जिस्मानी रिश्तों की चाह-49
(Jismani Rishton Ki Chah- Part 49)
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सम्पादक जूजा
मैं झुंझलाते हुए ही बाहर गया और अब्बू के गाड़ी बाहर निकाल लेने के बाद दरवाज़ा बंद करके सीधा अपने कमरे में ही चला गया।
मेरा मूड बहुत सख़्त खराब हो चुका था.. पहले ही आपी के साथ सेक्स ना हो सकने की वजह से झुंझलाहट थी और रही-सही कसर अब्बू की डांट ने पूरी कर दी।
मैं बिस्तर पर लेटा और तय किया कि सुबह सबसे पहला काम यही करना है कि जा कर लाइसेन्स बनवाना है।
इसी ऑफ मूड के साथ ही नींद ने हमला करके मेरे शरीर को सुला दिया।
मैं सुबह उठा तो मेरे जेहन में अब्बू की डांट ताज़ा हो गई, मैं जल्दी-जल्दी तैयार हुआ और नाश्ता करके लाइसेन्स ऑफिस चल दिया। वहाँ जा कर मैं शकूर साहब (अब्बू के दोस्त) से मिला.. उन्होंने एक आदमी मेरे साथ भेजा।
खैर.. सब पेपर वर्क निपटा कर मैं शकूर सहाब के पास गया और पूछा- तो अंकल ये लर्निंग तो कल मिल जाएगा ना.. उसके कितने अरसे बाद मुझे पक्का लाइसेन्स मिलेगा?
उन्होंने एक नज़र मुझे देखा और हँसते हुए बोले- बेटा अगर तुम्हारे लाइसेन्स में भी अरसा-वरसा या लर्निंग और कच्चे-पक्के लाइसेन्स का झंझट हो.. तो फिर तो हम पर लानत है ना।
मुझे उनकी बात कुछ समझ नहीं आई.. तो मैंने दोबारा पूछा- क्या मतलब अंकल?
वो बड़े फखरिया से लहजे में बोले- बेटा मैं सब देख लूँगा.. बस तुम्हारा काम खत्म हो गया है.. तुम जाओ घर.. और हाँ अब्बू को मेरा सलाम कहना.. मैं किसी दिन चक्कर लगाऊँगा।
मैंने अपने कंधों को लापरवाह अंदाज़ में झटका दिया.. जैसे मैंने कह रहा होऊँ कि ‘मेरे लण्ड पर ठंड.. मुझे क्या’
मैं वहाँ से सीधा कॉलेज चला गया।
कॉलेज से घर आया तो फरहान टीवी देख रहा था, मुझे देख कर बोला- भाई खाना टेबल पर रखा है.. खा लो।
मैंने अम्मी का पूछा.. तो फरहान ने बताया कि अम्मी और हनी मार्केट गई हैं और आपी को सलमा खाला अपने साथ कहीं ले गई हैं।
मैं खाना खा कर कमरे में गया और जाते ही सो गया क्योंकि आज थकान भी काफ़ी हो गई थी।
शाम में मैं सो कर उठा.. तो फ्रेश हो कर दोस्तों की तरफ निकल गया और रात को घर वापस पहुँचा.. तो 9 बज रहे थे।
मैंने सबके साथ ही रात का खाना खाया और अपने कमरे में आ गया।
काफ़ी देर आपी का इन्तज़ार करने के बाद भी आपी नहीं आईं.. मैंने टाइम देखा तो 11:30 हो चुके थे।
मैं फरहान को वहाँ ही लेटा छोड़ कर खुद नीचे आपी को देखने के लिए चल दिया।
मैं टीवी लाऊँज में पहुँचा.. तो आपी के कमरे का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला था। बाहर लाइट ऑफ थी.. लेकिन अन्दर लाइट जल रही थी और अम्मी और हनी आपी को वो कपड़े वगैरह दिखा रही थीं.. जो उन्होंने आज शॉपिंग की थी।
अम्मी और हनी की कमर मेरी तरफ थी और आपी उनके सामने बैठी थीं। मैं दरवाज़े के पास जा कर खड़ा हो गया और दरवाज़े की झिरी से हाथ हिलाने लगा कि आपी मेरी तरफ देख लें.. लेकिन काफ़ी देर कोशिश के बाद भी आपी ने मेरी तरफ नहीं देखा और मैं मायूस हो कर वापस जाने का सोच ही रहा था कि आपी की नज़र मुझ पर पड़ी और फ़ौरन ही उन्होंने नज़र नीची कर लीं।
लेकिन मैंने देख लिया था कि आपी को मेरी मौजूदगी का इल्म हो चुका है।
कुछ ही देर बाद आपी बिस्तर से उठीं और कहा- हनी तुम वो पीला वाला शॉपिंग बैग खोलो.. मैं पानी पी कर आती हूँ।
आपी यह कह कर दरवाज़े की तरफ बढ़ी ही थीं कि हनी ने आवाज़ लगाई- आपी प्लीज़ एक गिलास मेरे लिए भी ले आना प्लीज़..
मैं फ़ौरन दरवाज़े से साइड को हो गया कि दरवाज़ा खुलने पर अम्मी या हनी की नज़र मुझ पर ना पड़ सके।
आपी कमरे से बाहर निकलीं और अपनी पुश्त पर दरवाज़ा बंद करके किचन की तरफ जाने लगीं.. तो मैंने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें अपनी तरफ खींचा।
आपी इस तरह खींचे जाने से डर गईं और बेसाख्ता ही उनके हाथ अपने चेहरे की तरफ उठे और वो मेरे सीने से आ लगीं। आपी मुझसे टकराईं.. तो मैं भी पीछे दीवार से जा लगा और आपी को अपने बाजुओं में जकड़ लिया।
आपी के दोनों बाज़ू उनके सीने के उभारों और मेरे सीने के दरमियान आ गए थे।
उन्होंने हाथ अपने चेहरे पर रखे हुए थे और मैंने आपी को अपने बाजुओं में जकड़ा हुआ था।
आपी ने अपने चेहरे से हाथ हटाए और सरगोशी में बोलीं- सगीर.. कमीने कुछ ख़याल किया करो.. मेरी तो जान ही निकल गई थी.. ऐसे अचानक तुमने मुझे खींचा है।
मैंने भी सरगोशी में ही जवाब दिया- मैं समझा आपने मुझे दरवाज़े से हट कर दीवार से लगते हुए देख लिया होगा।
‘नहीं मैंने नहीं देखा था.. और अभी छोड़ो मुझे.. अम्मी और हनी दोनों अन्दर हैं.. बाहर ना निकल आएँ और अब्बू भी अपने कमरे में ही हैं।
आपी ने यह कहा और एक खौफजदा सी नज़र अब्बू के कमरे के दरवाज़े पर डाली।
मैंने आपी की कमर से हाथ हटाए और उनकी गर्दन को पकड़ कर होंठों से होंठ चिपका दिए।
आपी ने मेरे सीने पर हाथ रख कर थोड़ा ज़ोर लगाया और मुझसे अलग हो कर बोलीं- सगीर क्या मौत पड़ी है.. पागल हो गए हो क्या?
मैंने आपी का हाथ पकड़ा और अपने ट्राउज़र के ऊपर से ही अपने खड़े लण्ड पर रख कर कहा- आपी ये देखो मेरा बुरा हाल है.. आओ ना कमरे में..
‘सगीर पागल हो गए हो क्या.. अभी कैसे चलूं.. अम्मी और हनी कमरे में ही हैं.. तुम देख ही चुके हो।’
आपी ने ना जाने की वजह बताई.. लेकिन अपना हाथ मेरे लण्ड से नहीं हटाया और ट्राउज़र के ऊपर से ही मुठी में पकड़ कर मेरा लौड़ा दबाने लगीं।
मैंने आपी के सीने के राईट उभार को क़मीज़ के ऊपर से ही पकड़ कर दबाया और पूछा- तो कब तक फ्री होओगी? आपी आज चौथी रात है कि मैंने कुछ नहीं किया.. मेरा जिस्म जल रहा है।
‘मैं क्या कहूँ सगीर.. पता नहीं कितनी देर लग जाए।’
आपी ने अपनी बात खत्म की ही थी कि मैंने अपना ट्राउज़र थोड़ा नीचे किया और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और आपी को कहा- आपी प्लीज़ थोड़ी देर मेरा लण्ड चूस लो ना!
आपी ने मेरे नंगे लण्ड को अपने हाथ में पकड़ा और कहा- सगीर..! पागल हो गए हो क्या.. अपने आप पर थोड़ा कंट्रोल करो.. मैं फारिग हो कर तुम्हारे पास आ जाऊँगी ना!
मैंने आपी की बात सुनते-सुनते अपना राईट हैण्ड पीछे से आपी की सलवार के अन्दर डाल दिया था। मैंने आपी की गर्दन पर अपने होंठ रखते हुए अपने हाथ को उनके दोनों कूल्हों पर फेरा और उनके दोनों चिकने और सख़्त कूल्हों को बारी-बारी दबाने लगा।
मेरे होंठ आपी की गर्दन पर और हाथ आपी के कूल्हों पर डाइरेक्ट टच हुए.. तो उनका बदन लरज़ गया और वो सरगोशी में लरज़ती आवाज़ से बोलीं- सगीर.. आहह.. नहीं करो प्लीज़.. में. मैं बर्दाश्त नहीं.. कर पाऊँगी नाआ..
मैंने आपी की बात का कोई जवाब नहीं दिया और उनकी गर्दन को चाटता हुआ अपना मुँह गर्दन की दूसरी तरफ ले आया.. साथ-साथ ही मैंने अपना लेफ्ट हैण्ड आपी की सलवार में आगे से डाला और उनकी मुकम्मल चूत को अपनी मुठी में पकड़ते हुए दूसरे हाथ की ऊँगलियों को कूल्हों की दरमियान दरार में घुसा दिया और पूरी दरार को रगड़ने लगा।
आपी पर आहिस्ता-आहिस्ता मदहोशी सी सवार होती जा रही थी और वो अपनी आँखें बंद किए आहिस्ता-आवाज़ में बेसाख्ता बड़बड़ा रही थीं- बस सगीर.. सगीर छोड़ दो मुझे.. बस करो..
उनकी आवाज़ ऐसी थी जैसी किसी गहरे कुँए में से आ रही हो।
मैंने आपी की चूत को अपने हाथ से छोड़ा और दोनों लबों के दरमियान में अपनी ऊँगली दबा कर चूत के अंदरूनी नरम हिस्से पर रगड़ते हुए दूसरे हाथ की एक उंगली आपी की गाण्ड के सुराख में दाखिल कर दी।
मेरे इस दो तरफ़ा हमले से आपी ने तड़फ कर अपनी आँखें खोल दीं और होश में आते ही उन्हें अहसास हुआ कि हमारी पोजीशन कितनी ख़तरनाक है और किसी के आने पर हम अपने आपको बिल्कुल संभाल नहीं पाएंगे।
इसी ख़तरे के पेशेनज़र आपी ने लरज़ती आवाज़ में कहा- सगीर कोई बाहर आ जाएगा.. मेरे प्यारे भाई प्लीज़.. अपनी पोजीशन को समझो न.. खुदा के लिए!
आपी ने यह कहा ही था कि हमें एक खटके की आवाज़ आई और आपी फ़ौरन मुझे धक्का देकर पीछे हटीं और किचन की तरफ भाग गईं।
आपी के धक्का देने और पीछे हटने से मेरे हाथ भी आपी की सलवार से निकल आए थे। मैंने फ़ौरन अपना ट्राउज़र ऊपर किया.. मेरा दिल भी बहुत ज़ोर से धड़का था।
मैं कुछ सेकेंड वहीं रुका रहा और फिर दबे क़दम सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा।
वो खटका शायद कमरे के अन्दर ही हुआ था.. आपी किचन से पानी लेकर निकलीं तो मैं सीढ़ियों के पास ही खड़ा था।
आपी को किचन से निकलता देख कर मैं उनकी तरफ बढ़ा.. तो आपी ने गर्दन को नहीं के अंदाज़ में हिला कर मुझ पर एक गुस्से भरी नज़र डाली और मेरे क़दम रुकते ना देख कर भाग कर कमरे की तरफ चली गईं।
आपी ने कमरे के दरवाज़े पर खड़े हो कर पीछे मुड़ कर मुझे देखा।
मैं आपी को भागता देख कर अपनी जगह पर ही रुक गया था। आपी ने मुझे देख कर मेरी तरफ एक फ्लाइंग किस की.. लेकिन मैंने बुरा सा मुँह बना कर आपी को देखा और घूम कर सीढ़ियों की तरफ चल दिया।
कहानी जारी है।
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