चांदनी रात की ज्योति

प्रेषक : राहुल सिंह

अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा नमस्कार !

मैं राहुल सिंह उम्र 24, कद 5 फुट 6 इंच, सांवला इन्सान हूँ। मैं अन्तर्वासना का दो साल से पाठक हूँ। लोग यहाँ बनावटी कहानियाँ भी लिखते हैं लेकिन मेरा मानना यह है कि जो लोग बनावटी कहानियाँ लिखते हैं वो तो बहुत बड़े कलाकार हैं क्योंकि कहानी लिखना और एक अच्छी कहानी लिखना सबके बस की बात नहीं है।

आम तौर पर यदि बात करें तो हमारी जिंदगी में भी आए दिन इतनी घटनाएँ घटती रहती हैं, जो अपने आप में एक कहानी हैं।

ऐसी ही एक घटना है मेरी और ज्योति (बदला हुआ नाम) की। बात उन दिनों की है, जब मैं 10+2 की पढ़ाई कर रहा था। गाँव में होने के कारण हमारे यहाँ से कॉलेज भी दूर था और ट्यूशन की भी आसपास कोई व्यवस्था नहीं थी, तो मैंने घर वालों से बात करके कॉलेज के पास ही एक कमरा किराए पर ले लिया।

पहली बार घर से बाहर अकेले रहने में कुछ तकलीफों का सामना तो जरुर करना पड़ा, लेकिन मजा ही खूब आ रहा था। न कोई डांटने वाला, न कोई देर से आने पर पूछने वाला। कुल मिला कर एक आजाद जिंदगी जी रहा था।

‘कबीरा खड़ा बाजार में मांगे सबकी खैर,

न काहू से दोस्ती न काहू से बैर !’

वाली जिंदगी जी रहा था। न ही मेरा कोई बहुत अच्छा दोस्त था न ही कोई दुश्मन।

खैर कहानी पर आता हूँ, जिस मकान में मैं किराए से रहता था, उसमें दो कमरे थे। एक में मैं और एक में ज्योति का परिवार (मम्मी पापा और वो) रहती थी।

एक दिन मैं दोस्तों के साथ 9-12 मूवी देखने गया।

रात को आकर जब मैंने दरवाजा खटखटाया तो ज्योति ने दरवाजा खोला और पूछा- कहाँ रह गए थे आप?

मैंने बोला- क्यों कोई बात है?

वो बोली- नहीं, वो मम्मी पापा आज बुआ के यहाँ गए हैं तो मुझे अकेले डर लग रहा था।

मैंने पूछा- तुम्हारी बुआ का घर कहाँ है?

वो बोली- दाउदपुर। (जो कि वहाँ से 20 किलोमीटर दूर था)

मैंने पूछा- वापस कब आयेंगे?

वो बोली- कल शाम तक !

मैंने बोला- डरने की कोई बात नहीं है, अपने कमरे में सो जाओ। कोई बात हो, तो मुझे जगा लेना।

मैं अपने कमरे में जाकर सो गया। अभी मुझे सोए हुए लगभग आधा घंटा ही हुआ था, तभी बत्ती गुल हो गई। लाइट जाने के 5 मिनट बाद ही उसने मेरा दरवाजा खटखटाया।

मैं- कौन?

वो बोली- मैं हूँ ज्योति !

मैंने दरवाजा खोला और पूछा- क्या हुआ?

तो वो बोली- मैं कभी अकेले नहीं सोई, तो मुझे डर लग रहा है। लाइट भी चली गई है, अगर आपको नींद नहीं आ रही हो तो जब तक लाइट नहीं आती हम कुछ बात करते हैं।

मैंने कहा- ठीक है, मेरे कमरे में एक ही कुर्सी थी तो मैंने उसे बैठने को बोला और मैं अपने बेड पर ही बैठा रहा। वो अपने कॉलेज की बातें सुनाने लगी।

गर्मी हो रही थी तो मैंने खिड़की खोल दी। चांदनी रात थी, तो सीधी चांदनी की रोशनी कुर्सी पर बैठी ज्योति के चेहरे पर गई। उस दिन मैंने ज्योति को ध्यान से देखा।

चांदनी में वो बला की खूबसूरत लग रही थी। उसके नाक-नक्श कमाल के तो थे ही, उसने दुपट्टा भी नहीं ले रखा था तो उसका तक़रीबन पूरा बदन दिख रहा था। शायद मैं ब्यान ना कर पाऊँ लेकिन अगर परियाँ होती हैं, तो वो बिल्कुल परी लग रही थी।

उसके गोल उभरे हुए स्तन, गोरा दूधिया चेहरा पतले-पतले होंठ, पतली कमर, मेरे ख्याल से 24″ से ज्यादा नहीं होगी।

पता नहीं मुझे क्या हुआ मैं उसकी बातों को काट कर बीच में ही बोल पड़ा- ज्योति एक बात बोलूँ?

ज्योति- हाँ बोलिए ना ! कब से मैं ही बोले जा रही हूँ।

मैंने बोला- तुम बहुत खूबसूरत हो।

तो वो शरमा गई और अपना सर नीचे झुका लिया।

मैंने बोला- बुरा मान गई क्या? असल में मैंने आज तुम्हें अच्छी तरह देखा है। अगर बुरा लगा तो ‘सॉरी’।

वो कुछ नहीं बोली और अपना सर झुकाए रखा। मैंने दो-तीन बार बोला, मगर फिर भी उसने कुछ जवाब नहीं दिया तो मैंने उसके पास जाकर उसका चेहरा अपने हाथों में पकड़ कर उठाया और बोला- कुछ तो बोलो।

उसने बोला- आप भी मुझे…!

मैंने बोला- क्या?

उसने बोला- आप भी मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ लेकिन आप बहुत गुस्सा करते हैं, इस डर से आज तक कभी आपसे बोल नहीं पाई।

मैंने उसे कुछ जबाब नहीं दिया और देता भी क्या? शायद कुछ ही लड़कों की किस्मत में ऐसा होता होगा कि एक चाँद जैसी लड़की आकर खुद उनसे बोले कि ‘आई लव यू !’

मैंने अपना चेहरा उसके चेहरे के और नजदीक किया और बोला- आई लव यू टू !

इतना सुनते ही वो कुर्सी से खड़ी हुई और मुझसे लिपट गई।

दोस्तो, मैं आपसे क्या बताऊँ, मैं किसी और ही दुनिया की सैर कर रहा था। पहला एहसास क्या होता है, मैंने उस दिन जाना था। मैंने अपने होंठ उसके होंठों पे रख दिए और उसके मीठे होंठों का रस-पान करने लगा।

लगभग 15 मिनट तक हम ऐसे ही लिपटे रहे फिर अचानक बिजली आ गई और वो मुझसे अलग खड़ी हो गई। उसने एक बार मेरी तरफ देखा, मेरी आँखें लाल हो रही थीं। वो बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई। मैं भी लाइट बंद करके सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन नींद ना आनी थी ना आई।

मैं उठा और उसके कमरे की तरफ कदम बढ़ा दिए। वो पीठ के बल लेटकर पंखे की तरफ देखे जा रही थी। मैं जाकर उसके बगल में लेट गया तो वो उठने लगी। मैंने उसे पकड़ लिया और उसके होंठों पे होंठ रख दिए। मुझे भी नहीं पता था कि एक शरीफ लड़का आज क्या-क्या कर रहा था, लेकिन जो भी हो रहा था उस पर मेरा वश नहीं था।

उसके होंठ चूसते-चूसते मैं उसकी पीठ भी सहला रहा था। पीठ से होता हुआ मेरा हाथ पहली बार उसके स्तनों पर था। उसने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया, लेकिन हटाया नहीं। मैं धीरे-धीरे उसके स्तनों को सहलाने लगा।

वाह क्या मुलायम स्तन थे उसके !

मेरा हाथ कभी उसकी चूचियों पर तो कभी उसकी पीठ पर चल रहा था। मैं अब अपने हाथ उसकी शमीज के अन्दर डालने की कोशिश कर रहा था पर टाईट होने की वजह से नामुमकिन सा लग रहा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

मैंने उसके कानों में बोला- इसे उतारो ना प्लीज !

तो वो कुछ नहीं बोली, जब मैंने दोबारा बोला तो वो धीरे से बोली- पहले लाइट बंद कर दीजिए, मुझे शर्म आती है !

मैंने फट से लाइट बंद कर दी और आकर उसका कुरता उतरने की कोशिश करने लगा। लेकिन जब उसने देखा कि मुझे दिक्कत हो रही है तो उसने खुद ही उतार दिया। फिर मैंने सलवार की तरफ इशारा कर के बोला- इसे भी।

थोड़ा सोचने के बाद उसने अपनी सलवार भी उतार दी। अब वो मेरे सामने सिर्फ ब्रा और पैन्टी में खड़ी थी। लाइट ऑफ होने के बावजूद भी खिड़की के कांच से अन्दर झांकती चांदनी में उसका बदन तो जैसे क़यामत लग रहा था।

मैं तो बस उसे बेतहाशा चूमने लगा और बीच-बीच में वो भी मुझे चूम रही थी। अब मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और बेड पर लिटा दिया और उसके ऊपर आकर फिर उसे चूमने लगा। मैं ब्रा के ऊपर से उसकी चूचियाँ चूस रहा था। धीरे-धीरे मैंने उसकी ब्रा भी उतार दी।

वाह क्या नजारा था ! वाकई ऊपर वाले ने बहुत ही फुर्सत से उसे बनाया था।

पतली कमर और इतनी बड़ी चूचियाँ कमाल लग रही थीं। मैं तो बस उन्हें पकड़ कर मसलने और चूसने लगा, जैसे आज ही उनमें से दूध निकाल डालूँगा। वो मेरे बालों में अपनी उँगलियाँ फिरा रही थी।

अब धीरे-धीरे मैं चूमता हुआ उसके पेट की तरफ आया। मखमली पेट पर सेक्सी नाभि मुझे काम-आमंत्रण दे रही थी, मैं उसे चूसने लगा और मेरा एक हाथ उसकी पैंटी पर था। मैं पैंटी के ऊपर से उसकी चूत का अंदाजा ले रहा था। अब मैं नीचे आकर उसकी चिकनी जाँघों पे अपने होंठ फेर रहा था।

मैंने उसके पैरों को हल्का सा उठाया और उसकी पैंटी खींच कर अलग कर दी। अचानक हुए इस बर्ताव से वो घबरा गई और उसने दोनों हाथों से अपनी चूत को ढक लिया। मैंने उसकी पैंटी दूसरी तरफ फेंकी और उसके हाथों को चूमने लगा। चूमते हुए धीरे-धीरे मैंने उसके दोनों हाथ चूत से हटा दिए….

हे भगवान… क्या तूने सारा सौन्दर्य इस एक लड़की के अन्दर भर दिया !!

दोस्तो, क्या चूत थी, मैं बता नहीं सकता। हल्के छोटे बाल थे और उसके दोनों होंठ जुड़े हुए, जैसे एक-दूसरे को ना छोड़ने की कसम खा रहे हों। एक इन्सान आदर्श चूत की जो कल्पना कर सकता है वैसी ही थी उसकी चूत। मैं तो बस पागल हो गया, बेतहाशा उसकी चूत को पागलों की तरह चूसने लगा। जीभ थोड़ी अन्दर घुसा घुसा कर मैं उसका सारा रस पी जाना चाहता था।

वो भी आनन्द के मारे आँखें बंद करके मजा ले रही थी। अब मुझसे सहन नहीं हो रहा था, तो मैंने चूत को चूसना छोड़ कर उसके होंठों पर एक चुम्बन लिया, तो उसने आँखें खोलीं।

मैंने पैंट की जिप खोल कर उसे अपना खड़ा लंड दिखाया और बोला- इसे प्यार नहीं करोगी?

वो बोली- क्यों नहीं !

और वो सुपारे को चूमने लगी, चूमते-चूमते उसने पूरा सुपारा मुँह में ले लिया और लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। उसकी आँखों से लग रहा था कि उसे यह अच्छा लग रहा था और मैं तो स्वर्ग की सैर कर रहा था। मुझे लगा कि मेरा माल उसके मुँह में ही निकल जाएगा, तो मैंने उसके मुँह से लौड़े को खींच लिया।

वो नाराजगी से मेरी तरफ देखने लगी जैसे किसी बच्चे से कुल्फी निकाल ली हो। मैं अब नीचे आ चुका था। मैंने उसके दोनों पैर उठाए, उसकी चूत उभर कर बिल्कुल सामने आ गई, चूत से ढेर सारा पानी निकल रहा था।

मैंने लंड का सुपारा चूत के मुख पर रखा और हल्का सा जोर लगाया, पर चूत बहुत कसी थी, मैं उसे दर्द नहीं देना चाहता था, तो मैंने सोचा चाहे कितनी भी देर क्यों ना लगे मैं झटका नहीं मारूँगा, मैंने धीरे-धीरे घुसाना जारी रखा।

उसे दर्द हो रहा था लेकिन वो मेरी ख़ुशी की वजह से कुछ भी नहीं बोल रही थी आख़िरकार मैं धीरे-धीरे ही सही आधा लंड घुसाने में कामयाब हो गया था।

उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे तो मैंने पूछा- ज्योति, ज्यादा दर्द हो रहा है क्या?

वो बोली- नहीं।

मैंने नीचे देखा, उसकी चूत से खून बह रहा था। अब मेरा पूरा लंड घुस चुका था। मैंने एक बार बाहर खींचा तो उसकी चूत की मांसपेशियों ने बहुत जोर से लंड को जकड़ रखा था। मैंने एक बार बाहर खींच के फिर दोबारा एक बार में ही पूरा जड़ तक घुसा दिया, फिर हल्के-हल्के धक्के लगाने लगा।

वो अपने दांतों से दांतों दबा कर मुँह भींचे, लौड़े की चोटों को झेल रही थी। फिर कुछ पलों के बाद शायद उसको भी मजा आने लगा था।

मैंने पूछा- ज्योति, दर्द कुछ कम हुआ?

तो वो बोली- अब दर्द नहीं हो रहा। आप तेज-तेज करो मुझे कुछ हो रहा है।

मैंने अपनी गति बढ़ा दी और तेज़-तेज़ झटके मारने लगा। मेरा भी निकालने ही वाला था और वो भी नीचे से अपनी पतली कमर हिला-हिला कर मेरा पूरा साथ दे रही थी। आख़िरकार हम दोनों एक साथ झड़े और मैंने अपना सारा वीर्य उसकी चूत में भर दिया। हम दोनों लिपट गए।

वो मुझे चूमने लगी और बोली- आप कभी मुझे छोड़ोगे तो नहीं?

मैंने बोला- कभी नहीं !

और हम ऐसे ही एक-दूसरे की बांहों में लेटे रहे और बातें करते रहे। पता नहीं कब सूरज निकल आया।

कहानी कैसी लगी? अपनी राय जरूर दें।

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