एक छोटी सी गलती

(Ek Chhoti Si Galati)

मेरे दोस्तो, मेरा नाम परमजीत कौर है और मैं पटियाला, पंजाब में रहती हूँ।

यूं तो इंसान अपनी ज़िंदगी में बहुत सी गलतियाँ करता है, और बहुत सी गलतियाँ होती हैं, ख़त्म हो जाती हैं, मगर कभी कभी इंसान कोई ऐसी गलती भी कर बैठता है, जिसका असर बहुत गहरा होता है, वो गलती उसे सारी उम्र तकलीफ देती है।

मैंने भी किसी समय एक ऐसी ही गलती की थी, जिसका खामियाजा मैं आज तक भुगत रही हूँ और पछता रही हूँ कि मैंने ऐसा क्यों किया। इसी वजह से मैंने यह कहानी अन्तर्वासना के जानेमाने लेखक श्री वरिन्द्र सिंह जी से लिखवाई है और अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर छापने के लिए भिजवाई है ताकि मेरे जैसी जो और भी औरतें हैं, वो इस कहानी को पढ़ कर वो गलती न करें जो मैंने की।

तो लीजिये सुनिए मेरी व्यथा।

मैं परमजीत कौर इस वक़्त 45 साल की हूँ। मेरे दो बच्चे हैं, एक लड़का और एक लड़की।

शादी के करीब 15 साल बाद जब मैं करीब 35 साल की थी, तब मेरे पति की ज़्यादा शराब पीने से मौत हो गई।

मैं अपने पति की मौत से बिल्कुल ही टूट गई। बेशक मेरे पति बहुत शराबी थे, पियक्कड़ थे, मगर एक शानदार मर्द थे। जब तक वो ज़िंदा थे, मुझे कभी किसी और मर्द के बारे में सोचने की भी ज़रूरत नहीं पड़ी।

मैं अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से बहुत खुश थी मगर अपने पति के जाने के बाद मैंने अपनी ज़िंदगी का सबसे कठिन समय देखा। घर में खाने के लाले पड़ गए क्योंकि हमारे पास कोई ज़मीन जायदाद तो थी नहीं, बच्चे अभी छोटे थे, पढ़ रहे थे। मेरी शिक्षा कम होने के कारण मेरे पति की नौकरी मुझे नहीं मिल पाई।

इस दौरान मेरे मायके वालों ने मेरी बहुत मदद की। मगर पैसे की मदद तो की, मगर पति की कमी कौन पूरी करे।
मैं अब रातों को तड़पने लगी, घर मेरा अपना था, मेरा और बच्चों का बेडरूम अपना था। मैं रातों को नंगी होकर घर में घूमती, बहुत तरह के ढंग तरीके अपनाती, ताकि अपनी चूत को ठंडी कर सकूँ, मगर तुरई, बैंगन, मूली कोई भी चीज़ ऐसी नहीं थी, जो मर्द के लंड की बराबरी कर पाये।

एक मूली चूत में, गाजर गांड में, फिर निकाल में मुँह में लेती, अपनी चूत के दाना अपने हाथों से मसलती, बाथरूम में उल्टी होकर पेशाब करती, ताकि मेरी चूत से निकला हुआ पेशाब मेरे सारे बदन को भिगोता हुआ मेरे मुँह तक आता और मैं अपने पेशाब से नहा जाती, उसे पी जाती।
अपने मम्मों पर चांटे मारती, अपने निप्पल ज़ोर ज़ोर से खींचती, पतली छड़ी से अपने चूतड़ कूटती। मेरी गांड पर निशान पड़ जाते, मगर मुझे संतुष्टि न मिलती।

मैं बाहर किसी मर्द से रिश्ता बनाने से डरती थी कि अगर किसी से संबंध बनाये और कल को बच्चों को पता चला या मोहल्ले में पता चला तो कितनी बदनामी होगी। इसी वजह से डर डर कर मैं अपने दिन निकाल रही थी।

समय बीतता गया।

एक दिन मैं किसी काम से बाज़ार गई तो रास्ते में पड़ोसी का लड़का मिला, उसने मुझे नमस्ते की और पूछने लगा- आंटी आप कहाँ जा रही हो?
मैंने कहा- घर वापिस जा रही हूँ।
वो बोला- मैं भी तो घर ही जा रहा हूँ, आइये आपको भी छोड़ दूँगा.
और उसने मुझे अपनी गाड़ी में लिफ्ट दी।

यही वो मेरी एक छोटी सी गलती थी कि मैं उसकी कार में बैठ गई। कार चला कर वो थोड़ा ही आगे गया तो बोला- आंटी, अगर आपको कहीं भी जाना हो तो ऑटो या रिक्शा मत देखा करो, बस मुझे कह दिया करो, मैं आपको छोड़ आया करूंगा।
मुझे उसका यह मददगार रवैया बहुत अच्छा लगा।

मैंने उसे शुक्रिया कहा तो वो बोला- अरे, इसमें शुक्रिया की क्या बात है, आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं।
सच कहूँ तो जब उसने मुझे अच्छी कहा, तभी मुझे उसमें एक मर्द दिखा, बेशक वो भी मेरे बेटे जैसा ही था मगर मेरे मन में एकदम से कामदेव का तीर लगा हो। मैं एकदम से बेचैन सी हो गई, मेरे हाथों में कंपकंपी सी छूटी। मेरी ज़ुबान लड़खड़ा गई, मैंने उसे कहा- मैं…. तुम्हें अच्छी लगती हूँ, मतलब?
वो बड़े बेबाक तरीके से बोला- आंटी आप बहुत खूबसूरत हो, मुझे आप बहुत प्यारी लगती हो, सच में!

मैं तो जैसे अधमरी सी हो गई, मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई, गला सूख गया, एकदम से जैसे मुझे सेक्स का भूत सवार हो गया। मैं इसे अच्छी लगती हूँ, प्यारी लगती हूँ, क्या ये लड़का मेरे साथ सेक्स करेगा, मेरे जिस्म की भूख मिटाएगा।
मैं तो जैसे घबरा सी गई।

मेरे चेहरे को देख कर उसने पूछा- क्या हुआ आंटी?
मैंने कहा- कुछ नहीं, मुझे कुछ घबराहट सी हो रही है।

उसने गाड़ी एक तरफ रोकी और जाकर दुकान से दो कोकाकोला ले आया, एक मुझे दी और एक खुद पीने लगा। दो घूंट कोक पीने के बाद मुझे थोड़ा होश सा आया। मगर इतना ज़रूर था कि मेरी चूत में पानी आ गया था।

मैं थोड़ा संयत हुई तो उसने पूछा- अब ठीक हो आप, पम्मी जी?
उसने पहली बार मुझे आंटी न कह कर नाम से बुलाया, मुझे इतना प्यारा लगा कि जैसे मैं इस लड़के के प्यार में पड़ गई हूँ। मुझे खुद पर काबू नहीं हो रहा था। मेरे मन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे।

मुझे खुद नहीं पता कि मैंने उससे क्यों ये पूछा- मुझमें तुम्हें क्या अच्छा लगता है?
हालांकि यह बात मुझे बिल्कुल भी नहीं पूछनी चाहिए थी।

मेरी बात सुन कर वो तो खिल गया- अरे पम्मी जी, आप तो सर से पाँव तक बस एक खूबसूरती की मूरत हो, आपके किस अंग की तारीफ करूँ, यही समझ नहीं आता। आप बहुत प्यारी हो, बहुत सुंदर हो, मैं दिल से आपको चाहता हूँ।
वो एक ही सांस में अपने दिल की हर बात कह गया और मुझे अंदर तक बेचैन कर कर गया।

मैंने कहा- वो तो ठीक है कि तुम मुझे पसंद करते हो, मगर मुझे डर लगता है।
वो बोला- अरे कमाल है यार, किस बात का डर?
मैंने काँपते हाथों से कोक की बोतल पकड़ी और कहा- प्रेग्नेंट होने से!
“हाय … यह मैंने क्या कह दिया। मुझे नहीं कहना चाहिए था, अभी तो वो मुझे सिर्फ पसंद करता है, हमारी कोई दोस्ती नहीं, प्यार तो दूर की बात है, और मैं उसे एक तरफ से सेक्स का ऑफर दे बैठी।”

मुझे कहने के बाद बड़ी ग्लानि हुई, मगर अब जो शब्द मेरे मुँह से गलती से या कैसे भी निकल गए थे, उन्होने तो अपना असर दिखाना ही था। वो बोला- अरे पम्मी, यार चिंता मत करो, हम प्यार करेंगे तो पूरी प्रोटेक्शन के साथ, तुम्हें कोई दिक्कत नहीं आने दूँगा।
मेरे मुँह से गलती से निकले बोलों को उसने पकड़ लिया और हमारे रिश्ते को मेरे इन बोलों ने कुछ और ही रंग दे दिया।

कोक ख़त्म होने के बाद उसने मेरे हाथ से बोतल ली और पीछे कार की सीट पर रख दी और बोला- पम्मी, अब जब हमारे प्यार भरे रिश्ते की शुरुआत हो ही चुकी है, तो क्यों न अपने इस रिश्ते पर अपने प्यार की मोहर भी लगा दें।
मैं कुछ कहती इस से पहले ही वो आगे बढ़ा और उसने मेरे होंटों पर अपने होंठ धर दिये। मैं चाह कर भी उसे रोक न सकी, वो मेरे होंठों को चूसने लगा और मैं बेचैन मगर निश्चल बैठी रही. वो मेरे होंटों का रसपान करता रहा और मैं चुपचाप उसे अपने होंठ चूसने दे रही थी।

उसने मेरे दोनों होंठों को बड़े प्यार से चूसा, अपनी जीभ से मेरे दोनों होंटों को चाटा भी। मैं आँखें बंद किए बैठी रही, जब उसने मेरी तरफ से कोई विरोध न देखा, तो एक हाथ से मेरा मम्मा पकड़ लिया और लगा दबाने। मैंने तो कार की सीट पर ही अपनी मुट्ठियाँ भींच ली। एक अभूतपूर्व आनंद का एहसास हो रहा था मुझे।

उसने मेरे दुपट्टा मेरे गले से खींच कर मेरी जांघों पर रख दिया और सरक और मेरे पास आ गया। अपना एक हाथ मेरे पीछे से घूमा कर लाया, और वो हाथ उसने सीधा मेरी कमीज़ के गले से अंदर डाल कर मेरा मम्मा पकड़ लिया।

हम दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे, उसने अपना सर हल्का सा हिला कर मुझे अपने पास बुलाया हो जैसे।
मैंने अपना चेहरा आगे बढ़ाया और फिर से अपने होंठों को उसके होंटों से जोड़ दिया। इस बार मैंने उसका चुम्बन लिया। चुम्बन क्या था, बस जैसे होंठों से होंठ चिपक गए थे, और दोनों के खुले मुँह से एक दूसरे की जीभ से खेलने लगे। वो मेरी जीभ चाट रहा था, मैं उसकी जीभ चूस रही थी। मेरे दोनों मम्मों को वो दबा रहा था।

अभी 15 मिनट पहले जिस लड़के को मैं अपने बेटे जैसा समझती थी, जिसके साथ मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं कोई गलत रिश्ता बनाऊँगी, वो लड़का मेरा यार बन चुका था। चूसा चूसी के दौरान, जो हाथ उसका मेरी कमीज़ के बाहर था, वो हाथ वो मेरे बदन पर घुमाता हुआ, नीचे को ले गया। पहले तो उसने मेरी जांघें सहलाई, फिर अपना हाथ मेरी दोनों जांघों के अंदर घुसा कर मेरी चूत को छूआ।

मैं उसे मना नहीं कर सकी, उसने मेरी दोनों टाँगों को थोड़ा खोला और मेरी सलवार के ऊपर से ही मेरी चूत को सहलाने लगा। मैंने भी उसके गले में अपनी बांहें डाल दी और खुद आगे हो हो कर उसके होंठ चूसने लगी।
वो बोला- ये क्या इतना जंगल उगा रखा है, साफ नहीं करती इसे?
मैंने कहा- कौन सा किसी ने देखना था, तो कभी सोचा ही नहीं इसे काटने के बारे में!

वो बोला- पहले नहीं था, मगर अब है, मुझे झांट के बाल बिल्कुल पसंद नहीं, बहुत ही जल्द हम मिलने वाले हैं, इनको आज ही जाकर साफ करो, ताकि जिस दिन हम मिलें, तुम सर से पाँव तक बिल्कुल साफ होओ!
मैंने बड़ी आज्ञाकारिता से कहा- ठीक है।
वो बोला- मैं कभी भी झांट नहीं रखता, ये देखो।

कह कर वो अपनी पैन्ट खोलने लगा। बेल्ट खोली, पैन्ट की हुक, ज़िप सब खोल कर उसने अपनी पैन्ट और चड्डी दोनों एक साथ नीचे को सरका दिये। पैन्ट उतरते ही अंदर उसका काला लंड साँप की तरह फन उठाए बाहर को निकला।

मेरे तो दिल की धड़कन बढ़ गई; कितने सालों बाद मैंने किसी मर्द का लंड देखा था।

वो मुझे देख कर बोला- देख क्या रही हो, इसे अपने हाथ में पकड़ कर देखो, चूसो इसे अपने मुँह में लेकर!
मैं फिर भी थोड़ा सा झिझकी तो उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपने लंड को मेरे हाथ में पकड़ा दिया।

गरम, सख्त लंड … मैंने अभी उसका लंड अपने हाथ में पकड़ा ही था कि उसने मेरी कमीज़ में से हाथ निकाला और मेरे सर के पीछे रख कर मेरा सर नीचे को दबाने लगा। वो दबाता गया, मैं नीचे को झुकती गई, और फिर मेरे होंठ अपने आप खुल गए और उसके लंड का गुलाबी टोपा मेरे मुँह था।

एक बड़े अरसे के बाद मैंने मर्द के लंड का नमकीन स्वाद अपनी जीभ पर महसूस किया, वो स्वाद जिसके लिए मैं पिछले 8 साल से तड़प रही थी। जब मेरे पति ज़िंदा थे, तब मैं अक्सर उनका लंड चूसती थी, मगर उनके जाने के बाद तो यह स्वाद मेरी ज़िंदगी से ही चला गया था, जो आज मुझे मिला था।

मैंने अपनी जीभ से उसके लंड के टोपे को चाटा, और झूठ नहीं बोलती, खूब चाटा, मेरी अपनी हसरत पूरी हो रही थी। जितना मैं ले सकती थी, उतना उसका लंड मैंने अपने मुँह में लेकर चूसा।

उसने एक हाथ पीछे से मेरी कमीज़ के अंदर डाल कर मेरी ब्रा की हुक खोल दी, फिर दूसरा हाथ कमीज़ के गले से अंदर डाल कर मेरे ब्रा के अंदर डाला और मेरे मम्मे को मसलने लगा। मेरी निप्पल को उसने बड़ी बेदर्दी से मसला, मेरे मुँह से कई बार सिसकी या आह निकली, मगर वो नहीं हटा और बारी बारी से मेरे दोनों मम्मों को मसलता रहा, मेरे निप्पलों को नोचता रहा।

फिर उसने एक हाथ पीछे से मेरी सलवार के अंदर डालना चाहा, मगर सलवार का नाड़ा कस के बंधा था, तो उसका हाथ अंदर नहीं जा पाया।

मैंने अपनी सलवार का नाड़ा खोल दिया तो उसने अपना हाथ पीछे से मेरी सलवार में डाला। पहले मेरे मोटे मोटे चूतड़ों को सहलाया, दबाया, नोचा और फिर अपना हाथ आगे बढ़ा कर मेरे चूतड़ों की दरार में मेरी गांड के छेद पर अपनी उंगली रखी।

अब मुझे कोई दिक्कत नहीं होती, मैं तो पहले अपने पति से भी अपनी गांड मरवा लेती थी, उनके बाद भी अपनी गांड में मूली गाजर ले लेती थी, तो अगर वो मेरी गांड में अपनी उंगली डाल भी देता तो मुझे कोई दिक्कत नहीं थी।

मगर उसने उंगली नहीं डाली और थोड़ा और आगे को झुका और अपना हाथ बढ़ा कर मेरी चूत पर ले गया। मैंने अपनी टांग थोड़ी ऊपर को उठाई तो उसकी उंगली आसानी से मेरी चूत को छू गई। वो मेरी चूत को सहलाने लगा और मैं उसका लंड चूसती रही। मेरी चूत से पानी चू कर मेरी सलवार और उसकी कार की सीट तक पहुँच गया।

मगर इस वक़्त हम दोनों काम में इतने अंधे हो चुके थे कि हमें और कुछ भी दिखाई या सुनाई नहीं दे रहा था।

फिर उसके लंड का गर्म लावा मेरे मुँह में ज्वालामुखी की तरह फूटा; गर्म माल से मेरा मुँह भर गया और मैं उसके माल को गटागट पी गई, घूंट भर भर कर मैं उसका माल पिया और तब तक चाटती रही जब तक उसके लंड से वीर्य की आखरी बूंद तक न निकल गई हो।

मैं भी उसकी उंगली के चूत में खलबली मचाने के कारण झड़ने के कगार पर थी। मैंने उसे कहा- थोड़ा सा और कर दो, मैं भी झड़ने वाली हूँ।
वो ज़ोर ज़ोर से मेरी चूत में उंगली करने लगा, मैंने फिर से उसका लंड चूसना शुरू कर दिया और फिर मैं भी झड़ गई; मेरी चूत से गर्म पानी की धारें बह निकली।

वो बोला- अरे साली तू तो बहुत पानी छोड़ती है।
मगर मैं तो उस वक़्त काम ज्वाला में जल रही थी, सो मैंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। मैं उसी तरह उसकी गोद में उसका लंड मुँह में लिए शांत लेटी रही।

मेरे दिमाग में ख्याल आया कि पुरुष भी कितना स्वार्थी होता है। एक वो दिन था, जिस दिन इसी लड़के ने मुझे आंटी जी कह कर मेरे पाँव को हाथ लगाया था और आज यह मुझे साली कह रहा है। फिर मैंने सोचा, अगर यह स्वार्थी है, तो मैं भी तो स्वार्थी हूँ। मैंने भी तो इस अपने बेटे जैसे लड़के को अपना जिस्म सौंप दिया है, उसने मेरे पति के बाद पहली बार मेरे जिस्म को नंगा देखा, उसे सहलाया, उसका इस्तेमाल किया, तो मैंने अगर उसे ये मौका दिया, तब उसने ये सब किया, अगर मैं उसे मौका ही न देती, क्या वो ये सब कर पाता, हो सकता है वो आज भी मुझे आंटी कहता, मगर अब तो उसने मुझे साली कह कर गाली थी।

फिर मैंने सोचा ‘कोई बात नहीं, अगर मैं रंडी बन कर इसके साथ ये सब कर रही हूँ, तो मुझे इसकी गालियां भी खानी पड़ेंगी।’

वो बोला- क्या सोचने लगी मेरी जान?
मैंने कहा- कुछ नहीं।
वो बोला- अरे नहीं, कुछ तो सोच रही हो।
मैंने कहा- मैं सोच रही थी कि जिस दिन मैं पहली बार तुम्हारे घर आई थी, अपने पति के साथ तो उस दिन तुमने मुझे आंटी जी कह कर मेरे पाँव छूए थे, और आज देखो तुम मेरे जिस्म के साथ खेल रहे हो, और मैं भी तुम्हारे साथ क्या क्या कर रही हूँ।
वो बोला- सब वक्त का खेल है, पम्मी आंटी जी। आप आज भी मेरे आंटी ही हो, बस अब हम दोनों बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड बन गये हैं, तो अब तो मैं आपको अपनी माशूका कह सकता हूँ। तू कह कर भी बोल सकता हूँ, अगर आपको बुरा न लगे तो!
मैंने कहा- नहीं मुझे कोई बुरा नहीं लगेगा, मैं भी मानती हूँ कि तुम मेरे बॉयफ्रेंड हो।

उसने आगे बढ़ कर मेरे होंठ चूम लिए और बोला- मगर अपनी इस मुलाक़ात को आखरी मत बना देना, अब हम अगली बार मिलेंगे, तो फुल सेक्स करेंगे। मेरे एक दोस्त का घर अक्सर खाली ही रहता है, हम लोग वहाँ चलेंगे। ठीक है?
कह कर उसने गाड़ी स्टार्ट की और हम चल पड़े।

घर आकर मैं सोचने लगी कि क्या आज जो मैंने किया, वो सही किया, या गलत किया, क्या मुझे उस लड़के से आगे अपने संबंध बढ़ाने चाहियें?
आप बताइये, मुझे क्या करना चाहिए?
जो हो गया सो हो गया, मुझे आगे नहीं बढ़ना चाहिए और अपनी इज्ज़त को बचा कर रखना चाहिए?
या फिर इस रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहिए और उस लड़के के साथ सेक्स कर लेना चाहिए?
क्या मुझे अपनी की हुई छोटी सी गलती सुधार लेनी चाहिए या इस गलती को भूल कर और बड़ी गलती करनी चाहिए?
मैं चाहती हूँ कि मेरी कहानी पढ़ने वाली हर लड़की हर औरत मुझे अपनी सोच से जवाब भेजें!
मर्द तो कहेंगे ही ‘कर लो कर लो … कुछ नहीं होता।’

आप अपने विचार वरिन्द्र सिंह जी की इमेल आईडी [email protected] पर भेज दें या फिर डिसकस कमेंट्स पर जाकर अपने विचार मुझे बतायें.

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top