सम्भोग : एक अद्भुत अनुभूति-2

(Sambhog- Ek Adbhut Anubhuti-2)

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उसने कहा- यह तो मैंने मन की बात कही है सिर्फ। मैं ऐसा कोई भी कदम शादी से पहले नहीं उठाऊँगी।
और यह कहकर वो आकर मेरे सीने में सिमट गई। आज पहली बार मैंने उसे अपनी बाँहों में लिया। काफी देर तक वो मेरे बाँहों में मेरे सीने से चिपकी रही। आज मेरे मन में भी पहली बार सेक्स की भावना का उदय हुआ था।

मेरा पूरा शरीर कांपने लगा और साथ ही मेरे लिंग में भी उफान आने लगा। कुछ ही देर में लिंग पूरा खड़ा और कड़ा हो गया। मुझे लगा कि मैं अब बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगा लेकिन उसे छोड़ने का भी मन नहीं कर रहा था।

फिर मैंने अपने लिंग पर उसके हाथ को महसूस किया। मैंने सोचा कि अब यदि हम दोनों ने खुद को नहीं रोका तो कुछ न कुछ अवश्य हो जाएगा, जो नहीं होना चाहिए।
मैंने उसके हाथ को पकड़ कर हटा दिया और उससे अलग हो गया।

वो भी कुछ-कुछ झेंपती हुई मुझसे अलग हो गई और बोली- मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था पर ना जाने क्यूँ कुछ खुद को रोक नहीं पाई। तुम मुझे गलत मत समझना।

दरअसल हम दोनों को ही परिवार से कुछ ऐसे संस्कार मिले हैं कि कोई भी गलत कदम उठाने से पहले सौ बातें दिमाग में आ जाती हैं और रोक देती हैं।

उस दिन के बाद से जब कभी हम आपस में मिलते थे तो इस बात का विशेष ख्याल रखते थे कि एक-दूसरे के शरीर को स्पर्श न कर जाए क्योंकि शारीरिक स्पर्श ही तो शरीर के साथ साथ दिमाग में भी आग लगा देती है। लेकिन कम दोनों का प्यार दिन प्रतिदिन गहरा होता जा रहा था, एक दूसरे के प्रति सम्मान और समर्पण बढ़ता ही जा रहा था।

यह सिलसिला करीब दो साल तक चला। फिर अचानक वो हो गया जिसका मुझे जरा भी भान नहीं था। वीणा अपने माता-पिता के साथ अपने गाँव चली गई कुछ दिनों के लिए। मैं भी एक सप्ताह के लिए रिश्तेदारी में रांची गया था। मैं जब लौट कर वापस आया तो पता चला कि वीणा की शादी हो रही है। मेरे ऊपर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा। पता चला कि कहीं से एक अच्छा रिश्ता आया और उसके पिता ने हाँ कर दी और आनन-फानन में शादी तय हो गई।

मैं तो सदमे में डूब गया पर मैंने जाहिर नहीं होने दिया क्योंकि मैं वीणा की बदनामी नहीं चाहता था। और सबसे बड़ी बात कि अब फायदा भी क्या था। किस्मत का लेख समझ कर मैंने परिस्थिति को स्वीकार कर लिया। मुझे वीणा पर भी कोई गुस्सा नहीं था क्योंकि अपने समाज में और वो भी एक सम्भ्रांत परिवार के लड़की की क्या सीमाएँ होती है इससे मैं वाकिफ़ था।

अचानक मिले इस सदमे से उबरने के लिए मैंने अपने काम के सिलसिले में पन्द्रह दिन का हिमाचल प्रदेश का टूअर बना लिया। यह वाकया मई 2009 का है। पहले मैं 19 तारीख को कांगड़ा गया और और वहाँ दो दिन का कार्यक्रम करके 21 मई को करीब पांच बजे शाम में मैं वहाँ से बद्दी जाने के लिए निकला। बस स्टैंड में आने पर पता चला कि बद्दी के लिए कोई सीधी बस अब नहीं है पर ऊना के लिए बस मिल जायेगी और उना से बद्दी कि बस मिल जायेगी तो मैंने ऊना वाली बस ले ली।

किन्तु दुर्भाग्य से या सौभाग्य से रास्ते में कई कठिनाइयों का सामना करते-करते हमारी बस ऊना 9 बजे पहुँची। वहाँ पता चला कि बद्दी जाने वाली आखिरी बस तो चली गई और अब बद्दी के लिए पहली बस सुबह पाँच बजे मिलेगी।

मैं थोड़ा परेशान सा हो गया कि अगले दिन मेरा कार्यक्रम दस बजे से ही था। और पहाड़ी रास्तों में बस को कितना समय लगेगा इसका कोई ठिकाना नहीं रहता है। इससे भी ज्यादा इतनी रात को इस छोटे से जगह में होटल ढूँढना। फिर भी मैं मन मार कर स्टैंड से बाहर निकला।

जैसे ही मैं बाहर निकला मेरी नजर वीणा से टकरा गई। मैं भौंचक्क सा उसे देखता ही रह गया। फिरोजी रंग की साड़ी में बिल्कुल नवविवाहिता के सज-धज में इतनी सुन्दर लग रही थी वो कि मैं तो स्वप्न में खो गया। वीणा ने ही आकर मुझे टोका तो जैसे मैं नींद से जगा।

मैंने उससे शादी की बधाई दी तो वो थोड़ी उदास हो गई। थोड़े दुखी स्वर में उसने मुझसे पूछा- यहाँ कैसे?
तो मैंने अपनी राम कहानी उसे बताई।

उसने कहा- घबराने की कोई बात नहीं है, मेरा घर यहीं स्टैंड के पास है और स्टैंड के बगल में ही उसके पति का फलों का थोक व्यापार है। दो दिन के लिए वो सोलन गए हुए हैं तो मुझे ही उनका काम देखना पड़ा। तुम मेरे साथ घर चलो। रात में आराम करके सुबह की बस से चले जाना।
मैंने कोई जवाब नहीं दिया सिर्फ मंत्रबद्ध सा उसके पीछे-पीछे चलने लगा।

घर पहुँच कर उसने मुझे बताया कि कैसे जल्दबाजी में उसकी शादी ठीक हुई और उसे अपने दिल की बात अपने माता-पिता को कहने का अवसर भी नहीं मिला। मैंने उसे समझाया कि अब ये सब बातें भूल जाओ अपने नए जीवन में मन लगाओ।

फिर मैं थोड़ा फ्रेश हुआ और तब तक उसने खाना लगा दिया था। घर में और कोई था ही नहीं। हम दोनों ने बैठकर खाना खाया।

चूंकि उसके घर में एक ही बेडरूम था तो मैंने उसे कहा कि छत पर मेरा बिस्तर लगा दे, वैसे भी गर्मी का समय है।

उसने ऐसा ही किया। छत पर बिस्तर लगाने के बाद हम लोग छत पर ही बातें करने लगे। वो पुरानी बातों को याद करके रोने लगी और रोते-रोते मेरे सीने से लग गई।

अचानक जैसे मुझे झटका लगा। उसका शरीर एकदम बर्फ के समान ठंडा था। मुझसे भी रहा नहीं गया तो मैंने उसे अपने आलिंगन में बाँध लिया। उसके स्पर्श में एक अद्भुत आकर्षण था। इस अनुभूति का मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकता। एकदम कोमल सा गात जैसे रुई की बनी हुई हो। न जाने कब हम दोनों के होंठ आपस में एक हो गए। मैं तो जैसे स्वर्ग में विचरण करने लगा। कितनी देर तक हमारे होंठ जुड़े रहे ये कहना मुश्किल था।

होश तो तब आया जब अचानक उसके हाथ का एहसास मेरे लिंग पर हुआ। मैं चौंक गया और उसका हाथ हटाने लगा। पर उसने जोर देकर मेरा लिंग पाजामे के ऊपर से ही कसकर पकड़ लिया और अपने दूसरे हाथ से मेरा दाहिना हाथ पकड़ कर अपने स्तन पर रख दिया।

अब मेरा भी सब्र टूट गया। मैं भी उसके स्तनों को सहलाने लगा। उसने मेरे पाजामे को नीचे खींच दिया और फिर मेरे अंडरवियर को भी खींचकर नीचे कर दिया। फिर मेरे नंगे लिंग को बड़े प्यार से सहलाने लगी। लिंग के ऊपर की चमड़ी को आगे पीछे करने लगी। साथ ही उसने मुझे अपने कपड़े उतरने का भी इशारा किया।

मैं तो उसके गुलाम की तरह उसका हर हुक्म मान रहा था। उसका स्पर्श करने पर महसूस होता था जैसे हवा को छू रहे हों। मैंने उसके शरीर से भी एक एक कर सारे कपड़े उतार दिया। जैसे ही उसके ब्रा को उसके शरीर से अलग किया दो श्वेत कपोत उछलकर सामने आ गए। मैंने दोनों हाथों से उसे पकड़ लिया और दबाने लगा।

मेरी बेचैनी बढ़ने लगी। लिंग अपने पूरे उफान पर था, इतना कड़ा हो गया था जैसे अब फट जाएगा। उस पर वीणा के कोमल हाथों का एहसास ! क्या कहूँ दोस्तो, मैं बयाँ नहीं कर सकता।

उसने अपने एक हाथ से मेरा सर पकड़ कर झुकाते हुए अपने स्तन की ओर इशारा किया। मैंने उसके स्तनों को अपने मुँह में भर लिया और धीरे-धीरे चूसने लगा। वो सिसकारियाँ भरने लगी। हम दोनों पर मदहोशी छाने लगी। मैंने उसके स्तनों को चूस चूस कर लाल कर दिया। अब मैंने उसके पेटीकोट को खोला और उसकी कच्छी को नीचे कर दिया।

दोस्त क्या बताऊँ कैसी थी उसकी योनि ! एकदम गुलाबी और चिकनी, एक भी बाल नहीं था, एकदम उभरी हुई, फूली हुई !
मेरे हाथ उसकी योनि को सहलाने लगे। मैंने नीचे झुक कर उसकी योनि को चूम लिया। वो अचानक चिहुंक गई। जैसे ही मैंने उसे चाटने के लिए अपनी जीभ उसके योनि से सटाया उसने मेरा सिर पकड़ कर हटा दिया और कहा- नहीं यह गन्दी है, मुँह में मत लो।

मुझमें इन्कार की या जबरदस्ती की हिम्मत कहाँ। मैं हाथ से ही उसके योनि को सहलाने लगा। फिर मैंने हिम्मत करके अपनी एक अंगुली उसके योनि में प्रविष्ट कराई।

मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उसकी योनि एक कुंवारी लड़की की तरह बिल्कुल कोरी और कसी हुई लगी पर कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई।
उसे बहुत अच्छा लगा।

पहले तो मैं अपनी अंगुली से उसकी योनि के अंदर की सतहों को काफी देर तक टटोलता रहा नीचे तक। फिर मैंने अंगुली को अंदर बाहर करना शुरू किया तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा- जब तुम्हारे पास इतना अच्छा लिंग मौजूद है तो अंगुली से क्यों?
यह उसका इशारा और अनुमति थी अगले चरण की शुरुआत के लिए।
मैंने उसे पकड़ कर बिस्तर पर लिटा दिया और पागलों की तरह चूमने लगा तो उसने कहा- इतने बेसब्रे क्यूँ होते हो, मैं तो पूरी रात के लिए तुम्हारी हूँ।

फिर मैं उसके दोनों पैरों को अलग करके बीच में आ गया और अपने लिंग को उसके योनि के द्वार पर रख कर हल्का सा धक्का दिया, पर मेरा लिंग ऊपर की ओर फिसल गया।

वो परियों की तरह हँसने लगी और बोली- लगता है ये तुम्हारा पहला सम्भोग है।
उसकी हँसी में भी एक अद्भुत आकर्षण था।

मैं भी मुस्कुरा दिया और कहा- मैं तो अब तक तुम्हारे ही इंतजार में था।
अब उसने मेरे लिंग को पकड़ कर सही जगह पर लगाया और कहा- अब कोशिश करो।
मैंने फिर धक्का लगाया और मेरे लिंग का अग्र-भाग उसके योनि द्वार में फंस गया।
उसने कहा- डरते क्यूँ हो, जोर लगाओ ना।

मैंने इस बार कसकर धक्का मारा। आधे से कुछ ज्यादा ही लिंग उसके योनि में धंस गया। उसने अपने दांतों से अपने होंठ को भींच लिया पर कुछ बोली नहीं। पर उसके चेहरे पर उभरने वाली पीड़ा को साफ देखा जा सकता था। मैं विचलित हो गया। उसकी हालत पर भी और अपनी हालत पर भी। क्यूंकि मेरे लिंग में भी जोर की पीड़ा होने लगी। करीब दो मिनट तक हम लोग इसी अवस्था में रहे।

उसके चेहरे पर पीड़ा के भाव कुछ कम हुए और उसने अपने कमर को थोड़ा ऊपर की ओर उठाया। मैं समझ गया कि वो तैयार है अगले प्रहार के लिए। मैंने अपने लिंग को थोड़ा बाहर निकला और एक जोरदार धक्का दिया। मेरा पूरा लिंग उसके योनि में अंदर तक धंस गया।

फिर मैं रुका नहीं, लगातार धक्का लगाने लगा। बीस-पच्चीस धक्कों के बाद उसके योनि में कुछ चिकनाई सी आ गई और लिंग अंदर-बाहर करने में सुगमता आ गई। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी, आह… ओह… उह… की आवाज निकलने लगी।

उसकी सिसकारियों की आवाज सुनकर मैं और भी जोश में आ गया, और तेज धक्के लगाने लगा।

करीब बीस धक्के और लगे होंगे कि एकाएक वीणा का शरीर अकड़ने लगा, उसने मुझे अपने बाहों में जकड़ लिया। उसकी जकड़ ऐसी थी कि उसके नाख़ून मेरी पीठ में गड़ गए, मुझे पीड़ा हुई पर अच्छा लगा। उसके अकड़ते ही लगा जैसे उसके योनि में बाढ़ आ गई हो।उसकी योनि ने रस छोड़ दिया था। उस रस से मेरा लिंग सराबोर हो गया और अब बहुत आसानी से लिंग अंदर-बाहर होने लगा।इतना ही नहीं उसके योनि से फच-फच का सुरीला स्वर भी निकलने लगा।

मैं लगातार अपने कमर को आगे पीछे करता रहा। अब वो थोड़ी पस्त सी दिखने लगी, उसका शरीर ढीला हो गया।
मैंने पूछा- थक गई क्या?
उसने जोश में कहा- मैंने तो जीवन का सर्वोच्च सुख पा लिया, पर जब तक तुम उस सुख को नहीं पा लेते हो तब तक करते रहो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।

अब मैं दुगुनी गति से कमर हिलाने लगा। दस मिनट तक और धक्के लगाने के बाद वो फिर अकड़ने लगी। लेकिन अब मेरे लिंग में भी सुरसुराहट होने लगी और लिंग के अग्र-भाग पर थरथराहट होने लगी, लगा जैसे अब मैं भी मंजिल तक पहुँचने वाला हूँ।

मैंने कहा- वीणा, मेरा भी अब छूटने वाला है, बोलो कहाँ निकालूँ?
उसने कहा- मेरी योनि में ही निकालो, मैं तो कब से इसकी प्यासी थी।

ऐसा कहते हुए उसने अपने दोनों टांगों को मेरे कमर के इर्द-गिर्द लपेट कर जकड़ लिया और साथ अपनी योनि को इतना सिकोड़ लिया कि लगने लगा कि अब मेरा लिंग टूट कर उसके योनि में ही रह जाएगा। इसके साथ ही मेरे लिंग से रुक रुक कर पिचकारी की तरह वीर्यपात होने लगा। दस-बारह पिचकारी में ही उसकी योनि वीर्य से लबालब भर गई।

मैं निढाल होकर उसके शरीर पर ही लेट गया पर उसके योनि की जकड़न कम नहीं हुई, वो जैसे मेरे लिंग को निगल लेना चाहती हो।वो मेरे बालों में हाथ फिराने लगी। बीस मिनट तक मैं वैसे ही लेटा रहा। फिर मैं उसके शरीर से हटकर उसके बगल में लेट गया। अब वीणा मेरे ऊपर आ गई और मेरे होंठ, गाल, कपाल, चेहरे के हर हिस्से और शरीर पर भी यहाँ-वहाँ पागलों की भांति चूमने लगी। उसका पागलपन देख कर मैं अजीब पेशोपेश में पड़ गया।

वो चूमते-चूमते रोने लगी। मैंने बड़ी मुश्किल से उसे चुप कराया तो उसने अपना वादा दिलाया और कहा- मैंने कहा था ना कि मैं अपने शरीर को सिर्फ तुम्हें ही सौपूंगी और इसलिए आज तुम्हे यहाँ देखकर मैंने तुम्हें अपना शरीर सौंप दिया। तुम खुश रहो, यही मेरी तमन्ना है।

ऐसा कहकर वो फिर मुझसे लिपट गई और रोने लगी। मैं सोच में पड़ गया कि इसकी शादी के बीस-बाईस दिन हो गए तो क्या अभी तक इसका अपने पति से मिलन नहीं हुआ होगा?

उसने मेरे मन की बात ताड़ लिया और कहा- तुम मुझे गलत मत समझो, मेरी ससुराल में कोई पूजा-पाठ का अनुष्ठान चल रहा है। अतः मेरे पति छः माह तक मेरे साथ कोई संबंध नहीं बना सकते हैं।

मैं थोड़ा सकपका गया कि इसे कैसे पता चला कि मैं क्या सोच रहा हूँ। फिर मेरी हिम्मत नहीं पड़ी कि यह सोचूँ भी कि छः माह बाद क्या होगा।

फिर हम लोग एक-दूसरे से लिपटे बहुत देर तक बातें करते रहे और एक-दूसरे के शरीर को सहलाते रहे। ना उसे नींद आ रही थी और ना मुझे। बात करते करते तीन बज गए और मुझे थोड़ी सी झपकी आ गई।

चार बजे उसने मुझे उठा दिया कि फ्रेश हो जाओ पांच बजे बस पकड़नी है।
मैं उठा, वो अभी भी निःवस्त्र ही थी। वो भी उठ कर अपने कपड़े पहनने लगी।
पर शायद मेरी आँखों की भूख को पढ़ लिया था उसने। मेरे करीब आकर मेरे सर को अपने सीने से लगाकर बोली- मन नहीं भरा अभी तक?

मैंने कोई जवाब नहीं दिया।

उसने अपना चुचूक मेरे मुँह में डाल दिया। मैं उसे मुँह में लेकर चुभलाने लगा। वो फिर गर्म होने लगी। अब वह मेरे लिंग को अपने हाथों में लेकर सहलाने लगी। कुछ ही देर में मेरा लिंग अपने पूर्ण आकार को प्राप्त कर चुका था। बस एक बार और सम्भोग का दौर चला। हम दोनों ही चरम-सुख प्राप्त करते करते पसीने में डूब गए। उसके चेहरे पर भी पूर्ण संतुष्टि के भाव थे।

फिर हम अलग हुए और मैं बाथरूम चला गया और वो कपड़े पहनने लगी। मैं जब तक बाहर निकला वो चाय बना चुकी थी। चाय पीने के बाद वो मेरे साथ बस स्टैंड तक आई। वो बार-बार रोआंसी सी हो रही थी।
मैंने बस में अपना सामान रखा और नीचे उतर कर बस के बगल में उससे बात करने लगा।

जब बस का ड्राइवर अपनी सीट पर पहुँचा तो उसने अपने हाथ से एक सोने अंगूठी निकाली और मेरी अंगुली में पहनाते हुए बोली- देखो मेरे साथ जो भी हुआ, पर तुम मेरे लिए ज्यादा परेशान मत होना और जल्द ही कोई अच्छी सी लड़की से शादी कर लेना। पर मुझे भूलना नहीं, इसलिए मैंने तुम्हें यह अंगूठी दी है।

यह कहकर उसने मेरे होंठों को एक बार फिर चूम लिया, उसकी आँखें डबडबा गई। मेरी भी आँख भर आई और मैं एक रोबोट की तरह बस में बैठ गया और बस चल दी।
जब तक मेरी बस ओझल हुई तब तक वो हाथ हिलाती और मैं खिड़की से उसे देखता रहा।

फिर मैं बद्दी और फिर दिल्ली होते हुए वापस पटना आ गया। पटना आकर मैंने अपनी माँ से जिक्र किया कि कैसे ऊना में मैं वीणा से मिला था।

पहले तो उसे यकीन ही नहीं हुआ, उसने कहा कि वो तेरा भ्रम होगा, तूने उससे मिलती-जुलती किसी और लड़की को देखा होगा।
पर जब मैंने उसे बताया कि मैं उसके घर भी गया और रात भर वहाँ रहा था तो वो थोड़ा सशंकित सी होकर मुझे देखने लगी।

फिर माँ ने मुझे बताया कि वीणा तो मर चुकी है। शादी के तीसरे ही दिन ससुराल जाते हुए उसकी कार का एक्सीडेंट हो गया था।जिसमें वीणा, उसका दूल्हा और दुल्हे का छोटा भाई तीनों की मौत हो गई थी। मैं तो सन्न रह गया। कुछ समझ में नहीं आया कि माँ को क्या कहूँ। मैं कभी अपने हाथ में उसकी अंगूठी को देखता और कभी उसके साथ बिताये उन मधुर पलों को याद करता तो कभी बस स्टैंड पर उसके चुम्बन को जिसे मैं अभी भी अपने होंठों पर महसूस कर सकता था।

क्या ऐसा भी हो सकता है। अंगूठी को देखकर कोई भी फैसला लेना मुश्किल था। पर सच से भी इन्कार नहीं किया जा सकता था। मैंने अंगूठी की चर्चा किसी से नहीं की।

कभी कभी सोचता कि क्या वह सिर्फ अपना वादा पूरा करने आई थी कि वो अपना तन मुझे ही सौंपेगी। पता नहीं…
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