माया की चूत ने लगाया चोदने का चस्का-3
(Maya Ki Chut Ne Lagaya Chodne Ka Chaska- Part 3)
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अब तक आपने पढ़ा..
माया ने अपनी चुदास मुझ पर जाहिर कर दी थी।
अब आगे..
माया- विकी मुझे 30 साल खत्म होने को हैं.. जब मैं दस साल की थी मेरी माँ तो तब ही चल बसी थी। बाद में इतने सालों के बाद तेरे गले से मिली हूँ। मुझे जो प्यार चाहिए वो किसी ने नहीं दिया।
क्या कोई औरत अपनी एक कमी होने से प्यार के काबिल नहीं होती? माँ के जाने के बाद भैया शादी करके भाभी को लाए थे। वो दोनों प्यार करते तो मैं छुप-छुप कर देखती.. तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते थे।
रात को भैया के कमरे से भाभी की प्यार भरी चीखें मेरे कमरे में मुझे सुनाई देतीं.. तो मैं एक अजीब सी आग में जलने लगती थी।
मुझे भी प्यार चाहिए, मैं चाहती हूँ कि कोई मुझे भी अपनी बांहों में कस कर मेरे होंठों का रसपान करे… मुझे अपनी बांहों में कस ले… मेरा ख्याल रखे… मुझसे प्यार भरी बातें करे।
मेरी सहेली सरोज अपने भतीजे से सेक्स करती है। कभी-कभी रात को ऐसे विचार आते हैं.. तो मैं प्यार की आग में जलने लगती हूँ.. मेरी छाती फटने लगती है।
मैं क्या करूँ.. आखिर भैया की इज्ज़त का सवाल होता है।
तू जब आया तो मेरा यकीन मान.. मुझे तेरी आस हुई कि तू शायद मेरे लिए ही आया है और भगवान ने शायद तुझे मेरी प्यास बुझाने ही भेजा है।
बोल.. मैं तेरा भरोसा करूँ?
मैं उनकी तरफ मूक बना चूतिया सा देख रहा था।
‘तू चिंता मत कर मैं मर जाऊँगी.. पर तुझ पर आंच नहीं आने दूंगी।’
मैं उसकी बात बड़े ध्यान से सुनता गया और उनकी तड़प को महसूस करता गया।
हालांकि मैंने कभी कुछ नहीं किया था.. फिर भी उसे टटोलने के लिए कहा- माया अगर कुछ होगा तो मुझे तो कुछ नहीं आता.. मैं अपने कॉलेज में एक तमन्ना नाम की लड़की जो कि मेरी दोस्त है.. उससे भी दूर से बात करता हूँ। पता नहीं मुझे डर लगता है कि कहीं पकड़े गए तो मर जाएंगे।
माया- हिम्मत रख.. जब तक मैं हूँ तो कुछ नहीं होगा।
यह कहते हुए उसने मेरी जांघ पर हाथ रखा और आहिस्ता आहिस्ता उस पर अपनी हथेली रगड़ने लगी।
मेरा टाइट लौड़ा देखकर बोली- तुझे कुछ नहीं आता.. मैं सब सिखा दूंगी।
वो धीरे-धीरे मेरे लौड़े की तरफ बढ़ रही थी।
उसने अंततः मेरे तम्बू पर हाथ रख कर कहा।
माया- क्यों इस बेचारे को दबा कर रखता है। उससे बाहर निकाल कर उसके असली घर में आने दे।
उसने लपक कर मेरा लौड़ा बरमूडा के बाहर से पकड़ लिया तो मैंने पीछे हटते हुए कहा- माया अभी नहीं, तुम जाओ चाची ऊपर आ जाएंगी.. और आज तुम्हें देखने वाले भी आ रहे हैं। अभी तुम नीचे जाओ.. हम शाम को यहीं पर मिलेंगे।
उसकी आँखों में एक चमक आ गई। उसने मेरे गाल में अपनी जुबान रगड़ते हुए चुम्मी ली और कहा- मेरा ड्रेस सूख जाए तो 9 बजे इसमें इस्तरी करा कर ले आना।
वो खुश होती हुए दौड़ती हुई नीचे गई और मैं नहाने चला गया।
माया मुझे ड्रेस की इस्तरी करा के लाने का कह कर नीचे दौड़ती चली गई और मैं नहाने चला गया।
नहाकर करीब 8 बजे में नीचे चाय पीने गया..
तो रमा चाची ने कहा- बेटा मैं तुझे कल बताना भूल गई थी। आज माया को बोरीवली से कुछ लोग शादी हेतु देखने आ रहे हैं.. तो मुन्ना तू आज कहीं जाने वाला तो नहीं? बेटा मेरी थोड़ी मदद करने हमारे साथ रहेगा? आज सीमा और सपना भी टूर में गई हैं और वो लोग अचानक ही आने वाले हैं।
मैंने खुश होते हुए और अनजान बनते हुए कहा- अरे बुआ, आप तो बड़ी छुपी रुस्तम निकलीं.. हमें बताया भी नहीं।
बुआ ने अन्दर के कमरे से मुस्कुराते हुए मुझे आंख मारी।
चाची- अरे बुद्धू… लड़कियां ऐसी बातें अपने मुँह से कहेंगी क्या? वो शर्माएगी नहीं? पागल.. अपनी बुआ को मत छेड़ और ये ले पैसे और जा थोड़ी सी चीजें बाज़ार से ला दे.. वो लोग 11 बजे तक आ जाएंगे। देख समोसे, बेसन के लड्डू, कचौड़ी, दूध, मावा के पेड़े ले कर फटाफट आ जा।
चाची इतना कह कर अन्दर को जाने लगीं।
माया ने मुझे रूम से इशारा किया कि ड्रेस को इस्तरी भी करा लाना।
मैंने जानबूझ कर पूछा- बुआ, आपको भी कुछ मंगाना है?
मैं उसके कमरे में गया तो हमें कोई देखे नहीं इस तरह से उसको खींच कर दरवाजे के पीछे मेरे होंठों को चूमकर मेरे कूल्हों पर चांटा मार के कहा- फूल की एक माला और गुलाब के खुले फूल जरूर लाना और मुझे अकेले में दे देना।
मैं फटाफट बाइक लेकर बाजार गया और एक घंटे में वापस आ गया।
सारे घर की मस्त सफाई हो चुकी थी और बैठने का कमरा अच्छी तरह से सजा दिया गया था।
मैं सीधा रसोई में गया और सामान रमा चाची को दे दिया और हिसाब करके बाकी पैसे देकर माया के कमरे में आ गया।
मैं उसे देखता ही रह गया.. वो नहा-धोकर मस्त तैयार होकर बैठी थी। क्या खुश्बू थी कमरे में..
मैं गया तो उसने फट से मेरे गाल पर किस करके ड्रेस लेते हुए कहा- बाहर जा.. क्या इसे में तेरे सामने पहनूँगी?
मैंने कहा- नहीं.. लाओ मैं ही पहना दूँ।
मैंने आज पहल करते हुए उसके होंठों को कस के एक चुम्मी ली और उसके होंठों को जोर से काट लिया, अपनी दोनों हथेलियों से उसकी चूचियां जोर से दबा दीं।
वो दबी सी आवाज़ में बोल उठी- उईई.. इइइ.. माँ.. काट के खून निकालेगा क्या? ओह्ह.. मैं सबके सामने कैसे आ सकूंगी पागल.. यह क्या किया?
वो आईने में अपने होंठ देखने लगी। उसने मुझे जोर से धक्का देकर अपने कमरे का दरवाजा बन्द कर लिया और ड्रेस बदलने चली गई।
मैं भी अपने आपको ठीक करके बैठक में पेपर पढ़ने बैठ गया।
इतने में चाचा मेहमानों को लेकर घर आ गए, उन्होंने चाची को आवाज़ लगाई- अरे सुनती हो.. हम लोग आ गए हैं।
चाचा के साथ तीन मेहमान थे, श्याम लाल जी 62 साल के, आशा देवी मतलब उनकी पत्नी 60 की, अशोक यानि लड़का जो कि करीब 38 साल का थोड़ा दुबला सा, नंबर वाला चश्मा पहने हुए, उसके गाल अन्दर धंस गए थे।
वे सभी दिखने में बड़े श्रीमंत दिखते थे।
चाचा ने उनसे मेरा परिचय अपने बेटे की तरह करवाया।
मैंने ‘नमस्ते’ करते हुए कहा- चाचा, मैं चाची की मदद करने के लिए रसोई में जा रहा हूँ.. आपको कुछ काम तो नहीं?
चाचा ने कहा- नहीं बेटा.. जा तू.. आज बिटिया भी नहीं है.. अच्छा है कि तू है।
मैं रसोई में गया तो माया मस्त तैयार होकर बन-ठन कर पानी की ट्रे तैयार कर रही थी।
बाप रे… आज मुझे उसका असली रूप देखने को मिला।
मैं तो उसे देखता ही रह गया।
चाची मेहमानों के पास गई थीं.. तो रसोई में हम दो ही थे।
माया- ऐसे क्या देखता है? क्या मुझे कभी देखा नहीं? पागल.. जरा देख तो मेरे होंठ पर काटने का निशान तो नहीं है।
मैं उसके नजदीक गया.. तो वो दूर जाने लगी और बोली- देख अभी कोई शरारत न करना, तुझे तो मैं शाम को देखती हूँ.. आज तो तू पक्का गया.. देखती हूँ आज तुझे कौन बचाता है?
मैं- अरे यार तुम क्या लग रही हो.. यह रूप तुमने अब तक कहाँ छुपाया था? आज तुम क़यामत सी लग रही तो मुझसे भी रहा नहीं गया और तुझे चबाने को दिल हो गया। सॉरी.. वैसे तुम क्लास लग रही हो यार.. बहुत हॉट लग रही हो।
वो मुस्कुरा कर ‘थैंक्स’ बोली।
मैं- बोलो तो आज इस लड़के को भगाकर तुमसे शादी कर लूँ?
मैंने उसकी गांड पर जोर से फटका मारा।
माया- आई… आउच.. पा..गल ये ठोंकने की आवाज़ बाहर कोई सुन लेगा।
वो ‘सी.. सी..’ करते हुए अपने कूल्हों को हाथ से सहलाते हुए बोली- ले ये पानी की ट्रे ले जा और सबको पानी पिला और भाभी को अन्दर भेज दे।
मैं ट्रे लेकर बैठक में गया और सबको पानी पिलाया। वो लोग अपनी बातों में मस्त थे.. मैंने चाची को इशारा करके रसोई में आने को कहा।
चाची- अरे क्या विकी… क्यों बुलाया? थोड़ी बात तो करने देता… बोल क्या है?
माया- भाभी लड़का कैसा है?
बीच में मैं टपक पड़ा और बोला- बिल्कुल तेरी पसंद का है.. भगवान ने तेरे लिए चुन के भेजा है।
वो गुस्सा करते हुए मेरी तरफ देख कर बोली- भाभी इसको बाहर भेजो.. वरना मैं इसका गला घोंट दूंगी।
चाची- अरे तू उसे क्यों छेड़ रहा है.. इसका मेकअप ख़राब हो जाएगा। तू थोड़ी देर शांत नहीं रहेगा?
मैं- ना चाची.. इस लड़के के साथ ही बुआ की शादी कर दो और दहेज़ में मुझे इसके साथ भेज दो।
चाची हँसते हुए- पागल.. अभी तू शांत रह.. वरना ये मेहमान जाने के बाद तेरा कचूमर निकाल देगी। फिर मुझसे कोई हेल्प न मांगना।
माया ने जुबान निकाल कर मुझसे कहा- उल्लू… बन्दर… तू रुक तेरे लिए एक पागल लड़की ढूंढकर तुझे एक कमरे में उसके साथ बन्द करती हूँ।
चाची ने चाय-नाश्ते की ट्रे तैयार की और हम दोनों को सूचना दी- अब यह तीनों ट्रे लेकर तुम दोनों एक अच्छे बच्चों की तरह वहाँ आना और कोई शरारत मत करना.. वरना अपने चाचा से भी पिटोगे।
मैंने नाश्ते की दोनों ट्रे लीं और माया ने चाय की एक ट्रे ले ली।
हम दोनों बैठक में गए।
यह सब प्रोग्राम देर तक तक चला और मेहमानों के चले जाने के बाद क्या होता है वो आप अगले भाग में जानेंगे।
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कहानी जारी है।
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