रिश्तों में चुदाई: मेरे लण्ड को बददुआ
(Rishton Mein Chudai: Mere Lund ko Baddua)
हैलो दोस्तो.. मैं आपका दोस्त वरिन्दर सिंह, लुधियाना से एक बार फिर आपके लिए एक और कहानी रिश्तों में चुदाई की लेकर आया हूँ।
यह कहानी बिल्कुल सच है.. सिर्फ पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं और थोड़ा बहुत मसाला डाला है.. पर कहानी एकदम सच है।
किसी ने मुझे बताई और मैं आपको अपने अंदाज़ में बता रहा हूँ.. तो मजा लीजिए।
मेरा नाम इम्तियाज़ है.. मलेरकोटला, पंजाब में रहता हूँ…
पठान का बेटा हूँ इसलिए खुदा ने शक्ल-ओ-सूरत तो अच्छी दी है.. साथ में शानदार तराशा हुआ बदन भी दिया है।
बचपन से ही मैं बहुत आकर्षक रहा हूँ।
तब मैं यह बात नहीं समझ पाता था, लेकिन बाद में पता चला कि घर में रिश्तेदारी में बड़ी उमर की लड़कियाँ और औरतें मुझसे छेड़खानी करती थीं.. शरारतें करती थीं और उन सबका मतलब क्या होता था।
जब जवानी में पाँव रखा.. तो महसूस हुआ कि मेरे आस-पास की हर औरत मुझमें दिलचस्पी रखती है।
इसी बात ने मुझे मगरूर बना दिया।
मैंने देखा था कि मेरी चाचीजान.. मामीजान.. खाला-मौसी.. उनकी लड़कियाँ तक सब मुझसे ऐसे पेश आतीं कि जैसे मैं उनका बॉय-फ्रेंड हूँ।
बल्कि 2-3 ने तो मुझे अपने साथ एक रात बिताने की ऑफर तक दे डाली..
पर मैंने कभी अपनी जवानी को उस वक्त इन औरतों पर लुटाया नहीं, रिश्तों में चुदाई नहीं की…
मुझे चुदाई से ज़्यादा औरतों से गंदी बातें करने में मज़ा आता है इसलिए मैं कामुक बातें करके उन्हें तड़पाता रहता हूँ।
आप इस बात से अंदाज़ा लगाइए कि मैंने अपनी मामीजान को अपने हाथों से नहलाया है..
वो मेरे सामने नंगी खड़ी थीं।
मैंने उसके बदन पर साबुन लगाया और उसके बदन पर हाथ फेरते-फेरते जब मेरा लंड खड़ा हो गया।
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तो उसने पकड़ लिया और बोली- इम्तियाज़.. आज मत तड़पा.. आज तो मेरी बात मान ले और मेरी तसल्ली करवा दे.. बस मैं एक बच्चा तेरे ‘इससे’ चाहती हूँ।
मैंने मना कर दिया तो वो गुस्सा हो गई और बोली- ये जो इतना इतरा रहा है ना.. इतना इतराना अच्छा नहीं.. खुदा सब देखता है और सबकी सुनता है.. तुम एक हवस में जलती औरत को प्यासा छोड़ कर जा रहे हो.. देखना एक दिन कुत्ते की तरह दम हिलाते मेरे पीछे आओगे.. तब तुमसे पूछूँगी।
उसकी बात को मैंने हवा में उड़ा दिया पर बाद में मुझे उसकी बददुआ को झेलना भी पड़ा।
मैंने उससे कुछ नहीं कहा.. बस मैं वहाँ से निकल आया।
ऐसी बात नहीं थी कि मुझमें कुछ कमी थी.. पर मैं चाहता था कि कोई ऐसी हसीना हो.. जिसे मैं अपनी मेहनत करके सैट करूँ और उससे चुदाई करूँ… न कि ये हवस की भूखी औरतें.. जो सिर्फ़ अपने मियाँ को धोखा दे कर मुझसे अपनी प्यास बुझाना चाहती हैं।
मैं कुछ अपनी मेहनत से करना चाहता था.. वैसे मेरी एक गर्ल-फ्रेंड भी थी, पर वो भी ‘टाइम-पास’ थी.. बस कभी-कभार अपनी गर्मी निकालने के लिए थी।
एक बार इसी तरह मेरी चाची ने मेरे सामने ही कपड़े बदल डाले.. अपनी सलवार-कमीज़ और ब्रा उतार कर पूरी तरह नंगी होकर बोली- क्या देखता है.. चाहिए कुछ? अगर चाहिए तो लेले सब तेरा ही है।
पर मैं बस शर्मा कर रह गया और करीब 5-6 मिनट मेरे सामने पूरी नंगी रहने के बाद उसने नाईटी पहनी।
सिर्फ़ यही नहीं अपने रिश्तेदारी की बहुत सी औरतों ने तो अपने बच्चों को दूध पिलाने के बहाने जानबूझ कर मुझे अपने मम्मे निकाल कर दिखाए।
उनकी हँसी और आँखों की शरारत बता देती थी कि उनके दिल में क्या है?
जब मेरे सबसे छोटे चाचा की शादी हुई तो उनकी शादी में चाचा की साली देखी।
बेहद हसीन.. जन्नत की हूर थी वो…
पहली बार मेरा दिल धड़का.. मैंने सोच लिया कि शादी करूँगा तो इसी से करूँगा।
अब तो मैं अपने अब्बा का काम-धाम भी संभालने लगा था। मेरा कॉलेज खत्म हो चुका था.. मेरी खुशी की हद ना रही.. जब पता चला कि अम्मी ने उसे मेरे लिए पसंद कर लिया और उसके वालिदान से बात भी कर ली।
जब मेरी शादी हुई तो बहुतों के दिल टूटे, पर मैं खुश था कि चलो मेरी पसंद की लड़की से मेरी शादी हो रही है।
शादी से पहले सम्भोग तो मैंने किया था, पर अपनी एक जुगाड़ की उसी ‘टाइम-पास’ लड़की के साथ 2-4 बार किया था।
मेरी शादी हुई.. सब ठीक-ठाक हो गया।
अब सुहागरात आई…
मैं अपनी पूरी तैयारी से कमरे के अन्दर गया।
वो बिस्तर पर बैठी मेरा इंतज़ार कर रही थी।
जब मैंने पास जा कर उसका घूँघट उठाया तो उसका हुस्न देख कर मैं तो आपा ही खो बैठा और मैंने झट से उसको चूम लिया, पर वो एकदम से छिटक कर मुझसे दूर हो गई।
मैंने कहा- क्या हुआ..?
वो बोली- देखिए आप मेरे शौहर हैं.. पर ये शादी मेरी मर्ज़ी के खिलाफ हुई है… मैं किसी और को चाहती हूँ।
‘किसे चाहती हो?’ मैंने पूछा।
‘अपने मौसा के भाई को और अपनी मोहब्बत में मैं अपना सब कुछ उन्हें दे चुकी हूँ.. आपको देने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है.. अगर आप मुझे तलाक़ दे दें तो मैं अपनी ज़िंदगी उन्हीं के साथ बिताना चाहती हूँ।
मेरे ऊपर तो जैसे बिजली गिर गई… जो मुझे चाहती थी उनको मैंने ठुकरा दिया और जिसे मैं चाहता था.. उसने मुझे ही ठुकरा दिया।
खैर.. मैं कमरे से बाहर आया और अपनी अम्मी-अब्बा को सब वाकिया बताया।
अगले ही दिन काज़ी-साहब को बुला कर विस्तार में तलाक़ की कार्यवाही पता की गई और अगले ही दिन मैंने उसे तलाक़ दे कर रुखसत कर दिया।
मेरे तलाक़ की खबर ने ना जाने कितने मुरझाए हुए चेहरों पर खुशी ला दी.. चाहे ऊपर से वो बड़े अफ़सोस का मुजाहिरा कर रहे थे।
मैंने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया.. मैं औरों के सामने आने से शरमाता था। सबसे पहले शाम को मेरे पास चचीजान आई।
मैं बिस्तर पे बैठा था… वो मेरे सामने आ कर खड़ी हो गईं.. कुछ अफ़सोस.. कुछ प्यार भरी बातें की और रोने लगीं।
पता नहीं उनका रोना सच्चा था या झूठा.. पर रोते-रोते मेरा चेहरा पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया।
मैं भी दु:खी था सो मैंने भी उनकी कमर में अपनी बाहें डाल दीं।
मेरे चेहरे को उनके दो मोटे-मोटे मम्मों ने घेर रखा था।
मुझे महसूस हुआ कि उन्होंने नीचे से ब्रा या समीज कुछ भी नहीं पहना था।
उनके मम्मों की मुलायमियत ने मुझे बहका दिया और मैंने उनके बायें मम्मे को मुँह मे लेकर काट दिया।
पर चाची ने सिर्फ़ ‘सीईईईईं की आवाज़ की और प्यार से बोली- इतनी ज़ोर से नहीं काटते.. प्यार से करते हैं…
पता नहीं क्यों.. मैंने चाची को दोनों मम्मों को अपने हाथों मे पकड़ लिए और दबा दिए।
चाची ने अपने दोनों हाथ मेरे हाथों पर रख दिए और खुद मुझसे अपने मम्मों दबवाने लगीं।
मैं सोच रहा था कि ये क्या हो रहा है, मैं क्या कर रहा हूँ और चाची क्या कर रही हैं..
पर जब चाची ने मेरा चेहरा अपने हाथों में पकड़ कर ऊपर उठाया और मेरे होंठों को अपने होंठों में भर लिया।
मैं चुपचाप ये सब होने दे रहा था।
चाची ने एक पाँव उठा कर बिस्तर पर रखा और मेरा एक हाथ पकड़ कर सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत पर रख कर रगड़ने लगीं।
दो-चार बार रगड़ने के बाद चाची ने अपना हाथ हटा लिया.. पर मैं वैसे ही उसकी चूत रगड़ता रहा।
थोड़ी सी देर बाद ही मुझे एहसास हुआ की चाची की सलवार गीली-गीली सी लगने लगी थी।
फिर चाची मेरे पास ही बैठ गई और उसने आगे बढ़ कर सलवार में मेरे तने हुए लंड को पकड़ लिया।
मैं देखता रहा तो उन्होंने मुझे चुप देख कर मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया और अंडरवियर से मेरा लंड बाहर निकल लिया और मुँह में ले लिया।
वो चूसती रही और मैं बुद्धू की तरह बैठा सोचता रहा कि ये सब हो क्या रहा है..
ये मेरे दु:ख में शरीक़ होने आई है या अपने मज़े लेने..
पता तब चला जब मैं झड़ गया।
यह थी मेरी रिश्तों में चुदाई की शुरुआत !
चाची अपनी जीभ से मेरा सारा माल चाट गई और हँसते हुए आँख मार कर बोली- अब तो तुझे ऐसी ज़रूरत पड़ती ही रहेगी.. खुद को अकेला मत समझना।
अपनी सलवार का नाड़ा मेरे हाथ में पकड़ा कर बोली- ये तेरी मर्ज़ी पर है.. जब जी करे खोल कर मेरी ले लेना.. अगर मैं पास नहीं भी हुई तो आवाज़ दे देना.. मैं हाज़िर हो जाऊँगी।
ना जाने क्यों मुझे चाची बहुत अच्छी लगने लगी।
उसके बाद तो मैं अक्सर चाची को चोदने लगा। मुझे अब हर वक़्त उसकी चाहत रहने लगी।
कुछ ही दिनों में चाची मेरी सबसे चहेती और प्यारी चाची बन गई थी।
तभी एक और बम्ब फूटा।
एक दिन मामीजान आई हुई थीं और एक शाम उन्होंने मुझे और चाची को घर की छत पर रंगे हाथों पकड़ लिया और हमारे रिश्ते को सबके सामने बताने की धमकी दी।
चाचीजान ने हिम्मत दिखाई.. पर मैं डर गया क्योंकि चाचा को छोड़ कर चाची मुझसे निक़ाह करने को तैयार थीं..
पर मैं अधेड़ आइटम लेने के मूड में नहीं था.. खास कर उसको जिसको मैं पहले ही चोद चुका था।
सो मैं गिड़गिड़ाया, ‘मामी ग़लती हो गई.. पता नहीं कब और कैसे ये सब हो गया।’
पर मामी ने कहा- देख.. या तो मेरी भी प्यास बुझा.. या फिर सबके सामने बे-इज़्ज़त हो…
मैंने चाची की तरफ देखा…
उसने मामी की तरफ देखा।
मामीजान बोली- यार अगर मज़े लेने हैं तो मिल-बाँट के लो.. तू अकेली क्यों मज़े ले.. हम भी लेंगे.. हमारे में क्या चूत नहीं लगी है?
उनकी पेशकश बड़ी साफ़ थी..
सो मैं इसके लिए मान गया कि एक बार मामी के साथ चुदाई करने में क्या जाता है।
मामी ने चाची को हुकुम सुनाया- जमीला.. तू जा ज़ीने के पास खड़ी हो.. ताकि अगर कोई ऊपर आ रहा हो तो उसे ऊपर मत आने देना और हमें होशियार कर देना।
चाची भी एक बाँदी की तरह उसका हुकुम बजाने चली गई।
मामी की तो जैसे लॉटरी लग गई थी।
उसने बिना कोई देर किए.. चाची की चूत के पानी से लबरेज़ मेरे लंड को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया।
करीब 2-3 मिनट चूसने के बाद वहीं अपनी साड़ी उठाई और मेरे लंड के ऊपर चढ़ कर बैठ गई।
मैं बस नीचे लेटा रहा और 5 मिनट बाद अपना पानी छुड़वा कर बोली- आए जमीला.. चल तू आजा अब…
जब चाची पास आई तो मामी बोली- तूने ध्यान किया जमीला.. साले का औज़ार कितना सख़्त और खुरदुरा है.. बाखुदा..अन्दर तक खुज़लाहट मिटा देता है…
चाची ने भी हँस कर मामी को गले लगाया और सलवार उतार कर मेरे ऊपर आ चढ़ बैठी और मामी से बोली- चल अब तू पहरेदारी कर।
मामी पहरेदारी पर खड़ी हो गई और चाची ने मुझे अपने ऊपर ले लिया।
मैं चाची को चोदने लगा।
अब मेरे पास दो औरतें थीं.. लेकिन मेरा मामी और चाची के साथ नज़ायज़ रिश्ता ज़्यादा देर बाकी औरतों से छुपा नहीं रह सका।
औरतों की तो आदत होती है कि उनके पेट में बात नहीं पचती।
सो धीरे-धीरे एक-एक करके औरों को भी पता चलता गया और उसके बाद तो फूफी.. फूफी की लड़की, मामी की बहन, ताऊजी की बेटी.. पड़ोस वाले गफूर भाई की बीवी.. यानि कि कुल मिला कर 18 औरतें अपने रिश्तेदारी में ही मुझे इस्तेमाल कर चुकी हैं।
कुछ वक़्त बाद चाची ने अपनी 18 साल की बेटी.. निक़हत से मेरी शादी करवा दी।
मुझे एक खूबसूरत सी प्यारी सी बीवी मिल गई।
कुछ वक़्त बाद निक़हत को भी पता चल गया कि मेरे किन-किन औरतों से नाजायज़ रिश्ते हैं।
जिनमें उसकी अपनी सग़ी माँ और खाला भी शामिल हैं, पर अब वो भी क्या कर सकती थी क्योंकि उसकी माँ और खाला ने तो सरेआम खुद निक़हत के आगे क़बूल कर लिया था और मैं भी क्या कर सकता था।
जब तक मैंने अपने आपको संभाले रखा… मैं बचा रहा, पर एक बार जो पैर फिसला तो मैं नीचे गिरता ही गया।
अब तो हाल यह है कि अपनी रिश्तेदारी में जहाँ भी जाता हूँ.. कोई ना कोई ऐसी आइटम मिल ही जाती है जिसे मैंने पहले कभी ठुकराया होता है। रिश्तों में चुदाई की कोई इन्तेहा ही नहीं रही !
कभी-कभी सोचता हूँ कि अगर मेरी पहली बीवी ठीक होती तो शायद मैं इतनी औरतों को नहीं चोद पाता.. या पता नहीं उसकी बददुआ के कारण ऐसा हुआ था।
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