लण्ड राज

भूत नाथ 2010-06-04 Comments

जंगल की वीरानियों को चीरता हुआ एक रथ बहुत तेजी से भागा जा रहा था। उस रथ पर सवार वीर्यपुर की महारानी चूतनन्दा सवार थी। उन्हें शिकार का बहुत शौक था। इस समय भी उनके हाथ में धनुष था और निशाना एक सुन्दर हिरण था। चूतनन्दा गज़ब की सुन्दर स्त्री थी। उसके लाल लाल होंठ मानो रस भरे अंगूर हों जिन्हें देखकर मन करता था कि उसके होंठों का रस पी जायें। उसकी चूचियाँ इतनी मुलायम थी मानो मक्खन।

तभी उसके रथ के सामने वो हिरण आया और चूतनन्दा ने तीर चला दिया और हिरण मारा गया। चूतनन्दा रथ से उतरी और हिरण के पेट में घुसा हुआ तीर निकाल के जैसे ही वो मुड़ी उसकी नज़र एक योगी पर पड़ी। उसने देखा कि वो योगी पूरा नंगा खड़ा होकर ध्यान-मग्न है।

तभी चूतनन्दा की नज़र उसके सोये हुये नंगे लण्ड पर पड़ी, उस लण्ड को देखकर चूतनन्दा के मुँह में पानी आ गया, वो योगी के पास गई और बोली- ए साधु ! उठो ! जागो ! देखो वीर्यपुर की महारानी चूतनन्दा तुम्हारे सामने खड़ी है और तुम्हें आदेश देती है कि तुम मेरी प्यास बुझाओ।

पर उसकी आवाज़ का असर उस योगी पर नहीं पड़ा।

पर चूतनन्दा की बुर में तो आग लग चुकी थी, वो बस अपनी आग को शान्त करना चाहती थी। उसने योगी के लण्ड को अपने कोमल हाथों में पकड़ लिया और सहलाने लगी, परन्तु योगी पर कुछ भी असर नहीं हुआ।

वो भी मस्ती में आ चुकी थी इसलिए उसने लण्ड को अपने रस भरे होंठों से लगा लिया और मुख-मैथुन करने लगी। थोड़ी ही देर में योगी का लण्ड फ़ूल कर लम्बा और मोटा हो गया। चूतनन्दा को यही तो चाहिये था, वो भी मस्त होकर लण्ड को खूब जोर जोर से चूसने लगी।

तभी योगी का ध्यान टूट गया और पीछे हटते हुए बोला- कौन हो तुम? और मेरे ध्यान में विघ्न क्यों डाला? मैं वर्षों से बुरचोद देवी की तपस्या में मग्न था।

चूतनन्दा बोली- हे योगी, मैं वीर्यपुर की महारानी चूतनन्दा हूँ और तुम्हारा लण्ड देख कर मैं अपने आप को रोक न सकी, मुझे चोद कर मेरी बुर को धन्य करो।

योगी ने उसे उपर से नीचे तक उसके पूरे मचलते हुए अंग-अंग को देखा और गुस्से से बोला- तुमने मेरी बर्षों की तपस्या भंग की है, मैं तुम्हारी बुर को फाड़ डालूँगा।

चूतनन्दा ने कहा- मैं भी तो यही चाहती हूँ !

यह कहते हुए उसने अपने सारे वस्त्र उतार कर नंगी होकर योगी के लण्ड को पकड़ा और फिर चूसने लगी। अब तो योगी का गुस्सा भी कम होकर मस्ती में बदल गया और वो भी लण्ड चुसवाने का मज़ा लेने लगा। चूतनन्दा अपने अंगूर समान होठों से और जीभ से उसके लण्ड को चाटने में लग गई। योगी का हाथ चूतनन्दा की चूचियों पर फ़िसलने लगा। चूतनन्दा की गोल गोल चूचियों को योगी अपने हाथों से दबाने लगा।

चूतनन्दा सिसकारियाँ भरती हुई बोली- आह ! और जोर जोर से दबाओ राजा !

और वो भी लण्ड को अपने मुँह में जोर जोर से लेने लगी। योगी ने चूतनन्दा को मखमली घास पर लिटा दिया और उसकी चूचियों को अपनी जीभ से चाटने लगा, उसके निप्प्लों को मुँह से चूसने लगा।

चूतनन्दा सिसकारियाँ भरते हुए बोली- आह ! चूसो मेरे राजा ! चूसो मेरी चूचियों को। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।

योगी अपने दोनों हाथों से उसकी दोनों चूचियों को दबा दबा कर चूस रहा था जैसे कोइ बच्चा दूध पी रहा हो।

थोड़ी देर के स्तनपान के बाद चूतनन्दा लम्बी लम्बी आहें भरती हुई बोली- आह ! मेरी बुर को चोदो राजा ! मेरी बुर को पेलो।

यह सुनकर योगी ने अपना एक हाथ चूतनन्दा की बुर की तरफ़ बढ़ाया और बुर पर हाथ लगाया तो उसे महसूस हुआ कि चूतनन्दा की बुर गीली हो चुकी थी। योगी अब सरकते हुए चूतनन्दा की बुर के पास आया और अपने होठों को बुर पर लगा दिया।

चूतनन्दा तड़प उठी।

योगी अपने जीभ से बुर को चाटने लगा और अपनी एक उंगली बुर के अन्दर डाल कर उसे हिलाने लगा जैसे कोई चीज़ वो अन्दर ढूँढ रहा हो।

चूतनन्दा अब जोर से बोली- पेल दो मेरी बुर में अपना लौड़ा जल्दी से ! आह !

योगी ने अपने लण्ड पर थूक लगाया और चूतनन्दा की टाँगों को ऊपर उठाकर उसकी बुर पर अपना लण्ड सटा दिया। चूतनन्दा सिसकारते हुए योगी के लण्ड को अपने बुर से सटा दिया। योगी ने एक ही झटके में पूरा लौड़ा उसकी बुर में चोद दिया।

चूतनन्दा जोर से चीखी- आ..आ..आ.. बहुत मोटा और लम्बा है। योगी अब अपनी कमर को जोर जोर से आगे पीछे करके बुर में छेद कर रहा था। अब चूतनन्दा को पेलवाने में मज़ा आ रहा था इसलिये अब वो भी अपनी कमर को ऊपर नीचे कर के चुदवाने का मज़ा लूट रही थी।

योगी अपने हाथों से चूतनन्दा की चूचियाँ दबा रहा था और लण्ड को बुर में पेले जा रहा था। अब योगी ने चूतनन्दा को कुतिया की तरह बिठाया और उसके पीछे से अपना लण्ड बुर में डाल कर चोदना शुरु किया।

चूतनन्दा आनन्द से मरी जा रही थी- आह ! और जोर जोर से चोदो।

योगी उसकी कमर को हाथों से पकड़ कर अपने लण्ड को धक्का दिये जा रहा था। उस वीराने जन्गल में केवल चूतनन्दा की सिसकरियाँ गूँज़ रही थी।

तभी मस्ती से सराबोर चूतनन्दा बोली- आह ! मैं आ रही हूँ, मैं स्खलित होने वाली हूँ।

तभी चूतनन्दा की बुर से पानी की अविरल धारा निकलने लगी। चूतनन्दा स्खलित होकर निढाल होने को थी लेकिन योगी अभी भी धक्के पर धक्के चूत में पेले जा रहा था। थोड़ी देर के बाद योगी चिल्लाया- आह ! चूतनन्दा..आ ! लो मैं भी आया।

और योगी ने तभी चूतनन्दा की बुर को अपने वीर्य से भर दिया। चूतनन्दा को महसूस हुआ कि जैसे खौलता हुआ लावा उसकी बुर में भर गया हो, और वह मस्त होकर नीचे घास पर लेट गई। परन्तु योगी ने अपने लण्ड को उसकी बुर से बाहर किया और बोला- महारानी चूतनन्दा ! तुमने मेरी तपस्या आज वर्षों बाद भंग कर दी है परन्तु कई वर्षों बाद मेरे लण्ड का वीर्य तेरी बुर में गया है इसलिये तुझे आशीर्वाद के रूप में नौ महीने के बाद एक पुत्र तेरी बुर से बाहर आयेगा। वो पुत्र बहुत ही शक्तिशाली और विभिन्न शक्तियों से भरपूर होगा। लेकिन बारह साल के बाद उसे कोई न कोई बुर चोदनी होगी। वो जितनी बुर चोदेगा उतनी उम्र उसकी बढ़ती जायेगी तथा और शक्तिशाली होता जायेगा और उसका नाम लण्डराज रखना।

यह कहकर योगी फ़िर से ध्यानमग्न हो गया।

चूतनन्दा की जब मस्ती उतर गई तो वह उठी और योगी के लण्ड को चूमकर अपने वस्त्र पहने और रथ पर सवार होकर वीर्यपुर चली गई।

नौ महीने के बाद उसने एक बच्चे को जन्म दिया जिसका लण्ड बचपन से ही मोटा और लम्बा था और उसका नाम लण्डराज रखा।

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