ठोक दे किल्ली बागड़ बिल्ली की चूत में..
हरि
सभी पाठकों को सादर प्रणाम। मेरी कहानी ‘मामा की लड़की’ को आप सभी ने पढ़ा मुझे बहुत मेल मिले, अच्छा लगा। अब मैं आपके सामने एक मेरा कभी न भुलाया जाने वाला अनुभव रखने जा रहा हूँ।
मेरी मंगनी 2006 में हुई थी तो घर पर सब रिश्तेदार आए हुए थे। जैसा कि पहले बताया कि मेरे पापा सरकारी सेवा में थे तो हम लोगों को सरकारी मकान मिला था, जो बहुत छोटा था, मतलब 2 कमरे और रसोई का ही था।
तो सब मेहमानों को हमने मंगनी की रात को छत पर सुलाने का इन्तजाम किया था।
मेरी बुआ के बारे में बता दूँ, उसका नाम रेनू है वो उस समय 34 साल की थी और मैं जब 12वीं में था तब से उसके नाम की मुठ मारता था।
उसकी हाईट 5 फुट 5 इन्च थी और उसकी छाती एकदम उभरी हुई थी, यूं समझ लीजिए कि वो पूरी मेनका ही थी। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें और कूल्हे मटका कर चलना.. मतलब वो पूरी पूरी की पूरी छमिया थी।
मैं तो पहले से ही उसका आशिक था और उसको देखने का मौका ढूँढता रहता था।
मंगनी की रात को सब थक कर सो रहे थे और मेरे मन में तो पहले से ही ये उसके लिए बुरे खयालात थे, इसी लिए मैंने बिस्तरों का कुछ इस तरह अरेंजमेंट करवाया कि वो ठीक मेरे बगल में ही सो सके।
रात को करीबन एक बजे सब सो गए थे। मैं धीरे से उठा, पहले पेशाब करके आया क्योंकि दस बजे से मेरा लौड़ा बम्बू बन गया था। इसी लिए पेशाब जोर से लगी थी, सो आने के बाद इधर-उधर देखा, सब सो रहे थे।
मैंने बुआ की तरफ देखा वो भी अपना एक हाथ सर पे और एक पेट पर रख कर आराम से सो रही थी।
मैं उसे काफी देर तक घूरता ही रहा। कुछ करने की हिम्मत नहीं हो रही थी। फिर सोचा आज तो हरी हाथ मार ही ले… इस पार या उस पार.. जो होगा सो देखा जाएगा।
फिर मैंने धीरे से उसका हाथ पेट से हटा कर उसके पेट पर अपना हाथ रख दिया और चुपचाप पड़ा रहा और देखा दस मिनट तक कोई हलचल नहीं हुई तो मैं धीरे-धीरे हाथ घुमाने लगा और अब मैं अपने आप को इस दुनिया का सब से नसीबदार पुरुष समझ रहा था क्योंकि जिसको सपने में मैंने सैकड़ों बार चोदा था, आज वो मेरे बगल में है।
मुझे बहुत ही मजा आ रहा था।
फिर हिम्मत करके उसके ब्लाउज के ऊपर हाथ रख दिया और बिना हिले उसका एक बटन खोल दिया।
अभी तक तो सब कुछ ठीक ही चल रहा था और मैं उसके ब्लाउज के ऊपर से ही उसकी चूचियों का मजा ले रहा था कि अचानक उसने मेरे हाथ पकड़ लिया।
उसने कहा- बोल दूँ तुम्हारी मम्मी को.. कि तुम मेरे साथ क्या कर रहे हो..!
मैं पलटा और उसके मुँह पर हाथ रखा और एक ही सांस में कह दिया कि आप मुझे बहुत पसंद हो मैं बचपन से आप के ही सपने देखता आया हूँ और मेरा एक सपना है कि मैं अपने लौड़े की चमड़ी आप से ही उतरवाऊँ.. आप को फिर भी जो कहना है तो कह दो.. मैं भी कहूँगा कि ये सब झूठ है.. बुआ मुझे फंसा रही है। उल्टा आप पर इल्जाम डाल दूँगा कि आप मुझे चुदाई के लिए मजबूर कर रही थीं और जब मैं नहीं माना तो आपने मुझे फंसा दिया है।
फिर हम दोनों के बीच पाँच मिनट तक शान्ति रही और वो उठ कर बाथरूम के लिए गई, आने के बाद कुछ नहीं बोली और चुपचाप लेट गई।
मैं समझ गया कि यही सही मौका है.. मार ले बाजी..
मैं धीरे से उनके बिस्तर पर सरक गया और उनके कम्बल में घुस कर उनको जहाँ मन किया, उधर पागलों की तरह चूमने लगा।
वो चुपचाप लेटी रही। फिर मुझे अजीब लगा तो मैंने उन्हें छोड़ दिया।
करीबन आधे घंटे बाद बुआ मेरे बिस्तर पर आ गई और मेरे कपाल को चूमने लगी। तो मैंने भी उसको बांहों में ले लिया और उसके होंठों को अपने मुँह में लेकर करीबन दस मिनट तक चूमता रहा।
मैं बहुत खुश था क्योंकि मेरे सपनों की रानी मुझसे ख़ुशी-ख़ुशी चुदवा रही थी।
फिर मैंने धीरे से उसका घाघरा ऊपर किया और उसकी गोरी-गोरी टाँगों को बेतहाशा चूमता रहा।
वो भी आँखें बंद करके इस सब का मजा ले रही थी।
करीबन बीस मिनट तक यही चलता रहा और मैंने फिर कम्बल के अन्दर ही उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और उसकी कच्छी नीचे करके उसको नंगी कर दिया और उसकी चूत को चूमने लगा और अपनी जुबान को अन्दर-बाहर करने लगा, करीबन दस मिनट तक जुबान से ही चोदता रहा।
इसी बीच वो एक बार झड़ गई और अपने पांव से मेरे सर को कस कर दबा दिया।
मैंने भी उसका एक-एक बूँद अपने हलक में उतार लिया और उसके दाने को काटने लगा फिर मैंने अपने कपड़े उतार दिए और उसने मेरा लौड़ा अपने मुँह में लेकर करीबन दस मिनट तक चूसा।
मैं इस बीच देख रहा था कि कोई हमें देख तो नहीं रहा है क्योंकि एक तो मेरी मंगनी पूर्णिमा के दिन हुई थी सो छत पर उजाला था और सब कुछ साफ़-साफ़ दिख रहा था। पर सब लोग थक कर मजे से सो रहे थे।
फिर बुआ ने कहा- हरी, अब रहा नहीं जाता आज तो तू अपनी इस सपनों की रानी को अपनी रांड बना ले और मुझे दबा कर चोद दे। यह सुनते ही मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं उनके दोनों पावों के बीच में आ गया।
अपना लौड़ा चूत पर लगाया तो बुआ ने पकड़ कर उसको अपने सही रास्ते पर लगाया और कहा- आज तो ठोक दे किल्ली इस बागड़ बिल्ली की चूत में..!
मैंने अपनी पोजीशन ली और जोर से एक झटका लगाया और पूरा का पूरा लौड़ा उसमें घुसा दिया।
बहुत मजा आ रहा था, जैसे मैं सातवें आसमान पर था।
मैं बुआ को बड़े ही ताव से धकाधक चोद रहा था और वो भी अपने नाखूँनों को मेरी पीठ पर गड़ा रही थी।
यह सब मैं बहुत ही इत्मीनान से करते हुए आजू-बाजू में भी देखता रहता था कि कोई जग न जाए।
बुआ ने 5-7 मिनट के बाद कहा- चल दूसरी छत पर चलते हैं। यहाँ डर है।
बस मुझे तो इसका ही इन्तजार था।
हमने चुदाई बीच में छोड़ कर अपने कपड़े थोड़े ठीक किए, मैंने अपना बिस्तर उठाया और अपना खड़ा लंड लेकर उनके पीछे-पीछे चल पड़ा।
उनकी चाल पूर्णिमा की चाँदनी में इतनी मोहक लग रही थी कि दोस्तों क्या बताऊँ… कभी उनके बाल की चुटिया इधर-उधर होती थी जो मुझे और भी गर्म कर रही थी।
वहाँ जाकर मैंने बिस्तर लगाया और बुआ को अपनी बांहों में लेकर खड़े-खड़े ही होंठों को चूमने लगा।
मैं बालों में हाथ घुमाने लगा और उनकी चोटी को खोल दिया, अब बुआ खुले बालों में रात की चांदनी में अप्सरा जैसी लग रही थी।
क्या बताऊँ दोस्तों वो मेरी जिन्दगी का सबसे बड़ा सुखद एहसास था।
मैं इत्मीनान से उनको चूमता रहा और मेरा हाथ कब उनकी चूचियों को दबाने लगा मुझे पता ही नहीं चला। अब हम दोनों बहुत गर्म हो चुके थे और आनन्द ले रहे थे।
फिर मैंने उनका ब्लाउज खोल दिया और उनके निप्प्ल जो कि सख्त हो चुके थे, उनको बड़े ही इत्मीनान से चूस रहा था। वो भी इस चुसाई का आनन्द ले रही थी।
बाद में मैं अपना मुँह उनके स्तन से हटा कर पेट पर ले गया और उनकी नाभि में अपनी जुबान डाल कर चाटने लगा।
बहुत मजा आ रहा था।
खुले आसमान के नीचे आज मैं अपनी स्वप्न सुन्दरी के साथ जो चाहता था वो सब कर रहा था और वो भी उसकी मर्जी के साथ हो रहा था।
बाद में मैंने मुँह से ही उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और मुँह से ही उसकी कच्छी उतार दी और उसको पूरा नंगा कर दिया। अब मेरे सामने काले-काले झाँटों में छिपी हुई बुआ की काले दाने वाली चूत थी, जिसको पहले तो मैं दाने को अपनी जुबान से सहलाने लगा और फिर चूत की दोनों दीवारों के बीच में अपनी जीभ अन्दर-बाहर करने लगा।
वो भी मेरा सर दबाकर अन्दर-बाहर कर रही थी और कह रही थी, “वाह मेरी जान.. तूने तो मुझे जन्नत की सैर करा दी… तेरे फूफा जी तो ऐसा कुछ भी नहीं करते.. अब तो मैं तेरी रंडी बन चुकी हूँ ..मुझे पूरी जिन्दगी ऐसे ही चोदते रहना और आनन्द देते रहना.. मेरी जान..!
मुझे बुआ की बात सुन कर और जोश आ गया।
फिर बुआ ने कहा- अब नहीं रहा जाता.. अब तू अपना मूसल मेरी इस चूत में डाल कर अपनी बुआ को निहाल कर दे..!
फिर मैंने अपना लौड़ा बाहर निकाला पर बुआ ने कहा- जब मैं पूरी नंगी हो चुकी हूँ तो तू भी पूरा नंगा हो जा.. तुझे क्या शर्म है..!
मैंने भी अपने पूरे कपड़े उतार कर एक साइड में रख दिए और बुआ मेरा लौड़ा अपने मुँह में लेकर अन्दर बाहर करने लगी। उसकी आँखों में एक अजीब सा एहसास दिख रहा था।
फिर बुआ ने कहा- ले अब ये मूसल तैयार है… पेल दे मेरी जान और न तड़पा ..!
जैसे ही मैंने लौड़ा बुआ की चूत में डाला कि बुआ जी के मुँह से चीख निकल गई और वो मेरी पीठ पर नाख़ून गड़ाने लगी और उनकी मादक आवाज आने लगी- आःह्ह और डाल आआह्ह्ह्ह और आअज.. इस को तू बहुत ही बुरी तरह से फाड़ ताकि ये तेरे सिवा किसी और का लौड़ा लेने की हिम्मत न करे..!
हम दोनों करीबन आधे घंटे तक एक-दूसरे को लगातार धक्के मारते रहे, इस बीच बुआ 3 बार झड़ गई थी।
अब मैं भी पसीना-पसीना हो चुका था और झड़ने वाला था। इसलिए मैंने अपने स्ट्रोक तेज कर दिए और बड़े ही स्पीड से बुआ को जम कर चोदता रहा और कुछ ही धक्कों में मेरा सारा लावा बुआ की चूत में गिर गया।
बुआ ने भी मुझे अपनी पूरी ताकत लगा कर दबोच लिया। हम करीबन दस मिनट तक ऐसे ही रहे। फिर कपड़े पहन कर अपनी जगह पर आ गए। सुबह के 3.30 हो गए थे।
अगले दिन बुआ ने मेरी माँ से कहा- इसको छुट्टियों में मेरे घर भेजना ताकि इसको खिला-पिला कर भेजूंगी अगले साल इसकी शादी भी है तो इसको थोड़ा मजबूत कर दें।
ये बातें मेरी मम्मी और बुआ के बीच में हो रही थी और मैं चुपके से सुन रहा था। बाद में बुआ ने मुझे आँख मारी और सब अपने अपने घर रवाना हो गए।
अब यह मैं फिर कभी बताऊँगा कि कैसे मैंने बुआ के गाँव में खेत में खलबली मचाई थी।
लेकिन इस कहानी पर राय देना मत भूलना।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments