अपनी माँ की बहन चोद नहीं सकता
(Apni Maa Ki Bahan Nahi Chod Sakta)
दोस्तो, आज आपके लिए पेश है एक बहुत ही पुरानी कहानी।
जब मैं 10+2 में पढ़ता था, तब हमारे साथ ट्यूशन में एक लड़का पढ़ता था, नाम था उसका जसवीर मगर हम सब उसे ‘जस्सी जस्सी’ कह के बुलाते थे।
था तो वो लड़का ही मगर उसके घर में सभी की सभी लड़कियाँ या औरतें ही थी, जिस कारण उसकी बहुत सी आदतें और बातें लड़कियों जैसी ही थी, जैसे बात करने का सलीका, बात करते करते हाथ वगैरह हिलाने का ढंग।
हमें उसके ये नाज़ ओ नखरे बड़े अजीब लगते थे।
उस दौर में हम दोस्तों में से किसी ने भी सेक्स नहीं किया था, इसलिए हमारे लिए उसकी हरकतें थोड़ी जनाना ज़रूर थी, मगर उसके लिए हमारे दिल में कभी गलत खयाल नहीं आया। हमने कभी भी यह नहीं सोचा कि क्या पता यह ही लौंडा हो, चलो अगर लड़की नहीं मिलती तो इसकी ही गान्ड मार कर देखी जाए।
मेरे साथ भी उसकी अच्छी दोस्ती थी, और एक बार मैं उसके घर भी गया था, सच में उसके घर का माहौल मुझे बड़ा अजीब सा लगा, मुझे थोड़ा डर सा भी लगा, दोबारा मैं कभी उसके घर नहीं गया।
उसके बाद ज़िंदगी में सब ने अपनी अपनी राह पकड़ी और सब जुदा हो गए। आज बैठे बैठे वैसे ही उसका खयाल आया तो सोचा क्यों न उस पर कहानी लिखूँ और आप सब को भी सुनाऊँ, कहानी काल्पनिक है, इसमें कोई सच्चाई नहीं, और न ही आप लोग इसे सच समझने की गलती करना, सिर्फ आपके मनोरंजन के लिए लिख रहा हूँ।
दोस्तो, मेरा नाम जसवीर है, मैं पटियाला, पंजाब में रहता हूँ। इस वक़्त मेरी उम्र 19 साल है। दरअसल जो बात मैं आपको बताना चाहता हूँ, वो मेरी एक समस्या है जिसका कोई समाधान मुझे नहीं मिल रहा है, अगर आपके पास हो तो बताना।
बात दरअसल यह है कि हम 5 भाई बहन हैं, दो बहनें मुझसे बड़ी हैं, दो छोटी हैं। हम सब में एक डेढ़ या दो साल का ही फर्क है,
मतलब हम सब भाई बहन जवान हैं।
मेरे पिताजी दुबई में नौकरी करते हैं, तो वो तो साल में एक आध बार ही घर आते हैं।
घर में हम 5 भाई बहन के साथ हमारी माँ और एक हमारी विधवा मौसी रहती हैं। मौसी के पति के देहांत होने पर माँ उन्हें अपने पास ही ले आई, मौसी के भी एक बेटी है 10 एक साल की। मैं शायद 8-9 साल का था, जब मौसा का देहांत हो गया। मौसी अपनी नन्ही से बेटी को लेकर हमारे घर आ गई।
घर में पहले से ही इतनी लड़कियाँ थी तो दो उनमें और जुड़ गई। मगर यही वो गलती थी, जो हमने की।
मौसी शादी के 2 साल बाद ही विधवा हो गई थी, तो मतलब 2 साल तो उसने सेक्स का भरपूर मज़ा लिया था। अब जब हमारे घर में आई तो यहाँ तो सब लड़कियाँ ही थी, मैं एक लड़का था, मगर मैं छोटा था। मगर जब काम सर पर सवार हो तो छोटा बड़ा कुछ नहीं दिखता।
स्कूल से आने के बाद मैं सारा दिन अपनी बहनों के साथ ही खेलता, बाहर मैंने किसी को लड़के को दोस्त बनाया ही नहीं, इसका नुकसान यह हुआ कि मुझमें लड़कियों वाले गुण आने लगे। जब तक मेरे दाढ़ी मूंछ नहीं आई थी, तब तक मैं अपने बाल भी लड़कियों की तरह ही बनाता था।
थोड़ा जवानी में पैर रखा तो लगा कि जैसे मेरी बहनें बड़ी हो रही हैं, वैसे मैं क्यों बड़ा नहीं हो रहा था। मतलब जैसे उनकी छातियाँ बढ़ रही थी, मेरी नहीं बढ़ रही थी। मुझे हमेशा यही लगता कि मैं भी एक लड़की ही हूँ, पर थोड़ी अलग किस्म की।
मगर मेरी मौसी मुझे कुछ और ही निगाह से देखती थी।
मुझे पक्का याद तो नहीं कबसे मगर मगर शायद जब से वो हमारे घर में आई थी तब से ही वो बड़े आराम से मेरे सामने ही कपड़े बदल लेती थी। मैंने उसे अक्सर कभी ब्रा में कभी पेंटी में कभी आधी तो कभी पूरी नंगी देखा था।
एक दो बार मैंने उसे टोका भी मगर उसका कहना था- ले… तू तो मेरा बच्चा है, तुझसे कैसी शर्म, अब तेरी माँ या तेरी बहनों के सामने भी तो मैं कपड़े बदल लेती हूँ, तो तुझसे कैसा शरमाना!
मगर असल बात यह थी कि वो मुझे इस्तेमाल करना चाहती थी एक मर्द के तौर पर। मगर मुझे मर्द की बजाय लड़की बनने का ज़्यादा शौक था।
ऐसे ही एक दिन दोपहर को सब लोग खाना खा कर सो रहे थे, माँ और छोटी बहनें अलग कमरे में लेटी थी, बड़ी बहनें मौसी के साथ लेटी थी। मगर इतना मुझे पता था कि मौसी दोनों बड़ी बहनों के कानो में उल्टा सुल्टा ही डाल रही होगी।
मुझे पेशाब लगी तो मैंने उठ कर बाथरूम में गया, पाजामा खोला, चड्डी उतारी और बैठ कर पेशाब करने लगा।
मैंने अपने घर में सब बैठ कर पेशाब करते ही देखा था तो मुझे भी बैठ कर ही पेशाब करने की आदत थी। मैंने नीचे निगाह मारी करीब 6 इंच का मूसल जैसा लंड लटक रहा था।
यह मुझे सबसे बुरा लगता था, मैं चाहता था, मेरे भी चूत लगी होती, अब मौसी की चूत तो मैंने सरेआम देखी थी, और अपनी सभी बहनों की भी कभी न कभी देखी थी, तो मुझे अपना लंड बड़ा बेकार लगता था।
पेशाब करके उठा तो देखा दरवाजे के पीछे बड़ी दीदी के कपड़े लटके हुये थे, जो उन्होने कॉलेज से आकर उतारे थे।
मैंने उन कपड़ों को उलट पुलट कर देखा तो उनमे दीदी की ब्रा और पेंटी भी लटक रही थी। मेरे मन में ख्याल आया कि लड़कियाँ जब ब्रा पहनती होंगी तो उन्हें कैसा लगता होगा।
मैंने अपनी कमीज़ उतारी और दीदी की ब्रा पहन ली, ब्रा पहन कर उसे सेट किया, अच्छी तरह से, फिर अपना पाजामा और चड्डी भी उतार दी और दीदी की पेंटी भी पहन ली।
‘आह…’ मुझे ऐसे लगा जैसे मैं लड़की ही बन गया हूँ।
कितना सुकून मिला मुझे ब्रा और पेंटी पहन कर… मैंने अपनी दोनों चूची को बहुत दबाया, मैं चाहता था कि मेरी चूची दीदी जितनी बड़ी हो जाएँ।
मैं धीरे धीरे ब्रा के ऊपर से ही अपनी चूची पर हाथ फेर कर मज़े ले रहा था, मगर नीचे पेंटी में मेरा लंड पूरा तन चुका था।
तभी मौसी ने बाहर से दरवाजा खटखटाया, मैंने कहा- एक मिनट में आता हूँ।
मगर मौसी ने दरवाजे के ऊपर लगी जाली से अंदर देख लिया और उस वक़्त मैं पेंटी उतार रहा था, ब्रा मेरे बदन पर अभी भी थी, जब मौसी ने मुझे इस हालत में देखा तो बोली- दरवाजा खोल दे जस्सी, वर्ना मैं शोर मचा दूँगी और सबको यहाँ बुला लूँगी।
मैं डर गया और मैं दरवाजे की कुंडी खोल दी। पाजामा मेरे हाथ में था, मगर मैं पहन नहीं पाया था।
मौसी ने अंदर आकर मुझे ऊपर से नीचे तक देखा- क्यों बे हरामी, क्या कर रहा था?
मौसी बोली।
मैं तो कुछ बोलने की हालत में ही नहीं था, मौसी ने मेरा पाजामा पकड़ के खींचा, पाजामा मेरे हाथ से छूट गया।
मैं मौसी के सामने ब्रा पहने नंगा खड़ा था।
मौसी ने मेरे लंड को देखा तो बोली- अरे वाह, तू तो जवान हो गया, मर्द होकर तू ये लड़कियों वाली हरकतें क्यों करता है?
कह कर मौसी ने मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ लियाऔर उसे आगे पीछे करने लगी।
जो थोड़ा बहुत लंड ढीला हुआ था, मौसी के सहलाने से फिर से तन गया।
जब मेरा लंड पूरा अकड़ गया तो मौसी नीचे बैठी और उसे मुँह में लेकर चूसने लगी। सच में मुझे बहुत आनन्द आया, पहली बार पता लगा के लंड चुसवाने में कितना मज़ा आता है।
मगर ये सब ज़्यादा देर नहीं चला, बस 1-2 मिनट चूसने के बाद मौसी खड़ी हुई और अपनी साड़ी और पेटीकोट ऊपर उठा कर अपनी चूत दिखा कर बोली- इसमें डाल।
मगर मैं ये सब नहीं कर पाया तो मौसी खीज गई- हरामी, तेरी करतूत तो मैं दीदी को बताऊँगी, कि तुम क्या करते हो।
मैं डर गया कि अगर इसने बता दिया तो बहुत जूते पड़ेंगे, मैंने मौसी के पाँव पकड़ लिए- मौसीजी प्लीज़, किसी को मत बताना!
मैंने बहुत सारी मिन्नतें की, बहुत सी विनतियाँ की तो मौसी बोली- एक शर्त पे नहीं बताऊँगी, अगर तू वो सब करेगा जो मैं कहूँगी।
मैंने हामी भर दी।
मौसी ने फिर से अपनी साड़ी और पेटीकोट ऊपर उठाया और अपनी चूत को उंगली से छू कर बोली- चाट इसे!
अब यह भी मेरे लिए बड़ी मुश्किल बात थी, मगर मैंने अपना सर आगे किया और हल्के से अपनी जीभ निकाल कर मौसी की चूत जिसके दोनों होंठ उसने अपने दोनों हाथों की उँगलियों से खोल रखे थे और अंदर से गुलाबी रंग की दरार सी दिख रही थी।
मैंने अपनी जीभ से हल्का सा चाटा मगर मौसी ने मेरा सर पकड़ा और ज़ोर से अपनी चूत से सटा लिया।
अब मेरे पास और कोई चारा नहीं था, मैंने मौसी की चूत में जीभ घुमानी शुरू की, मौसी अपनी चूत मेरे मुँह रगड़ रही थी।
थोड़ी देर चटवाने के बाद बोली- जस्सी, मैं मर रही हूँ, अपने लंड से मेरी प्यास बुझा दे यार, चल डाल अंदर!
कह कर मौसी ने अपनी टाँगे पूरी तरह से चौड़ी कर दी और खुद मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत पे रखा और जब मैं थोड़ा सा आगे को हुआ तो मेरा लंड थोड़ा सा मौसी की चूत में घुस गया।
मगर मैंने मन में सोचा ‘ये मैं क्या कर रहा हूँ, अपनी ही माँ की बहन चोद रहा हूँ!’
मेरा मन ग्लानि से भर गया और मैंने अपना लंड ज़बरदस्ती मौसी की चूत से बाहर निकाला, दीदी की ब्रा उतार कर अपने कपड़े उठाए और बाथरूम से बाहर आ गया।
घर में किसी को पता नहीं चला के बाथरूम में क्या हुआ था।
एक दो दिन तो मौसी शांत रही मगर उसके बाद उसने फिर से वही हरकतें शुरू कर दी।
एक रात मैं सो रहा था तो मुझे लगा जैसे कोई मुझे छू रहा है, मेरी नींद खुल गई। मैंने देखा कि मौसी ने मेरा पाजामा खोल लिया था और मेरा लंड अपने मुँह में लेकर चूस रही थी।
मैंने उसे तिरस्कार से छिटक दिया- क्या कर रही हो मौसी? मैं धीरे से फुसफुसाया।
मौसी खड़ी हुई और मेरे सामने ही उसने एक एक करके अपने सारे कपड़े उतार दिये, अपनी साड़ी, पेटीकोट, ब्लाउज़ और ब्रा सब उतार दिये और बिल्कुल नंगी हो होकर वो मेरे साथ मेरे ही बिस्तर पे लेट गई बिल्कुल मुझसे चिपक कर, उसके दोनों बोबे मेरी बाजू से लग रहे थे, पेट मेरी कमर से और उसकी गुदाज़ मोटी जांघें मेरी जांघों से।
मेरे साथ लेट कर वो वैसे ही फुसफुसाई- मुझमें क्या कमी है, क्या मैं तुझे औरत नहीं लगती? देख मेरे बदन को!
मैंने उसकी ओर देखा, एक गोरी चिट्टी, भरपूर बदन की औरत मेरे सामने बिल्कुल नंगी पड़ी मुझसे विनती कर रही थी, नीचे मेरा लंड भी तना पड़ा था, मगर मैं ये सब नहीं चाहता था, मुझे तो लड़कियों की तरह, लड़कों में दिलचस्पी थी।
मैंने फिर से मौसी को मना कर दिया।
मौसी बोली- तो ऐसा कर तू सिर्फ लेटा रह, जो भी करना है मैं खुद ही कर लूँगी।
मौसी ने मेरे सामने ही अपने हाथ की बड़ी उंगली अपनी चूत में डाली और आगे पीछे कर के दिखाया- देख, ऐसे चोदते हैं।
सच में बहुत ही कामुक क्षण था वो जब एक औरत खुद आपको उसे चोद देने के लिए मजबूर कर रही हो, एक आम आदमी के लिए ये बहुत ही बड़ा मौका हो सकता था, मगर मेरे लिए नहीं।
मौसी ने मेरा लंड पकड़ लिया तो मैं उल्टा होकर लेट गया। मौसी ने मुझे बहुत उलटने की कोशिश की मगर वो सफल न हो सकी तो उसने मेरा पाजामा पीछे से ही उतार दिया और मेरे चूतड़ नंगे कर दिया और बेतहाशा उन्हें चूमने लगी।
मैं किसी कुँवारी लड़की की तरह अपनी इज्ज़त बचा के लेटा हुआ था और वो किसी वहशी मर्द की तरह मेरी इज्ज़त लूटने को तत्पर मेरे ऊपर सवार थी।
चूमते चूमते उसने मेरे दोनों चूतड़ खोले और मेरी गान्ड की दरार में अपनी जीभ से चाटने लगी। मेरी गान्ड के सुराख को भी वो चाट रही थी। फिर अपनी चूत मेरी गान्ड पे रगड़ने लगी, उसकी झांट की रगड़ मैं अपने चूतड़ों पर महसूस कर रहा था।
कितनी देर वो ऐसे करती रही और मेरे कान में फुसफुसाती रही- उठ मेरे राजा, मैं मरी जा रही हूँ, आ न चोद लो मुझे, मेरी अगन बुझा दे प्यारे, आ न…’
मगर मैं अपनी शराफत को बड़ी ढिठाई से पकड़े बैठा था।
जब उसकी कोई बात न चली तो गुस्से में मेरी कमर पे ही बैठ कर अपनी उंगली अपनी चूत में अंदर बाहर करने लगी। उसकी चूत
पानी से भीगी पड़ी थी, उसकी चूत का पानी मेरे चूतड़ों पे भी लग रहा था।
हस्तमैथुन करते करते वो मुझे गालियाँ भी दे रही थी- कुत्ते, साले हरामज़ादे, तूने मुझे तड़पाया है, काम में जलती एक औरत को प्यासा छोड़ा है, देखना तू सारी उम्र इस सुख के लिए तरसेगा। साले मादरचोद, देखना मेरा श्राप है, तू तरसेगा। मैं तो अपना आज हाथ से कर लूँगी, मगर साले हाथ से भी न कर पाये।
मगर मैं इन सब बातों से दूर, अपने आप को बचा लेना ही बहुत समझ रहा था।
थोड़ी देर बाद जब मौसी स्खलित हुई तो उसने अपनी चूत पटक पटक कर मेरे चूतड़ों पर मारी, झड़ने के बाद वो मेरे ऊपर ही लेट गई और थोड़ी देर बाद उतर कर अपने कपड़े उठाए और नंगी ही अपनी कमरे में चली गई।
उसके बाद मौसी कई दिन मुझसे नाराज़ रही, मुझे भी उसकी नाराजगी अच्छी नहीं लगती थी, पर उसकी इच्छा मैं पूरी भी नहीं कर सकता था।
थोड़े दिन बाद मौसी फिर शुरू हो गई, अब तो उसकी भाषा भी बहुत गंदी हो गई थी क्योंकि वो मुझसे पूरी तरह से खुल चुकी थी- ‘क्यों बे, क्या देखता है, बड़ा घूर रहा है, मेरी छातियों को, घूर मत, आ जा, दबा के देख!’
या फिर- ‘क्यों बे आज रात को को आऊँ क्या?’
या फिर- ‘सुन बे, अगर ले नहीं सकता तो देनी शुरू कर दे!’
और पता नहीं क्या क्या।
मगर मैं इन सब बातों में कोई आनन्द महसूस नहीं करता, मुझे अगर कोई लड़का देखे तो मुझे लगता है कि यह ठीक है।
अब आप ही बताओ, मैं क्या करूँ, मुझे समझ में नहीं आ रहा कि अपनी बहनों की तरह लड़की बन कर रहूँ, या फिर मर्द बन के मौसी की आग ठंडी करूँ।
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