बरसों की प्यास पर प्यार की बरसात – 2

(Barson Ki Pyas Par Pyar Ki Barsat-2)

This story is part of a series:

मेरे प्यारे मित्रो,

आपने मेरी पिछली कहानी को पढ़ा और सराहा, उसके लिए मैं आभार प्रकट करता हूँ। जो आपने कामेंट्स और ढेरों ईमेल मुझे भेजे, उनसे मुझे प्रेरणा मिली कि मैं आगे के क़िस्से भी आप सबके लिए लिखूँ और आप मेरी कहानी पढ़कर अपने लण्ड और चूत में दबा के ऊँगली करें और फिर मुझे लिखें।

मेरी पिछली कहानी में आपने पढ़ा कि कैसे कविता की चूत चुदाई हुई और कैसे मोहित ने उसकी बरसों की प्यास बुझाई।
कविता की ज़िंदगी बहुत तेज़ी से बदल रही थी और जो अनुभव उसको मोहित के साथ रहकर मिल रहे थे, अपने पति के साथ बिताए पिछले 15 सालों से ज़्यादा में भी उसने कभी उनकी कल्पना तक नहीं की थी।

कविता की हल्की फुलकी चुदाई अब जैसे रोज़ की कहानी बन चुकी थी। अब मोहित ने भी कविता के घर जैसे अपना डेरा ही डाल लिया था। कभी मोहित कविता को रसोई से पकड़ के अपने कमरे में ले जाकर चोद देता तो कभी उसको किसी और काम के बीच में चुदाई करने को घेर लेता।
उस घर का ऐसा कोई कोना नहीं था जिसमें मोहित ने उसकी चुदाई ना की हो। यहाँ तक कि कामसूत्र का ऐसा कोई आसन नहीं था जिसमें मोहित ने कविता की चूत को ना रौंदा हो।

मगर अब मोहित पूरे इत्मीनाम से, तसल्ली से कविता की चुदाई करना चाहता था और उसके अवसर की तलाश में था।
कविता की चूत भी कब तक ख़ैर मनाती।
आख़िर एक दिन कविता के पति को किसी काम से बाहर जाना पड़ा।
रात भर कविता को किस किस आसन में चोदना है, मोहित इसकी तैयारी में था।
मोहित ने कविता को कह दिया था कि आज वो दोनों अपनी सुहागरात मनाएँगे और कविता को उसके लिए तैयार रहने को भी बोल दिया।

क़रीब रात के 11 बजे, जैसे ही बच्चे अपने कमरे में सोने गए और उनके कमरे की लाइट बंद हुई, मोहित कविता के कमरे में घुस गया और कमरा अंदर से बंद कर लिया।
बिस्तर पे लेटी कविता को देख मोहित के होश ही उड़ गए। कविता लाल रंग की सिल्क की नाइटी पहने मोहित का इंतज़ार कर रही थी। क्यूँकि मोहित ने कविता की चुदाई हमेशा लण्ड शांत करने के लिए की थी, कविता की रंगत उसके लिए कोई मायने नहीं रखती थी पर आज बात अलग थी।
आज की रात उन दोनों की सुहागरात जो थी।

मोहित ने कविता को गले से लगा लिया और उसकी पीठ को मसलने लगा।
देखते ही देखते दोनों के होंठ आपस में मिल गए और शुरू हुआ सिलसिला लम्बी फ़्रेंच किस का।
मोहित के हाथ अब कविता के चूचों पर चल रहे थे और कुछ ही देर में मोहित कविता की नाइटी के अंदर हाथ डालकर उसके नंगे चूचों को बेरहमी से मसल रहा था।

इधर कविता भी गरम होती जा रही थी और उसकी चूत से पानी बहना शुरू हो गया था। कविता को अहसास भी नहीं था कि आज की चूदाई उसको मोहित का ग़ुलाम बना देगी।

क़रीब दस मिनट बाद मोहित ने कविता को ख़ुद से अलग किया और अपनी जेब से सिंदूर की पुड़िया निकाल कर कविता की माँग भर दी।
मोहित चाहता था कि वो कविता को ज़िंदगी भर चोद सके और उसके लिए कविता को अपनी पत्नी होने का अहसास दिलाना ज़रूरी था।
कविता ने मोहित को अपनी बाहों में ले लिया और उसकी आँखों से ख़ुशी के आँसू छलक गए।

मोहित ने देर ना करते हुए कविता की नाइटी उतारी तो देखा कि कविता ने डिज़ाइनर ब्रा पैंटी पहनी थी।
कविता ने बताया कि आज पहली बार उसने ऐसी ब्रा पैंटी पहनी है।

मोहित ने कविता की पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत को अपने हाथों में लेकर ऐसे मसला कि कविता काँप उठी।
मोहित ने कविता की ब्रा उतार साइड में फेंकी और उसके निप्पलों को जीभ से चाटने लगा। कविता के निप्पल सख़्त हो चुके थे और मोहित रह रह कर उनको अपने दाँतों से काट रहा था।
मोहित कभी इतनी ज़ोर से काट लेता कि कविता की चीख़ निकल जाती पर वो अपनी चीख़ अपने गले में ही घोट लेती क्यूँकि पास के कमरे में बच्चे सो रहे थे।
इसका सबसे ज़्यादा मज़ा मोहित को आ रहा था क्यूँकि उसको कविता के दर्द और बेबसी दोनों का अहसास था।

थोड़ी ही देर में मोहित कविता के दूध पीने लगा। मोहित को कविता के चूचे कभी इतने मुलायम और रसीले नहीं लगे क्यूँकि उसने कविता की चुदाई हमेशा जल्दबाज़ी में ही की थी।
पर आज वो पूरे मूड में था और कविता के चूचे ऐसे चूस रहा था जैसे वो कोई भूखा बच्चा हो।

कविता भी मोहित के लण्ड से खेलने के लिए बेताब थी और उसके लण्ड को कपड़ों के ऊपर से ही मसल रही थी।
मोहित ने जल्द ही अपने कपड़े उतार फेंके और कविता के हाथ में अपना लण्ड थमा दिया।
उत्तेजना के कारण, मोहित का लण्ड अपने साइज़ से ज़्यादा बड़ा और मोटा हो चुका था जिसे देख कर कविता के चेहरे पे ख़ुशी अलग छलक रही थी।

मोहित ने कविता को गोद में उठाकर बिस्तर पे लिटा दिया और उसके शरीर को चूमने चाटने लगा। होंठों से गले पे फिर चूचों पे फिर नाभि पे और फिर कविता की चूत पे।
मोहित पैंटी के ऊपर से ही कविता की चूत को चाट रहा था। कविता की चूत की भीनी भीनी ख़ुशबू मोहित को और ज़्यादा उत्तेजित कर रही थी।

मोहित ने अपनी एक ऊँगली कविता की पैंटी की साइड से उसकी चूत में डाल दी और उसको अंदर बाहर करने लगा।
कविता अपने शीर्ष पर थी और एक घुटी आह के साथ उसने अपनी योनि रस छोड़ दिया जिसे मोहित पैंटी के ऊपर से ही चाट गया। कविता शिथिल पड़ी थी कि मोहित ने एक झटके में उसकी पैंटी उसके शरीर से अलग कर दी।
अब दोनों बिल्कुल नंगे एक दूसरे को समर्पित थे।

मोहित ने अपना तना हुआ लण्ड कविता के मुँह के आगे कर दिया जिसको देख के कविता ने मुँह फेर लिया। मोहित ने बहुत कोशिश की कविता को अपना लण्ड चूसाने की पर कविता नहीं मानी क्यूँकि उसने ऐसा कभी नहीं किया था।
मोहित ने ज़ोर लगाकर अपने लण्ड को कविता के होंठों से तो छुआया पर उसका मुँह ना खुलवा सका।
हार मानकर मोहित ने सोचा कि अगर इसने लण्ड नहीं चूसा तो इसकी माँ चोद दूँगा आज।
अगर आज इसकी गान्ड नहीं फाड़ी तो क्या किया।
यह सोचकर मोहित अपना मन मारकर रह गया।

मोहित का लण्ड तन्नाया पड़ा था और उस पर कविता ने उसको चूसने से मना कर दिया था।
तैश में आकर मोहित ने ने कविता की टांगों को ऊपर उठाया और अपना लण्ड उसकी चूत पे टेक एक ज़ोरदार धक्का मारा।
मोहित का पूरा लण्ड कविता की चूत फाड़ता हुआ कविता की बच्चेदानी से जा टकराया।
ना चाहते हुए भी कविता के मुँह से चीख़ निकल ही गई। वो समझ चुकी थी कि यह उसको लण्ड ना चूसने की सज़ा मिली है।

पर चूत की खुजली के आगे कविता को भी सब मंज़ूर था।

मोहित अपना लण्ड पूरा बाहर निकलता और दोबारा झटके से जड़ तक पूरा अंदर पेल देता। हर झटके के साथ कविता के चूचे झटक के रह जाते और कविता सिसकारियाँ लेकर रह जाती।कविता की ऐसी धुआँधार चुदाई पहली बार हो रही थी पर हर झटके के साथ वो पहले से ज़्यादा आनन्द ले रही थी।

क़रीब दस मिनट की ज़ोरदार चुदाई के बाद कविता का शरीर अकड़ने लगा और वो झड़ने लगी पर मोहित का लावा बनना अभी शुरू भी नहीं हुआ था। मोहित को तो लण्ड ना चूसे जाने का दर्द सता रहा था और उसकी स्पीड बढ़ती ही जा रही थी। उसने कविता के चूचों पे काट काट कर निशान भी बना दिए थे और वो बेदर्दी से कविता की चुदाई चालू रखे था।

इस बेदर्दी से जहाँ कविता को दर्द हो रहा था, वहीं मोहित के इस रूख से इतनी उत्तेजना भी हो रही थी कि वो दोबारा अपने चरम पे पहुँच स्खलित होने लगी थी।

कविता थक चुकी थी और मोहित भी 15-20 मिनट से इसी आसान में चुदाई करके ऊब गया था तो उसने कविता को घोड़ी बनने को बोला।
मोहित उसकी गान्ड पर थाप लगाते उसको चोदना चाहता था।

कविता हाँफते हुए, अपनी साँसें एकजुट करके जैसे तैसे उठी और घोड़ी बन गई।
मोहित ने कविता की टाँगें खोल उसकी चूत को सूँघा और अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटा तो मोहित की नाक कविता की गान्ड तक पहुँची।
उसकी दुर्गन्ध भी अब मोहित को उत्तेजित कर रही थी और मोहित ने कविता की चूत से गान्ड तक अपनी जीभ फेरते हुए उसके चूचों को अपने हाथों से ही मर्दन करना शुरू कर दिया।

कविता दोबारा उत्तेजित हो चुकी थी और मोहित इसी के इंतज़ार में था। मोहित ने अपना टनाटन लण्ड कविता के पीछे से उसकी चूत पे टिका के हल्के से अंदर पेला और एक ज़ोरदार थप्पड़ उसकी गाण्ड पे लगाया जिससे कविता को दर्द हुआ और उसकी आह निकलने के साथ साथ उसकी चूत भी थोड़ी कस गई।

मोहित ने इसको भाँपते ही ज़ोरदार झटका लगा अपना बाक़ी लण्ड कविता की चूत में पेल दिया।
टाइट चूत और तना हुआ लण्ड, मोहित और कविता को इससे ज़्यादा और क्या चाहिए था?

चुदाई की इस पारी को काफ़ी देर हो चली थी और मोहित झड़ने से कोसो दूर था। जब भी उसका लावा बनता, वो धक्कों को हल्का कर देता या लण्ड चूत से निकाल लेता। जैसे ही उसको कविता की चूत में सहजता या ढीलापन महसूस होता, वो कविता की गाण्ड पे दो चार थप्पड़ लगाने से नहीं चुकता।
कविता को दर्द और आनन्द के मिश्रण की ऐसी अनुभूति कभी नहीं हुई थी और मोहित ने भी कभी नहीं सोचा था कि वो कभी कविता यूँ रण्डियों की तरह भी चोदेगा।

यह ख्याल मोहित के दिमाग़ पे हावी होते ही उसने कविता की चूत से पूरे लण्ड को बाहर निकाल टाप्म-टाप धक्के लगाने शुरू किए और वो अपने असीम सुख की तरफ़ बढ़ चला।

कविता की चूत ने अब तक चार बार सैलाब बहा दिया था और इस तूफ़ानी चुदाई से वो एक बार फिर झड़ने वाली थी।
मोहित ने अपने हाथ कविता की लाल सुर्ख़ हुई उभरी गान्ड पे टेक आख़री कुछ धक्के लगा कर कविता की चूत को अपने लावे से भर दिया। मोहित की गर्म मलाई जैसे ही कविता की चूत में पड़ी, कविता एक बार फिर स्खलित होने लगी और मोहित वहीं कविता के ऊपर ढेर हो गया।
पूरा कमरा दोनों के काम रस की मादक ख़ुशबू से भर चुका था।

थोड़ा होश आने पर कविता ने देखा कि उसकी चूत से बह रहे रसों से पूरी चादर गीली और चिपचिपी हो चुकी थी।
मोहित के थप्पड़ मारने से उसकी गान्ड सूज चुकी थी और बहुत दर्द कर रही थी। ना उसमें और ना ही मोहित में, ज़रा भी उठने की ताक़त थी।
जैसे तैसे उसने मोहित के सीने पे अपना सिर रख ‘I Love U’ बोला और मोहित ने उसे अपने सीने से लगा लिया।
रात का एक बज रहा था, दोनों इतने थके थे कि पता नहीं कब दोनों की आँख लग गई।

क़रीब 3:30 बजे मोहित की आँख खुली तो उसने देखा कि कविता उससे चिपटी सो रही है। उसके नंगे बदन और उससे आ रही गर्मी से मोहित के लण्ड ने फिर अपना फ़न उठाना शुरू किया।
मोहित ने कविता को उठाया और उसके होंठों को चूसने लगा।
कविता की हालत, तूफ़ानी चूदाई से बहुत ख़राब हो चुकी थी और उसकी चूत-गान्ड सब दर्द कर रही थी। मोहित ने स्थिति समझते हुए कविता को साथ नहाने को बोला और वो कविता को अपनी बाहों में उठा बाथरूम ले गया।

दोनों गरम पानी से तब तक नहाए जब तक दोनों तरो-ताज़ा महसूस नहीं करने लगे।
मोहित ने कविता को अपनी गोद में बिठा उसके चूचों को चूसना शुरू किया और नीचे से उसका लण्ड हिल-हिल कर कविता की चूत पर दस्तक देने लगा।
कविता बोली- तुम्हें अभी भी शांति नहीं मिली क्या?

मोहित- बस एक बार अपनी चूत में डाल कर इसको गीला कर दो मेरी जान!
कविता- तुमने अपने अंदर एक जानवर पाल रखा है मोहित। पता नहीं मैंने कैसे तुम्हें बर्दाश्त किया है।
मोहित- यह मत कहना कि तुम्हें मज़ा नहीं आया।
कविता- बहुत मज़ा आया पर मैंने इतनी लम्बी पारी ज़िंदगी में पहली बार खेली है। पता नहीं कितनी बार मैंने डिस्चार्ज किया है आज। वरना इनके साथ तो ज़्यादा से ज़्यादा दो चार मिनट और डिस्चार्ज होना कभी कभी। तुमने मेरी प्यास बुझा दी मोहित।

मोहित- अभी कहाँ मेरी जान। अभी सुबह होने में समय है और पता नहीं इतनी फ़ुरसत से फिर कब हमारा मिलन हो।
और इतना कह कर मोहित ने अपने हाथ से अपना लण्ड सेट कर कविता की चूत में प्रवेश करा दिया।
कविता- मेरे शरीर में हिम्मत नहीं है मोहित, प्लीज़ अब नहीं।
जैसे जैसे लण्ड कविता की चूत में घुस रहा था, कविता के चेहरे पे दर्द झलकने लगा था। मोहित ने कोशिश कर कुछ धक्के नीचे से लगाए पर कविता से सहयोग ना मिलने के कारण मोहित को नहा कर कमरे में आना पड़ा।

पर लण्ड अब भी अपनी अकड़ में खड़ा था और अब कविता को उसका ख़ौफ़ सताने लगा था। कविता कपड़े पहनने को हुई तो मोहित ने माना कर उसको गले लगा लिया।
दोनों ने चादर बदली और फिर बिस्तर पे लेट गए।
मोहित धीरे धीरे अपने हाथ कविता के बदन पे फेर रहा था और इससे कविता भी थोड़ी उत्तेजित होने लगी थी।

मोहित इस बार उसको नीचे से चोदना चाहता था और उसने कविता को अपने लण्ड पे बैठने को आमंत्रित किया।
यह कविता का सबसे पसंदीदा आसन था और कविता ने भी बिना किसी देरी के मोहित का लण्ड अपने हाथ में पकड़, उस पर ज़ोर देना शुरू कर दिया।

कुछ ही पल में मोहित का पूरा लण्ड कविता की चूत में था और कविता उसकी जमकर सवारी कर रही थी। पूरा लण्ड अंदर लेकर कविता आहिस्ते से मोहित के ऊपर बैठ गई और हल्के से आगे पीछे होने लगी।

मोहित आराम से नीचे लेटा हुआ कविता के चूचों को सहला रहा था और मज़े ले रहा था।
थोड़ी देर में कविता थक गई और उसने नीचे आने को बोला तो मोहित ने नीचे से ही धक्के लगाना शुरू कर दिया।
दूसरी पारी के दौरान भी कविता तीन बार झड़ी जबकि मोहित का लावा अभी बनना शुरू भी नहीं हुआ था। मोहित के पेट में लम्बी चुदाई करने के कारण दर्द होने लगा था पर अभी उसका मन नहीं भरा था और वो हिम्मत करके कविता की चुदाई करने में जुटा पड़ा था।

मोहित ने कविता को थोड़ा जंगली होकर लव बाइट देने को कहा ताकि वो जल्दी झड़ सके।
कविता ने मोहित के बदन पे काटना और चूमना शुरू कर दिया जिससे मोहित अपने चरम पे पहुँचने लगा। कविता ने मोहित के सीने को अब तक लाल कर दिया था और दोनों एक बार फिर साथ में स्खलित हुए।

सुबह के 5 बजने वाले थे और रोशनी भी होने लगी थी, बच्चों के उठने का भी समय होने ही वाला था, मोहित और कविता ने एक दूसरे को लम्बे समय तक गले लगाया और फिर मोहित अपने कमरे में सोने चला गया।
इस रात में मोहित को सिर्फ़ एक चीज़ की कमी रही थी कि कविता ने उसके लण्ड को चूसने से मना कर दिया था वरना यह रात मोहित और कविता दोनों ही ज़िंदगी भर नहीं भूलने वाले थे।

आगे की कहानियाँ भी जल्दी ही लिखूँगा, तब तक आपके कामेंट्स और ईमेल का इंतज़ार करूँगा।
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top