ममेरी दीदी की शादी में मेरी सुहागरात-1
(Mameri Didi Ki Shadi Me Meri Suhagraat-1)
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दोस्तो, कैसे हो आप लोग… उम्मीद करती हूँ ठीक ही होंगे। वैसे मुझे तो आप लोग जानते ही होंगे लेकिन एक बार फिर मैं अपने बारे में बता देती हूँ, मेरा नाम रूचि रानी है, 22 साल की हो गई हूँ, आप लोग ने मेरी अब तक चार कहानियाँ
भाई के दोस्त ने बस में-1
भाई के दोस्त ने बस में-2
अधूरे अरमान अधूरी चुदाई
एक के बदले तीन से चुदी
पढ़ी और मुझे आपकी मेल्ज़ पढ़ कर बहुत अच्छा लगा तो आपके प्यार के कारण मैं अपनी एक और सेक्स घटना आपके सामने लिखने की कोशिश कर रही हूँ।
वैसे मेरे बारे में तो आप मेरी पिछली कहानियों में पढ़ चुके हैं अगर किसी ने नहीं पढ़ा है तो जाकर मेरी पिछ्ली कहानियाँ पढ़ लो, पता चल जाएगा।
आज मैं आपको अपने परिवार के बारे में बता रही हूँ, मेरे घर में माँ, पापा के अलावा हम लोग 3 भाई बहन हैं, सबसे बड़ा भाई है जिसका नाम राहुल है, वो 28 साल का है, दिल्ली के एक कंपनी में जॉब करता है। उसके बाद एक बहन 26 साल की है जिसका नाम सुरुचि है, मुंबई में जॉब करती है, उसके बाद मैं हूँ तो मेरे बारे में आप लोग जानते ही हैं।
फिर भी अपनी फिगर बता देती हूँ, 36-30-36 है।
तो चलो अब मैं कहानी पर आती हूँ।
एक दिन मैं कॉलेज से घर आई तो देखा कि माँ के पास एक हैण्डसम सा लड़का बैठा हुआ था, मैंने माँ से पूछा पता लगा कि यह मेरा ममेरा भाई है। वैसे हम लोग 14 साल बाद मिले थे क्योंकि वो बाहर रह कर पढ़ता था और मैं जब जाती थी, सब मिलते थे, वो नहीं मिलता था।
और माँ ने बताया कि मेरी ममेरी बहन की शादी है, वो हमको लेने आया था लेकिन किसी को ऑफ़िस से छुट्टी नहीं मिलने के कारण कोई नहीं जा पाएगा।
लेकिन माँ ने मुझे जाने को बोला।
मैं- हाँ ठीक है, मैं चली जाती हूँ।
माँ बोली- जाओ तुम जल्दी से रैयार हो जाओ, एक घंटे बाद बस का टाईम है।
मैं जल्दी-जल्दी तैयार हो गई, मैंने पज़ामी-कुरती पहनी थी, पज़ामी एकदम टाइट थी जो चूतड़ों के पास और ज्यादा टाइट थी जिसमें अगर हल्का सा भी छेद भी हो जाए तो पूरी फट जाएगी, और कुर्ता भी एकदम टाइट था और चूचियों के पास इतना खुला हुआ था कि अगर ओढ़नी नहीं ओढ़ूँ तो मेरी आधी चूचियाँ सबको दिख जाएँ और नीचे कुर्ती तो मेरी कमर से 2 इंच नीचे तक ही होगी, जिससे मेरी चूतड़ सब को आसानी से दिख सकते थे।
जब मैं बाहर निकली तो मेरा ममेरा भाई मुझे घूर-घूर के देख रहा था।
मैं बोली- अब चलो!
हम लोग चल दिए और बस में बैठ गए। शाम का टाइम था और रास्ता लम्बा था। मैं खिड़की के पास बैठी और वो मेरे बगल में बैठ गया। कुछ देर बाद बस चली, खिड़की खुली हुई थी, एक हवा का झोंका अंदर आया और मेरी ओढ़नी उड़ गई। मैंने अपनी चुन्नी ठीक की लेकिन हवा ने फिर उड़ा दी, मैं बार-बार ठीक कर रही थी और हवा उड़ा दे रही थी तो मैंने उसे ऐसे ही छोड़ दिया।
कुछ देर बाद मैंने देखा कि मेरा भाई तिरछी नज़र से मेरी चूचियों का मुफ़्त नज़ारा देख रहा था लेकिन मैं कुछ नहीं बोली और मन में सोचने लगी कि मैं ऐसे कपड़े तो यही सब दिखाने के लिए ही तो पहनती हूँ।
मैंने उसको कुछ नहीं कहा, शायद उसको भी पता चल गया था कि मैंने देख कर अनदेखा कर दिया है तो वह मेरे कंधे पर हाथ रख कर बैठ गया और बोला- हाथ दुख रहा है।
मैं कुछ नहीं बोली तो उसका मन और बढ़ गया और उसने खिड़की बन्द करने के बहाने अपने हाथ को मेरी चूची से सटा दिया और खिड़की बन्द कर दी। फिर भी मैं कुछ नहीं बोली और आँखें बंद करके सोने का नाटक करने लगी।
उसको लगा कि मैं सच में सो गई तो उसने उसका फ़ायदा उठाते हुए अपना एक हाथ मेरे जाँघ पर रखा और हल्के से सहलाने लगा, फिर उसने धीरे से अपना हाथ थोड़ा और अंदर की ओर सहलाते हुए किया, वैसे भी तब तक अंधेरा हो चुका था तो किसी को ज्यादा दिख नहीं रहा था।
मुझे लगा कि वो अपना हाथ मेरी चूत तक ले जाएगा लेकिन नहीं ले गया, उसने भी मेरे कंधे पर अपने सिर रखा और सिर को हल्का नीचे करते हुए मेरी चूचियों पर रख दिया और अपने होंठ से काटने की कोशिश करने लगा।
जब मैं कुछ नहीं बोली तो उसने अपना सिर हटाया और अपने एक हाथ से मेरी चूची को हल्के से सहलाने लगा और फिर भी मैं कुछ नहीं बोली तो उसने अपने एक हाथ मेरी चूची को थोड़ा ज़ोर से दबाया तो मैंने जागने का नाटक किया तो वो थोड़ा डर गया और मुझसे थोड़ा अलग हो गया और साइड में बैठ गया।
तो मैं अपनी सीट से उठी और ऊपर रखे बैग से एक चादर निकाल ली क्योंक तब तक ठंड भी बढ़ रही थी, मैंने चादर ओढ़ ली और उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दी, बोली- ठंड ज्यादा है, आप भी ओढ़ लो।
इतना सुनते ही वो मुझसे चिपक कर बैठ गया और अपना एक हाथ मेरी जाँघों पर रख कर सहलाते-सहलाते मेरी चूत तक पहुँच गया और अपनी उंगली मेरी चूत के ऊपर फ़िराने लगा।
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मैंने भी अपनी दोनो टाँगों को फैला दिया जिससे उसको मेरी चूत तक पहुँचने में और आसानी हो रही थी।
कुछ देर बाद चूत को छोर कर वो अपने हाथ को मेरी कमर पर ले गया और उसको सहलाने लगा और धीरे-धीरे वो मेरी नाभि के आस पास अपनी उंगली घुमाने लगा और कुछ देर बाद मेरी नाभि में उंगली डाल कर घुमाने लगा, मैं आँखें बंद करके अपने होंठ को अपने दांत से दबाए हुए इस सबका मज़ा ले रही थे।
धीरे-धीरे मैं भी अपना हाथ उसके लंड पर ले गई और उसको दबाने लगी। वो एकदम सख्त था कि तभी बस में लाइट जल उठी और मैंने अपना हाथ पीछे खींच लिया और उससे थोड़ा हट गई कि बस में कोई देख लेता तो बदनाम हो जाती!
हम लोग वैसे ही बैठे रहे, रात के 10 बजे बाद एक स्टॉपेज आया और बस के लगभग सब लोग उतर गये थे, बाकी जो थे, वो आगे बैठे हुए थे, पीछे सिर्फ़ हम दोनों ही थे तो मैंने पूछा- अभी और कितना दूर है?
तो वो बोला- 3 घण्टे !
और तब बस का ड्राइवर बोला- लाइट ऑफ कर देता हूँ, आप लोग सो जाओ, जब आपका स्टॉप आएगा तो जगा दूँगा।
और उसने लाइट ऑफ कर दी।
लाइट ऑफ होते ही भैया ने मेरी गाल पे एक किस किया और मेरी कान में बोला- अब तो शुरू हो जाऊँ?
तो मैं कुछ नहीं बोली लेकिन गर्दन ऊपर-नीचे कर दी और उसको तो खुली छूट मिल गई तो उसने सीधे अपना दोनों हाथ मेरी चूचियों पर रखे और उनको कपड़े के ऊपर से ही मसलने लगा, फिर उसने मेरी ओढ़नी पूरी ही हटा दी, मेरी बदन के खुले भाग पर चुम्बन करने लगा, अपना एक हाथ मेरी चूत के पास ले गया और कपड़े के ऊपर से ही मसलने लगा।
तो मैं भाई के लंड को कपड़े के ऊपर से ही दबाने लगी, कुछ देर बाद भाई अपने दोनों हाथ मेरी कुरती के पीछे ले गया और पीछे से मेरी चेन खोल दी, मेरी कुरती को थोड़ा आगे खींच कर मेरी एक चूची को बाहर निकाल लिया, उसको चूसने लगा तो मैंने भी उसके लंड को बाहर निकाल कर हिलाने लगी।
कुछ देर ऐसा करने के बाद वो थोड़ा नीचे हुआ और मेरी पज़ामी के ऊपर से ही मेरी चूत को अपने मुँह से दबाने लगा, अपने एक हाथ से मेरी चूची दबा रहा था और एक हाथ से मेरी पेट को सहला रहा था।
फिर उसने मेरी पजामी का नाड़ा खोलने की कोशिश की तो मैंने मना कर दिया, बोली- बाद में!
तो वो मान गया और सीट पर बैठ गया, मैं थोड़ा नीचे झुकी और उसके बाहर निकले लंड पर अपने कोमल लबों से चूमा फिर उसके लंड को चूसने लगी और वो मेरी पीठ पर चुम्बन कर रहा था।
कुछ देर में वो झर गया और सारा माल मेरे मुँह में ही छोड़ दिया और मैं सारा वीर्य पी गई।
मैं उठने ही वाली थी की बस वाला आगे से बोला- पीछे वाले भैया, आप लोगों का स्टॉप कुछ देर में आने वाला है, आप लोग उठ जाओ।
तो हम दोनों ने अपने-अपने कपड़े ठीक किए और अपने स्टॉप पर उतर गए।
कहानी जारी रहेगी।
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