गुरूजी का आश्रम-1
‘हेलो..! रुचिका!’ मेरे सम्पादक की आवाज सुनते ही मैं सम्भल गई। ‘हाँ बोलिए!’ मैंने अपनी जुबान में मिठास घोलते हुए कहा। मेरे सम्पादक रजनीश से मेरा वैसे भी छत्तीस का आंकड़ा है। वो बुरी तरह चीखता है मुझपर। ‘तुम्हें किशनपुरा जाना है, अभी इसी वक़्त!’ उसके आदेश करने वाले लहजे को सुन कर दिल में […]