नि:संतान पड़ोसन को दी अनहद ख़ुशी- 4
(Antarbasna Sex Stori )
अन्तर्बासना सेक्स स्टोरी मेरी किरायेदार लड़की को बच्चा नहीं हुआ तो उसने संतान प्राप्ति के मुझे सेक्स के लिए उकसाया. मैंने उसे पहली बार कैसे चोदा?
फ्रेंड्स, मैं चाहत आपको अपनी सेक्स कहानी के अंतिम भाग में सेक्स की रसधार से रूबरू कराने के लिए हाजिर हूँ.
कहानी के पिछले भाग
पड़ोसन लड़की ने दिया मुखमैथुन का मजा
में अब तक आपने पढ़ा था कि मेरी किरायेदार वनिता मेरे लंड से बच्चा पाने के लिए मुझे उत्तेजित कर चुकी थी.
बीती रात उसने मेरे लंड को जबरदस्त तरीके से चूस कर मुझे चुदास से भर दिया था और आज मैं उसे पाने के लिए बेचैन हो गया था.
अब आगे अन्तर्बासना सेक्स स्टोरी:
हालांकि मैं अपनी उत्सुकता को जाहिर करके खुद को हल्का नहीं बनाना चाहता था.
मैं नहीं चाहता था कि किसी भी पल उसे यह लगे कि मैं उसे भोगना चाहता हूं.
इसलिए मैं शांत रहा.
वनिता कुछ देर तक इंतजार करती रही मगर मैं पुरुष दम्भ या ‘मेल ईगो’ के कारण पहल करने को तैयार नहीं था.
मैंने मिठाई का डब्बा किचन में रखा और चुपचाप अपने कमरे में आकर लेट गया.
मेरे कमरे का दरवाजा खुला हुआ था.
थोड़ी ही देर में वनिता मेरे कमरे में दाखिल हुई.
दुनिया की नजरों से बचने के लिए सबके सामने वह मुझे भैया कहकर बुलाती थी मगर अकेले पाकर उसने मुझे कहा- आपने खाना खाया?
मैंने कहा- अभी केवल ग्यारह बजे हैं.
‘मिठाई किसके लिए है?’ उसने पूछा.
मैंने अपने असिस्टेंट की बात उसे बताई और उससे कहा- तुम भी थोड़ी सी ले लो.
मेरे कहने से पहले ही उसने मिठाई डिब्बे से एक पीस निकालकर अपने मुँह में इस तरह से दबाया कि आधी मिठाई मुँह से बाहर झांक रही थी.
इस अदा में चुपचाप मेरे सामने वह खड़ी हो गई.
मेरे लिए यह एक सेक्स कॉल की तरह ही था.
मैंने अब पल भर भी देर नहीं की और उस पर टूट पड़ा.
वह चाहती थी कि मैं उसके होंठों को चूमूं, मगर मैंने मिठाई के नग को उसके मुँह से छीन कर कपड़ों के अन्दर हाथ घुसाकर उसके मम्मों में मल दिया.
मैंने उसके कपड़े खोले, उसे बिस्तर पर पटका और एक हाथ उसके पजामे के अन्दर डालकर अपनी दो तीन उंगलियां उसकी चूत में घुसा दीं और बूब्स में मली हुई मिठाई चाटने लगा.
आज उसका छह सात सालों का इंतजार खत्म होने वाला था.
इसलिए वह बिल्कुल पीछे हटने को तैयार नहीं थी.
मुझे भी ऐसा मौका दुबारा मिलने वाला नहीं था इसलिए मैं भी उसे आज बख्शने के मूड में नहीं था.
थोड़ी देर में ही वह सिसकारने लगी.
वह जल्दी से मेरा लंड अपने चूत में लेना चाहती थी.
मगर मैं आज उसकी एक नहीं मानने वाला था.
मैंने जबरदस्ती उसे नीचे घुटनों के बल बिठाया और बिना देरी के अपना लंड बाहर निकाल कर उसके मुँह में डाल दिया.
वह भी बेहिचक मेरा लंड चूसने लगी.
मैं आज अपने बीज को उसके गर्भ में रोपने से पहले वाजिब कीमत वसूल करना चाहता था.
वह भी हर कीमत चुकाने को तैयार होकर आई थी.
मैं मस्त होने लगा.
जैसे ही मेरे लंड ने छूटने का संकेत दिया मैंने उसे परे हटा दिया, उसे उठाया और घोड़ी बनने का इशारा किया.
वह परे होकर झुक गई.
मैंने थूक से सने अपने लंड को उसकी गांड के छेद में डालने की कोशिश की.
वह थोड़ा कसमसाई और उसने दर्द से चादर को मुठ्ठी में भींच लिया.
मैंने उसके दर्द की परवाह न करते हुए जोरदार धक्का दिया.
हचक कर पेलने की वजह से मेरा लंड उसकी गांड में समा गया.
मैंने कई धक्के लगाए.
वह हर बार आह करती.
उसकी हर एक कराहने में मुझे न जाने कैसी खुशी मिल रही थी.
उसने मुझे रोकने की कोशिश की; मुझसे ‘प्लीज प्लीज’ भी कहा मगर मैं धकापेल उसकी गांड की चुदाई करता रहा.
जब मैं नहीं माना तो उसने लगभग चीखते हुए कहा- रुकिए.
मैं रुक गया.
मेरे दम्भ को थोड़ी ठेस पहुंची.
मैं हट गया और वहां से जाने लगा.
वह लगभग रुआंसी सी होकर मेरे पैरों पर गिर पड़ी.
उसने मेरे पैर पकड़ लिए.
मैं ठिठक कर रुक गया.
वह बोली- आप मुझे गलत मत समझिए. आज मैं आपकी रंडी हूं. आप मुझे जैसे और जितनी बार चोदना चाहेंगे, मैं चुदूंगी, मगर मुझे आपका पहला वीर्य अपने गर्भ में लेने दीजिए. मुझे आपके बच्चे की मां बनने दीजिए.
“ताकि तुम मुझे बाद में ब्लैकमेल कर सको?” मैंने लगभग चीखते हुए कहा.
तो उसने कहा- आप जानते हैं कि मैं अपने वादे की पक्की हूं. मेरी मजबूरी है जो मैं आपके सामने नंगी खड़ी हूं. प्लीज मेरी फीलिंग्स समझिए, मैं एक बार मां बन गई तो वापस कभी आपके सामने नहीं आऊंगी. मैं मेरे होने वाले बच्चे की कसम खाकर कहती हूं. मेरा यकीन कीजिए.
उस पर यकीन करने के अलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं था मगर मेरा गुस्सा अभी शांत नहीं हुआ था.
मैंने उसे सीधा लिटाया और उसके ऊपर चढ़ गया.
उसने अपने दोनों पैर ऊपर उठा लिए.
अगले ही कुछ बाद जितनी मुझमें शक्ति थी, उतनी जोर से मैं उसकी चूत में धक्का लगा रहा था.
मैं उसकी चूत की अंतिम गहराई तक अपने लंड को पहुंचाना चाहता था.
मेरे गुस्से को थोड़ी देर तक उसने गौर से देखा, फिर उसे हंसी आ गई.
उसकी हंसी मुझे जहर सी मालूम हो रही थी.
मैं गुस्से से पागल हो गया और पूरे लंड को बाहर निकालकर पूरी ताकत से अन्दर पेलने लगा.
उसे दर्द हो रहा था, लेकिन तब भी वह मेरा उपहास उड़ाते हुए मुस्कुरा रही थी.
मैं आज उसे और उसकी चूत दोनों को सुजा देना चाहता था.
थोड़ी देर और धक्के लगाने के बाद उसके आंखों की पुतलियां ऊपर चढ़ने लगीं, पैर ऐंठने लगे और बिल्कुल फव्वारे की तरह वह झरने लगी.
उसने मुझे रोकने का इशारा किया मगर मैं भी अब स्खलित होने ही लगा था.
बिल्कुल जानवरों को तरह आवाजें निकालते हुए मैंने अपने वीर्य से उसकी चूत को लबालब भर दिया.
वनिता के चेहरे पर आशा भरे तृप्ति के भाव तैर रहे थे.
वह शायद भगवान से प्रार्थना कर रही थी.
मैंने भी मन ही मन उसकी प्रार्थना में अपनी प्रार्थना जोड़ दी.
मैं पूरी तरह थक कर निढाल हो गया था.
अब मेरे अन्दर कुछ और करने की ताकत नहीं बची थी.
मेरे घर में बच्चों के न होने से पूरा दूध यूं ही बच रहा था.
सेक्स के बाद मुझे फिर से उठाने के लिए से दूध गर्म कर मुझे पीने को दिया.
मैंने अच्छे बच्चे की तरह फटाफट पी लिया.
मैं इस एक ग्लास दूध की जरूरत अच्छे से समझ रहा था.
उसने मेरे हाथ से दूध का ग्लास लेकर नीचे रख दिया.
मैं दूध पीकर निढाल बिस्तर पर गिर गया.
मेरा लंड शादी में रूठे हुए जीजा की तरह मुँह लटकाए एक ओर झुक गया था.
वनिता अपने वादे की पक्की औरत थी.
उसने फिर से मेरे मुरझाए हुए लंड को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया.
थोड़ी ही देर में दूध की ताकत जगने लगी, मुरझाया हुआ लंड फिर से तनने लगा.
जैसे ही मुझमें जोश परवान चढ़ा, मैंने उसे अपने ऊपर खींच लिया.
उसने मेरे ऊपर आकर मेरा लंड अपनी चूत में ले लिया और हचक हचक कर मुझे ही चोदने लगी.
उसके दोनों दूध बड़े ही लय में ऊपर नीचे उछल रहे थे.
मैंने उसे अपने दोनों हाथ उठाकर अपने बालों को पकड़ने को कहा.
इस पोजीशन में वह बिल्कुल काम की देवी लग रही थी.
उसने मुझसे अपने उछलते हुए मम्मों को दबाने को कहा.
मैं उसकी इस धाकड़ चुदाई की भावना से आनन्द के समुद्र में गोते लगाने लगा.
जैसे ही मेरा शरीर स्खलन से पहले अकड़ने लगा, वह तुरंत ही हटकर नीचे आ गई और मुझे अपने ऊपर खींच लिया.
मैं जान चुका था इसलिए इस बार मैंने उसका भरपूर साथ दिया.
बड़े हौले हौले से चोदते हुए दुबारा मैं उसकी चूत में ही स्खलित हो रहा था.
उसके चेहरे पर असीम तृप्ति के भाव थे.
उस रोज हमने कुल पांच बार सेक्स किया.
हर बार जब मैं अपने चरम सुख पर पहुंचता, पुनः वह मुझे छेड़छाड़ कर उत्तेजित कर देती.
उसने सच कहा था कि आज सचमुच वह मेरे लिए रंडी बन गई थी.
अगली सुबह मेरे मां पापा घर आ गए.
दस दिनों के बाद अनिमा भी वापस आ गई.
एक महीने बाद जब उसका मासिक रुक गया, तो उसने प्रेगनेंसी टेस्ट करवाया.
वह सचमुच प्रेगनेंट थी.
मेरे और उसके परिवार में खुशियां छा गईं.
मुझे याद है कि अगले साल बीस फरवरी को इंदौर के सरकारी अस्पताल में बड़े ऑपरेशन से उसे लड़का हुआ.
मैं फिर से बाप बन गया था.
मगर मैं बहुत एक्साइटमेंट नहीं दिखा सकता था.
मेरी मां, अनिमा, सागर और सभी उसे सागर और वनिता की संतान ही समझ रहे थे मगर केवल दो लोग ही जानते थे कि यह किसकी संतान है.
अनिमा के बहुत कहने पर तीन दिनों के बाद मैं वनिता और अपने बेटे को देखने अस्पताल पहुंचा.
वहां देखा तो सागर नहीं था, उसे शायद काम पर जाना पड़ा था.
वनिता के साथ उसकी मां थी.
मैंने प्रसव वेदना को सहन करने वाली बेहद कमजोर वनिता को देखा.
मैंने चादर में लिपटे हुए लाली लिए हुए बेहद गोरे नवजात शिशु को देखा.
मुझे देखकर वनिता उठने की कोशिश करने लगी.
मैंने तेजी से बढ़ कर उसे लिटाया और उसके केश सहलाए.
उसने नजरों से अपने बच्चे की ओर इशारा किया.
मैंने देखा, उसके नैन नक्श बिल्कुल वनिता से मिलते थे.
मैं निश्चिंत हो गया कि अब सागर इससे कुछ भी कह नहीं सकेगा.
मैंने उससे पूछा- इस बच्चे का नाम क्या रखा है?
उसने कहा- प्रणव.
मैं उदास हो गया तो वह समझ गई.
उसने मुझसे कहा- मैंने पहले सोचा था कि आप ही इस बच्चे का नामकरण करेंगे लेकिन कुछ सोचकर मैंने ऐसा नहीं किया.
मैंने उससे इसका कारण नहीं पूछा.
उसने मुझसे पूछा- आप खुश नहीं हैं?
मैंने जवाब दिया- हां बिल्कुल, मैं खुश हूँ.
उसने फिर से पूछा- कितना?
मैंने कहा- बेहद.
उसने कहा- और मुझसे नहीं पूछेंगे कि मैं कितनी खुश हूं?
मैंने कहा- तुम्हीं बता दो!
उसने जो जवाब दिया, मैंने उसकी कभी कल्पना ही नहीं की थी.
उसने कहा- ‘अनहद’.
मैंने उससे अबकी बहुत उत्सुकता से पूछा- इसका क्या मतलब है?
उसने कहा- बेहद का अर्थ होता है, हद से ज्यादा … और अनहद का अर्थ है … अनंत, असीम, इनफिनिटी.
मैं चुप था.
उसने आगे कहा- मैं इतनी खुश हूं, जिसकी कोई सीमा नहीं है.
मैं समझ गया कि इतने साल वनिता ने किताबों में यूं ही सर नहीं खपाया है.
मैंने अब उससे पूछा कि बेटे का नाम ‘प्रणव’ रखा है, क्या इसका भी कोई मतलब है?
वह कुछ सोच ही रही थी कि प्रणव रोने लगा.
शायद उसे भूख लगी थी. बिना झिझक के ही वनिता ने मेरे सामने अपने बटन खोले, स्तन को बाहर निकाला और बेटे को अपना दूध पिलाने लगी.
उसने फिर कहा- आपकी एक किताब थी ‘क्रिया योग’ जिसे आपने नहीं पढ़ा था. लेखक का नाम इस वक्त मुझे याद नहीं आ रहा है लेकिन उसमें लिखी हुई बात मुझे अच्छे से याद है. प्राणायाम के छह चक्रों में एक चक्र था- अनहद नाद यानि अनहद की आवाज.
‘मैंने पढ़ा नहीं है मगर सुना जरूर है.’ मैंने कहा.
‘अनहद की आवाज का नाम क्या है … आपको याद है?’
मुझे याद आया कि अनहद नाद को ‘प्रणव’ या ‘ॐ’ कहा गया है. मैं थोड़ा थोड़ा समझने लगा था.
‘मेरे लिए अनहद आप ही हैं और अभी जो इसके रोने की आवाज आपने सुनी, यह आपकी ही देन है. यह आपकी ही आवाज है. इसलिए आप मेरे अनहद हैं और यह मेरा प्रणव है.’
सारी बातें अब शीशे की तरह साफ हो चुकी थीं.
मैंने उससे पूछा- डॉक्टर ने कब तक हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करने को कहा है?
वह बच्चे को आवाज के बीच शायद सुन नहीं पाई.
उसने पूछा- क्या कहा?
मैंने सवाल ही चेंज कर दिया.
मैंने पूछा- घर कब आ रही हो?
वह मुस्कुराई और कहा- कभी नहीं.
मैंने चौंक कर पूछा- क्यों?
उसने जवाब दिया- मैंने प्रणव की कसम खाई थी न … इसलिए. आप शायद भूल गए, पर मैं कभी कुछ नहीं भूलती.
मैं मुँह लटकाकर मन ही मन खुद पर ही खीझने लगा.
कुछ देर तक हम दोनों चुप रहे.
फिर उसने चुप्पी तोड़ी और कहा- ऐसे तो आपने मुझे जिंदगी का सबसे अनमोल गिफ्ट दिया है. ऐसा कर्ज जिसे मैं कभी चुका नहीं सकूंगी. मगर मैं अभी आपसे कुछ और भी चाहती हूं.
मैंने उदास मन से कहा- जो बोलोगी, दूंगा. एक बार कह कर तो देखो!
उसने कहा- अपने घर जाकर मैं नया नंबर ले लूंगी. आपके सारे नंबर भी डिलीट कर दूंगी. आपसे कभी कॉन्टैक्ट नहीं कर सकूंगी, तो फिर जब आपको महसूस करना चाहूंगी तो मैं क्या करूंगी?
मैंने उससे कहा- तुम मेरी याद में जो चाहोगी, मैं लाकर अभी तुम्हें देता हूं.
उसने कहा- पिछले पांच सालों में मैंने आपके घर पर रहकर केवल किताबें ही पढ़ी हैं. सो मुझे आपकी लिखी हुई कोई कहानी चाहिए, जिसे मैं जब चाहूं, जितनी बार चाहूं पढ़ सकूं.
मैंने आश्चर्य से पूछा- तुम जानती हो कि मैं लिखने का आदी नहीं हूं. इतने कम वक्त में क्या लिख सकूंगा!
तो उसने कहा- आपको जितना वक्त चाहिए, आप ले लो. मुझे कोई जल्दी नहीं है, मगर मेरे मरने से पहले देना जरूर!
‘तुम जाकर तुरंत ही अपना नंबर बदल दोगी, फिर मुझे तुम्हारे घर का पता भी पता नहीं है. मैं अपनी रचना तुम तक कैसे भेजूंगा?’
जब मैंने उससे यह कहा, तो उसने जवाब दिया- एक वेबसाईट है antarvasana3.com आप उसमें ही अपनी रचनाएं भेजना. मैं उसी में देखती रहूंगी और आपका इंतजार करूंगी.
मैंने फिर से पूछा कि मेरे या तुम्हारे पहचान वालों में से किसी ने भी उसमें जाकर मेरी कहानी को पढ़ लिया तो क्या होगा?
उसने जवाब दिया- ये तो आप भी अच्छी तरह से जानते हैं कि आप मेरे ‘अनहद’ तो जरूर हैं मगर न ही आप चाहत हैं, न ही मेरा नाम वनिता है और न ही हम इंदौर में रहते हैं. बस हमारी कहानी सच्ची है. मुझे इससे ही मतलब है.
दोस्तो, वनिता की मांग पर मैंने यह अन्तर्बासना सेक्स स्टोरी लिखी है, आप अपने विचारों को मेरे साथ साझा करने के लिए मुझे मेल जरूर करें.
[email protected]
What did you think of this story??
Comments