चाची भतीजे के लंड से चूत चुदाई के लिए उतावली
(Chachi Bhatije Ke Lund Se Chut Chudai Ke Liye Utavali)
मैं माया सिंह अपनी एक नई चुदाई सुनाने के लिए आई हूँ। मेरी पिछली चार कहानियों के लिए मुझे पाठकों से इतनी तारीफ़ मिली कि मुझे यह अनुभव लिखने का साहस भी मिल गया।
कई एक चाहने वालों ने तो मुझसे पूछा कि क्या मैं नियमित लेखिका यानि राइटर हूँ?
मुझे इन कहानियों के बारे में अब तक 4367 मैसेज प्राप्त हुए हैं। खैर यह कोई खास बात नहीं पर बताने में कोई हर्ज भी नहीं।
अब मैं अपने नए अनुभव पर आती हूँ।
हम तीन, हम दो और हमारा एक बेटा ढाई साल का, भोपाल में रहते हैं। इसी घर में मेरे जेठ जी का परिवार हम से ऊपर वाली मंज़िल पर रहता है। उससे ऊपर की मंजिल पर घरेलू नौकर का कमरा है। जेठ जी का बड़ा बेटा हरीश उन्नीस साल का है, उसने इस बार बी बी ए के दूसरे साल की परीक्षा दी है।
जब जब भी मेरे पति टूअर पर जाते रहते थे तो हरीश मेरा बहुत ख्याल रखने लगा था, किसी भी काम को दौड़कर करने को तैयार रहता था और इसी कोशिश में रहता था कि वो मेरे आस पास ही रहे। मुझे भी उसकी कम्पनी में मज़ा आता था।
इसी साल की सर्दियों में दिसंबर 2012 में एक बार शाम के समय वो मेरे पास मेरे बेडरूम में आया, उस समय नौ बजे होंगे, मैं कोई सीरियल देख रही थी अपनी रजाई या लिहाफ जो भी आप उसे कहते हो, में घुस कर बैठी हुई।
मैंने हरीश से कहा- बहुत ठण्ड है, तुम भी रजाई में आ जाओ, कम से कम अपने पैर तो अन्दर कर लो।
पता नहीं क्यूँ वो थोड़ी दूरी बनाये रखता था, इसलिए शर्माते हुए बोला- मैं ठीक हूँ।
फिर भी मेरे कहने पर वो मेरे बगल में नहीं बैठ कर पैरों की तरफ बैठ गया और मेरी जेठानी जी ने जो मैसेज दिया था, उसे बता कर जाने की बात बोलने लगा।
मैंने उसे थोड़ा रुकने को कहा क्यूँकि आज मैं उसे कोरा कोरा जाने देने के मूड में नहीं थी। मेरा मन इस लड़के को फ़ंसाने को तो बहुत दिनों से मचल रहा था पर आज जैसा मोका भी नहीं मिला और कुछ करने से डरती भी रही। इसको फंसाने का सीधा सा और जरुरी सा कारण यह था कि यह लड़का पूरी तरह जवान और खूबसूरत तो था ही, घर के घर में ही उपलब्ध भी था, किसी भी समय और इस पर किसी को कोई शक भी नहीं होता। उससे चुदाई के प्रोग्राम की बात करते रहना भी आसान था।
मेरे दिमाग में ये सारी चीज़े एक साथ घूम रही थी। उस दिन चुदाई के लिए भी मैं बहुत उतावली थी। वो नहीं आता तो मैं किसी और तरह अपनी आग शांत करती पर भाग्य से वही आ गया जिसके लंड की कल्पना ही मैं करती रहती थी कि फुल साइज़ का हो गया होगा या नहीं।
मुझसे रहा नहीं गया, मेरा मुझ पर ही जैसे काबू ही नहीं रह गया था, मैंने रजाई के अन्दर से ही अपना पैर लम्बा करके उसकी टांगों के बीच में रखा और अंगूठे से उसका लंड ज़िप के ऊपर से ही टटोलने लगी। मेरा पैर लगते ही उसका लण्ड तनने लगा और एक मिनट में ही वो पैंट फाड़ने को तैयार था।
हरीश पहले तो थोड़ा असहज सा हुआ फिर सब समझ गया और उसने अपनी ज़िप खोल दी।लंड आज़ाद होकर मेरे पैर को गर्मी दे रहा था। बच्चा तो सो गया था, हरीश फटाफट मेरे बाजू में आकर बोला- चाची, तूने आज बहुत उपकार किया, मैं तो कबसे तुझको चोदने की सोचता रहता था।
वो बोला- चाची, अब देर न कर, आज ही शुरुआत करूँगा। मेरी तो यह सुहागरात ही समझो, मेरी पहली चुदाई है, चाची तुम ही गाइड करो।
मैं तो खुद ही चुदने को मरी जा रही थी, मैंने कहा- तू तो आज मज़ा ले बस।
हम दोनों ने जल्दी से अपने अपने कपड़े उतारे और मैंने आज पहली बार उसका लंड देखा था, यह तो मेरे पति के लंड से थोड़ा पतला तो था पर लम्बा बहुत था और मेरे लिए तो जैसे उम्मीद से बड़ी कोई चीज़ मिल गई हो। मैंने उसके लण्ड को ऐसा पकड़ा जैसे अभी खा जाऊँगी, मुँह में भर कर चूसने लगी और हरीश का मुँह अपनी चूत के दाने को चूसने पर लगा दिया।
व्व्वाआह्ह! क्या आनन्द आ रहा था! मैं सिसकारी भर रही थी और हरीश का तो हाँफ-हाँफ कर बुरा हाल थ। पर वो बहुत एन्जॉय कर था।
अब मैंने उसे मेरी चूत में अपना लंड घुसेड़ने का निमंत्रण अपनी टाँगें चौड़ी करके चूत को थोड़ा ऊपर उभारते हुए दिया। वो इस निमंत्रण को तत्काल समझ गया और उसने फटाफट मेरी टांगों को फैलाकर ऊपर उठाते हुए अपने लंड को चूत के मुँह पर रख कर धक्का दिया। उसका लंड पहली बार में ही आधा तक घुस गया।
यह उसका पहला ही अनुभव था, वो बहुत अधिक उत्तेजित होकर लंड को चूत में पेलने के लिए बेताब था और उसका लंड भी अब उसके काबू में नहीं था इसलिए बिना रुके उसने लगातार जोर जोर के धक्के मरना शुरु कर दिया। उसका लंड मेरी चूत में ऐसा ऊपर नीचे कूद रहा था जैसे कोई गाड़ी का पिस्टन चल रहा हो।
वाह! मैं तो नीचे से अपने चूतड़ उछाल कर उसके ही रंग में मिल कर चूत को उसकी चाहत की गिफ्ट दिलवा रही थी। मैं भी और हरीश भी जोर जोर से चुदाई की रफ़्तार के साथ ही खूब मोनिंग यानी आअह्ह ऊउह्ह कर रहे थे।
घर में तो कोई था ही नहीं इसलिए खुलकर जी भर कर आवाज़ें और किलकारियाँ मार रहे थे। इसी मुद्रा में चुदाई करते करते हरीश भी और मैं भी लगभग एक साथ ही झड़े तो वो नज़ारा तो देखने लायक था और हमेशा याद भी रहेगा।
हरीश तो ऐसा काम्पने लगा आनन्द के मारे कि जैसे कोई जंग जीती हो।
मैंने भी अपने जीवन में जितनी भी चुदाई करवाई हो और वे एक से बढ़ कर एक नई मुद्रा की हो, पर यह सादी सी चुदाई फिर भी कभी भूल नहीं पाऊँगी।
अब हरीश का रास्ता खुल गया है, जब भी उसका मन होता है या मेरी चुदने की इच्छा होती है तो वो तत्काल आकर मेरी चूत की और अपने लंड की प्यास बुझा देता है। हम अब रोज़ नए नए प्रयोग भी करते रहते हैं, जब भी मेरा आदमी टूर पर जाता है तो उनका यह भतीजा अपनी चाची की भरपूर चुदाई करके मज़ा देता है।
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