कलयुग की लैला-3

विजय पण्डित

रूपा और कविता दोनों ही एक साथ आशू से कैसे चुदी- यह आप पहले भाग भाग में पढ़ चुके हैं !

राजेश ने रूपा को चोदा- यह आपने इस कहानी के दूसरे भाग में पढ़ा, अब तीसरा और अंतिम भाग :

मन ही मन में वो रूपा और राजेश की चुदाई के बारे में सोच रही थी। कविता के मन में मौसा जी का लण्ड भी घूम रहा था। मौसा जी ने आज शाम को इतना घुमाया-फ़िराया और खिलाया-पिलाया पर ना तो चूतड़ों पर हाथ फ़ेरा और ना ही चूंचियों को सहलाया। क्या मौसा जी उसे प्यार करना नहीं चाहते? यही द्वंद्व कविता के मन में चल रहा था !

उसका गाऊन जांघों से ऊपर उठा हुआ था, वो एक करवट ले कर दूसरी ओर घूम गई। तभी उसे लगा कि उसके कमरे में कोई अन्दर आया है। कदमों की आहट से उसे लगा कि मौसा जी हैं। उसके मन में तरंगें लहराने लगी- रात के ग्यारह बजे मौसा जी जरूर उसे चोदने आये हैं। कदमों की आहट उसके पलंग के पास आकर रुक गई। मौसा जी ने धीरे से गाऊन और ऊपर खिसका दिया। कविता के चूतड नंगे हो गये, कविता ने अपनी आंखे बंद किये हुये कहा,”आओ रूपा मौसी, नींद नहीं आ रही है क्या?”

दूसरी तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया। दो हाथ कविता की जांघ सहलाने लगे थे।

“मौसी क्या कर रही हो ! हाय ! मत करो ना … शरम लग रही है, अन्दर हाथ मत घुसाओ ना !” वो कसमसा कर बोली।

मौसा जी ने उसके चूतड़ दबा दिये और दरार को सहलाने लगे। ऐसा करते हुये मौसा जी का लण्ड तन्ना उठा। उन्होंने गाऊन के भीतर से ही हाथ बढ़ा कर कविता के स्तन दबा दिये। कविता जानबूझ कर मौसा जी को मौसि कह रही थी।

“लगता है आज आपका मन बहक रहा है… बस अब ! मुझे बहुत शरम लग रही है !”

मौसा जी का लण्ड ये सुन कर और फ़ूल गया और कविता को चोदने के लिये बेताब हो उठा। उन्होने कविता को उल्टा किया और उसके दोनों पांव चौड़ा दिये… उसकी गाण्ड का फ़ूल सामने दिखने लगा। कविता आनन्द के मारे सिहर गई। मौसा जी से जब नहीं रहा गया तो उन्होंने अपना पजामा उतारा और अपने फ़ूले हुये कड़क लण्ड के साथ कविता की पीठ पर चढ़ गये और अपने तन्नाये हुये लण्ड को गाण्ड के गुलाब पर रख दिया और कविता को जकड़ लिया।

“हाय रे कौन… मौसा जी… ये क्या कर रहे हैं आप?” कविता ने अब उन्हें पहचानने का नाटक किया।

“कविता, अब नहीं रहा जाता… प्लीज करने दो…!”

“मौसी आ जायेगी तो मैं तो मर ही जाऊंगी !”

“उसकी तबियत ठीक नहीं है, उसने नींद की गोली खा ली है और वो गहरी नींद में है।” मौसा जी का लण्ड गाण्ड के छेद में उतर कर फ़ंस चुका था। पर कविता अभी गाण्ड नहीं मरवाना चाह रही थी। उसे तो बस चुदना था, सो वो बल खा कर पलट गई और लण्ड गाण्ड से निकल गया। अब कविता मौसा जी के नीचे थी और सीधी हो चुकी थी। मौसा जी ने भी उसे आराम से पलट जाने दिया और उसके ऊपर चढ़ गये।

“हाय मौसा जी, प्लीज, मत करो, मुझे लाज आती है…!”

“बस ऐसे ही मस्ती करेंगे… मेरा मन तुझ पर आ गया है।”

“मौसा जी, आज … आह मत करो ना…!” उसने मौसा जी हाथ अपने वक्ष पर से हटाते हुये कहा।

“तुझे अच्छा लगा ना?”

“मौसा जी, बस ना, मुझे शरम आती है, हटो ना…..”

वो उस शो-रूम में तुम्हें वो ब्रा-पैन्टी का सेट अच्छा लगा था ना?

मौसा जी ने नीचे से हाथ डाल कर पेण्टी और ब्रा दिखाई…”यही थी ना … ये लो…”

“हाय मौसा जी, आप कितने अच्छे हैं…” तभी मौसा जी के लण्ड का सुपाडा फ़क से चूत में घुस गया। कविता के मुख से आह निकल गई।

“मौसा जी, आपने तो नीचे कमाल कर दिया…मैं तो शरम से मर जाऊंगी !”

“हाय रे तेरा ये शरमाना, मुझे तो पागल कर देगी तू …” मौसा जी का लण्ड कविता की अदा पर फ़ूलता जा रहा था। उनका मोटा लण्ड चूत में उतरने लगा।

” हाय ना करो ना मौसा जी … सच में आप में बड़े वो हैं !”

“आय हाय रे मेरी कविता, चुदे जा रही है फिर भी ये शरमाना… ये ले दबा के लण्ड ले मेरा !”

“हाय रे, मेरी फ़ाड दोगे क्या, … मैं मर गई !” कविता की आंखें चुदाई के नशे में बंद हो रही थी। मौसा जी का भारी लण्ड उसे मस्त किये दे रहा था।

” हांऽऽ आ आज तो तेरी चूत फ़ाड ही दूंगा… हाय कितनी प्यारी सी है ये तेरी फ़ुद्दी !”

“यह फ़ुद्दी क्या होता है जी…?” कविता ने चुदते हुये फ़ुद्दी के बारे में पूछ लिया।

“ओह्ह, मैं मर जाऊं… तेरी तो … मां कसम… चोद के रख दूंगा ! तुझे भी तेरी मां को भी !” मौसा जी उसकी अदाओं पर मर ही गये। जोश में उनकी कमर तेजी से चलने लगी। कविता मस्त हो कर भोली बनी हुई चुदती रही, उसका शरीर मीठी कसक से भरा जा रहा था। काम-वासना बढ़ती जा रही थी। कविता जोश में मौसा जी के चूतड़ पकड़कर अपनी चूत पर मार रही थी। उसके मुख से वासना भरी चीखें निकल रही थी। मौसा जी ने कविता के दोनों हाथ दबा लिये थे और कस कस के शॉट पर शॉट मारे जा रहे थे। उनका मोटा लण्ड कविता की चूत को जम कर चोद रहा था। कविता ने भी ऐसे मोटे लण्ड से चुदाई पहली बार कराई थी। चूत गहराई तक चुदी जा रही थी। कविता के बदन का एक एक अंग हिल गया था। पर स्वर्गिक आनन्द की अनुभूति बढ़ती ही जा रही थी।

कविता का अंग अंग मीठी टीस से भर गया और वो अब समूची दुनिया को अपनी चूत में समेटने जा रही थी। उसे लग गया था कि उसक सभी कुछ सिमट कर चूत के रास्ते बाहर आना चाहता है। उसके मुख से आह निकल पड़ी और उसका बदन एक बारगी ऐंठने लगा और चूत को मौसा जी के लण्ड पर दबा दिया और अपना दिव्य-रस बाहर छोड़ दिया। वो स्खलित होने लग़ी थी। मौसा जी ने भी अपना लण्ड कविता के झड़ने तक चूत में ही रहने दिया, फिर बाहर निकाल कर दबा कर मुठ मारने लगे और अपना वीर्य कविता के शरीर पर उछाल दिया। कुछ बूंदे तो उछल कर कविता के चेहरे पर जा पड़ी। मौसाजी ने अपना लण्ड जोर से हिला कर उसमें से एक एक बूंद बाहर निकाल दी।

दोनों अब बिस्तर पर निढाल पड़े थे !

रूपा ने जानबूझ कर के यह सुनहारा मौका उन दोनों को दिया था।

दोनों एक बार फिर से लिपट पड़े और प्यार करने लगे।

“कविता, तू शरमाती बहुत है … पर उससे मेरी वासना और बढ़ जाती है…”

“मौसाजी, ऐसे काम में शरम तो आती ही है ना”

“हाय रे… शर्माती जाओ और चुदती जाओ… लण्ड तो ऐसे माहौल में खूब फ़ूल जाता है, और शर्माती को चोदने में मस्ती आती है…!”

“धत्त… मौसा जी… ऐसा मत बोलो… मुझे फिर से चुदने की इच्छा होने लगेगी…!”

कविता ने एक बार और चुदने की इच्छा बता दी।

“तू कह तो एक बार ! अभी चोद देता हूं !”

“अरे ना जी ना… बस करो… हाय ना करो… मर गई रे… हाय चुद जाऊंगी मौसा जी…!”

कविता के इन्कार में इकरार था, अपनी तमन्नाओं का इज़हार था।

मौसाजी ने कविता को कमर पकड़ कर उसकी पीठ को अपने से चिपका ली। मौसा जी का भारी लण्ड उसके चूतड़ों में घुसने लगा। कविता अपने आप आगे को झुकने लगी और लण्ड चूतड़ों की दरार में घुसता चला गया। लण्ड के सुपाड़े ने जैसे ही गाण्ड के फ़ूल पर नरम स्पर्श दिया, फ़ूल खिल उठा और अन्दर बाहर होने लगा। मौसा जी का लण्ड फ़क की आवाज करता हुआ छेद में धंस गया और फिर से वासना का मधुर खेल आरम्भ हो गया।

कविता की गाण्ड चुदी जा रही थी, साथ में वो बला की अदायें बिखेरती जा रही थी। मौसा जी उसकी मासूम सी नकली अदाओं पर बिछे जा रहे थे … खिड़की के पट थोड़े से खुले हुये थे और रूपा उन दोनों की चुदाई का नजारा देख रही थी…

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