जिस्मानी रिश्तों की चाह -55
(Jismani Rishton Ki Chah- Part 55)
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सम्पादक जूजा
आपी ने अपने सर पर और बदन के गिर्द चादर लपेटी हुई थी.. लेकिन मुझसे नजर मिलने पर आपी ने अम्मी से नजर बचा कर अपने सीने से चादर हटा एक लम्हे के लिये मुझे अपने हसीन मम्मों का दीदार कराया और हंसती हुई बाथरूम में चली गई।
मैं जज़्बात से सिर उठाते अपने लन्ड को सोते रहने का मशविरा देता हुआ सिर झुका कर नाश्ता करने लगा।
नाश्ता करके मैं अब्बू के ऑफिस गया और वहाँ से हम रहीम अंकल से मिलने उनकी शॉप कम शोरूम पर गए।
उनकी शॉप पर 3 आदमी काम करते थे और तीनों बहुत पुराने और ईमानदर वर्कर थे।
वहाँ ही हमने रहीम अंकल से बात-चीत की और सारे मामलात तय करके रहीम अंकल ने वर्कर्स को भी यह बात साफ़ कर दी कि अब शॉप के नये मालिक हम लोग होंगे.. जिसको उन वर्कर्स ने भी बहुत खुशदिली से क़बूल किया।
अगले 3 दिन तक हम पेपर वर्क और दूसरे तमाम मामलात में मसरूफ़ रहे। मैं सुबह जल्दी कॉलेज जाता था और कॉलेज से ही सीधे शॉप पर पहुँच जाता.. और रात 9 बजे शॉप क्लोज़ होने के बाद ही मैं घर जाता था।
मैंने अपने तरीक़े से सारी लिस्ट को मेन्टेन किया कि हमारे पास क्या-क्या आइटम्स हैं.. और हम कितने में खरीदते हैं.. कितने में हमने आगे बेचना है… वगैरह वगैरह..
शॉप पर जाते मेरा चौथा दिन था.. मैं रात 9 बजे घर पहुँचा.. तो सब डाइनिंग टेबल पर ही बैठे थे.. मैं उन्हें 5 मिनट रुकने का कह कर बाथरूम गया और हाथ मुँह धो कर खाने के लिए आ बैठा..
इधर उधर की बातें करते हुए हमने खाना ख़त्म किया।
अब्बू ने अपने पॉकेट में हाथ डालते हुए कहा- अरे हाँ सगीर.. मैं भूल गया था यार.. वो शकूर साहब तुम्हारा लाइसेन्स दे गए थे।
उन्होंने अपने जेब से लाइसेन्स निकाल कर मुझे दे दिया।
मैं अभी लाइसेन्स को हाथ में ले कर देख ही रहा था कि हनी ने मेरे हाथ से लाइसेन्स खींचा और बोली- भाई ऐसे ही सूखा-सूखा तो कुछ भी नहीं मिलता ना.. लाइसेन्स.. अब ज़रा अपना जेब ढीला करो और अभी के अभी हम सबको आइसक्रीम खिलाने ले कर चलो.. तो मैं लाइसेन्स दूँगी.. वरना नहीं..
हनी की बात सुन कर फरहान भी उसके साथ मिल गया और दोनों ‘आइस्क्रीम.. आइस्क्रीम..’ का शोर करने लगे।
अब्बू ने मुस्कुराते हुए उन दोनों को चुप करवाया और गाड़ी की चाबी मुझे देते हुए बोले- जाओ यार.. ले जाओ सबको.. आइसक्रीम भी खिला लाओ.. और अपने लिए दूसरी चाबी भी बनवा लाओ।
मैं फरहान.. हनी.. और आपी.. तीनों को आइस्क्रीम खिलाने ले गया और गाड़ी की चाबी भी बनवा कर हम घर वापस पहुँचे तो 11 बज रहे थे।
अम्मी अपने कमरे में थीं और अब्बू न्यूज़ देख रहे थे। हमें अन्दर आता देख कर अब्बू उठते हुए बोले- मुझे बहुत सख़्त नींद आ रही है.. मैं बस तुम लोगों के इंतज़ार में जाग रहा था.. तुम लोग भी अब जाओ.. सो जाओ.. अब गप्पें मारने नहीं बैठ जाना।
यह कह कर अब्बू कमरे में चले गए।
हनी भी ना जाने कब से पेशाब रोके बैठी थी.. अन्दर आते ही सीधी बाथरूम की तरफ भागी।
आपी भी अपने कमरे की तरफ जाने लगीं तो फरहान आहिस्ता आवाज़ में मुझसे बोला- भाई आज आपी को बोलो ना.. थोड़ा मज़ा करते हैं.. आज बहुत दिल चाह रहा है ना.. अब तो सिर्फ़ 2 पेपर बचे हैं।
फरहान ने कहा तो आहिस्ता आवाज़ में ही था.. लेकिन आपी ने उसकी बात सुन ली.. और मेरे कुछ बोलने से पहले ही गर्दन घुमा कर हमारी तरफ देखा और मेरे चेहरे पर नज़र जमाते हुए बोलीं- तुम्हारा भी दिल चाह रहा है क्या?
मैंने चंद सेकेंड सोचा और कहा- नहीं यार.. मैं सुबह 7 बजे से निकला हुआ हूँ और शॉप से घर पहुँचा ही था कि तुम लोगों ने आइस्क्रीम का शोर कर दिया.. इस टाइम बस नींद के अलावा और कोई बात मेरी समझ में नहीं आ रही है.. मैं तो चला ऊपर..
अपनी बात कह कर मैं रुका नहीं और अपने कमरे को चल दिया।
कमरे में आते ही मैं बिस्तर पर गिरा और कुछ ही मिनटों में दुनियाँ ओ माफिया से बेखबर हो गया।
अगले रोज़ भी मैं तक़रीबन सवा नौ बजे घर पहुँचा तो थकान से चूर था। सब खाना खा रहे थे.. मैं फ्रेश हो कर नीचे आया तो सब ही खाना खा चुके थे और अब्बू हस्बे-मामूल टीवी लाऊँज में ही बैठे न्यूज़ देखते हो चाए पी रहे थे।
मैं खाने के लिए टेबल पर बैठा और खाना शुरू किया ही था कि अब्बू ने मेरा थका हुआ चेहरा देख कर कहा- बेटा तुम कॉलेज से 2 बजे तक तो शॉप पर पहुँच ही जाते हो.. तो ऐसा किया करो कि 5 बजे घर आ जाया करो.. सलीम (शॉप का मुंतज़ीं) बहुत ईमानदार और मेहनती लड़का है.. वो रहीम भाई के होते हुए भी अच्छा ही संभाल रहा था.. अब भी संभालता रहेगा.. और मैं भी एकाध चक्कर लगा ही लेता हूँ.. तो इतनी परेशानी उठाने की क्या जरूरत है कि अपना ख़याल भी ना रख सको।
मैंने खाना खाते-खाते ही अब्बू को जवाब दिया- वो अब्बू.. मैं तो अपने अनुभव के लिए वहाँ बैठा रहता हूँ.. और सारी लिस्ट मैं अपने हिसाब से तरतीब दे रहा था.. इसलिए टाइम ज्यादा लग जाया करता है।
‘बेटा मेरी एक बात याद रखना कि जब तक सांस चल रही है.. ये काम धन्धा चलता रहेगा.. ऐसा तो है नहीं कि आज हम सब ख़त्म कर लेंगे और फिर चैन से सोएंगे.. बेटा मरने के बाद ही इन चक्करों से छुटकारा मिलता है.. इसलिए मेरा हमेशा ये ही उसूल रहा है कि काम को अपने ऊपर इतना मत सवार करो कि अपनी सेहत और ज़ेहनी सुकून को तबाह कर बैठो.. जान है तो जहान है.. और तुम्हारी अभी ज़िंदगी पड़ी है.. अभी तो जुम्मा-जुम्मा आठ 8 दिन भी नहीं हुए.. होता रहेगा तजुर्बा.. लेकिन अपने आप पर तवज्जो देना बहुत जरूरी है.. और इस तरह तुम्हारी पढ़ाई का भी हर्ज होगा।
‘अब्बू बस अब सारी लिस्ट वगैरह तो तक़रीबन फाइनल हो ही चुकी हैं और जहाँ तक पढ़ाई की बात है.. तो मैं शोरूम में ही अपने केबिन में बैठ कर पढ़ाई कर ही लेता हूँ.. लेकिन चलिए मैं कल से 5 बजे तक घर आ जाया करूँगा।’
इसके बाद भी कुछ देर अब्बू मुझसे शॉप के बारे में ही पूछते रहे और मैं उनसे बातें करता हुआ खाना ख़ाता रहा।
फिर मैं भी चाय पीकर अपने कमरे में आ गया.. फरहान पढ़ाई में ही लगा था। मैंने उसके दोनों कंधों पर हाथ रख कर कन्धों को दबाते हुए कहा- और सुना.. छोटू.. कैसे हो रहे हैं पेपर?
वो तक़लीफ़ से कराह कर बोला- उफफ्फ़.. भाईईईईई.. इतने ज़ोर से दबाए हैं कंधे.. बस कल आखरी पेपर है फिर छुट्टी..
मैंने उसकी गुद्दी पर एक चपत मारी और अपनी जगह पर लेट कर बोला- क्या यार थोड़ा सा दबाया है और तुमसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.. इसी लिए कहता हूँ कि ज़रा कम पानी निकाला करो.. वैसे तुम्हें तो काफ़ी दिन हो गए हैं पानी निकाले हुए ना?
मेरी बात सुन कर वो खुश होता हुआ बोला- अरे हाँ.. आप तो कल कमरे में आ गए थे.. लेकिन आपी ने मुझे कल मज़ा करवाया था।
मैंने लेटे-लेटे ही उसकी तरफ देखा और कहा- अच्छा.. मुझे तो पता ही नहीं चला.. तुम्हारे साथ ही आपी भी आ गई थीं क्या कमरे में?
‘नहीं भाई.. आपको पता भी कैसे चलता.. हम कमरे में नहीं आए थे.. कमरे से बाहर ही सीढ़ियों के पास आपी ने मेरा लंड चूस कर मुझे डिसचार्ज करवाया था.. लेकिन आपी ने बस जान छुड़ाने वाले अंदाज़ में ही चूसा था.. पता नहीं वो मेरे साथ ऐसा क्यों करती हैं।’
मैंने फरहान की बात सुनी तो मुस्कुरा कर उसे जवाब दिया- अबे नहीं यार.. ऐसा मत सोचो कि तुम्हारे साथ वो ऐसा करती हैं.. असल में आपी को मेनसिस चल रहे हैं.. इसलिए आपी ने दिल से नहीं चूसा होगा क्योंकि अगर वो दिल से सब कुछ कराएँ.. तो वो भी गर्म हो जाएँगी और फिर उनकी चूत में जलन होती है.. आपी ने खुद मुझे ये बातें बताई थीं। लेकिन ये देखो कि वो तुमको इतना प्यार करती हैं कि अपनी तक़लीफ़ का बता कर उन्होंने तुम्हें मना नहीं किया.. बल्कि तुम्हारा लंड चूस कर तुम्हें सुकून पहुँचाया है।
वो चंद लम्हें कुछ सोचता रहा.. फिर बोला- हाँ भाई, ये तो बात है!
‘अब दिमाग से चूत को निकाल और चल अब पढ़ाई कर और मैं भी सोता हूँ..’ मैंने फरहान से कहा और चादर अपने मुँह तक तान ली।
अगला दिन भी बहुत बिजी ही गुज़रा और आम दिनों से ज्यादा थका हुआ सा घर पहुँचा.. तो अब्बू और अम्मी टीवी लाऊँज में ही थे।
अम्मी ने मुझे खाना दिया और खाने के दौरान ही शॉप के बारे में अब्बू से बातें भी होती रहीं।
कमरे में आया तो आज खिलाफे तवक़ा.. फरहान सोता हुआ नज़र आ रहा था। मुझे भी थकान ने कुछ और सोचने ही नहीं दिया और मैं भी चेंज करके सो गया।
सुबह मैं ज़रा लेट उठा तो अम्मी ने ही नाश्ता दिया कि आपी यूनिवर्सिटी चली गयी थीं। मैं भी नाश्ता वगैरह करके कॉलेज चला गया और वहाँ से शॉप पर.. वापस घर आते हुए मैंने अपनी शॉप से एक डिजिटल कैमरा भी उठा लिया था कि अब तो हर चीज़ ही पहुँच में थी।
मैं घर पहुँचा तो सवा पाँच हो रहे थे। टीवी लाऊँज में कोई नज़र नहीं आ रहा था। आपी का और अम्मी का कमरा भी बंद था।
ये वाकिया मुसलसल जारी है।
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