मेरी काम वासना के रंगीन सपने -2
(Meri Kam Vasna Ke Rangin Sapne-2)
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इमरान
प्रिय दोस्तो, इस कहानी को मेरी एक मित्र ने मुझे लिखा है जिसे मैं संपादित करके आप सभी के सामने पेश कर रहा हूँ।
अब तक आपने पढ़ा…
अगर मेरे पति बिस्तर में कामयाब और नॉर्मल होते.. तो आज उनके साथ खुश रहती.. लेकिन उनकी बारह साल की बेवफ़ाई के सामने पराए मर्द के साथ सेक्स करने की सोचना पाप नहीं लग रहा था।
और तो और.. भान्जे के साथ सेक्स करने से इस पाप को घर के अन्दर तक सीमित रख सकती हूँ। किसी को कुछ पता नहीं लगेगा। वैसे भी मैं सिर्फ़ सेक्स चाहती हूँ.. रिश्ता नहीं..इन सब बातों से मन और भी निश्चिंत हो गया और मैंने मन ही मन चंदर से संभोग करने का इरादा बना लिया। अपने इस नई रूप से मैं खुद चंचल हो उठी। बिस्तर से उठकर मैं आईने के सामने खड़ी हुई और नाईटी निकाल कर अपने ही जिस्म की जाँच करने लग गई। मैं काफ़ी सेक्सी लग रही थी.. मेरी ही चाह मुझे होने लगी थी।
अब आगे लिख रही हूँ..
आप लोगों को बता दूँ कि अब मेरे मम्मे बहुत ही बड़े थे, ब्रा 36 सी की साइज़ की पहनती हूँ। उनको जितना भी ब्लाउज.. ब्रा और साड़ी के पल्लू के सहारे ढक दूँ। उनकी गोलाई और उभार को छिपा नहीं सकती। जो भी मुझे देखता, मेरी वक्ष-संपदा से तुरंत परिचित हो जाता।
उम्र के लिहाज़ से मेरे नितंब भी काफ़ी उभर आए थे और कमर चौड़ी और जाँघ भारी और मांसल लग रही थी।
जिस्म का रंग काफ़ी गोरा था.. माँ की देन थी.. मैं सच में बड़ी सेक्सी लगती हूँ।
उन दिनों मायके में मोहल्ले के बहुत सारे लड़के मेरे दीवाने थे। आख़िर चंदर से मेरे जिस्म का करारापन कैसे छिपता.. उसने जरूर मेरे मदमस्त यौवन पर गौर किया होगा.. शायद मेरी नग्नावस्था को भी अपने कामुक मन में बसा कर हस्तप्रयोग भी करता होगा।
चंदर को पटाने के लिए यह सेक्सी जिस्म ही काफ़ी है।
अगले दिन.. पति ऑफिस जा चुके थे और भांजा कॉलेज निकल गया था। सब काम से निपट कर में सोफे पर बैठी टीवी देख रही थी कि अचानक मुझे रात के किस्से का खयाल आया। मैं उठकर भान्जे के कमरे में गई और छानबीन की.. पर उसकी अलमारी से कुछ नहीं मिला.. बिस्तर के नीचे कुछ नहीं था।
लेकिन गद्दे के नीचे कुछ किताबें मिलीं.. साथ में कन्डोम के कुछ पैकेट भी मिले।
मेरा सर चकराने लगा.. कई ख्याल एक साथ आने लगे.. मेरा दिल धड़क रहा था और ऐसा लग रहा था कि मैं कोई जासूस की तरह किसी दुश्मन के घर में छानबीन कर रही हूँ और कभी भी पकड़ी जा सकती हूँ।
लेकिन मैं भी घर में अकेली थी.. मेरे हाथ में सेक्स की किताबें थीं और मर्दों वाले कन्डोम भी थे।
मेरा मन चंचल हो उठा.. उसी बिस्तर पर लेट कर मैंने कन्डोम के एक पैकेट को खोलकर अन्दर का माल बाहर निकाला।
पहली बार मैं एक कन्डोम को हाथ में ले रही थी.. इससे पहले कभी करीब से देखा ही नहीं था। यह बड़ा अजीब सा लग रहा था.. एक छोटी सी टोपी की तरह.. पैकेट पर लिखे निर्देशों को पढ़ा और तुरंत ही मेरे चंचल मन में एक ख़याल आया।
मैं अपने कमरे में जाकर उसी मोमबत्ती को ले आई.. जिससे रात में मैंने अपने आपको शांत किया था।
मोमबत्ती मर्द के कामांग की तरह ही थी, कन्डोम के पैकेट के निर्देशों को दोबारा पढ़कर कन्डोम को मोमबत्ती पर चढ़ा दिया और देखने लगी।
मोमबत्ती के ऊपर की तरफ कन्डोम में एक छोटा सा गुब्बारा की तरह कुछ था, शायद यहीं वीर्य जमा होता है।
इस सबको करने और देखने से मुझे काफ़ी उत्तेजना हुई। कैंडल को बगल में रखा और किताबों के पन्ने पलटने लगी।
तीनों पतली किताबें थीं.. एक में सेक्स करने के आसनों में लिए गए विदेशी प्रेमियों के सेक्सी नंगे चित्र थे और उनकी हरकतों का संक्षिप्त वर्णन भी लिखा था। ऐसा लग रहा था.. जैसे बहुत सारे फोटो के सहारे कहानी दर्शाई जा रही हो।
शुरू से अंत तक एक दफ़्तर के बड़े बाबू और उसकी सेक्रेटरी के बीच की शर्मनाक संभोग कला का गहरा और ख़ास वर्णन हो रहा था। सेक्रेटरी अपने बॉस की गर्मी बढ़ाने के लिए कैसे-कैसे कामुक प्रसंग कर रही थी और बॉस भी उत्तेजित अवस्था में आकर सेक्रेटरी से अपनी दिल की बात और मिल रहे सुख का खुलासे का वर्णन कैसे कर रहा था.. यही सब लिखा था।
पूरा वर्णन हिन्दी में था और ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग हुआ.. जो काफ़ी अश्लील और लैंगिक थे।
लड़की बॉस के मोटे तगड़े लण्ड की प्रशंसा काफ़ी अश्लील और रंगीन शब्दों में कर रही थी और उसके साथ क्या कराना चाहती है.. इसका भी खुल्लम-खुल्ला वर्णन कर रही थी।
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बॉस लड़की की मादक मम्मों को दबा-दबा कर उनका गुण गा रहा था। कुछ पन्नों के बाद ऐसे गंदी हरकत पढ़ी और देखी कि मेरा मन वासना से झूमने लगा।
सभी चित्र सच में होते हुए निकाले गए थे.. यानि लड़का-लड़की सचमुच में सेक्स कर रहे थे.. जब उनकी फोटो खींची गई थी।
सेक्रेटरी अपनी बॉस के करारे लण्ड को चूस रही थी। इस दृश्य को देख कर मेरे पेट में अजीब सी हरकत होने लगी। पहले काफ़ी घिनौना और गंदा लगा और उल्टी होने वाली थी.. लेकिन अपने आपको संभाला और गौर से उस चित्र को देखा। इस तरह के साहित्य के बारे में पहले सुना तो था.. लेकिन पहली बार सचित्र देख रही थी।
मेरे दिमाग़ में वासना की ऐसी लहर दौड़ी.. कि मैं ‘आहें’ भरने लगी और मादक सीत्कारें भरने लगी।
मैं अपने आपको संभाल नहीं पा रही थी। मैंने किताब के और पन्ने खोले तो और भी अश्लील फोटो थे। अब आदमी औरत की योनि चूस रहा था। अंत में वीर्य स्खलन का भी चित्र था।
बॉस ने अपनी सेक्रेटरी के उन्नत उरोजों पर अपना वीर्य छोड़ा.. जो किसी क्रीम की तरह साफ़ नज़र आ रहा था।
थोड़ी देर के लिए मैं लेट गई और आँखें मूंद कर भारी साँसें लेने लगी। कुछ पलों के बाद मैंने अपने आप पर काबू पाया और उन गंदे किताबों से दूर उठकर चली गई।
लेकिन इसका जो चस्का एक बार लगा सो लगा।
मैं रह नहीं पाई.. और एक घंटे के बाद वापस आ गई फिर से गद्दे के नीचे से किताब निकाली।
दूसरी दो किताबें काफ़ी सस्ते किस्म के प्रिंट में थीं। एक में चित्र बिल्कुल नहीं थे.. दूसरी किताब में दो-चार काले-सफ़ेद रंग के फोटो थे उनमें नंगी लड़कियों की और एक संभोग रत लड़का-लड़की के रेखा चित्र बने थे।
मैं लेट कर दोनों किताबों में छपी कहानियाँ पढ़ने लगी। दोनों का लेखक कोई मस्तराम था.. नाम से ही लग रहा था कि कोई अय्याश किस्म का लेखक होगा। पहली कहानी बिल्कुल वैसी ही थी.. जैसी मैं शादी के पहले पत्रिकाओं में पढ़ा करती थी।
मेरे अन्दर काम-वासना बढ़ने लगी.. मेरी योनि से रस निकलने लगा था और मेरे जिस्म में गर्मी बढ़ती ही जा रही थी।
मैं अपने पैरों को एक-दूसरे से रगड़-रगड़ कर अपने आपको काबू में लाने की बेकार सी कोशिश कर रही थी।
जैसे ही मैं दूसरी कहानी पढ़ने लगी.. मेरे मस्तिष्क में दुबारा बिजली चलने लगी। सेक्स की कहानी तो रसदार थी.. लेकिन औरत और मर्द के कामांगों का ज़िक्र एकदम गंदी और अश्लील भाषा के शब्दों से भरा पड़ा था.. लंड.. चूत इत्यादि।
इस सब को पढ़ कर मुझ में घिनौनेपन के बजाए एक अजीब सी मस्ती छा गई।
ऐसे शब्दों को पढ़-पढ़ कर काफ़ी अच्छा लग रहा था। ऊपर से ये कहानी एक देवर और भाभी के अवैध सेक्स संबंध के शर्मनाक कारनामों के बारे में थी। कहानी के अंत में अपने पापपूर्ण जिस्मानी रिश्तों के बनने से दोनों काफ़ी खुश होते हैं।
तीसरी कहानी ने तो मेरे दिमाग़ की बत्ती लगभग बुझा ही डाली थी।
एक भोले-भाले लड़के के साथ जबरदस्ती उसी की सेक्सी और वासना भरी कुँवारी मौसी ने सेक्स किया। इसका वर्णन पूरे डिटेल के साथ हुआ है। मौसी और दीदी के बेटे के बीच के सेक्स का किस्सा कितनी चाव से लिखा मस्तराम साब ने.. जैसे-जैसे कहानियाँ पढ़ती गई.. ऐसे ही अवैध और अप्राकृतिक शारीरिक संबंधों का खुला वर्णन होता गया।
मेरे प्रिय साथियो, इस दास्तान की लेखिका नगमा तक आपके विचारों को भेजने के लिए आप डिसकस कमेंट्स पर लिख सकते हैं..
धन्यवाद।
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