अठरह वर्ष पूर्व दिए गए वचन का मान रखा-1
(Atharah Varsh Poorv Diye Vachan Ka maan Rakha- Part 1)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_right अठरह वर्ष पूर्व दिए गए वचन का मान रखा-2
-
View all stories in series
लेखिका : नलिनी रविन्द्रन
अनुवादक एवं प्रेषिका: तृष्णा लूथरा
अन्तर्वासना के सम्मानित पाठकों आप सबको मेरी ओर से हार्दिक अभिनंदन।
मेरा नाम नलिनी है तथा मैं दक्षिण भारत के एक बड़े शहर में अपने पति रविन्द्रन के साथ रहती हूँ।
दो वर्ष पहले मेरी इकलौती बेटी पल्लवी की शादी हो जाने के बाद घर पर सारा दिन खाली बैठे रहने से मेरे जीवन में एकाकीपन आ गया था जिसे दूर करने के लिए मैंने अन्तर्वासना का सहारा लिया।
इन दो वर्षों में मैंने अन्तर्वासना पर अनगिनित कहानियाँ पढ़ी और जब मुझे कुछ कहानियों में सत्यता की झलक भी देखने को मिली तब मैंने अपने जीवन की एक घटना को प्रकाशित करने का निश्चय किया।
दक्षिण भारतीय होने के कारण मुझे रचना को हिंदी में लिखने में बहुत कठनाई हो रही थी इसलिए मैंने अन्तर्वासना पर रोचक एवं सुन्दर रचनाओं की लेखिका श्रीमती तृष्णा लूथरा जी से संपर्क किया।
अनेक संदेश भेजने एवं अत्यंत आग्रह करने के बाद ही श्रीमती तृष्णा लूथरा जी ने मेरी रचना का अनुवाद करने के लिए सहमत हुई और तब जाकर मेरे जीवन की उस घटना को निम्नलिखित रूप मिला:-
जब भी कोई व्यक्ति अकेले में बैठ कर अपने जीवन के व्यतीत किये गए खट्टे-मीठे पलों को याद करता है तब वह उनमें से कुछ ख़ास क्षणों की यादें संजो कर रखता है।
मैंने भी अपने जीवन की अनगिनित घटनाओं में से एक घटना के उन ख़ास क्षणों का विवरण तृष्णा लूथरा जी को सौंपा था और उन्होंने उसे एक रंग बिरंगे गुलदस्ते की तरह आप के लिए पेश किया है।
अपने जीवन की जिस घटना का मैं उल्लेख कर रही हूँ वह मेरे साथ लगभग दो वर्ष पहले ही घटी थी लेकिन उसका आधार मेरी नासमझी के कारण लगभग बीस वर्ष पहले रखा गया था।
उस समय मेरी शादी को डेढ़ वर्ष ही हुए थे की मेरे पति जिस कंपनी में नौकरी करते थे उसके मालिक की अकस्मात मृत्यु होने से वह कंपनी बंद हो गई।
क्योंकि उन दिनों मैं गर्भवती थी और पति के पास नौकरी नहीं होने के कारण मुझे विवश हो कर अपने इकलौते बड़े भाई साहिब के पास सहायता के लिए जाना पड़ा।
भाग्यवश उन दिनों मेरे भाई साहिब को अपनी फैक्ट्री की देखरेख के लिए एक विश्वसनीय व्यक्ति की आवश्यकता थी इसलिए उन्होंने तुरंत मेरे पति को अपनी फैक्ट्री में रख लिया।
हम तो अलग से किराए का घर ले कर रहना चाहते थे लेकिन मेरी भईया भाभी ने हमारी कोई बात नहीं मानी और हमें उनके साथ ही रहने के लिए विवश कर दिया।
भाई-भाभी और उनका तीन वर्ष का बेटा घर के भूतल में रहते थे और हमें प्रथम तल में रहने के लिए बाध्य कर दिया था।
मेरी भाभी बहुत ही ठहरी हुई एवं मधुर स्वाभाव की स्त्री है इसलिए मेरी गर्भावस्था को देखते हुए उन्होंने एक माँ की तरह मेरी देखभाल करी।
मेरा भतीजा नागेन्द्र बहुत ही नटखट था और उसकी बातें सुन कर तो हम सब बहुत ही आश्चर्य में पढ़ जाते थे।
कभी कभी तो हमें उसके प्रश्नों के उत्तर देने में भी संकोच होने लगता था लेकिन फिर भी वह मेरे साथ बहुत हिल-मिल गया था मुझे भी उसके साथ बहुत लगाव हो गया था।
प्रसव के बाद जब मैं अपनी बेटी पल्लवी को हस्पताल से घर ले कर आई तो मेरा भतीजा उत्सुकता-वश पूरा दिन मेरे आस पास ही घूमता रहता और अपने प्रश्नों के बाण छोड़ता रहता था।
एक दिन जब मैं पल्लवी को दूध पिला रही थी तब उसने पूछा– बुआ, आप यह क्या कर रही हैं?
मैंने एक सामान्य प्रश्न समझ कर कह दिया– तुम्हारी छोटी बहन को दूध पिला रही हूँ।
तब उसने अपना अगला प्रश्न पूछा- आपके हाथ में बोतल तो है नहीं। फिर दूध कहाँ से पिला रही है?
मैंने उसे उत्तर दिया– बेटा, अभी बोतल नहीं चाहिए है क्योंकि मैं उसे अपना दूध पिला रही हूँ।
तब उसने एक और तीखा प्रश्न दागा– क्या आप गाय-भैंस हो जो आप भी दूध देती हो?
उसकी बात सुन कर मैं आसमंजस में पड़ गई की मैं उसे क्या उत्तर दूँ तभी उसने पूछ लिया– बुअ आप बहुत झूट बोलती हैं। आपके थन तो हैं ही नहीं फिर आप दूध कहाँ से देती हो?
जब मुझसे कोई उत्तर नहीं बन पाया तो मैंने उसे डांटते हुए कहा– चुप रहो, बाहर जाकर खेलो। तुम्हारी आवाज़ सुन कर अगर पल्लवी ने दूध पीना बंद कर दिया और रोने लगेगी तो परेशानी बढ़ जाएगी।
मेरी बात सुन कर वह चुप तो हो गया लेकिन बिस्तर पर चढ़ कर बड़े गौर से देखने लगा कि मैं पल्लवी को दूध कहाँ से पिला रही हूँ।
कुछ देर बाद जब पल्लवी दूध पीकर सो गई और मैं उसे अपने से अलग करके बिस्तर पर सुला रही थी तब नागेन्द्र ने मेरे नग्न स्तन को पकड़ कर मुझसे पूछा– बुआ, क्या आप यहाँ से दूध देती हो? क्या पल्लवी यहाँ से दूध पीती है?
नागेंद्र की बात सुन कर मैं झेंप गई और उत्तर में ‘हाँ’ कहते हुए मैंने उसके हाथ को अपने स्तन से अलग करते हुए उसको जल्दी से अपने ब्लाउज में छुपा लिया।
अगले दो-तीन दिन जब भी मैं पल्लवी को दूध पिलाती तब वह मेरे आस पास ही मंडराता रहता और बड़े ध्यान से पल्लवी को मेरे चुचूक को चूसते हुए देखता रहता।
फिर एक दिन जब भाभी घर पर नहीं थी और मैं पल्लवी को दूध पिलाने के बाद उसे सुला कर हटी ही थी की नागेन्द्र मुझसे लिपट गया और कहने लगा– बुआ, मुझे भी दूध पीना है।
मैंने उस अपने से अलग करते हुए कहा- चलो, रसोई में चलते हैं, वहाँ मैं तुम्हे गिलास में दूध डाल कर देती हूँ।’
मेरी बात सुन कर उसने मुझसे चिपटते हुए बोला- बुआ, मुझे वही दूध पीना है जो पल्लवी पीती है और वैसे ही पीना है जैसे वह पीती है।
जब मैंने उसे डांटते हुए अपना दूध पिलाने से मना किया तब वह जोर जोर से चिल्ला कर रोने लगा जिससे मुझे चिंता होने लगी कि उसके शोर से कहीं पल्लवी जाग ना जाए।
मैंने तुरंत उसे उठा कर अपनी गोदी में लिटा लिया और अपना एक स्तन उसके मुँह में दे कर चुप कराते हुए कहा- लो तुम भी पी लो और अब रोना चिल्लाना बंद करो।’
कुछ देर वह मेरी चुचुक को चूसता रहा और जब उस स्तन से दूध निकलना बंद हो गया तब वह मेरे दूसरे स्तन को अपने हाथों से दबाने लगा।
मैंने उसके हाथड़ को अलग करते हुए उसके मुँह में अपना दूसरा स्तन दे दिया जिसे चूसते हुए वह मेरी गोदी में ही सो गया।
मैंने उसे भी पल्लवी के साथ वाले बिस्तर में सुला कर घर के काम में व्यस्त हो गई।
इसके बाद आये दिन नागेन्द्र मुझे से दूध पिलाने की जिद करता था और मैं पल्लवी के दूध पिलाने के बाद मेरे स्तनों में बचा हुआ जितना भी दूध होता था उसे पिला देती थी।
मुझे भी उसकी इस हरकत की आदत पड़ गई थी इसलिए जब कभी वह मेरे पास में नहीं होता था तब मैं उसे दूध पिलाने के लिए आतुर हो कर पुकार भी लेती थी।
एक वर्ष तक नागेन्द्र ने मेरे स्तनों से खूब दूध पिया लेकिन जब उनमें से दूध निकलना बंद हो गया तब जा कर उसने मुझसे दूध पिलाने की जिद करना बंद करी।
इसी तरह सब कुछ सामान्य चल रहा था लेकिन एक दिन सुबह जब मैं पल्लवी को नहला कर सुला रही थी तब मेरे पास में खड़े नागेन्द्र ने पूछा- बुआ, क्या आप मुझे भी नहला दोगी?
उसकी बात सुन कर मैंने कह दिया- पल्लवी के सो जाने के बाद मैं तुम्हें नहला दूंगी तब तक तुम बाथरूम में जा मेरा इंतज़ार करो।
पल्लवी के सोने के बाद मैंने नागेन्द्र को नहलाया और फिर खुद नहाने के लिये अपने सभी कपड़े उतारे ही थे की नागेन्द्र के एक प्रश्न ने चौंका दिया।
बाथरूम के एक कोने में खड़ा नागेन्द्र मेरे नग्न शरीर को घूर रहा था और उसका चौकाने वाला प्रश्न था- बुआ, आपके नीचे बाल क्यों हैं और आपकी टल्ली कहाँ है?
मैंने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं देते हुए और उसे डांटते हुए बाथरूम से बाहर निकाल दिया।
इसके बाद नागेन्द्र के साथ इस बात पर कोई चर्चा नहीं हुई और समय गुज़रता गया।
हमें भाई-भाभी के साथ रहते हुए पांच वर्ष हो गए थे तब भाई साहिब ने अपनी फैक्ट्री के पास ही एक नई फैक्ट्री बनाई और उसे चलाने की सारी ज़िम्मेदारी मेरे पति को दे दी।
भाई साहिब ने उस नई फैक्ट्री में पचास प्रतिशत हिस्सा मेरे नाम, पचीस प्रतिशत मेरे पति के नाम तथा बाकी का पचीस प्रतिशत भाभी के नाम किया था।
जब नागेन्द्र लगभग आठ वर्ष का था तब हर शनिवार और रविवार मेरे पास ही रहता था और शुक्रवार एवं शनिवार की रात मेरे साथ ही सोता था।
दिन भर तो उसकी पल्लवी के साथ बहुत बनती थी और दोनों एक साथ खेलते रहते थे लेकिन रात को सोने के समय उनमे ज़बरदस्त झगड़ा हो जाता था।
रात में जब नागेन्द्र मेरे पास सोने की जिद करता था और पल्लवी (जो रोज़ मेरे पास ही सोती थी) उसे मेरे पास फटकने नहीं देती थी।
उन दोनों के हर सप्ताह के इस झगड़े को दूर करने के लिए मैंने उन दोनों के समझाया की वह बहन भाई है इसलिए उन्हें झगड़ा नहीं करना चाहिए।
मेरी बात को मान कर पल्लवी मेरे बाएं तरफ और नागेन्द्र मेरे दायें तरफ सोने को राज़ी हो गए।
एक रात जब मेरे पति बाहर गए हुए थे और पल्लवी सो चुकी थी तथा नागेन्द्र मुझसे लिपटा हुआ बाते कर रहा था तब अचानक ही उसने पूछ लिया- बुआ, क्या पल्लवी अभी भी आप का दूध पीती है?
मैंने बिना सोचे समझे कह दिया- नहीं, अब नहीं पीती है।
तब उसने अगला प्रश्न किया- क्यों नहीं पीती?
मैंने हँसते हुए उत्तर दिया- क्योंकि अब मैं दूध नहीं देती।
उसने पूछा- आपने दूध देना बंद क्यों कर दिया?
मैंने कहा- क्योंकि मेरे स्तनों में अब दूध आना बंद हो गया है।
यह सुन कर वह उठ कर बैठ गया और बोला- बुआ, आप झूठ बोल रही है क्योंकि आप मुझे अपना दूध पिलाना नहीं चाहती हो।
मैंने उसे खींच कर अपने पास लिटाते हुए कहा- नहीं, मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ। सच में मेरा दूध आना बंद हो गया है।
इस पर उसने मेरे ब्लाउज को उपर करते हुए मेरे एक स्तन को बाहर निकाल कर कहा- मैं देखना चाहता हूँ कि आप का दूध आना बंद हो गया है या अभी भी आता है।
यह सब उसने इतनी तेज़ी से किया कि मैं ना तो अपने को सम्भाल पाई और ना ही उसे मेरे ब्लाउज को उपर करने से रोक पाई।
जब तक मैं कुछ कह पाती या करती तब तक नागेन्द्र ने मेरे दायें स्तन की चुचुक को अपने मुँह में डाल कर चूसने लगा था।
उसके मुँह में मेरी चुचूक के जाते ही अनायास ही मेरे मन में मातृत्व की एक लहर दौड़ पड़ी और मैंने नागेन्द्र को मेरी चुचूक चूसने से रोका नहीं और उसके सिर पर अपना हाथ को फेरने लगी।
कुछ देर चुचूक को चूसने के बाद जब उसमें से दूध नहीं निकला और जैसे ही वह अलग हुआ तब मैंने स्वेच्छा से अपने बाएं स्तन की चुचूक उसके मुँह में डाल दी।
वह तुरंत उस चुचुक को भी चूसने लगा और मैं मातृत्व की लहरों में गोते लगाती हुई उसके सिर पर हाथ फेरती रही।
लगभग पांच मिनट के बाद नागेन्द्र ने चुचूक को चूसना बंद किया तब मैं अपने होश में आई और अपने स्तनों को ब्लाउज के अंदर करके उसे अपने साथ चिपटा कर सो गई।
दूसरे दिन सुबह जब भाभी नागेन्द्र को नहाने के लिए बुलाया तो उसने उन्हें कह दिया कि वह ऊपर ही नहायेगा।
तब भाभी ने मुझे कहा- नागेन्द्र दो दिनों से साबुन लगा कर नहीं नहाया है इसलिए उसे अच्छी तरह साबुन लगा कर नहला देना।
उस दिन जब मैं उसे नहला रही थी और मैंने उसके लिंग को साबुन लगा रही थी तब नागेन्द्र ने अपना पांच वर्ष पुराना प्रश्न फिर से दोहराया- बुआ, आपकी टल्ली कहाँ है?
क्योंकि मैं उसे नहला रही थी और उसके पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था इस कारणवश मैं उसे बाथरूम से बाहर भी नहीं भेज सकती थी।
इसलिए मैंने कह दिया- गुम हो गई है।
नागेन्द्र ने तुरंत कहा- तो आप बाज़ार से नई लेकर लगा लो।
मैंने उसके शरीर पर लगे साबुन पर पानी डालते हुए कहा- यह बाज़ार में नहीं मिलती है।
इस पर वह बोला- अच्छा, तो फिर किसी से ले लो।
मैंने उसकी नासमझी के मज़े लेते हुए कहा- कोई देता ही नहीं है।
तब उसने कहा- बुआ, आप मेरी टल्ली लगा लो।
मैंने हँसते हुए उससे पूछा- अगर मैं तुम्हारी टल्ली लगा लूंगी तो तुम क्या करोगे?
उसने कुछ सोचते हुए कहा- जब, मुझे चाहिए होगी तब मैं आपसे मांग लिया करूँगा।
मैंने भी बात को समाप्त करने की मंशा से कह दिया- ठीक है, अगर तुम कहते हो तो जब मुझे टल्ली चाहिए होगी तब मैं तुमसे मांग कर लगा लिया करूंगी। लेकिन अभी तो यह बहुत छोटी है जब यह बड़ी हो जाएगी तब देखेंगे।
मेरी बात सुन कर खुश होता हुआ उसने अपना हाथ आगे बढा कर कहा- बुआ, इसके लिए आपको वचन देना पड़ेगा।
मैंने उसकी बात को मज़ाक समझते हुए कह दिया- ठीक है, मैं वचन देती हूँ।
उस दिन के बाद इस बारे में आगे कोई बात नहीं हुई लेकिन नागेन्द्र जब कभी भी रात को मेरे पास सोता तब वह मेरे स्तनों में से दूध निकलने की आस में एक बार तो मेरी चुचूकों को अवश्य ही चूसता था।
अगले वर्ष जब नागेन्द्र की उम्र नौ वर्ष की हुई तब भाई भाभी ने उसे पढ़ने के एक बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया और वह वहीं पर हॉस्टल में ही रहता था।
जब छुट्टियों में ही वह घर आता था तब मुझसे सिर्फ मिलने के लिए ही आता था और अपनी छुट्टियाँ अधिकतर समय अपनी माँ के पास ही बिताता था।
स्कूल की पढ़ाई समाप्त करने के बाद नागेन्द्र इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए आई आई टी चेन्नई चला गया।
तेरह वर्ष हॉस्टलों में रहने के बाद ही वह एक इंजिनियर बन कर लौटा तथा अपने पापा की फैक्ट्री में उनका का हाथ बटाने लगा।
एक दिन दोपहर के समय भाई साहिब ने नागेन्द्र को फैक्ट्री के कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज़ पर भाभी और मेरे हस्ताक्षर करवाने के लिए भेजा।
उस समय भाभी घर पर नहीं थी इसलिए वह उन दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करवाने के लिए सीधा मेरे पास आ गया।
क्योंकि दोपहर के खाने का समय था इसलिए मैंने उसे कहा- खाना तैयार है मैं अभी लगा देती हूँ। जब तक भाभी नहीं आती तब तुम खाना खा लो फिर बाद में दोनों से ही हस्ताक्षर करवा लेना।
वह मेरी बात मान कर खाने की मेज़ पर बैठ गया और मैं खाना लगाने के लिए रसोई में चली गई, जल्द ही मैंने खाना मेज पर लगा दिया और नागेन्द्र को खाने के लिए कहा तो उसने अकेले खाने से मना कर दिया तथा मुझे भी साथ बैठ कर खाने को कहा।
जब मैंने उसे कहा की मैं पल्लवी को खाना खिलाने के बाद ही खाऊँगी तब उसने झट से कहा तो फिर आप जैसे पल्लवी को खिलाती हैं मुझे भी वैसे ही खिला दीजिये।
उसकी बात सुन का एक बार तो मैं चौंक गई क्योंकि उसने यह बात कुछ इस तरह कही जैसे वह कई वर्ष पहले मुझे दूध पिलाने के लिए कहता था।
मैंने कोई उत्तर नहीं देते हुए जब उसकी ओर देखा तो उसे हल्के से मुस्कराते हुए पाया तब मैंने उसे कहा- अब तुम बड़े हो गये है इसलिए खुद ही खा लो।
मेरी बात सुन कर उसने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया और बहुत ही प्यार से कहा- बुआ, बहुत दिनों से आपके हाथ से खाना नहीं खाया, प्लीज खिला दीजिये।
उसके चेहरे के भाव और उसकी आँखों में एक छोटे बच्चे जैसी मासूम याचना देख कर मेरे दिल में उसके लिए वही वर्षों पुराना मातृत्व प्रेम जाग गया।
मैंने उसकी थाली में से रोटी का टुकड़ा तोड़ कर उसमें सब्जी भर कर उसके मुँह में डाल दी।
नागेन्द्र ने वह निवाला खाना शुरू कर दिया और उसके बाद के सभी निवाले चटकारे लेते हुए उसने मेरे हाथ से ही खाए।
खाना समाप्त करने के बाद हम दोनों बैठक में बैठ कर उसके बचपन की भूली बिसरी बातें याद करके उन पर चर्चा करने लगे।
मुझे चर्चा के दौरान हैरानी और संकोच तब हुई जब नागेन्द्र ने उसके द्वारा मेरे दूध पीने के लिए जिद करने के बारे में याद कराया।
मैं तो समझती थी की वह बड़ा हो गया है इसलिए बचपन की बातें समय के साथ भूल गया होगा लेकिन उसके मुँह से उस घटना का विस्तृत विवरण सुन कर मैंने झेंप कर चर्चा को बंद कर दिया तथा वहाँ से उठ गई।
कहानी जारी रहेगी।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments