कमसिन बेटी की महकती जवानी-5

(Kamsin Beti Ki Mahakti Jawani Part-5)

This story is part of a series:

अब तक आपने पढ़ा था कि पद्मिनी ने बापू को बता रही थी कि टीचर ने उसके साथ क्या क्या किया था.
अब आगे..

जब पद्मिनी ने टीचर के बारे में कहना शुरू किया था, उस वक्त वो अपनी पेंट में से ज़िप खोल कर अपना लंड निकालने वाला था. फिर यकायक जब पद्मिनी ने बोलना स्टार्ट किया, तो वो रुक गया था. फिर जब पद्मिनी बोले जा रही थी, तब बापू ने आहिस्ते से अपना लंड पेंट से बाहर निकाल कर उसकी बातें सुनते हुए पद्मिनी की जांघों पर छुआ रहा था. बातें करते समय पद्मिनी अपने बापू के लंड को महसूस कर रही थी कि उसका बापू उसकी जांघों पर अपना मोटा लंड रगड़ रहा है. मगर वह नादान बन रही थी, जैसे कुछ नहीं समझ रही थी कि क्या हो रहा है.

अब पद्मिनी ने सारी बातें कह डालीं, तो बापू ने उसको चूमते हुए कहा- बस यही हुआ है.. तो कोई ख़ास बात नहीं है, मैं उस टीचर को भगा दूँगा क्योंकि तू सिर्फ मेरी है.

यह कह कर बापू अचानक जैसे जंगली जानवर बन गया हो. उसने पद्मिनी के ब्लाउज को इतनी ज़ोर से खींचा कि ब्लाउज फट गया. बापों ने उस ब्लाउज को बाहर खींच फेंका. जब उसने वैसा किया तो पद्मिनी घबरा गयी और मोटी मोटी आँखों से बापू को हैरानी से देख रही थी.

फिर पद्मिनी ने धीरे से कहा- क्यों मेरे ब्लाउज को फाड़ डाला आपने बापू, ये मेरी यूनिफार्म का ब्लाउज है.

अब तो पद्मिनी अपनी छोटी साइज की ब्रा में थी और बापू उस ब्रा को, अपने हाथों को पद्मिनी के पीठ पर किए खोलने की चेष्टा कर रहा था. उस वजह से पद्मिनी बापू की छाती पर झुकी हुई थी. जैसे ही ब्रा खुल गई, बापू ने ब्रा को भी ज़मीन पर फेंकते हुए पद्मिनी की छोटी छोटी चूचियों को अपने मुँह में भर लिया. पद्मिनी की पूरी चुची बापू के मुँह में घुस गई. पद्मिनी ने अपनी गरदन को पीछे की तरफ करते हुए अपने बालों को खोलना शुरू किया. अगले ही पल उसके सारे बाल पीछे की तरफ ज़मीन को छू रहे थे. बापू उसकी एक चुची को मुँह में लिए चुसक रहा था और दूसरी वाली को अपने हाथों से मसल रहा था. उधर पद्मिनी धीमी आवाज़ में मादक सिसकारियां लिए जा रही थी.

बापू पद्मिनी को अपने गोद में लिए बिस्तर पर बैठ गया. अब वो एक तरफ उसकी बहुत ही नाज़ुक चूचियों को चुसक रहा था और दूसरी तरफ उसका एक हाथ पद्मिनी की स्कर्ट के नीचे उसकी पेंटी पर पहुँच रहा था. तब जल्दी से पद्मिनी ने अपने हाथों को बापू के हाथ पर रखा और अपने बापू को ज़्यादा आगे नहीं बढ़ने दिया. मगर बापू क्या उसके रोके रुकने वाला था, उसने चुची को छोड़ कर अपना मुँह पद्मिनी की जांघों पर फेरना शुरू कर दिया. वो जीभ से जाँघ को चाटने लगा.

पद्मिनी वासना से सिसियाने लगी- उफ, आई.. बस करो ना मुझे कुछ हो रहा है बापू…
बापू कहाँ सुन रहा था, उसने पद्मिनी को अब बिस्तर पर लेटा दिया. अधनंगी पद्मिनी उसके सामने बिस्तर पर पड़ी थी, वो अपने बालों को सर के नीचे से फैलाने का प्रयत्न कर रही थी. बापू ने एक मिनट अपनी पद्मिनी को उसके गले से छाती पर देखते हुए, पेट के ऊपर अपने नज़र को रोक कर.. फिर नीचे की तरफ नज़रें फेरता गया. फिर जल्दी से स्कर्ट को ऊपर उठा कर अपना मुँह पेंटी के ऊपर लगा दिया. इस पर पद्मिनी ने एक छोटी सी चीख़ निकाली, मगर बापू ने उसकी चीख़ को नज़रअंदाज़ कर दिया.

पद्मिनी अपने हाथों को अपनी पेंटी पर दबाया था और वो बापू को वहां नहीं छूने दे रही थी. अब बापू और पद्मिनी में एक छोटा सा संघर्ष हो रहा था. बापू अपने मज़बूत हाथों से पद्मिनी के हाथों को वहां से हटा रहा था, पर पद्मिनी पूरा ज़ोर लगा कर, दोनों जांघों को एक दूसरे के ऊपर क्रॉस करके अपनी पेंटी छुपा रही थी.. और बापू को हावी नहीं होने दे रही थी.
वो थोड़ा बहुत चिल्ला भी रही थी और साथ में हंस भी रही थी, पद्मिनी कह रही थी- बापू बस करो.. मुझको गुदगुदी हो रही है, हाहाहा… हाही.. हेहेहे.. हटाओ न अपना हाथ वहां से बहुत गुदगुदी हो रही है मुझे.

बापू अब तक उसकी पेंटी उतारने की कोशिश में लगा हुआ था, पर पद्मिनी ने तो अपने पैरों को मोड़ लिए थे और पैरों को पेट पर दबाये वो ज़ोरों से हंसी जा रही थी.
उसको हँसते हुए देख कर बापू को भी हंसी आ गयी और हँसते हँसते उसने बोला- हटाओ अपना हाथ यार, उतारने दो ना, ज़रा देखूँ तो यह जगह कितनी मुलायम और नर्म है.

खूब हंसने के बाद पद्मिनी उठ कर बिस्तर पर बैठ गई और अपने बापू को कुछ देर तक चूमते हुए अपने सीने से लगाए रही. बापू उसकी चूचियों को अपने छाती पर महसूस करके बहुत अच्छा महसूस कर रहा था और पद्मिनी अपने बापू की छाती के बालों को अपनी चुचियों पर रगड़ते हुए कसमसा रही थी.

उसके बाद कुछ लम्हों के बाद बापू ने प्यार से पद्मिनी के चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसकी आँखों में अपनी में देखते हुए बोला- तू बापू से बहुत प्यार करती है ना?
पद्मिनी ने बहुत ही नर्म धीमी आवाज़ में जवाब दिया- इसमें कोई शक है क्या बापू, दुनिया में सबसे ज़्यादा आपसे ही तो प्यार करती हूं.. और कौन है मेरा आप के सिवा?

तब बापू ने कहा- आज अगर तेरी माँ ज़िंदा होती तो क्या मुझे तुझसे इस प्यार के लिए तरसना पड़ता? क्या तुमको नहीं पता कि वह कितनी प्यार करती थी मुझसे? तो क्या तू बापू की इस प्यास को ऐसे ही रहने देगी? तुमने तो मेरी ज़िन्दगी में हर तरह से अपनी माँ की जगह ले ली है, तो अब क्यों मुझको तड़पा रही है मेरी गुड़िया?

इस वक़्त दोनों फिर से बिस्तर पर लेट गए थे और पद्मिनी बापू के बाँहों में थी. ऊपर नंगी मगर नीचे जिस्म पर स्कर्ट और पेंटी वहीं थी. बापू का हाथ अब भी जांघों के ऊपर पेंटी के पास घूम रहा था. पद्मिनी अपने बापू की उन बातों को सुनकर खामोश हो गयी थी.

फिर भी उसने बहुत ही प्यार से कहा- बापू, मैं तो उस दिन से आप से इस तरह का प्यार करती हूँ, जिस दिन से आपके बिस्तर पर आप के पास सोने को आयी थी.. उस रात को मैं न सिर्फ एक छोटी सी टी-शर्ट पहनी हुई थी और मैं कमसिन सी थी. जब आपने मुझको अपने बाँहों में लेकर सुलाया था, उस रात से मैं आपकी हो चुकी हूँ. बस आप हैं जो देर कर रहे हैं.

यह सुनकर बापू चौंक गया और सोचा कि उसके बिस्तर पर इतने सालों से उसकी बेटी चुदने के लिए तैयार है और उसी को कुछ नहीं दिख रहा था.
तब बापू ने अपना हाथ स्कर्ट के नीचे डाला और अपने हाथों से उसकी पेंटी को आहिस्ते आहिस्ते खींचने लगा.

पद्मिनी ने ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ कहते हुए एक अँगड़ाई लेकर बापू को अपना काम करने दिया, पर लाज के मारे अपने हाथों से अपने चूत को ढक दिया. बापू ने उसके हाथों को ज़रा सा हटाते हुए उसकी कुँवारी चूत को देखा और पाया कि पद्मिनी की चूत एकदम साफ़ थी, झांट का एक बाल भी उसकी चूत पर नहीं था. पद्मिनी हेयर रिमूवर क्रीम इस्तेमाल करती थी.

उसकी नंगी मक्खन सी चूत देख कर बापू को बहुत अच्छा लगा. उसने अगले ही पल पद्मिनी के हाथों को हटाते हुए अपनी जीभ को पद्मिनी की चूत पर चला दिया. पद्मिनी सिसकारियों से बिस्तर पर कराह रही थी. बापू ने धीरे धीरे अपनी जवान कुंवारी बेटी की फूली हुई चूत को चाटना शुरू कर दिया.

जब बाप चूत चाट रहा था तो पद्मिनी अपने दोनों हाथों से अपने बापू के सर को ज़ोर से पकड़े थी और ‘उफ.. आह्ह्ह ओह्ह..’ करते हुए लम्बी ठण्डी साँसें ले रही थी.

बापू आहिस्ते आहिस्ते अपनी बेटी पद्मिनी की जवान कुंवारी चुत की पंखुड़ियों को अपनी उंगलियों से आराम से खोलते हुए अपनी जीभ को चूत के उन मुलायम हिस्सों पर फेर रहा था.. जो ज़्यादा लाल और नाज़ुक होते हैं. पद्मिनी की चूत कुछ भीगी सी हो गई थी. बापू उसकी चूत चाटता चला गया और पद्मिनी सिसकारियों में डूबती गयी.

पद्मिनी की चुत चटने से उसकी आँखें जैसे नशीली हो गई थीं. उसकी आंखें चुदास के नशे में ऐसे लग रही थीं, जैसे उसने पूरी बोतल शराब पी ली हो. वो अपने बापू के सर को अपनी मक्खन जैसी नर्म चूत पर दबाए धीमी धीमी आवाज़ में तड़पती गयी. उसने अपनी दोनों जांघों को दोनों तरफ फैला दिया था और वो खुल कर अपने बाप से अपनी चूत चटवा रही थी.

बापू अपनी बेटी पद्मिनी की चूत को अपनी जीभ से चाटता हुआ मजे लेता गया. वो कोई 10 मिनट से भी ज़्यादा उसी पोजीशन में चूत को चाटता रहा था.
अब पद्मिनी बेहाल हो रही थी, वो कभी सर उठाकर बापू को देखती, तो कभी सर बिस्तर पर पटकती.. और कभी उठ बैठती.
उसके बाद पद्मिनी एक मादक आवाज़ में बोली- बापू बस भी करो अब, यहाँ आओ मेरे पास.. मैं आपको बांहों में लेना चाहती हूं. आओ ना…

यह कहकर पद्मिनी खुद अपनी चूचियों को दबाते हुए अपने हाथों से अपनी जीभ को अपने होंठों पर फेरते हुए, नशीली ऑखों से बापू को देखने लगी थी.

कुछ देर बाद बापू ने चूत को छोड़ दिया. उसकी स्कर्ट को निकाल कर बाहर फेंक दिया और अब वो पद्मिनी की बांहों में आकर उसके ऊपर चढ़ गया.

पद्मिनी ने धीमी आवाज़ में बापू को किस करते वक़्त कहा- आप अपनी पैंट नहीं उतारेंगे क्या?
तो बापू ने कहा- तुम्हीं उतार दो ना, बहुत मज़ा आएगा मुझको.. हम्म्म..!
पद्मिनी ने फिर कहा- अच्छा ठीक है आप लेट जाइए और हिलना मत.. मैं उतारती हूँ.

बापू पीठ के बल अपने हाथों को सर के नीचे किए लेट गया. नंगी पद्मिनी बापू के पैरों के बीच घुटनों पर आ गई थी. वो अपने बापू पर झुक कर पैंट को आहिस्ते आहिस्ते खोल रही थी और बापू उसको निहार रहा था. उसकी छोटी छोटी नर्म चूचियों को देख रहा था. बापू उसके सपाट पेट को देखता, तो कभी उसकी पतली कमर पर उसकी नज़र चली जाती. पद्मिनी की कमर के नीचे वाला हिस्सा तो उभरा हुआ था, वहां से लेकर जांघों तक तो एकदम एक अर्धवृत लग रही थी.

बापू एक एक करके पद्मिनी की नंगी जवानी को निहारता गया और इसी कारण उसका लंड पेन्ट के अन्दर एकदम तन गया था, जिससे पद्मिनी को पेंट उतारने में तक़लीफ़ हो रही थी. एकाध बार उसका मुलायम हाथ बापू के मोटे तने हुए लंड पर भी दब गया. उसके हाथ लगते वक्त बापू को बहुत मज़ा आ रहा था.. वो उसके हाथ को अपने लंड पर बहुत मजे से अनुभव कर रहा था. पद्मिनी बापू की पेंट उतारने में जितनी देर लगा रही थी, बापू को उतना ही ज्यादा मज़ा आ रहा था. आखिर में जब पद्मिनी ने बापू की पेंट को नीचे से खींचना शुरू किया तो कुछ दिक्कत सी हुई.

उसने बापू से कहा- अरे आप ऊपर उठाइये तो…!
बापू ने मुस्कुराते हुए पूछा- क्या ऊपर उठाऊं?

पद्मिनी भी मुस्कुरायी और आसमान की तरफ देखते हुए कहा- बापू मैं उसे गाली देना नहीं चाहती.. आप उठाईए ऊपर.. उसको बापू की गांड को ऊपर उठवाना था, ताकि पैन्ट निकाल सके. पद्मिनी गांड उठाने को कह रही थी. तो बापू हँसते हुए अपनी गांड को ऊपर उठा दिया और पद्मिनी ने उसके पेंट को निकाल कर ज़मीन पर फेंक दिया. अब अंडरवियर में बापू का लंड एकदम फॉर्म में था और पद्मिनी एक बार अपनी नज़र वहां करके मुस्करा रही थी.

बापू ने कहा- अब इसको कौन उतारेगा बिटिया?
बापू का इशारा उसका अंडरवियर पर था. तो शरमाती हुई पद्मिनी बोली- वह मैं नहीं उतारने वाली, उसे आप ही उतारो.
बापू ने कहा- अरे, मैंने जैसे तेरी पेंटी उतारा था, वैसे ही तू भी उतार ना बेटी.
पद्मिनी बोली- आपने जब पेंटी उतारी थी, तो वहां कुछ इतना मोटा नहीं था.. आपकी पेंट के नीचे यहाँ पर यह है.
अपनी उंगली के इशारे से पद्मिनी ने मुस्कुराते हुए चेहरे पर लाली लिए बापू के लंड की तरफ उंगली दिखाई.

बापू ने ज़िद की कि वो ही उसकी अंडरवियर को उतारे. पद्मिनी नखरे कर रही थी. बापू ने उसके हाथों को खींच कर अपने लंड पर रखा और अंडरवियर उतारने की जिद की.

पद्मिनी बापू की दोनों फैली हुए जांघों के बीच बैठी हुई थी. उसने हाथों को बापू के अंडरवियर पर रखा.. मगर वो उसे उतार नहीं रही थी. बापू के बहुत कहने के बाद पद्मिनी ने अपनी आँखों को बंद कर लिया और अंडरवियर को खींचना शुरू कर दिया. बापू का अंडरवियर आधा ही निकला, क्योंकि ऊपर वाला हिस्सा तने हुए लंड पर अटका हुआ था.

अब पद्मिनी को आँखें खोल कर देखना ही पड़ा. फिर अपने होंठों को दांतों में दबाते हुए एक छोटी सी मुस्कान के साथ पद्मिनी ने अपनी उंगलियों से लंड को उस जगह से हटाया, जहाँ अंडरवियर में अटका हुआ था. फिर अंडरवियर को खींचकर निकाल कर नीचे ज़मीन पर फेंक दिया.

उसने मुस्कुराते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं. बापू ने पद्मिनी के सर को थाम कर अपने लंड के तरफ खींचा और रुक गया. पद्मिनी ने आँखों को बंद किया हुआ था, उसको समझ में आ गया था कि बापू क्या चाहता है.. मगर वह बहुत शर्मा रही थी और आगे बढ़ने के लिए कुछ हिचकिचा भी रही थी.

बापू ने पद्मिनी के हाथों को अपने खड़े हुए लंड पर रखा और सिसकती आवाज़ में कहा- इसको सहला और सहलाती जा मेरी गुड़िया.. आह आह.. मेरी जान करती जा.. ऐसे ही करती जा…
बापू ने पद्मिनी के हाथों को अपने लंड पर फेरते हुए उससे यह सब कहा.

पद्मिनी ने बापू के लंड अपने हाथों पर महसूस करते हुए अपने जिस्म में एक कंपकंपी सी महसूस की और उसकी रूह भी काँप उठी. उसने अपनी ज़िन्दगी में कभी भी लंड को अपने हाथों में नहीं थामा था. फिर पद्मिनी ने अपनी आँखों को बंद करते हुए अपने छोटे मुलायम हाथों में पहली बार अपने बापू के मोटे लंड को पकड़ा और उसको सहलाना शुरू किया.

बापू पूरे जिस्म को ढीला करते हुए लेट गया और ज़ोर से चुदासी आवाजें निकालने लगा- आहहहह.. इसिश.. बहुत मज़ा आ रहा है मेरी रानी.. और ज़ोर से और ज़ोर से अपना हाथ चला.. मेरी जान.. ऐसे ही.. आह.. ठहर जरा.. अभी बताता हूं.. यह देख अपनी मुठ्ठी को ज़रा सा बंद करके.. ऐसे अब हाथ को चला.. ज़ोर से चलाती जाना..

बापू ने गहरी साँस लेते हुए पद्मिनी को सिखाया कि कैसे वह अपने हाथ को उसके लंड पर चलाए.

इस चुदाई की कहानी के लिए मुझे ईमेल जरूर कीजिएगा.
[email protected]
कहानी जारी है.

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