एक दिल चार राहें- 26

(Bathroom Sex Kahani Hindi)

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बाथरूम सेक्स कहानी में पढ़ें कि कैसे मैंने अपने ऑफिस की लड़की को बाथरूम में नंगी करके नहाते हुए उसकी चूत की चुदाई की. जब वो मेरे सामने बैठकर मूतने लगी तो …

“आह … प्लीज जल्दी करो … आह …”
मैंने एक ही झटके में अपना पूरा लंड उसकी रसीली चूत में घोंप दिया। मैंने उसके उरोजों को भी मसलना और चूसना शुरू कर दिया था। बीच बीच में उसकी फुनगियों को भी अपने दांतों से काटना जारी रखा।
नताशा तो अगले 3-4 मिनट में ही एक बार झड़ गई। और उसने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया।

मुझे लगा इस कबूतरी को अगर मोरनी बना कर ठोका जाए तो यह इस चुदाई को अगले कई दिनों तक याद करके रोमांच में डूबी रहेगी।
“जान … आओ आज एक नया प्रयोग करते हैं.”
“क्या?”

मैं उसके ऊपर से उठ गया उए उसके दोनों पैरों को मोड़कर उसके घुटने उसकी छाती की ओर कर दिए और एक तकिया उसके नितम्बों के नीचे लगा दिया। ऐसा करने से उसके नितम्ब और भी ऊपर उठ गए। अब तो उसकी चूत किसी संतरे की फांकों की तरह चिपक सी गई थी। और गांड का छेड़ तो बहुत ही सिकुड़ा हुआ लगाने लगा था। मेरा तो मन करने लगा था अपना लंड उसकी चूत के बजाय उसकी गांड में ही डाल दूं पर अभी यह करना ठीक नहीं था।

फिर मैं अपने घुटनों के बल हो गया और अपना एक हाथ उसकी जाँघों पर रखा और दूसरे हाथ से अपने लंड को पकड़कर उसकी चूत के मुहाने पर रख दिया। अब मैंने अपना दूसरा हाथ भी उसकी जांघ पर रखा उसे दबाते हुए एक जोर का धक्का लगा दिया।
“आआईईई ईईईईइ …”

धक्का इतना जबरदस्त था कि नताशा की एक घुटी घुटी सी चीख निकल गई। आप सोच रहे होंगे यार प्रेम गुरु तुम इतने कठोर या बेदर्द कैसे हो सकते हो?

आपका सोचना सही है पर इस आसन में चूत इतनी ज्यादा टाईट हो जाती है कि लंड अन्दर डालना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए तेज धक्का लगाना जरूरी होता है।

थोड़ी देर में नताशा संयत हो गई। मुझे लगता है जल्दी ही वह मेरे धक्कों के साथ भी अभ्यस्त हो जायेगी। नताशा ने अपने पंजे अपने दोनों हाथों में पकड़ लिए और मैंने उसकी जाँघों पर अपनी हथेलियाँ लगाते हुए धक्के लगाने शुरू कर दिए। मेरा लंड उसकी फांकों और कलिकाओं को रगड़ता हुआ अन्दर बाहर होने लगा।

अभी मैंने 5-4 धक्के ही लगाए थे कि मुझे लगा मेरे लंड के चारों ओर कोई चिकना सा तरल पदार्थ लगाने लगा है।
हे भगवान्! इस नताशा की चूत भी कितना शहद छोड़ती है।

नताशा ने अपने घुटने थोड़े से मोड़ दिए तो उसकी टांगें ऐसे लगाने लगी जैसे कोई गोल घेरा सा बन गया हो।
अब तो मेरे धक्कों के साथ उसकी मीठी किलकारियां निकलने लगी थी- प्रेम मैं तो तुम्हारे बिना अधूरी ही थी सच में आज तुमने मुझे पूर्ण स्त्री बनाने का अहसास दिलाया है.
“हाँ जानेमन मैं भी तुम्हें पाकर धन्य हो गया!”

अब मैंने और भी जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। मेरा पूरा लंड उसकी चूत में फंसा हुआ था। जैसे ही मैं धक्का लगाता मेरे अंडकोष उसकी गांड के छेद पर लगते तो रोमांच के मारे नताशा का पूरा शरीर ही लरजने लगता। उसकी चूत के मोटे मोटे पपोटों के बीच की पत्तियाँ भी मेरे लंड के घर्षण से और भी ज्यादा फूल गई थी और लंड के साथ थोड़ी अन्दर बाहर होने लगी थी।

नताशा के मुंह से गुर्र … गुरर्र … की आवाजें आने लगी थी। वह अपनी चूत का संकोचन करने का प्रयास भी कर रही थी. पर मेरे धक्कों की तब को सहन करना अब उसकी चूत और फांकों के वश में नहीं था।
उसका शरीर एक बार फिर से अकड़ा और फिर उसने अपने आप को ढीला सा छोड़ दिया। मुझे लगता है उसका एक बार फिर से स्खलन हो गया है।

हमें कोई 10-15 मिनट हो गए थे। नताशा इस दौरान 2 बार झड़ चुकी थी। मुझे लगा वह इस लम्बी मैराथन से थक गई है तो मैंने उसके पैरों को नीचे कर दिया और अब मैं उसके ऊपर आ गया। अब तो नताशा फिर से अपने नितम्बों को ऊपर-नीचे करने लग गई थी।

“प्रेम … आह … अब अपना प्रेम रस बरसा दो … आह …”

और फिर मैंने अपना एक हाथ उसकी गर्दन के नीचे लगाया और दूसरे हाथ से उसकी कमर को पकड़कर 5-4 धक्के लगाए तो मेरे लंड भी पिचकारियाँ छोड़नी शुरू कर दी।
नताशा तो आह … ऊंह करती उस अनंत आनंद को भोगती रही।
जैसे बरसों की बंजर रेतीली भूमि को बारिश की फुहार मिल जाए! उसकी चूत तो संकोचन करती रही और मेरे वीर्य को पूरा अन्दर समेटती चली गई।

थोड़ी देर मैं उसके ऊपर ही पसरा रहा और उसके होंठों और गालों को चूमता रहा. नताशा तो शांत पड़ी बस लम्बी-लम्बी साँसें लेती रही। थोड़ी देर बाद मैं उसके ऊपर से उठ गया और उसकी बगल में ही लेट गया।

नताशा ने भी करवट लेकर अपना मुंह मेरी ओर कर लिया और मेरे सीने से अपना सर लगा दिया। मैंने अपने हाथ उसके सर और पीठ पर फिराने चालू कर दिए।

“प्रेम!”
“हाँ जानेमन?”
“पता है मेरा मन क्या करता है?”
“क्या?”
“मैं पूरी रात इसी तरह तुम्हारे सीने से लग कर तुम्हारे आगोश में बिताना चाहती हूँ।“
“हम्म!”

“और जब सुबह मेरी आँखें खुले तो सबसे पहले मैं तुम्हारे होंठों का चुम्बन लेकर तुम्हें जगाऊँ.”
“हम्म.”
“मैं चाहती हूँ हम दोनों साथ नहायें और फिर मैं किचन में नंगी होकर ही तुम्हारे लिए नाश्ता और खाना बनाऊँ और तुम भी उस समय बिना कोई कपड़ा पहने मेरे पास ही खड़े रहो.”
“हा हा हा … यह कौन सी बड़ी बात है यह तो तुम जब चाहो कर सकती हो.”

“ओहो … कल तो वो सब आ जायेंगे. तो दिन में यह सब कैसे हो पायेगा?”
“यार इसमें समस्या वाली कौन सी बात है तुम चाहो तो दिन में नहीं तो रात में भी तो हम यह सब कर ही सकते हैं.”
“अरे हाँ … इस तरफ तो मेरा ध्यान ही नहीं गया.” कहते हुए वह खिलखिला आकर हंस पड़ी।

“पर एक समस्या है?”
“वो क्या?” उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।
“यार तुम तो खाना बनाती रहोगी पर मैं किचन में खड़ा क्या करूंगा?”
“क्यों … तुम भी मेरी हेल्प करना.” कहते हुए उसने मेरी ओर तिरछी नज़रों से देखा।
मुझे लगा वह मुझे निरा पपलू (अनाड़ी) समझ रही है।

अब उसे क्या मालूम किचन में जब प्रियतमा नंगी होकर खाना बना रही होती है तो उसके पीछे खड़ा होकर उसे बांहों में भर कर उसके नितम्बों में अपना खडा लंड डालने में कितना मज़ा आता है मेरे से ज्यादा भला कौन जान सकता है।

प्रिय पाठको और पाठिकाओ, आप सभी तो बहुत गुणी और अनुभवी हैं. मेरे पुराने पाठक यह जानते हैं कि जब हमारी नई-नई शादी हुई थी तो मधुर भी रसोई में इसी तरह नंगी होकर खाना बनाया करती थी. शुरू-शुरू में तो उसे बहुत शर्म आती थी पर बाद में तो वह बहुत ही चुलबुली हो जाया कराती थी। और फिर कई बार तो मैं किचन में ही उसे घोड़ी बनाकर पीछे से उसकी चुदाई कर दिया करता था।

मैं तो सोचने लगा था क्यों ना उन्हीं पलों को एक बार फिर से दोहरा लिया जाए।
“ओके … ठीक है चलो आज का खाना हम दोनों मिलकर ही बनायेंगे.”
“तुम्हें अभी भूख तो नहीं लगी ना?”
“लगी तो है पर मैं चाहता हूँ पहले थोड़ा शॉवर ले लें? क्या ख्याल है?”
“हाँ चलो साथ में नहाते हैं.” अब तो नताशा की आँखों की चमक देखने लायक थी।

अब मैं बेड से उठकर खड़ा हो गया और नताशा को अपनी गोद में उठा लिया और हम दोनों बाथरूम में आ गए। मैंने नताशा को फर्श पर खड़ा कर दिया।

“आआईईइइ …”
“क्या हुआ?”
“वो मेरा सु-सु निकल रहा है …” कहते हुए वह कामोड पर बैठने लगी तो मैंने उसे रोक दिया।
“जान मेरी एक बात मानोगी क्या?”
“ओह … क्या?”
“यार इस कमोड पर नहीं फर्श पर बैठ कर सु-सु करो ना?”
“क्यों?”
“यार तुम्हारा यह अनमोल खजाना इतना खूबसूरत है तो इसमें से निकलते हुए सु-सु की पतली धार का संगीत कितना मधुर होगा तुम्हें अंदाजा ही नहीं है … प्लीज …”

नताशा ने एक बार कातिल निगाहों से मेरी ओर देखा और फिर झट से फर्श पर बैठ गई। उसने अपनी जांघें थोड़ी सी चौड़ी की और फिर कलकल करती उसकी मूत के पतली सी धार निकल कर फर्श पर दम तोड़ने लगी।

मुझे लगता है उसकी ऊंचाई तो जरूर एक फुट ऊंची रही होगी। उसकी कलिकाओं से टकराती हुई मूत की धार का संगीत तो ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने सितार का सप्तम स्वर ही छेड़ दिया हो।
नताशा आँखें बंद किये सु-सु करती रही और मैं इस मनमोहक दृश्य को देखता ही रह गया। मेरा मन तो कर रहा था मैं नीचे बैठकर उसकी सु-सु की धार में अपनी अंगुलियाँ ही लगा दूं। पर इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता नताशा के सु-सु की धार पहले तो मंद पड़ी और फिर एक बार हल्की सी ऊपर उठती हुयी बूंदों की शक्ल में ख़त्म हो गई।
मैं तो अपने होंठों पर जीभ ही फिराता रह गया।

उसके बाद हम दोनों ने शॉवर लिया। नताशा तो इस समय बहुत ही चुलबुली सी हो गई थी। उसने मेरे लंड को पकड़कर पहले तो उस पर साबुन लगाया और फिर उसे धोकर साफ़ किया। लंड महाराज तो उसकी इस कलाकारी को देखकर मंत्र मुग्ध ही हो गए और एक बार फिर से अंगड़ाई लेने लगे।

नताशा ने उसे मुंह में भर लिया और चूसने लगी। ऊपर ठन्डे पानी की फुहारें पड़ रही थी और नताशा किसी लोलीपॉप के तरह मेरे लंड को चूसे जा रही थी। कोई 5-6 मिनट लंड चूसने के बाद नताशा ने उसे अपने मुंह से बाहर निकाल दिया और अपना गला सहलाने लगी।

मुझे लगता है वह अभी इस मामले में अनाड़ी है पर मेरी संगत में रहकर धीरे- धीरे हुनर भी सीख जायेगी।

अब मैंने भी नताशा की चूत को साबुन लगाकर साफ़ किया और उसे अपना एक पैर कमोड पर रखकर खड़ा होने को बोला। जब नताशा मेरे कहे मुताबिक हो गई तो मैं नीचे बैठ गया और उसकी चूत को पहले तो चूमा और फिर अपनी जीभ नुकीली करके उसके चीरे पर फिराने लगा।

नताशा तो आह … ऊंह करती रह गई। अब मैंने उसकी चूत को पूरा मुंह में भर लिया और उसकी चुस्की लगानी शुरू कर दी। नताशा तो अब रोमांच के सातवें आसमान पर थी। उसकी मीठी सीत्कारें निकालने लगी थी।

“प्रे … म आह … तुम तो आह … सच में जादूगर को.. आह … मैं मर जाऊंगी … आऐईईइ …”
वह झटके से खाने लगी। मुझे लगता है उसका ओर्गास्म हो गया है। मैंने 2-3 चुस्की और लगाईं और फिर उसकी चूत से अपना मुंह अलग कर लिया। नताशा ने नीचे होकर मेरे होंठ चूम लिए।

अब नताशा शॉवर के नीचे आ गई। मैं उसके पीछे आ गया और उसकी पीठ से चिपक कर उसके उरोजों को दबाने लगा। मेरा लंड उसके नितम्बों की खाई में जा लगा। नताशा ने अपनी कमर को थोड़ा नीचे झुकाते हुए पानी की नल को पकड़ लिया और अपने नितम्ब और जांघें खोल दी।

मैंने शेल्फ पर पड़ी क्रीम की डिब्बी से क्रीम निकालकर थोड़ी तो अपने लंड पर लगाई और फिर अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया। मुझे लगा मेरा लंड किसी खुरदरी सी कन्दरा (गुफा) में जा रहा है। शायद साबुन से धोने के कारण अन्दर की चिकनाहट थोड़ी कम हो गई थी। पर मेरे लंड को अन्दर जाने में कोई ज्यादा मुश्किल नहीं हुयी।

नताशा तो बस आह … उईई … करती रही।

मैंने उसकी कमर को पकड़ लिया और धक्के लगाने शुरू कर दिए। मेरे धक्कों से उसकी चूत से भी फच्च फच्च की आवाज निकलने लगी थी और जो उसके कन्धों और पीठ पर गिरते हुए पानी के साथ होती फच्च-फच्च की आवाज के साथ अपनी ताल मिलाने लगी थी।

अब तो नताशा भी अपने नितम्बों को थिरकाने लगी थी। मैं उसके नितम्बों पर थप्पड़ भी लगाता जा रहा था। मेरे थप्पड़ों से उसके नितम्ब लाल से नज़र आने लगे थे और नताशा तो जैसे ही थप्पड़ लगता जोर से आह … सी भरती और मस्ती में अपने नितम्बों को और जोर से मेरे धक्कों के साथ आगे पीछे करने लगती।

लगता है लैला की तरह नताशा को भी सेक्स के दौरान अपने नितम्बों पर मार खाना, दांतों से कटवाना और उरोजों को मसलवाना बहुत अच्छा लगता है। थोड़ी देर बाद नताशा कुछ ढीली सी पड़ने लगी थी। मुझे लगा वह थक गई है।

“नताशा एक नया प्रयोग करें क्या?”
“ओह … प्रेम अब और कुछ नहीं बस इसी तरह किये जाओ … आह!”
“तुम्हें और भी ज्यादा मज़ा आयेगा.” कहते हुए मैं रुक गया और धक्के लगाने बंद कर दिए।

नताशा अपनी गर्दन थोड़ी सी मोड़कर मेरी ओर देखने लगी कि मैंने धक्के क्यों बंद कर दिए।
मैंने अपना लंड बाहर निकाल लिया और फर्श पर बैठ गया। नताशा के कुछ भी समझ नहीं आया था। मेरा सुपारा तो इस समय फूल कर लाल टमाटर जैसा हो चला था और लंड तो ठुमके पर ठुमके लगा रहा था।

“नताशा प्लीज … आओ मेरी गोद में बैठ जाओ.”
अब नताशा को समझ आया कि मैं क्या चाहता हूँ। वह इतराते हुए मेरी ओर मुंह करके मेरी गोद में आ बैठी और उसने अपने चूत की फांकों को चौड़ा कर के मेरे लंड को अपनी चूत में गटक लिया।

मैंने अपने दोनों हाथ पीछे कर लिए और नताशा को भी ऐसा करने का इशारा किया। अब नताशा भी अपने दोनों हाथों को पीछे कर लिए। मैंने हाथ बढ़ा कर नल खोल दी और पानी की मोटी धार उसकी चूत पर गिरने लगी। मेरा लंड उसमें फंसा हुआ सा लग रहा था और उसकी चूत का ऊपरी हिस्सा कुछ फूला सा नज़र आ रहा था।

मुझे भी पानी की गिरती धार से सनसनाहट सी होने लगी थी तो लाज़मी था कि नताशा को भी बहुत मज़ा आने लगा होगा। अब उसने अपने चूत के दाने को पानी की धार के नीचे सेट कर लिया। अब तो वह वह तो रोमांच के मारे किलकारियां ही मारने लगी थी और अपने नितम्बों को उचकाने भी लगी थी और ‘आह … उईईइ … ’ भी करती जा रही थी।

थोड़ी देर में उसने अपने एक हाथ से अपनी चूत के दाने को टटोला और चूत का जोर से संकोचन किया और अपने नितम्बों को जोर जोर से उछालने लगी। मुझे लगा उसका ओर्गास्म हो गया है। उसका शरीर झटके से खाने लगा था।

अचानक वह उठ खड़ी हुई और मुझे धकेलते हुए मेरे ऊपर आ गई और अपने दोनों घुटनों को मोड़कर मेरे लंड की सवारी करने लगे। उसने अपनी चूत को मेरे लंड पर घिसते हुए धक्के लगाना शुरू कर दिया और साथ में जोर-जोर मीठी सीत्कारें करने लगी।

मैं कुछ ज्यादा नहीं कर सकता था बस अपने हाथों से उसके नितम्बों को सहलाता रहा और उसके उरोजों को भींचता और मसलता रहा। उसके धक्के इतने तेज थे कि मुझे लगाने लगा मेरा लंड अपनी सहनशक्ति जल्दी ही खो देगा।

मेरा एक हाथ उसके नितम्बों की खाई में उसकी गांड के छेद को टटोलने लगा था. और जैसे ही मुझे वह कोमल सा छेड़ अपनी अँगुलियों पर महसूस हुआ, मैंने अपनी एक अंगुली का पोर उसकी गांड के छेद में घुसाने की कोशिश की।

उसकी गांड का कोमल अहसास पाते ही मेरी उत्तेजना बहुत ज्यादा बढ़ गई थी।
नताशा का भी यही हाल था। नताशा तो अब बड़बड़ाती जा रही थी ‘आह … उईईइ … मेरे राजा … आह …’

अचानक नताशा ने नीचे होकर मेरे होंठों को जोर-जोर से चूमना शुरू कर दिया और जोर से अपनी चूत को मेरे लंड पर धकेलने सी लगी। अब तक मेरी अंगुली का एक पोर उसकी गांड के छेद में समा चुका था।

मैं भी कब तक अपने उत्तेजना को संभाल पाता मेरी पिचकारियाँ फूटने लगी और उसके साथ ही नताशा ने एक जोर के किलकारी मारी और मेरे ऊपर पसर कर लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी। हम दोनों का ओर्गास्म एक साथ हो गया था। हम दोनों एक दूसरे की बांहों में समाये ऐसे ही लेटे रहे और ऊपर ठन्डे पानी की फुहारें ऐसे बरसती रही जैसे सावन के मेघ बरसते हैं।

थोड़ी देर बाद हम दोनों उठ खड़े हुए। नताशा लड़खड़ाते हुए शॉवर के नीचे आ गई और फिर मैंने भी शॉवर लिया और फिर हम दोनों तौलिये से शरीर को साफ़ करके बाहर आ गए। नताशा ने कपड़े पहनने से मना कर दिया था।

“प्रेम तुम सोफे पर बैठो, मैं अभी आई.” कहकर नताशा रसोई में चली गई।
चलते समय जिस प्रकार उसके नितम्ब हिचकोले खा रहे थे आप सोच सकते हैं कि उसकी गांड मारने की मेरी कितनी प्रबल इच्छा होने लगी थी।

बाथरूम सेक्स कहानी में मजा आ रहा है ना आपको?
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बाथरूम सेक्स कहानी जारी रहेगी.

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