ऐसी मौसी सब को मिले-4
(Aisi Mausi Sabko Mile- Part 4)
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‘बिल्कुल नंगे होकर खाना खाएं?’
‘क्या, पागल हो क्या?’
‘प्लीज़ मौसी!’
‘चल ठीक है।’ वो मान गई।
जितनी देर में वो खाना डाल के लाई, मैं बिल्कुल नंगा हो चुका था और लण्ड तन कर लोहा। मौसी पास आ के जब कपड़े उतारने लगी तो मैं बोला- मौसी, रुको, मैं तुम्हें नंगी करूंगा।
मौसी हंस पड़ी।
सबसे पहले मैंने मौसी की नाइटी उतारी, फिर ब्रा खोली और उसके बाद नीचे पहनी हुई, पेंटी। दोनों ने नंगे होकर खाना खाया, फिर साथ लेट कर टीवी देखते रहे।
मैं मौसी के बदन को सहलाता रहा, जब रहा नहीं गया तो मौसी के ऊपर उल्टा लेट गया- मौसी अब सब्र नहीं होता, और नहीं तो चुसका चुस्की ही कर लेते हैं।’ मैंने कहा तो मौसी मान गई।
दोनों कितनी देर एक दूसरे को चूसते रहे, इस बार मुझे भी काफी टाइम लगा। इसके बाद तो मैं रात का इंतज़ार कर रहा था और रात थी कि आ ही नहीं रही थी।
खैर रात भी आई, 8 बजे ही खाना खा लिया, फिर हम दोनों एक साथ नहाये, फिर अच्छी तरह से सज धज कर तैयार हुये।
मौसी ने ऐसे मेकअप किया जैसे आज उसकी शादी हो।
मैंने कहा- क्या प्रोग्राम है?
वो बोली- आज हम अपनी शादी की सुहागरात मनाएंगे।
उसने अपना बिस्तर बड़े अच्छे से लगाया और बिस्तर पर दुल्हन की तरह बैठ गई। मैं उसके पास गया, बेड पे बैठा और धीरे से उसका घूँघट उठाया।
उसकी आँखें बंद थी- वाह कुदरत का क्या शाहकार है, कितनी सुंदर बीवी मिली है मुझे!
यह कह कर मैंने उसकी होंठों का चुंबन लिया तो उसने मुझे अपने गले लगा लिया। मैंने भी उसे बेड पे लिटाया और उसके साथ लेट गया। उसने अपनी आँखें नहीं खोली, पर मैं उसके चेहरे और होंठों को चूमता हुआ उसके स्तनों तक जा पहुँचा।
‘वाह तुम्हारे स्तन तो बहुत भारी हैं!’
‘जी स्वामी, सब आपके लिए है।’ उसने शर्मा कर कहा।
‘मुझे देखने हैं।’ यह कह कर मैंने उसके ब्लाउज़ के हुक खोलने शुरू किए, एक एक करके सब हुक खुल गए तो नीचे उसने सुर्ख लाल ब्रा पहनी थी।
मैंने उसके बूब्स दबाये तो बोली- ऊह स्वामी, मत करो, मुझे कुछ कुछ होता है।
उसने नकली स्वांग रचते हुये कहा।
‘घबराओ मत प्रिये, आज जो होना है उसे हो जाने दो!’ यह कह कर मैंने अपनी कमीज़ और पैंट उतारी और उसके ऊपर लेट गया, उसके दोनों स्तन पकड़ कर दबाये और अपनी जीभ से उसके होंठ, चेहरे और ठुड्डी को चाटा तो मौसी की सिसकारियाँ निकाल गई।
मैं उठा और उसकी साड़ी, ब्लाउज़, ब्रा, पेटीकोट और कच्छी सब उतार दी और उसे बिल्कुल नंगी कर दिया।
‘स्वामी, मुझे शर्म आ रही है।’ उसने नाटक सा किया।
‘शर्माओ मत, ये लो!’ ये कह कर मैंने अपनी बनियान और चड्डी भी उतार दी।
‘उफ़्फ़, कितना बड़ा है आपका वो!’ यह कह कर उसने अपने चेहरे को हाथों से ढक लिया।
मैं अपना लण्ड उसके चेहरे के पास लेकर गया और उसके हाथ चेहरे से हटा कर बोला- इसे चूस के देख मेरी जान!
तो उसने बिना किसी हिचकिचाहट के लण्ड अपने मुँह में लिया और चूसने लगी। मैंने भी उसे सीधा किया और अपना मुँह उसकी टाँगों में घुसेड़ दिया और उसकी चूत चाटने लगा।
कुछ देर ऐसे ही चलता रहा, फिर मौसी बोली- स्वामी अब और बर्दाश्त नहीं होता, मेरे अंदर समा जाओ।
मैंने कहा- अभी लो जानम।
मैंने उसकी टाँगें खोली और अपना लण्ड उसकी चूत पे रखा और अंदर धक्का मारने की कोशिश की, पर दर्द के कारण मैं लण्ड बाहर निकाल लेता।
3-4 बार कभी थूक लगा कर कभी कैसे ट्राई किया पर बात नहीं बनी तो मौसी बोली- स्वामी मैं कोशिश करके देखूँ?
मैंने कहा- हाँ तुम देखो, साला जाता ही नहीं।
वो उठी और किचन में चली गई, वहाँ से तेल की बोतल उठा कर लाई- आप नीचे लेटो।
जब मैं लेट गया तो उसने ढेर सारा तेल मेरे लण्ड पे लगाया और अपनी चूत के अंदर भी लगाया- अब देखना पिचक से अंदर घुस जाएगा और पता भी नहीं चलेगा।
तेल की बोतल साइड पे रख के मौसी मेरे ऊपर आ बैठी, उसने मेरा लण्ड अपने हाथ में पकड़ा और अपनी चूत को लण्ड के ऊपर सेट किया, थोड़ा सा लण्ड अंदर बाहर किया, तो मैंने देखा कि लण्ड और बड़े आराम से अंदर बाहर हो रहा है।
‘ठीक है?’ मौसी ने पूछा।
‘हाँ मौसी, ठीक है।’ मैंने भी जवाब दिया।
‘तो आगे शुरू करें?’
‘हाँ’ मैंने पूरे जोश से कहा।
बस उसके बाद मौसी ने एक ज़ोर का झटका मारा और मेरा आधे से ज़्यादा लण्ड उसकी चूत में घुस गया पर मैं दर्द से बिलबिला उठा। ‘आह मौसी, मर गया!’ मेरे मुँह से बस इतना ही निकला।
‘कुछ नहीं होता, बस चुपचाप लेटा रह!’ कह कर मौसी ने फिर झटका मारा।
हर झटके के साथ मेरा लण्ड मौसी की चूत में अंदर जा रहा था और मेरा दर्द बढ़ रहा था, पर मौसी ने मुझे पूरी तरह से अपने क़ाबू में कर रखा था।
तेल ने बड़ी भूमिका निभाई और मेरा लण्ड 2-3 घस्सों में पूरा मौसी की चूत में समा गया।
जब सारा अंदर चला गया तो मौसी बोली- देख सारा अंदर चला गया, अब तो दर्द नहीं हो रहा।
‘दर्द तो है मौसी, पर मज़ा भी आ रहा है।’
‘तो और मज़ा ले!’ ये कह कर मौसी ज़ोर ज़ोर से घस्से मरने लगी और मेरा लण्ड उसकी चूत में अंदर बाहर होने लगा।
मुझे लग रहा था जैसे उसकी चूत आज कुछ ज़्यादा ही पानी छोड़ रही है, मैंने मौसी से कहा- मौसी आज कुछ ज़्यादा ही पानी छोड़ रही हो’।
‘अच्छा, चलो देखते हैं।’ यह कह कर मौसी ने मेरा लण्ड अपनी चूत से बाहर निकाला तो मैं तो देख के हिल गया। मौसी की चूत और मेरा लण्ड दोनों खून से लथपथ थे, मेरे लण्ड की सील टूट चुकी थी और उससे खून निकल रहा था।
‘यह क्या कर दिया मौसी, यह तो खून निकाल रहा है।’
‘तो क्या हुआ, अगर हाथ से सील तोड़ता फिर तो निकलता, डर मत सबके निकलता है, चाहे लड़का हो या लड़की।’ खैर कुछ देर मैं वैसे ही लेटा रहा, मौसी ने मेरे लण्ड पे बर्फ लगाई, थोड़ी देर बाद जब खून बंद हो गया तो मैं लण्ड पकड़ कर लेट गया, मुझे बहुत दर्द हो रहा था।
मौसी रसोई से एक ग्लास गरम दूध ले आई और मुझे पिलाया।
दूध पीकर थोड़ा ठीक सा हुआ मैं तो मौसी ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया- मेरे राजा, यह तो पहली बार सबके साथ होता है।
मगर अब मैं सेक्स के मूड में नहीं था, पर थोड़ी देर की चूमा चाटी के बाद फिर से मूड बन गया। मौसी ने फिर से ढेर साला तेल मेरे लण्ड पे लगाया, इस बार मैं ऊपर था और जब मैंने डाला तो बड़े आराम से मेरा लण्ड मौसी की चूत में समा गया।
जब सारा अंदर चला गया तो मौसी ने पूछा- अब दर्द हो रहा है क्या?
‘हाँ, थोड़ा सा, पर मज़ा भी आ रहा है।’
धीरे धीरे मैंने अपनी स्पीड बढ़ाई और मौसी नीचे से गाण्ड उठा उठा के मेरा साथ दे रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद चुदाई करने से मेरे लण्ड से फिर से खून निकलना शुरू हो गया था पर अब मैं इस थोड़े से दर्द के लिए अपने जीवन का सर्वोत्तम आनन्द नहीं छोड़ सकता था।
मैं अपने दर्द की परवाह किए बिना मौसी की चुदाई कर रहा था और मौसी मेरे नीचे लेटी ‘ऊह, आह, ऊफ़्फ़’ और ना जाने क्या क्या बड़बड़ा रही थी।
उसकी सिसकारियाँ मेरा रोमांच बढ़ा रही थी… आज तक जो सिसकारियाँ मैं छुपके सुनता था आज वो सिसकारियाँ मेरी वजह से निकल रही थी, सच पूछो तो मन में मैं बहुत खुश था।
मुझे महसूस हुआ के मौसी मुझसे ज़्यादा नीचे से ज़ोर लगा रही है, मैंने पूछा- क्या हुआ, बहुत ज़ोर लगा रही हो?
‘बस बोलो मत, मेरा होने वाला है।’ यह कहते कहते मौसी ने अपनी कमर ऊपर उठा ली जैसे चाहती हो कि लण्ड के साथ मैं भी उसकी चूत में घुस जाऊँ।
मैंने भी थोड़ा और ज़ोर लगाया, उसके बाद वो धड़ाम से नीचे गिर गई और अपने हाथ पैर फैला के लेट गई।
‘मज़ा आ गया, उफ़्फ़, बहुत बढ़िया चुदाई करतो हो तुम!’ मौसी ने मेरी पीठ थपथपाई तो मन में अजीब सा हर्ष पैदा हुआ।
अब मैं भी झड़ना चाहता था, मैंने पूरी स्पीड से चुदाई शुरू की और 2 मिनट बाद ही मैंने अपने मर्दांगी के रस से मौसी की चूत को भर दिया।
अपनी पहली और जोरदार चुदाई से मैं थक गया था और मैं ऐसे ही सो गया।
अगली सुबह उठा तो देखा लण्ड तो सूजा पड़ा था और दर्द भी हो रहा था।
खैर दो दिन तक मैंने आराम किया और मौसी ने मेरी बहुत सेवा की, मुझे दवा खिलाई, मेरी खुराक का ख्याल रखा, मेरे लण्ड की मालिश भी की।
तीसरे दिन मैं बिल्कुल ठीक था पर उस दिन मौसा जी के आने का दिन था सो मैं सारा दिन मौसी के इर्द गिर्द घूमता रहा। मेरे सर पे तो फिर से काम चढ़ा था। मैं तो नाइटी उठा कर मौसी की चूत तो क्या उसकी गाण्ड भी चाट गया पर वो देने को तैयार ही नहीं हुई।
यह अलग बात थी के जब वो किचन में खड़ी खाना बना रही थी और मैं उसकी नाइटी में घुसा हुआ उसकी गाण्ड के सुराख पर जीभ फेर रहा था और अपने दायें हाथ की दो उंगलियाँ उसकी चूत में डाल रहा था, तो वो पूरी कसमसा रही थी पर चुदवाने के नाम पर हर बार बहाने से बनाती रही।
जब शाम हो गई तब जाके बोली- सब्र रख, तेरे मौसाजी आज नहीं आएंगे, वो कल आएंगे।
मेरे तो जैसे भाग खुल गए, मैंने पूछा- तो फिर?
वो बोली- तो आज फिर मेरी सुहागरात है।
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