर पर आ गए और मैंने उसे चित्त लेटाने की कोशिश की पर उसने मुझे अपनी बाहों में भरे रखा। मैं ठीक उसके ऊपर ही गिर पड़ा। हम दोनों ने एक दूसरे को फिर से चूमना चालू कर दिया।पता नहीं कितनी देर हम एक दूसरे को चूमते रहे। उसने फिर मेरी शर्ट के बटन खोल दिए और अपना मुँह मेरे सीने पर लगा दिया। मैंने उसके सर और गालों पर अपना हाथ फिराना चालू कर दिया।

“ओह… जीजू इन कपड़ों को उतार दो ना प्लीज ?”

मैं असमंजस में था। मैं जानता था पलक इस समय अपनी सुधबुध को बैठी है। वो इस समय काम के वशीभूत है। मैं सच कहता हूँ पहले तो मैं किसी भी तरह उसे बस चोदने के चक्कर में ही लगा था पर अब मुझे लगने लगा था मैं इस परी के साथ यह ठीक नहीं कर रहा हूँ। मेरे प्रेम में बुझी मिक्की या सिमरन की आत्मा को कितना दुःख होगा। चलो पलक तो अभी नादान है पर बाद में तो वो जरुर यही सोचेगी कि मैं एक कामातुर व्यक्ति की तरह बस उसके शरीर को पाने के लिए ही यह सब पापड़ बेल रहा था।

“ओह….” मेरे मुँह से एक दीर्घ निस्वास छूटी।

“क्या हुआ?”

“क … कुछ नहीं !”

“जिज्जू ! एक बात सच बोलूँ ?”

“क्या?”

“हूँ तमारी साथै आपना प्रेम नि अलग दुनिया वसावा चाहू छु। ज्या आपने एक बीजा नि बाहों माँ घेरी ने पूरी ज़िन्दगी वितावी दयिये। तमे मने आपनी बाहो माँ लाई तमारा प्रेम नि वर्षा करता मारा तन मन ने एटलू भरी दो कि हूँ मरी पण जाऊ तो पण मने दुःख न रहे” (मैं तुम्हारे साथ अपने प्यार की अलग दुनिया बनाना चाहती हूँ। जहां हम एक दूसरे की बाहों में जकड़े सारी जिन्दगी बिता दें। तुम मुझे अपनी बाहों में लेकर अपने प्रेम की बारिश करते हुए मेरे तन और मन को इतना भर दो कि मैं मर भी जाऊं तो मुझे कोई गम ना हो)

“हाँ मेरी पलक मैंने तुम्हारे रूप में अपनी सिमरन को फिर से पा लिया है अब मैं कभी तुमसे दूर नहीं हो सकूँगा !”

“खाओ मेरी कसम ?”

“मेरी परी, मैं तुम्हारी कसम खाता हूँ अब तुम्हारे सिवा कोई और लड़की मेरी जिन्दगी में नहीं आएगी। मैंने कितने बरसों के बाद तुम्हें फिर से पाया है मेरी सिमरन !” कह कर मैंने उसे फिर से चूम लिया।

कहानी जारी रहेगी !

प्रेम गुरु नहीं बस प्रेम

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