पति की संतुष्टि में बाधा नहीं बनी
(Pati Ki Santushhti me Badha Nahi Bani)
लेखिका – ज्योति नटराजन
सम्पादिका एवम् प्रेषिका – तृष्णा लूथरा
अन्तर्वासना के आदरणीय पाठक पाठिकाओं को मेरा अभिनन्दन।
लगभग छह माह पहले मेरी एक कॉलेज की कक्षा सखी की शादी के पर्व पर मैं उसके घर गई थी और वहाँ मुझे कॉलेज की एक अन्य कक्षा सखी ज्योति नटराजन से भी पुनर्मिलन हुआ।
तीन दिन और तीन रातों के लिये मुझे उस शादी के घर में ज्योति के साथ रहने का अवसर भी मिला जिसमें हम दोनों ने बीते दिनों की यादों के बारे में बहुत बातें करी।
हम दोनों रात में देर तक जाग कर जो बातें करती थी उनमें ज्योति ने अपने जीवन के बहुत से राज़ मेरे साथ साझा करे थे।
ज्योति द्वारा बताये गए उन्हीं राज़ों में से उसका एक राज़ है जो मैं उसकी अनुमति मिलने पर ही आज आपके साथ साझा कर रही हूँ।
मैं ज्योति के मुख से निकले निम्नलिखित शब्दों को ही आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ!
मेरा नाम ज्योति है, मैं दक्षिण भारत के एक शहर में अपने पति तथा अन्य सम्बन्धियों के साथ ससुराल में रहती हूँ।
मेरा ससुराल एक बड़े से भवन में है जिसमें भूतल के घर में मेरे सास ससुर रहते हैं और वहीं पर मेहमानों के ठहरने की व्यवस्था भी है।
ऊपर के पहले तल को दो हिस्सों में पाट दिया गया है जिसके एक हिस्से में मेरे पति के चाचा चाची रहते हैं तथा दूसरे हिस्से में मेरे पति और मैं रहते हैं।
मेरे ससुर जी की आयु लगभग पचास वर्ष की होगी और मेरी सासु माँ उनसे चार-पांच वर्ष छोटी होंगी तथा उनकी शादी बत्तीस वर्ष पहले हुई थी।
मेरे पति के चाचा ‘शेखरन जी’ की आयु सैंतालीस वर्ष है और चाची ‘वैजयंती जी’ चाचा से दस वर्ष छोटी है, उन दोनों की शादी पन्द्रह वर्ष पहले ही हुई थी।
शादी के बाद ही परिवार को मालूम पड़ा था कि चाचा एवं चाची में संतान प्रजन्न दोष है जिसके कारण दोनों की कोई भी संतान नहीं हुई थी।
इसके अतिरिक्त मेरे ससुराल के परिवार में मेरी एक ननद कविता भी है जिसकी आयु सताईस वर्ष है तथा उसकी शादी चार वर्ष पहले हुई थी और तब से ही वह अपने पति ‘श्रीनिवास’ के साथ दुबई में रहती है।
कविता हर वर्ष एक माह के लिए अपने पति के साथ भारत आती है और तब वह लगभग पन्द्रह दिनों के लिए भूतल में मेरे सास-ससुर के साथ ही रहती है।
तीन वर्ष पहले जब मैं इक्कीस वर्ष की थी तब मेरी शादी मेरे तेईस वर्षीय पति ‘अरविन्दम’ के साथ हुई थी और तब से मैं अपने ससुराल के प्रथम तल वाले भाग में उनके साथ बहुत ही आनन्द पूर्वक जीवन व्यतीत कर रही हूँ।
शादी के बाद दो वर्ष से अधिक समय तक तो हम अपनी हर रात सुहागरात की तरह बिताते थे और फिर उसके बाद मुझे गर्भ ठहर गया।
गर्भ अवस्था के पहले छह माह तक भी हम दोनों की रात की गतिविधि में अधिक बदलाव नहीं आया था लेकिन आखरी के तीन माह में डॉक्टर के निर्देश पर उस गतिविधि में पूर्ण रुकावट आ गई थी।
क्योंकि पिछले दो वर्ष से अरविन्दम को रात की गतिविधि की एक आदत सी पड़ चुकी थी इसलिए वह इस रुकावट के कारण बहुत परेशान और खिन्न रहने लगा था।
अरविन्दम की परेशानी एवं खिन्नता को देख कर मैं भी चिंतित रहने लगी थी जिसके भाव मेरे चेहरे पर भी झलकने लगे थे।
घर में सब से छोटी होने के नाते चाची मुझे अपनी नन्हीं बहन ही मानती है और उन्होंने मुझे कसम डाल रखी है कि मैं उन्हें कभी भी चाची नहीं कहूँगी इसलिए मैं उन्हें दीदी ही कहती हूँ।
जब से मैं गर्भवती हुई हूँ तब से वह मेरा बहुत देखभाल रखती है तथा मुझे घर का कोई काम भी नहीं करने देती है। क्योंकि हम दोनों में बहनों जैसा मेलजोल भी हो गया है इसलिए हम आपस में बहुत सी निजी बाते भी साझा कर लेती है।
पिछले कई दिनों से मेरे चहरे पर आये चिंता के भाव चाची ने भांप लिये थे इसलिए एक दोपहर वह मेरे पास आईं और पूछने लगी– ज्योति, क्या तुम किसी बात से परेशान हो?
मैंने कहा- नहीं दीदी, ऐसी परेशानी की तो कोई बात नहीं है।
तब वह बोली- मैं पिछले एक सप्ताह से देख रही हूँ की अरविन्दम और तुम बहत खिन्न रहते हो। क्या तुम दोनों को कोई चिंता सता रही है या फिर आपस में कोई अनबन या झगड़ा हुआ है?
मैंने उत्तर दिया- नहीं, हम दोनों में कोई अनबन या झगड़ा नहीं है। मेरी चिंता का कारण अरविन्दम की परेशानी है।
मेरी बात सुन कर चाची ने कहा- देखो ज्योति, गर्भ की इस अवस्था में तुम्हारी चिंता और परेशानी का असर तुम्हारे होने वाले बच्चे पर भी हो सकता है। इसलिए तुम्हें और अरविन्दम को दोनों के बीच की समस्या को तुरन्त हल कर लेना चाहिए।
उनकी बात सुन कर मुझसे रहा नहीं गया और मैं बोली- मैं अरविन्दम की परेशानी को हल नहीं कर पा रही हूँ और हम दोनों को उस परेशानी को दूर करने का कोई उपाय भी समझ में नहीं आ रहा है।
चाची ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा- देखो ज्योति, अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास है तो अपनी और अरविन्दम की समस्या मुझे बता सकती हो। शायद मैं उससे निपटने के लिए तुम्हें कोई सलाह दे सकती हूँ और उसे कार्यान्वित करने के लिए तुम्हारी सहायता भी कर सकूँ!
क्योंकि चाची से सहानुभूति मिलने पर मैंने उनसे समस्या को साझा करने का निर्णय लिया और आधार बनाने के लिए मैंने उन्हें कहा– दीदी, मुझे आप पर पूरा विश्वास है लेकिन बात कुछ ऐसी है कि मुझे बताने में संकोच हो रहा है।
चाची उठ कर मेरे पास आ कर बैठ गईं और मेरे कन्धों पर अपने हाथ रख कर बोली- ज्योति, अगर तुम समस्या का हल चाहती हो और अपने पति की परेशानी तथा अपनी चिंता को दूर करना चाहती हो तो तुम्हें निसंकोच मुझे पूरी बात बतानी पड़ेगी। वैसे भी हम दोनों ने कई बार अपनी बहुत सी बातों को आपस में साझा किया है तो इसे भी कर सकती हो।
उनकी बात सुन कर मुझ में कुछ हिम्मत बढ़ी और मैंने कहा- दीदी, बात यह है कि डॉक्टर ने हमारी होने वाली संतान की जांच करने के बाद उसकी सुरक्षा के लिए हम दोनों को प्रसव हो जाने तक यौन सम्बन्ध नहीं करने का निर्देश दिया है।
मैंने आगे कहा- पिछले दो-ढाई वषों से रात के समय की जिस यौन क्रिया की हमें आदत पड़ गई थी उसके अकस्मात बंद हो जाने के कारण अरविन्दम बहुत क्षुब्ध हो गया है और वह उसी यौन क्रिया को ज़ारी रखने के लिए बार बार मुझ पर दबाव डाल रहा है। मैंने बच्चे की सुरक्षा को ध्यान में रख कर कुछ भी करने के लिए उन्हें मना कर दिया है। अब उन्हें आनन्द एवं सतुष्टि नहीं मिलने के कारण बहुत चिड़चिड़े हो गए हैं और हर बात पर झल्लाने लगते हैं। मैंने बहुत समझाने की कोशिश करी लेकिन मुझे अभी तक कोई सफलता नहीं मिली।
मेरी बात सुन कर चाची कुछ देर तो गंभीरता से सोचती रही और फिर मुझसे पूछा- ज्योति, क्या तुमने अरविन्दम को हाथ और मुख से आनन्द और संतुष्टि नहीं देती हो?
मैंने उत्तर दिया- देती हूँ दीदी, लेकिन उन्हें संतुष्टि नहीं होती है और वह कहते है कि सिर्फ योनि संसर्ग से ही उन्हें संतुष्टि मिलेगी।
चाची ने पूछा- क्या वह तुम्हारे स्तन और योनि को भी चूसता अथवा चाटता है?
मैंने कहा- हाँ दीदी, मैंने उन्हें वह सभी कुछ करने देती हूँ, लेकिन वह हमेशा छेदक संभोग के लिए ही दबाव बनाते है। अब आप ही बताएं कि इसका क्या समाधान है।
तब चाची ने कहा- अगर तुम कहती हो तो मैं अरविन्दम से बात करके उसे समझाने की कोशिश कर सकती हूँ।
मैं उनकी बात सुन कर बोली- दीदी, हमारी समस्या को ध्यान में रखते हुए अगर आप ठीक समझे तो आप खुद ही अरविन्दम से बात कर सकती हैं।
चाची ने कहा- ठीक है मैं आज शाम को ही अरविन्दम से बात करने की कोशिश करुँगी।
इसके बाद दीदी अपने घर चली गई और मैं दिन भर के लिए अपने निजी काम ने व्यस्त एवम् आराम करती रही।
शाम को जब अरविन्दम घर आये तब मैंने उन्हें चाय नाश्ता दिया और चाची को अरविन्दम के आने का समाचार देने गई तो देखा कि वह एक सूटकेस में सामान बाँध रही थी।
जब मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि चाचा जी का फ़ोन आया था, उन्हें रात की गाड़ी से तीन दिनों के लिए दूकान के काम से बाहर जाना था इसलिए वह उन्हीं के सफ़र में ज़रूरत का सामान बाँध रही हूँ।
जब मैंने उन्हें अरविन्दम के घर आने के बारे में बताया तब उन्होंने कहा कि वह रात को नौ बजे चाचा जी के जाने के बाद ही उससे बात करने के लिए हमारे घर आ पायेंगी।
रात नौ बजे जब चाचा जी चले गए और परिवार के सभी सदस्य खाना खाकर अपने अपने कमरे में चले गए तब चाची ने हमारे घर का द्वार धीरे से खटखटाया।
मैं जब द्वार खोल कर उन्हें अन्दर ले कर आई और उन्होंने अरविन्दम को वहां नहीं देखा तब पूछा- ज्योति, अरविन्दम कहाँ है?
मैंने कहा- वह अन्दर बैडरूम में बैठें हैं।
चाची ने पूछा- वह वहाँ क्या कर रहा है और तुमने उससे मेरे बारे में कोई बात करी थी?
मैंने उत्तर दिया- वह लैपटॉप पर कुछ काम कर रहे हैं। मैंने उनसे आप के बारे में कोई बात नहीं करी है।
तब चाची बोली- चलो अंदर बैडरूम में ही चलते हैं, वहीं बात करेंगे।
मैं उनको लेकर बैडरूम में गई और उन्हें अरविन्दम के पास बिठा कर बाहर जाने लगी तब चाची ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे वहीं उनके पास बैठने को कहा।
उनकी बात सुन कर मैंने कहा- दीदी, मेरा यहाँ क्या काम? आप अकेले में ही बात करो लो और इन्हें जो समझाना है वह समझा दो।
चाची ने तुरंत बोला- मैंने जो बात करनी है वह तुम दोनों के सामने ही करनी है। अगर तुम्हारी समस्या का कोई समाधान निकलना होगा तो वह तुम दोनों की सहमती से ही निकलेगा।
क्योंकि अरविन्दम चाची के दाईं ओर बैठा हुआ था इसलिए मैं उनके बाएं ओर जा कर बैठ गई ताकि उनको दोनों से बात करने में दिक्कत नहीं हो।
इस तरह बीच में बैठी चाची ने हम दोनों से हमारे दोनों के बीच में आई समस्या के बारे पूछा तो अरविन्दम संकोच के मारे ‘कुछ नहीं… कुछ नहीं…’ कहता रहा लेकिन मैंने जो बातें उन्हें दिन में बताई थी वह खुल कर दोहरा दी।
मेरे को इस तरह बात करते देख कर अरविन्दम विस्मय से मेरी ओर देखता रहा और अंत में चाची के फिर कुदेरने पर उसने मेरी कही हर बात से अपनी सहमति जताई।
इसके बाद चाची अरविन्दम और मुझे काफी देर तक होने वाले बच्चे के बारे में सोचने और उसकी सुरक्षा के बारे में समझते हुए हमें संयम रखने के लिए कहा।
जब अरविन्दम ने चाची की बातों को मानते हुए उन्हें आश्वासन दिया कि वह मुझे कभी तनाव या चिंतित एवं दुखी अवस्था में नहीं होने देगा तब चाची ने मुझे उन दोनों के लिए कॉफ़ी बना कर लाने के लिए कहा।
मैं कॉफ़ी ले कर जब वापिस बेडरूम के दरवाज़े के पास पहुँची तब वह दोनों आपस में कुछ बात कर रहे थे इसलिए मैं वही दरवाज़े की ओट में खड़ी हो कर उनकी बाते सुनने लगी।
चाची अरविन्दम से कह रही थी- अरविन्दम, मैं तुम्हारी बात और हालात दोनों बहुत अच्छी तरह समझती हूँ लेकिन फिर भी मैं तुम्हें यही सलाह दूंगी कि तुम ज्योति को परेशान नहीं करोगे।
चाची की बात सुन कर अरविन्दम बोला- चाची, मैं ज्योति को परेशान नहीं करूँगा लेकिन अगर हालात मेरे बर्दाश्त से बाहर हो जाएँ तो मैं क्या करूँ?
उत्तर में चाची ने कहा- अगर हालात तुम्हारे बर्दाश्त से बाहर हो जाते है तो मेरे पास आ जाना, मैं उपचार का साधन बता दूंगी।
उन दोनों की इस बात को मैंने एक सामान्य सी बात ही समझी इसलिए वहाँ बिना अधिक रुके कॉफ़ी को बैडरूम में लेजा कर उन दोनों को दे दी।
काफी पीने के बाद जब चाची अपने कमरे में जाने लगी के लिए उठी तब अरविन्दम भी उठ खड़ा हुआ और उनको बाहर तक छोड़ने के लिए उनके ही साथ चला गया।
चूंकि रात में काफी देरी हो चुकी थी इसलिए मैं अपने बिस्तर पर लेट कर अरविन्दम के आने की प्रतीक्षा कर रही थी तभी अधिक थकावट होने के कारण मेरी आँख लग गई।
लगभग आधे घंटे के बाद जब मैंने करवट बदली और मेरी नींद खुल गई तब देखा कि बैडरूम की लाइट जल रही थी तथा घर का दरवाज़ा भी खुला था।
मैंने पलट कर जब अरविन्दम के बिस्तर की ओर देखा तब उसे खाली पाया और उसके बिस्तर की चादर पर कोई भी सलवट नहीं होना इस बात का प्रमाण था वह उस पर अभी तक लेटा भी नहीं था।
मैंने उठ कर सारा घर देखा और जब उसे कही नहीं पाया तब अनायास ही मेरे पैर चाची के घर की ओर चल पड़े।
वहाँ पहुँच कर जब मैंने उनके घर के मुख्य द्वार को खटखटाने के लिए हाथ लगाया तो उसे खुला पाया तब मैंने कदम आगे बढ़ाए और बैठक में घुस गई।
बैठक में घना अँधेरा था इसलिए अपनी आँखों को उस अँधेरे से समायोजित करने के लिए कुछ देर के लिए वही खड़ी हो गई।
कुछ देर के बाद जब मुझे उस अँधेरे में सब कुछ ठीक से दिखाई देने लगा तब मैंने इधर उधर दृष्टि घुमाई तो मुझे चाची के कमरे के द्वार में से हलकी सी रौशनी बाहर झलकती दिखाई दी।
मैं तेज़ी से बैठक को पार करते हुए जैसे ही चाची के बैडरूम के द्वार के पास पहुंची तब मुझे उनकी सिसकारियों का स्वर सुनाई दिया और मेरे पैर वहीं रुक गए।
द्वार की ओट से ही मैंने आगे की ओर झुक कर जब बैडरूम के अन्दर झाँका और वहाँ का नज़ारा देखा तब एक बार तो स्तब्ध रह गई और मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई।
मैं पीछे की ओर हट कर सोफे पर बैठ गई और अपने पर नियंत्रण करने की चेष्टा करने लगी।
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लगभग दो-तीन मिनट के बाद जब मैंने अपने पर काबू पा लिया तब एक बार फिर मैं उस द्वार के ओट में जा कर खड़ी हो कर बैडरूम के अंदर के दृश्य को देखने लगी।
अन्दर बैड पर नग्न चाची नीचे लेटी हुई थी और नग्न अरविन्दम उनके ऊपर 69 की स्तिथि लेटा था तथा वह एक दूसरे के गुप्तांगों को चूस एवं चाट रहे थे।
जब जब चाची की उत्तेजना बढ़ जाती थी तब वह अपने कुहले उचकाने लगती थी तथा सिसकारियाँ लेने लगती और उसी समय अरविन्दम भी अपने लिंग को उनके मुहं में गले तक धकेल देता था।
अगले पांच मिनट तक जब मैं वह नज़ारा देख रही थी तभी चाची ने एक बहुत ही जोर की सिसकारी ली जिसकी ध्वनि पूरे घर में गूँज गई।
उस ध्वनी के साथ चाची की टांगें अकड़ गई तथा कूल्हे उपर को उठ गए और उनकी योनि में से रस की धारा बहने लगी जिसे अरविन्दम तेज़ी से पीने एवं चाटने लगा था।
जैसे ही वह सामान्य हुई तब उन्होंने अरविन्दम से संसर्ग शुरू करने के लिए कहा और अपनी टांगें चौड़ी कर उसे उनके बीच में आने का संकेत किया।
अरविन्दम हाथ में अपने तने हुए लिंग को पकड़ कर उनकी टांगों के बीच में बैठ गया और अपने लिंग को उनकी योनि के होंठों पर रगड़ने लगा तथा उससे उनके भगनासे को भी सहलाने लगा।
कुछ ही क्षणों में दोनों की उत्तेजना तीव्र हो गई तब चाची ने अरविन्दम के लिंग को पकड कर अपनी योनि के मुँह पर रख लिया तथा उसे धक्का दे कर अन्दर डालने के लिए कहा।
तब अरविन्दम ने ताव में आ कर जोर से एक धक्का दिया और अपना पूरा लिंग चाची की योनि में घुसा दिया।
जैसे ही अरविन्दम का लिंग योनि के अंदर समाया वैसे ही मुझे चाची की चीख सुनाई दी तो मैं चौंक गई।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इतने वर्षों से शेखरन जी के साथ सम्भोग करने के उपरान्त भी चाची को इतनी दर्द क्यों हुई जिसके कारण उनकी चीख निकल गई।
लेकिन मेरी इस उलझन का समाधान तभी हो गया जब अरविन्दम ने रुक कर चाची से पूछा- चाची, क्या हुआ? क्या अधिक दर्द हुआ है? कहो तो बाहर निकाल लूँ।
चाची तुरंत बोली- नहीं, अन्दर ही रहने दो। असल में शेखरन जी के लिंग की तुलना में तुम्हारा लिंग अधिक मोटा है, इसलिए पहली बार अन्दर जाते समय इसने मेरी योनि को पूरा फैला दिया था। उस फैलावट से मेरी योनि की त्वचा में हुए खिचाव के कारण हुई दर्द के कारण मेरे मुख से चीख निकल गई। अब मैं ठीक हूँ और तुम अपने लिंग को धीरे धीरे मेरी योनि के अन्दर बाहर करना शुरू कर दो।
उनकी बात सुन कर अरविन्दम ने आहिस्ता आहिस्ता हिलना शुरू किया और अपने सात इंच लम्बे तथा ढाई इंच मोटे लिंग को उनकी योनि के अन्दर बाहर करने लगा।
पांच मिनट के बाद चाची ने अरविन्दम को गति बढ़ने का संकेत किया और उसका साथ देते हुए उसके हर धक्के के साथ अपने कूल्हों को तेज़ी से उचकाने लगी।
अगले पांच मिनट तक इसी गति से संसर्ग करते हुए दोनों ही सिसकारियाँ भर रहर थे तभी चाची की टाँगे अकड़ गई और शरीर ऐंठ गया तथा उनके मुँह से एक लम्बी सिसकारी निकली।
इस लम्बी सिसकारी निकलने के कुछ ही क्षणों के बाद उनकी टाँगे एवं शरीर एकदम से ढीला पड़ गया क्योंकि उनकी योनि में से रस का स्खलन हो चुका था।
अगले पांच मिनट तक वह शांत हो कर अरविन्दम के तेज़ धक्कों का आनन्द लेती रही और फिर उत्तेजना के वश में आकर अपने कू्ल्हों को उचकाना शुरू कर दिया।
जैसे ही उनकी उत्तेजना शिखर पर पहुँची तब उनका शरीर एक बार फिर से अकड़ गया उर इस बार उन्होंने अरविन्दम को अपने बाहुपाश में ले लिया और अपनी उँगलियाँ उसकी पीठ में गाड़ दी।
इसके साथ ही चाची ने अरविन्दम के शरीर को अपनी टांगों के घेरे में ले लिया और उससे चिपक कर बहुत भी ऊँचे स्वर में सिसकारी लेते हुए अपने रस का स्खलन कर रही थी।
तभी मुझे अरविन्दम के मुख से भी निकलती हुई सिसकारियाँ सुनाई दी और देखा कि वह रुक रुक कर झटके मार रहा था और अपने वीर्य-रस का स्खलन चाची की योनि में ही कर रहा था।
उसके बाद दोनों ही हाँफते हुए निढाल हो कर एक दूसरे पर लेट कर अपनी सांसें बटोरने लगे।
लगभग दस मिनट विश्राम करने के बाद जब वह दोनों अलग हुए और साफ़ होने के लिए बाथरूम में जा रहे थे तब उनके चेहरे पर संतोष एवं संतुष्टि के चिह्न साफ़ झलक रहे थे।
लगभग दस मिनट के बाद भी जब वह दोनों बाथरूम से बाहर नहीं निकले तो मैं दबे पाऊं बाथरूम के द्वार की ओट में से अन्दर झांक कर उन्हें देखने लगी।
अन्दर का नज़ारा कुछ इस प्रकार था-
चाची और अरविन्दम एक दूसरे से चिपटे हुए थे और उन्होंने अपने होंठों को दूसरे के होंठों से मिला कर एक दूसरे का चुम्बन ले रहे थे।
अरविन्दम ने अपने दोनों हाथों में चाची के उरोजों को पकड़ रखा था और वह उन्हें सहला रहा था तथा उनकी चुचूकों को अपनी उंगली और अंगूठे के बीच में मसल रहा था।
चाची ने अपने एक हाथ से अरविन्दम का लिंग पकड़ा हुआ था और उसे हिला रही थी तथा दूसरे हाथ से उसके अंडकोष को सहला रही थी।
उन दोनों के बीच के संसर्ग का नज़ारा देखने के बाद अब इस दृश्य को देख कर मैं बहुत उत्तेजित हो उठी थी और मुझे अपनी योनि के अन्दर गीलापन महसूस होने लगा था।
मैं अपने पर नियंत्रण में रख कर उन दोनों की गतिविधि को देखने के लिए वहीं खड़ी रही तथा अपने एक हाथ की बड़ी ऊँगली से अपनी योनि के भगनासे को सहलाने लगी थी।
कुछ समय के बाद जब दोनों अलग हुए तब मैंने देखा की अरविन्दम का लिंग तना हुआ था चाची की योनि में से रस की बूँद टपक रही थी।
मेरे देखते ही देखते चाची ने पॉट की ओर मुँह किया तथा झुक कर घोड़ी बन गईं और अरविन्दम ने उनके पीछे पहुँच कर उनकी योनि में अपना लिंग डाल दिया।
उसके बाद अरविन्दम ने झुक कर चाची के दोनों स्तनों को पकड लिया और लिंग को योनि के अन्दर बाहर करने के लिए धक्के मारने लगा।
जब अरविन्दम का लिंग चाची की योनि बाहर आता तो बाथरूम के उजाले में उस पर लगे योनि-रस के कारण वह चांदी की तरह चमकने लगता।
चाची की योनि में से इतना रस बह रहा था की हर धक्के में कुछ बूंदें बाहर निकल कर अरविन्दम के अंडकोष को नहला देती थी।
उस रस के कारण जैसे ही अरविन्दम का अंडकोष चाची की योनि से टकराता तब फच की ध्वनि पैदा हो जाती।
जैसे ही अरविन्दम के धक्के तीव्र होते गए वैसे ही फच फच फचा फच की वह मधुर ध्वनी उस बाथरूम के वातावरण को और भी अधिक रोमांचित करने लगती।
उस नज़ारे एवं ध्वनी तथा मेरी ऊँगली द्वारा भगनासे को सहलाने के कारण मैं अत्यंत ही उत्तेजित हो उठी और मेरी योनि में खिंचावट हुई और उसमें से रस की धारा बह कर मेरी जाँघों को गीला करने लगी।
पिछले एक घंटे से मैं वहां खड़ी खड़ी उन दोनों के यौन संसर्ग को एक चल-चित्र की तरह देखते हुए थकान महसूस कर रही थी और योनि में से हो रहे रस स्राव के कारण मैं घर जाने की सोच रही थी।
तभी मुझे बाथरूम में हो रहे उन दोनों के तीव्र संसर्ग की मिलीजुली सिसकारियों में जब अचानक ही तेज़ होने का बोध हुआ और मैंने मुड़ कर उनकी ओर देखा।
वह दोनों ने एक ऊँचे स्वर में सिसकारी एवं चिंघाड़ ली और उसके साथ ही उन दोनों के संसर्ग का समापन हो गया और वह दोनों निढाल हो कर ज़मीन पर बैठ गए।
टाँगे चौड़ी कर के बैठी चाची की योनि में से दोनों के मिश्रित रस की नदी बह निकली थी और वह धीरे धीरे बाथरूम की नाली की ओर अग्रसर हो रही थी।
उनको इस हालत में देख कर मैंने अनुमान लगा लिया की अब वह दोनों एक दूसरे को साफ़ कर के कपडे पहन लेंगे और अरविन्दम अपने कमरे में लौट आएगा।
इसलिए मैं शीघ्रता से वहाँ से निकल कर अपने घर आ गई और अपनी योनि एवं जाँघों के अच्छे से धो तथा पोंछ कर अपने बिस्तर पर लेट कर अरविन्दम की वापसी की प्रतीक्षा करने लगी।
दो तीन मिनट के बाद जब अरविन्दम आ कर मेरे पास लेटा तो बहुत खुश लग रहा था और उसने लेटते ही मुझे अपनी बाहों में ले लिया और मेरे को चूमते चूमते सो गया।
कुछ देर पहले तो मुझे चाची और अरविन्दम दोनों पर बहुत ही क्रोध आ रहा था और अगले दिन मैं उन्हें खरी खोटी सुनाने का मन बना लिया था।
लेकिन अरविन्दम के चेहरे पर दिख रही ख़ुशी एवं संतुष्टि के भाव देख कर मेरा सारा रोष हवा हो गया और मैं उसके प्यार भरे आगोश में सोने की कोशिश करने लगी।
परन्तु निद्रा मुझसे कोसों दूर थी क्योंकि मेरी मानसिक चिंता का निवारण हो गया था और अब मैं अपने को बहुत गर्वान्वित महसूस कर रही थी।
मुझे अपने पर बहुत नाज़ हो रहा था की मैंने आज मैंने अपने पति की ख़ुशी एवम् संतुष्टि के लिए उन दोनों के यौन संसर्ग के बीच में बाधा नहीं डाली थी।
***
अन्तर्वासना के प्रबुद्ध पाठक पाठिकाओ, मुझे आशा है कि आप सबको ज्योति द्वारा अपने पति की ख़ुशी एवं संतुष्टि के लिए वैजयंती जी और अरविन्दम बीच में हो रहे यौन संसर्ग में बाधा नहीं डालने का निर्णय सही लगा होगा।
अगर इस विषय पर आपकी कोई राय, प्रतिक्रिया अथवा टिपण्णी हो तो कृपया मुझे [email protected] पर आपके संदेशों का स्वागत है।
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