चाची द्वारा संसर्ग की मनोकामना पूर्ति-2
(chachi Dwara Sex Ki Manokamna Purti- Part 2)
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keyboard_arrow_left चाची द्वारा संसर्ग की मनोकामना पूर्ति-1
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सम्पादिका : तृष्णा
पांच मिनट के इस तीव्र गति के यौन संसर्ग के समय ही बुआ का पूरा शरीर अकड़ गया और उनकी योनि ने मेरे लिंग को जकड़ लिया था।
मैं उस जकड़न के विरुद्ध जाकर धक्के लगता रहा और अत्याधिक रगड़ लगने के कारण मैं भी तुरंत चरमसीमा पर पहुँच गया और अपने वीर्य रस का संख्लन बुआ की सिकुड़ी हुई योनि में ही कर दिया।
मैं निढाल हो कर बुआ के उपर ही लेट गया और लगभग पांच मिनट तक लेटे रहने के बाद जब मैं उठने लगा तो बुआ ने मुझे दबोच लिया और मेरे पर चुम्बनों की बौछार कर दी। बुआ को यौन संसर्ग से पूर्ण संतुष्टि एवं आनन्द मिलने के कारण वह बहुत खुश थी और उसी ख़ुशी को वह अपने चुम्बनों के द्वारा प्रदर्शित कर रही थी। बुआ तो एक दौर और करना चाहती थी लेकिन मुझे देर हो रही थी इसलिए मैंने उत्तर में बुआ को एक लम्बा चुम्बन लिया और उठ कर खड़ा हो गया।
इससे पहले बुआ कि दुसरे दौर के लिए दोबारा कहे मैंने उन्हें बिस्तर पर नग्न लेटा छोड़ कर अपने कपड़े पहने और तैयार हो कर कमरे से बाहर चला गया।
बाहर आकर मैंने अपना सारा सामान अपनी मोटर साइकिल के पीछे बाँधा और उस पर बैठ कर गाँव की ओर निकल पड़ा।
लगभग एक घंटे के सफर के बाद शाम साढ़े पांच बजे मैं गाँव पहुँचा तो वहाँ सब ने बहुत ही गर्म-जोशी से मेरा स्वागत किया। जब मैं अपना सामान लिए हाल कमरे में गया तब बड़ी चाची भी मेरे पीछे आ गई और मेरे सामान रखते ही उन्होंने मुझे कस कर अपने गले लगाया और अपने स्तनों को मेरी छाती में गाड़ दिया, उन्होंने मेरे माथे तथा दोनों गालों को चूमने के साथ साथ मेरे होंठों का भी एक लम्बा सा चुम्बन ले लिया।
फिर मैं और बड़ी चाची वापिस बड़ी बैठक में जाकर बैठ गए और सबके साथ हंसी मज़ाक तथा इधर उधर की बातें होती रही।
बातों ही बातों में मुझे पता चला की अगले दिन छोटे चाचा अपने पूरे परिवार के सहित, छोटी चाची के बड़े भाई की बेटी की शादी में, दस दिनों के लिए अपने ससुराल जा रहे हैं। साथ में बड़ी चाची के बेटे और बेटी से यह भी पता चला की बड़े चाचा भी अगले दिन उन दोनों को उनके ननिहाल में छोड़ने जायेंगे और तीन दिन वही रह कर चौथे दिन ही वापिस गाँव पहुँचेगें।
पीछे गाँव में दादाजी और दादीजी अकेले रह जायेंगे इसलिए बड़ी चाची ने अपना मायके जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया था और इसीलिए अपना अकेलापन दूर करने के लिए मुझे गाँव बुला लिया था।
रात को नौ बजे सब खाना खाकर सोने चले गए क्योंकि उन सब को प्रातः पांच बजे की बस पकड़ने के लिए जल्दी उठना था।
मैं भी थका हुआ था इसलिए मैंने भी जल्दी सोने का निर्णय लिया और कपड़े बदल के अपने बिस्तर पर जाकर सो गया।
सुबह चार बजे सब के तैयार होने के शोर ने मुझे भी जगा दिया तो मैंने देखा कि बड़ी चाची सबके लिए चाय और कुछ खाने की व्यवस्था कर रही थी।
उन्हें अकेले ही काम करते और भाग दौड़ करते देख कर मैं उनकी मदद करने के लिए रसोई में चला गया। वहाँ से मैं चाची से चाय आदि ले कर हर किसी के कमरे में पहुँचाता रहा।
साढ़े चार बजे तक जब सभी चले गए तब मैं भी अपने बिस्तर पर सोने के लिए चला गया।
मुझे अभी नींद नहीं आ रही थी और मैं आँखे बंद किये लेटा हुआ था तभी चाची ने मुझे झिंझोड़ कर उठाया और बोली- यहाँ अकेले क्यों सो रहे हो, चलो मेरे साथ मेरे कमरे में, वहीं मेरे साथ आराम से सो जाना।
मैं चाची के निमंत्रण को अस्वीकार नहीं कर सका और उनकी बात को मानते हुए उनके साथ उन्ही के कमरे में चला गया।
कमरे के अन्दर पहुँचते ही चाची ने अपनी साड़ी तथा पेटीकोट को उतार कर कुर्सी पर रख दिया और ब्रा तथा पैंटी के ऊपर नाइटी पहन कर बैड पर लेटते हुए मुझे दरवाज़े की सिटकनी लगाने के लिए कहा। जब मैं दरवाज़े की सिटकनी लगा कर मुड़ा तो देखा की चाची नाइटी के अन्दर हाथ डाल कर और अपने कूल्हों को ऊँचा करके अपनी पैंटी उतारने की कोशिश कर रही थी।
जब उनसे उनकी पैंटी नहीं उतरी और वह उनकी टांगों में ही फस गई तब उन्होंने मुझे उसे निकालने के लिए इशारा किया।
मैंने आगे बढ़ कर उनकी नाइटी को उनकी नाभि तक ऊँचा कर के उनके टांगों में फसी पैंटी को निकालने में उनकी मदद करने लगा। उन्होंने एक बार फिर से अपने कूल्हे ऊँचे किये और मैंने उनके नितम्बों से पैंटी को नीच सरका कर टांगों से अलग कर के कुर्सी पर पड़े कपड़ों के साथ रख दी।
जब मैं उनकी पैंटी उनकी जाँघों से नीचे सरका रहा था तब मुझे उनके जघन्स्थल पर एक भी बाल दिखाई नहीं दिया। उस सफाचट मैदान को देख कर मैंने अनुमान लगाया कि चाची ने एक दिन पहले ही वहाँ की हजामत करी होगी।
पैंटी के उतरते ही चाची बैड के एक तरफ सरक कर लेट गई और मुझे मेरा पजामा और कुरता उतार कर उनके पास लेटने को कहा। मैंने उनके निर्देश अनुसार अपना पजामा और कुरता उतार कर बनियान और जांघिये में उनके पास लेट गया।
चाची के स्तन एवं योनि तथा सफाचट जघन्स्थल देख कर मैं उत्तेजित हो गया था और मेरा लिंग चेतना की अवस्था में आ गया था। मुझे अपने तने हुए लिंग को जांघिये के अन्दर समेट कर रखने में दिक्कत हो रही थी और मैं उसे बार बार अपने हाथों से अपनी टांगों के बीच में कर रहा था।
चाची ने जब मेरी बेचैनी देखी तो अपना हाथ बढ़ा कर मेरे जांघिये को नीचे कर दिया और मेरे लिंग को पकड़ कर जांघिये से बाहर निकल दिया।
फिर उन्होंने मुझे बनियान और जांघिया उतार कर पूर्ण नग्न हो कर लेटने के लिए कहा। मैं चाची के अभिप्राय को समझ गया था इसलिए मैंने भी उन्हें नाइटी और ब्रा उतार कर नग्न होकर लेटने के लिए कह दिया।
चाची ने उत्तर में मुझे ही दोनों को निर्वस्त्र करने का आदेश सुना दिया।
मैंने उठ कर पहले अपनी बनियान और जांघिया उतार कर अपने को निर्वस्त्र किया तथा उसके बाद चाची का हाथ पकड़ कर उन्हें उठ कर बैड पर बैठने में मदद करी। जब चाची बैड पर बैठ गई तब मैंने उनकी नाइटी पकड़ कर ऊँची करी और उनके शरीर से अलग कर कुर्सी पर रख दी। फिर मैंने उनकी ब्रा का हुक खोल कर उसे भी उतार दी और कुर्सी पर पड़े कपड़ों पर रख दी।
अब हम दोनों ही नग्न थे, मैं बैड के पास खड़ा था और चाची बैड पर बैठी हुई थी तथा मेरा सचेत लिंग उनके सामने तन कर खड़ा था!
चाची ने आव देखा ना ताव और तुरंत मेरे लिंग को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और उसे चूमने लगी।
मैंने उनके सिर को पकड़ कर आगे के ओर दबाया तो उन्होंने अपने मुख को खोल दिया और मेरे लिंग को उसके अंदर जाने दिया।
जब मेरे लिंग का मुण्ड उनके मुँह के अन्दर चला गया तब उन्होंने मुझे रोक दिया और उसे चूसने में लीन हो गई। मैंने भी उनके स्तनों को पकड़ किया और उन पर लगी चुचूक को अपनी उँगलियों से मसलने लगा।
स्तनों की चुचूकों को मसलने से चाची उत्तेजित होने लगी और उन्होंने मुझे खींच कर नीचे लिटा दिया और मेरे सिर को पकड़ कर अपनी जांघों के बीच में दबा दिया।
जैसे ही चाची की योनि की गंध मेरी नाक में घुसी तो मुझे पता नहीं क्या हो गया और मैं अनायास ही उनकी योनि को चाटने लगा। मैं अपनी जीह्वा को चाची की योनि अन्दर बाहर करने लगा तथा अपनी जीह्वा के साथ उनके भंगाकुर को भी रगड़ना शुरू कर दिया।
मेरी जीभ की इस क्रिया से चाची की उत्तेजना की लहरें बढ़ गई और वह धीमे स्वर में सिसकारियाँ लेने लगी।
चाची की सिसकारियों ने मेरी उत्तेजना में भी वृद्धि कर दी और मैं हिलने लगा तथा अपने लिंग को चाची के मुख के अन्दर बाहर करने लगा।
इसके प्रत्युत्तर में चाची भी हिलने लगी और अपनी योनि तथा भंगाकुर को मेरी जीह्वा पर रगड़ने लगी। हम दोनों के इस संयुक्त प्रयास से चाची की योनि में से रस की एक छोटी से धारा बह निकली और मेरे लिंग में से भी वीर्य रस की कुछ बूंदें टपक पड़ी।
योनि रस की धारा और वीर्य रस की बूंदों का टपकना इस बात का संकेत था कि हम दोनों आपस में यौन संसर्ग के लिए तैयार थे।
इससे पहले कि मैं कुछ बोलता चाची मुझसे अलग होते हुए उठी और मुझे नीचे लिटा कर मेरे ऊपर चढ़ गई। फिर उन्होंने थोड़ा ऊँचा हो कर अपनी योनि के मुख को मेरे लिंग की सीध में किया और उस पर बैठ गई।
धीरे धीरे मेरा लिंग उनकी योनि के अन्दर प्रविष्ट होने लगा और देखते ही देखते कुछ ही क्षणों में मेरे पूरा लिंग उनकी योनि में समा गया था।
मुझे लिंग के चारों ओर से उनकी योनि की गर्मी महसूस होने लगी और ऐसे लगने लगा कि जैसे मेरा लिंग किसी आग की भट्टी में डाल दिया गया था!
उधर मुझे चाची के चेहरे पर भी कुछ असुविधा की रेखाएँ दिखाई दी, शायद मेरे ढाई इंच मोटे लिंग के अन्दर जाने से चाची को कुछ दिक्कत या फिर दर्द हुआ होगा इसलिए लगभग अगले दो मिनट तक वह मेरे पूरे लिंग को योनि के अन्दर ही डाले उसी तरह मेरे ऊपर बैठी रही।
उसके बाद उन्होंने हिलना शुरू किया और आहिस्ता आहिस्ता उछल कर मेरे लिंग को अपनी योनि के अन्दर बाहर करने लगी।
उनकी सिकुड़ी हुई योनि मेरे लिंग को अच्छी तरह से रगड़ रही थी जिस के कारण मेरे लिंग का तनाव बढ़ता जा रहा था और वह फूलता जा रहा था।
तभी चाची बहुत ही तेज़ी से उछलने लगी और दस-बारह उछालों के बाद उनका बदन अकड़ गया तथा उनकी योनि ने सिकुड़ कर मेरे लिंग को अन्दर की ओर खींच लिया।
तभी मैंने महसूस किया कि चाची की योनि में से रस रिसने लगा था और वह मेरे अंडकोष को गीला करते हुए मेरी जाँघों तक पहुँच गया था।
उस रस ने मेरे लिंग की गर्मी को और भी बढ़ा दिया और मुझे ऐसे लगा कि जैसे किसी ने मेरे लिंग में आग लगा दी हो।
अब स्थिति मेरे नियंत्रण से बाहर होती जा रही थी इसलिए मैंने उठ कर चाची को नीचे लिटाया और खुद उनके ऊपर चढ़ गया।
अगले कुछ क्षणों के बाद मेरा लिंग बहुत ही तीव्र गति से उनकी योनि में एक पिस्टन की तरह चल रहा था। चाची की योनि लगातार रस का दरिया बहा रही थी और मेरा लिंग उनकी रस से भरी योनि की झील में गोताखोरी कर रहा था।
मेरे अंडकोष उस बहते रस में जब चाची की योनि से टकराते थे तो ‘फच फच’ की ताल दे कर चाची की सिसकारियाँ को और भी मधुर एवं संगीतमय बना देते थे!
सम्भोग करते समय मैं चाची के होंटों तथा उनके स्तनों को चूमता तथा चूसता रहा था जिससे योनि में से रस के संखलन के बावजूद भी उनकी उत्तेजना में कोई कमी नहीं आई थी।
पन्द्रह मिनट तक की इस सम्भोग क्रिया में चाची ने मेरा पूरा साथ दिया और मेरे हर धक्के का उत्तर अपने कूल्हों को उचका कर दिया। मेरा लिंग जब भी चाची की बच्चेदानी से टकराता उनकी योनि के अन्दर एक ज़बरदस्त सिकुड़न होती और वह मेरे लिंग को जकड़ लेती।
उस सिकुड़न के साथ उनकी योनि अपने रस की एक किश्त भी स्खलित कर देती।
क्योंकि उन पन्द्रह मिनट में हम दोनों ने बहुत ही तीव्र गति से सम्भोग कर रहे थे इसलिए दोनों पसीने से भीग गए थे और हाँफने लगे थे।
तभी चाची ने एक बहुत ही जोर की सिसकारी ली और उनकी टाँगें अकड़ गई तथा उनकी योनि ने मेरे लिंग को बहुत ही जोर से जकड़ कर अन्दर की ओर खींच लिया।
चाची की योनि के इस आक्रमण के विरोध में मेरा लिंग फूल गया और इससे दोनों के गुप्तांगों को अत्याधिक रगड़ लगने लगी।
हमारे गुप्तांगों के अन्दर की इस अत्याधिक रगड़ के कारण हो रही उत्तेजना को हम दोनों अधिक देर तक सहन नहीं कर सके और अगले ही क्षण दोनों ने अपने अपने रस का विसर्जन कर दिया।
मैंने जब अपने को चाची से अलग करने की कोशिश करी तो कर नहीं पाया क्योंकि चाची के अन्दर योनि की जकड़न अभी तक कम नहीं हुई थी। वह अभी भी मेरे लिंग को ऐसे ही जकड़े हुई थी जैसे वह उसका कोई घनिष्ट परिचित है और उससे वर्षों पहले बिछुड़ गया था तथा अब पुन: मिला हो।
रस स्खलन के बाद मैं चाची की योनि में अपने लिंग को डाले हुए ही उनके ऊपर लेटा उनके होंटों और स्तनों को चूसता रहा।
पांच मिनट के बाद जब मैं चाची से अलग होने के लिए थोड़ा ऊँचा हुआ तो चाची के आखों में अश्रुओं की धारा देखी।
मैंने उस समय उनसे अलग होने का विचार त्याग दिया और फिर से उनके ऊपर लेट कर उनके होंटों और स्तनों को चूसता रहा।
कुछ देर के बाद जब मैंने उनसे उनकी गीली आँखों का कारण पूछा तो उन्होंने कहा- विवेक, मुझे तुम्हारे चाचा के साथ शादी के बाद से ही यौन संसर्ग करते हुए लगभग सतरह वर्ष हो गए है लेकिन आज तक मुझे ऐसी तीव्र और अधिक अवधि की सिकुड़न कभी नहीं हुई। आज तुमने वह असीम आनन्द और संतुष्टि प्रदान की है जो मुझे आज तक नसीब नहीं हुई थी। तुम्हें चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह अश्रु तुम्हारे द्वारा मुझे आनन्द और संतुष्टि प्रदान करने तथा मेरे द्वारा तुम्हारी मेरे साथ संसर्ग करने की मनोकामना पूरी करने की ख़ुशी के कारण निकल आये थे।
चाची की बातें सुन कर मैंने हर्ष-उल्हास में उन्हें अपने बाहूपाश में जकड़ कर उनके मुख में चूम चूम कर गीला कर दिया।
तभी मैंने चाची की योनि में थोड़ा सा ढीलापन महसूस किया तो अपने लिंग को उसकी पकड़ से अलग कर के बाहर निकाल लिया और करवट लेकर उनके बगल में लेट गया।
लिंग के बाहर आते ही मेरे और उनके मिश्रित रस से लाबालब भरी उनकी योनि में से सारा रस बह कर बाहर आ गया।
चाची को जब उनकी योनि से निकले रस से अपनी जांघें और बिस्तर की चादर पर गीलापन महसूस हुआ तो वह उठ कर बैठ गई। उनके साथ मैं भी उठ गया और हम दोनों ने मिल कर उस चादर और अपने आप तथा एक दूसरे को साफ़ किया तथा बिस्तर की चादर भी बदल दी।
फिर जब चाची ने घड़ी में छह बजे का समय देखा तो तुरन्त घर का काम करने के लिए बाहर चली गई और मैं उनके बिस्तर पर लेट गया तथा मुझे नींद आ गई।
प्रिये मित्रो, गाँव में पन्द्रह दिनों में मेरे साथ क्या क्या हुआ वह सब मैं आपको इस शृंखला की अगली रचना में बताऊँगा। तब तक मेरे जीवन में घटित इस घटना का विवरण पढ़ कर आप अपनी प्रतिकिया मुझे भेजें।
अन्त में मैं श्रीमती तृष्णा जी के प्रति अपना आभार प्रकट करना चाहूँगा जिन्होंने मेरी इस रचना को सम्पादित किया और उसमें सुधार कर के आप सब के लिए अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने में मेरी सहायता की !
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