नीला के चक्कर में-1

राजा गर्ग 2014-03-22 Comments

यह कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसके चक्कर में मुझे न जाने क्या क्या करना पड़ा। उस लड़की के चक्कर में मुझे एक ठरकी औरत की लेनी पड़ी क्योंकि वो लड़की उसके साथ एक ही फ्लैट में ही रहती थी।
हुआ यूँ कि एक बार मैं किसी काम से अपने एक दोस्त के फ्लैट पर गया और हम उसकी बालकनी में खड़े होकर बात कर रहे थे।

तभी सामने वाली बिल्डिंग के फर्स्ट फ्लोर पर एक प्यारी सी लड़की दिखाई दी। वो अपने घर में झाड़ू लगा रही थी। उसने गहरे गले वाला सूट पहना था।

आहा, क्या नज़ारा था वो !

वो पूरी पसीने में भीगी हुई थी, जिसके कारण उसका सूट उसकी कमर से चिपक गया था। जिससे उसकी शेप पूरी तरह से नज़र आ रही थी। मैं उसके हुस्न के लिए पागल हो चला था।

मेरा दोस्त मुझे देख रहा था। वो थोड़ा शर्मीले स्वाभाव का था। उस लड़की के अन्दर जाने के बाद हम भी अन्दर आ गए।

उसने मुझसे पूछा- तुझे भी ‘नीला’ अच्छी लगी क्या !

मैंने कहा- अच्छी नहीं साले, गाण्ड-फाड़ माल है।

फिर वो बोला- साले, वो ऐसी लड़की नहीं है।

मैंने कहा- मगर साले, देखने से तो गज़ब क़यामत लग रही थी और बदन ऐसा लग रहा था कि उसने अपने आपको बहुत सहेज कर रखा हो। साले नंबर दिला दे इसका।

उसने मुझे फट से निकाल कर उसका नंबर दे दिया। मैंने वहीं से उसे फ़ोन किया और उससे बात करने की कोशिश की, मगर साली ने बात ही नहीं की। फिर मैंने अपने दोस्त से कोई और रास्ता पूछा।

उसने मेरे को बोला- उसकी एक आंटी है, जिनके साथ वो रहती है, उनके ज़रिए कुछ हो सकता है तो देख ले।

मैंने सोचा चलो यह भी करके देख लेते हैं। मैंने फिर उसके घर पर जाने का बहाना ढूंढा। कई दिन बाद उस एरिया का केबल वाला मेरा जानकार निकला और बस मैं पहुँच गया उन आंटी के घर। मैंने डोर-बेल बजाई तो दरवाज़ा उस लड़की ने ही खोला।

ओये होए !

मन तो ऐसा किया बस अभी पकड़ कर चबा ही डालूँ। मगर मैंने अपनी भावनाओं को जैसे-तैसे दबाया और उससे कहा- केबल के पैसे दे दीजिए।

उसने अपनी आंटी को आवाज़ लगाई, तभी अन्दर से एक मोटी सी आंटी निकल कर आई। आंटी थी तो मोटी, मगर आंटी के साजो-सामान में एक अलग ही बात थी, इतनी गोरी कि जहाँ हाथ रखो वहाँ से गन्दा हो जाए। मेरी आँखें उनके सामान पर ही टिक गई और आंटी ने शायद मेरी आँखों को पढ़ लिया।

खैर मैंने कहा- आंटी, केबल के पैसे दे दीजिए।

तो उसने मुझसे पूछा- सोनू (केबल वाला) कहाँ गया।

मैंने कहा- अब मैं ही आऊँगा, वो अब दूसरे एरिया में जाता है।

आंटी के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आई। मैं समझा नहीं और आंटी ने फट मेरे सामने अपने ब्लाऊज के अन्दर हाथ डाला और मुझे पैसे निकाल के दिए।

सच में जब उन्होंने हाथ अन्दर डाला तो हाथ कहाँ तक गया पता चल रहा था… शायद नोट वाले बाबा जी भी अन्दर मुँह खोले बैठे थे। मेरा ध्यान नीला पर से तो हट ही गया, बस आंटी को ही देखता रहा।

खैर मैं पैसे लेकर आ गया और मज़े की बात तो यह कि अगले ही दिन आंटी का फ़ोन सोनू के यहाँ आया और उन्होंने बोला- राजन (मेरा नाम) को भेज देना, केबल में कुछ खराबी आ गई है।

मेरे पास सोनू का फ़ोन आया। मैं बस नहा कर आया था और ऐसे ही निक्कर में ही घर से निकल गया और मैंने घर के दरवाज़े पर जाकर घंटी बजाई तो आंटी बाहर आई।

उस औरत ने तो हद कर दी… ब्लाऊज और पेटीकोट में ही दरवाज़ा खोल दिया और मुझे अन्दर बुला लिया। मैं अन्दर गया, मैंने इधर-उधर देखा कि नीला वहाँ नहीं थी पर आंटी को ऐसी हालत में देख कर मेरी हालत खराब हो गई।

मगर ‘मोटी’ कहाँ मानने वाली थी, मुझे बोली- केबल खराब हो गया है, ज़रा चेक कर दो।

तो उनके कमरे में सेट-टॉप बॉक्स ऊपर स्लैब पर रखा था। उसे देखने के लिए मैंने आंटी से स्टूल माँगा। आंटी स्टूल ले आई। मैं स्टूल पर चढ़ा और आंटी स्टूल पकड़ कर खड़ी हो गईं। मैंने जब नीचे देखा तो आंटी के वो भारी-भारी मुम्मे मुझे पुकार पुकार कर कह रहे थे, हमें खा लो। हमें मत छोड़ना।

मैं जब उन ‘तबाही के यंत्रों’ की तरफ देख रहा था तो मेरे लंड भाईसाहब खड़े हो गए और मेरे बॉक्सर में से उनकी प्रतिमा का अक्स दिखने लगा। आंटी ने मुझे उनके मम्मों की तरफ देखते हुए देख लिया और मुझे बड़े अजीब तरीके से देखा।

मैंने ऐसे ही सेट-टॉप बॉक्स पर हाथ मारा और देखा कि वो तो साला सही है। आंटी ने बेकार ही बुला लिया। चलो कुछ तो भला होगा मेरे जैसे गरीब का।
खैर मैं नीचे आ गया और आंटी रसोई में पानी लाने चले गई। तभी मैंने देखा कि आंटी रसोई के अन्दर से मुझे देख रही थी और उन्होंने एक कपड़ा उठाया और अपने मम्मे पोंछने लगी जो पसीने में भीग गए थे।

मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और रसोई के अन्दर चला गया और आंटी को पीछे से जाकर सीधे मम्मों से पकड़ लिया।

आंटी ने जोर से झटका मार कर मुझे अलग कर दिया। उस झटके के कारण आंटी का ब्लाउज मेरे हाथ में आ गया और चिर गया, और आंटी का थन झन्न से लटक बाहर आ गया। साले ने कम से कम 4 झटके खाए और आंटी की टुंडी तक लटक आया।

आंटी ने एकदम से उसे ढक लिया और बोली- यह क्या बदतमीज़ी है?

मैंने बोला- यह बदतमीज़ी नहीं बल्कि वो काम है जिसके लिए तूने मुझे यहाँ बुलाया है, अब बिना और कपड़े फटवाए मान जा, नहीं तो मैं आऊँ अपनी औकात पे, मुझे इतनी देर से जलवा दिखा रही है।
यह कह कर मैंने आंटी को कस कर दबोच लिया और बोला- अब तो आ ही जा मेरी जान !

मैंने आंटी की गोची भर ली। आंटी ने छूटने की कोशिश की, मगर मेरे हाथों से निकल ही नहीं पाई। खैर फिर आंटी ने भी तो मुझे इसीलिए बुलाया था, मगर वो बोली- मैं जाकर दरवाज़ा तो बंद करूँ।

मैंने दरवाज़ा बंद किया और इतने में आंटी अपने कपड़ों से निजात पा चुकी थी, बस वो ब्रा-पैन्टी में थी और अपने कमरे की तरफ चल दी। मैं भी पीछे गया और मोटी को ले जाकर सीधा दीवार के सहारे लगा दिया। मैं समझ तो गया था इस औरत ने ये सब बहुत किया है। इसे कुछ नया चाहिए, यहाँ मेरा ब्लू-फिल्म वाला अनुभव काम आया।

मैंने मोटी दीवार से लगाया और उसके दोनों मुम्मों को कस के पकड़ लिया और उन्हें कस कर मसलने लगा। कभी उन्हें दबाया, कभी सहलाया, कभी उसके निप्पल पकड़ के घुमाए, कभी उसकी कमर में कस के चिकोटी भर ली। उस औरत को इन सब में मज़ा आ रहा था और मुझे भी उन्हें चूसने में मज़ा आ रहा था।

उसके मम्मे इतने नर्म थे कि मेरे मुँह के बहुत अन्दर तक आ गए। वो प्यार से गन्दी वाली ‘आँहें’ भर रही थी। थोड़ी देर बाद मैंने उस औरत को स्टूल पर बिठाया और उसकी दोनों बगलें हवा में उठवा दीं। फिर मैंने अपने होंठों से उसकी बगलों को चूसना चालू किया, उसके लिए यह नया कारनामा था, मगर गुदगुदी और ठरक की वजह से उसे मज़ा आ रहा था। मैंने उसकी बगल को ढंग से चूसा, कसम से बड़ा नमकीन मज़ा आया। फिर बगल में अपना लंड लगाया और उससे भी उसकी बगल को सहलाया। फिर मैंने उस मोटी को उठाया और ले जाकर बिस्तर पर पटक दिया।

ओये होए… !! मोटी भी क्या माल थी !

उसके पूरे शरीर को वैसे देखने का मज़ा तो मैं बता भी नहीं सकता। मुझे कहीं उसमें नीला नज़र आई। मैंने उसकी टाँगें खींची और उसको अपनी ओर खींचा और फिर उसकी दोनों टाँगें अपने कंधे पे रखीं और उसकी चूत में अपनी दो उंगलियाँ डालीं और प्यार से हिलाईं। उसकी चूत में उंगली डालते ही मुझे पता चल गया कि यह तो पैसेन्ज़र गाड़ी है, इस पर खूब लण्ड सवार हो चुके हैं।

मगर तब भी उसने कहा- आह, मैं मर गई।

मैंने अपनी उंगलियों को अन्दर-बाहर करना चालू रखा। वो प्यार से कसमसाती रही। फिर मैंने उसकी चूत पर अपना मुँह लगाया और उसकी चूत को चूसना चालू किया। मोटी की चूत ने बहुत पानी छोड़ा जिसने मेरे मुँह का स्वाद बदल डाला। खैर मैंने मोटी को उठाया और प्यार से किस करना चालू किया। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, मगर उस मोटी ने मेरे होंठों को काटना चालू कर दिया। उसने मेरे नीचे वाले होंठ को अपने दांतों से पकड़ लिया, और छोड़ा ही नहीं। मैंने जैसे-तैसे अपने को छुड़ाया और फिर अपने होंठ को कटा हुआ पाया। मोटी पागल औरत थी, मुझे लगा तो था कि ये आज मेरा हाल खराब कर देगी।

खैर मैंने मोटी को लिटाया और दोनों टाँगें अपनी जाँघों से निकालीं और अपना लंड उसकी चूत पे रखा और उसके छेद के आस-पास लगा कर हिलाने लगा। मोटी कभी मुझे देखती और कभी झट से अपना मुँह पीछे कर लेती।

मैंने आहिस्ता से अपना लंड उसकी चूत के अन्दर घुसाना चालू किया। इतने में मोटी ने मुझे मेरे पिछवाड़े से पकड़ा और झट से मुझे अपनी ओर खींचा, जिससे मेरा लंड उसकी चूत के गहराई तक चला गया।

उसकी चूत की गहराई इतनी थी कि मैं उसकी तली छू भी नहीं पाया, मगर मोटी ने बस एक ‘आह’ भरी, और मैंने फिर उसे धक्के मारने चालू किए। मैं आज तक नहीं भूला हूँ आंटी के वो झटके खाते मम्मे जो मेरे धक्कों की वजह से हिल रहे थे।

“ओफ्फो, क्या वाईब्रेशन था उन पके पपीतों में !!”

मैं कभी उसके मम्मे चूसता, कभी उसके होंठ, कभी उसके गले लग कर धक्के मारता। मुझे आधा घंटा हो गया था, मगर मोटी हार ही नहीं मान रही थी। मैंने कोशिश की कि वो थक जाए, मगर वो तो प्लयेर थी, लगातार बज रही थी।

आंटी ने मुझे थकता देख कर मुझे नीचे किया और खुद ऊपर अपना शरीर लेकर मेरे ऊपर बैठ गई और मेरा लंड अपनी चूत के अन्दर डाल लिया और अपने आप ही उछलने लगी। गज़ब हरकतें कर रही थी वो औरत, कभी अपने बालों को झटके, कभी उन पर अपने हाथ फिराए, कभी मेरी छाती के बाल नोचे, कभी मेरे मुँह से अपना मुँह लगा लेती।

मैं मदहोश होता जा रहा था, मगर साथ ही मेरे लंड भाईसाहब भी लाल हो चुके थे। इतना हाई प्रोफाइल काम उन्होंने कम ही किया था।

कुछ देर बाद शायद आंटी थोड़ा थकीं, तो मेरे ऊपर से उतर कर मेरी जाँघों के पास गईं और मेरे लंड को चूसना चालू किया। उसके होंठ बड़े अच्छे लग रहे थे, मगर साथ ही पता लग रहा था, कि आंटी ने सैंकड़ों लंडों को ठंडक पहुचाई है।

हमने अपना काम ख़त्म किया और मैंने आंटी को अपने बगल में लिटा लिया। इतने सब करवाने के बाद भी आंटी मान ही नहीं रही थी, कभी अपने मम्मों पर मेरा मुँह लगा ले, कभी चूमाचाटी, फिर मेरे ऊपर वाले होंठ पर भी मोटी ने निशान बना दिए। ऐसा लग रहा था कि मैं आंटी की नहीं, वो मेरी ले रही थी।

मगर जो भी हो, आंटी ने मज़ा पूरा दिया, बहुत टाइम बाद कायदे का ‘गोश्त’ चखा था।
बाकी नीला का क्या हुआ मैं अगले भाग में बताऊँगा।

कहानी जारी रहेगी।

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